डॉ. बचनसिंह सिकरवार
वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में सरकार द्वारा सरकारी भूमि पर सालों साल से अवैध रूप से जमाए कब्जों को हटाने के लिए जो अभियान चलाया जा रहा है, इस मुहिम का स्वागत/खैरमखदम किये जाने बजाय स्थानीय सियासी पार्टियाँ पहले से पुरजोर विरोध कर रही हैं, अब उनका साथ देने काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी उसकी मुखालफत पर उतर आए हैं। इतने ही नहीं, उन्होंने इसे तत्काल रोकने की माँग तक की। उन्होंने कहा कि लोगों को बाँटने से नहीं, एकजुट होने से शान्ति और कश्मीरियत की रक्षा होगी। वैसे राहुल गाँधी ऐसा कह कर किसे गुमराह कर रहे हैं ?यह किसी से छुपा नहीं है। अगर हकीकत में ऐसा होता, तो क्या इस्लामिक कट्टरपंथी,अलगाववादी और पाकिस्तान समर्थक आए दिन खूंखार दहशतगर्द संगठन ‘आइ.एस. और पाकिस्तान के झण्डे लहराते हुए हर जुम्मे/शुक्रवार को ‘हिन्दुस्तान मुर्दाबाद’, ’पाकिस्तान जिन्दाबाद’ नारों के साथ सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकते जुलूस निकलते थे? इन्होंने नब्बे के दशक में हिन्दुओं को हिंसा कर पलायन को मजबूर क्यों किया था?क्या यही कश्मीरियत है?
राहुल गाँधी ने एक ट्वीट में यह भी कहा है, ‘‘जम्मू-कश्मीर रोजगार, बेहतर व्यवसाय/कारोबार और प्यार चाहता था, लेकिन इसके बदले उसे मिला? भाजपा का बुलडोजर!‘‘ अब प्रश्न यह है कि क्या उन्हें गैरकानूनी कब्जा करने वालों से हमदर्दी क्यों हैं? क्या जम्मू-कश्मीर सरकार बेकसूरों के घरों या व्यावसायिक संस्थानों पर बुलडोजर चला रही है? क्या देश के दूसरे राज्यों की सरकारें अपनी जमीनों से गैरकानूनी कब्जों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करतीं?यदि करती हैं,तो जम्मू-कश्मीर में सरकार का ऐसा अभियान चलाना गलत क्यों हैं?क्या इसलिए कि वहाँ अवैध कब्जा करने वाले मुसलमान हैं?
वैसे राहुल गाँधी ने अपनी इस माँग के पक्ष में यह तर्क भी दिया है कि जिस जमीन को लोगों ने कई दशकों तक अपनी मेहनत से सींचा है, उसे अब उनसे छीना जा रहा है। अगर ऐसा है तो क्या अब राहुल गाँधी देश भर में गैर कानूनी तरीके से सरकारी/गैर सरकारी भूमि को कब्जा करने वालों के पक्ष में अभियान चलायेंगे ? यदि वे देश में अवैध रूप से किसी की भी जमीन कब्जा करने को जायज समझते/मानते हैं, तो अब तक इस मुद्दे पर खामोश क्यों बने रहे? अब राहुल गाँधी इसकी शुरुआत कम से कम काँग्रेस शासित राज्यों से कर सकते हैं।
दरअसल, सरकारी जमीन पर अवैध कब्जेदारों की हिमायत के पीछे राहुल गाँधी के लिए भले ही सत्ता की सियासत(अल्पसंख्यक थोक वोट बैंक) है, पर जम्मू-कश्मीर आधारित सियासी पार्टियों के लिए सिर्फ सियासत नहीं,बल्कि मजहबी मकसद(लैण्ड जिहाद) भी है। वस्तुतः राजस्व विभाग के आयुक्त सचिव विजय कुमार विधूड़ी ने गत 7जनवरी को सभी उपायुक्तों को सरकारी भूमि से अतिक्रमण शत-प्रतिशत हटाने का निर्देश दिया था, जिसके बाद से जम्मू-कश्मीर में अभी तक 10 लाख कनाल (सवा लाख एकड़)से अधिक भूमि से कब्जा हटाया जा चुका है, इससे इस्लामिक कट्टरपंथी बहुत ज्यादा हैरान-परेशान हैं।
