देश-दुनिया

कब मिलेगी धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी ?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

हाल में विश्वभर के 27 देशों द्वारा प्रत्येक मनुष्य की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करने तथा उसे सुदृढ़़ करने के उद््देश्य से ‘अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता गठबन्धन’ बनाये जाने से स्पष्ट है कि भले ही मानव ने विकास की तमाम ऊँचाइयाँ छू ली हैं, लेकिन जो धर्म/मजहब मनुष्य को मनुष्यता का पाठ पढ़ाने के लिए बनाया गया ,वही सदियों से दूसरे मत के लोगों को सताने/मिटाने की वजह बनता आया है और यह सिलसिला अभी तक जारी बना हुआ है। इसी वजह से अब ऐसे संगठन की जरूरत पड़ी है। इस अवसर अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो द्वारा पाकिस्तान पर अल्पसंख्यक हिन्दुओं का उत्पीड़न किये जाने को जो आरोप लगाया है, वह सर्वथा सत्य है। इससे भारत सरकार के ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 की प्रासंगिकता और अपरिहार्यता ही स्पष्ट होती है,जिसका अपने देश में काँग्रेस समेत भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों द्वारा अल्पसंख्यक वोट बैंक की खातिर लगातार विरोध किया जा रहा। हकीकत यह है कि 14 अगस्त, सन् 1947 में पाकिस्तान का जन्म ही मजहबी बिना पर भारत के बँटवारे से हुआ ,तब से ही इस मुल्क का बहुसंख्यक मुसलमान वर्ग के हिंसक अतिवादी हिन्दुओं के साथ-साथ सिखों, ईसाइयों को निशाना बनाते आए है। यहाँ तक कि पाकिस्तान में इस्लाम के ही विभिन्न फिरकों के बीच खूनी संघर्ष की वारदाताएँ भी आए दिन होती रहती है। इस मुल्क में इस्लाम मानने वाले एक फिरके अहमदिया मुसलमानों को इस्लाम से ही खारिज कर दिया गया है। उन्हें अपने को मुसलमान बताने/लिखने की तक की इजाजत नहीं है। दुर्भाग्य की बात यह है कि मजहबी भेदभाव महज पाकिस्तानी लोगों की ही फितरत नहीं ,बल्कि इसमें शासक वर्ग भी शामिल है। यहाँ अल्पसंख्यकों को अदालत से भी इन्सफ नहीं मिलता। इसी 3 फरवरी को पाकिस्तान की अदालत ने 14 साल की ईसाई किशोरी को अगवा कर उसका धर्मान्तरण कर निकाह किये जाने को जायज ठहराया गया। इससे जाहिर है कि इस मुल्क की अदालतों से भी गैर मुसलमानों के लिए इन्साफ पाना नामुमकिन ही नहीं असम्भव है। इस ईसाई किशोरी हुमा के पिता यूनिस और माँ नगीना मसीह के मुताबिक उनकी बेटी हुमा को पिछले अक्टूबर में सिन्ध से अगवा किया गया। उसके बाद अपहरण करने वाले अब्दुल जब्बार ने मजहब बदलवा कर उससे निकाह कर लिया। तब हुमा के माता-पिता ने सिंध हाईकोर्ट ने याचिका दायर की। इस पर जास्टिस मुहम्मद इकबाल कलहोरो और जास्टिस इरशाद अली की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि यह ठीक है कि लड़की

साभार सोशल मीडिया

नाबालिग है,किन्तु उसका मासिक धर्म शुरू हो चुका है। ऐसे में इस्लामी कानून के मुताबिक अगवा करने वाला अब्दुल जब्बार के साथ उसका निकाह पूरी तरह जायज है। पाकिस्तानी अदालतों का अल्पसंख्यकों के बारे में यह पहला मामला नहीं है। ज्यादातर मामलों में उनका यही रवैया रहता है। इससे पहले ननकाना साहिब में एक सिख किशोरी के मामले में भी अदालत ने ऐसा ही फैसला दिया था।उस वक्त गुरुद्वारा ननकाना साहिब पर पथराव भी किया गया था। इसी 25जनवरी को चार लोगों ने पाकिस्तान के थार में छाचरे शहर स्थित माता देवल भिटानी मन्दिर की मूर्तियाँ तोड़ दी और उनके मुँह पर रंग पोत दिया।
पाकिस्तान में मजहबी आधार पर होने वाले भेदभाव और उत्पीड़न की वजह से अल्पसंख्यक हिन्दू,सिख, ईसाई,जैन आदि की संख्या लगातर कम होता गया है,जो अल्पसंख्यक वर्ग सन् 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान में 24प्रतिशत तथा पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) 25प्रतिशत था,वह अब क्रमशः 3प्रतिशत और 7 प्रतिशत के लगभग रह गए हैं। इन दोनों इस्लामिक मुल्कों में अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थल भी बस नाम के बचे हैं, ज्यादातर को नष्ट कर उन पर कब्जा कर लिया गया है। पाकिस्तान में हर साल कोई एक हजार हिन्दू, ईसाई, सिख नाबालिग लड़कियों का अपहरण कर उनका धर्मान्तरण कराके उनका मुसलमान युवाओं के साथ निकाह करा दिया जाता है।उनके साथ होने वाले इस जुल्म में मुल्ला,मौलवियों के साथ-साथ शासन, प्रशासन, पुलिस और अदालतें भी शामिल हैं। अफगानिस्तान में कभी पाँच लाख सिख तथा कुछ हजार हिन्दू रहते थे,पर कुछ हजार सिख ही वहाँ बचे हैं। मुस्लिम कट्टरपन्थी संगठन तालिबान ने बामियान स्थित भगवान बौद्ध की प्राचीन विशाल प्रख्यात प्रतिमा बम विस्फोट कर ध्वस्त कर दी। भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में मुस्लिम बहुसंख्यकों की शह पर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने 19जनवरी,सन् 1950को हिंसा के जरिए कोई 5लाख कश्मीर पण्डितों को न सिर्फ अपना घरबार छोड़ने को मजबूर