इसके लिए सदियों से जम्मू-कश्मीर में इस्लामिक कट्टरपंथी तलवार के जोर पर गैर मुसलमानों को अपने मजहब कुबूल करने को मजबूर करते आए हैं। फिर देश के बँटवारे के बाद शेख अब्दुल्ला ने यहाँ की सत्ता सम्हालते ही तथाकथित समाजवादी नीति के तहत हिन्दुओं से उनकी जमीन लेकर अपने हममजहबियों में बाँट दी। उनके बाद संविधान में अनुच्छेद 370 और 35ए जुड़वा कर इस सूबे को खास दर्जा दिया, ताकि कालान्तर में यहाँ ‘दारूल इस्लाम’ कायम किया जा सके। इन अनुच्छेदों की वजह से इस सूबे की सत्ता पर एक ही मजहब के लोग काबिज होत रहे, जिसकी वजह से शासन की शह पर एक ही मजहब के लोगों को सरकारी जमीन पर गैर कानूनी तरीके से कब्जा कराया जाता रहा। सन् 1990 में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा कश्मीर घाटी को हिन्दू विहीन बनाने लिए बड़े पैमाने पर हिंसा की गई। नतीजा कोई चार लाख हिन्दू अपने खेत, बाग और घर छोड़कर जाने को मजबूर हुए। इसके पश्चात् पड़ोसी मुसलमानों ने जबरन या डरा-धमका उन्हें अपनी जायदाद अपने नाम करा लिया। इतना ही नहीं, हिन्दू बहुल जम्मू में अपने हममजहबियों की तादाद बढ़ाने को रोशनी एक्ट की आड़ में वन, सिंचाई विभाग और दूसरी सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जों के जरिए एक समानान्तर शहर बसा दिया,इसमें स्थानीय सियासी पार्टियों और काँग्रेस के नेता शामिल थे। लेकिन जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय द्वारा एक जनहित याचिका की सुनवाई पर अपने निर्णय के जरिए ‘रोशनी एक्ट’ की आड़ में कब्जाई जमीन को मुक्त कराया जा रहा है। इस दौरान 5 अगस्त, 2019 को केन्द्र सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाये जाने के बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों को इस सूबे में निजाम-ए-मुस्ताफा’ कायम करने का ख्वाब टूटता नजर आ रहा है। अब इस सूबे को विभाजित कर दो केन्द्र प्रशासित राज्यों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख बनाये जाने से ये लोग बेहद परेशान हैं।इन इस्लामिक कट्टरपंथियों की बचीकुची उम्मीद विधानसभाओं और लोकसभा के परिसीमन ने तोड़ दिया। अब उन्हें भविष्य में सत्ता हासिल करने की कोई उम्मीद नहीं है।
ऐसे में राहुल गाँधी का यह वक्तव्य का न पूर्णतः निराधार है, वरन् राष्ट्रहित के विरुद्ध भी है। वैसे उन्हें इस अभियान की गम्भीरता का ज्ञान न हो यह सम्भव नहीं। इसलिए यही कहा जा सकता है राहुल गाँधी जैसे नेताओं के लिए राष्ट्रहित से बड़ा, स्वयंहित/सियासत है। वैसे देश के लोग ऐसे कथित नेताओं की असलियत को समझ चुके हैं, वे उनके कहे पर भरोसा भी नहीं करते है और वे उनके किसी झांसे में आने वाले भी नहीं है।
सम्पर्क-डॉ. बचनसिंह सिकरवार, 63ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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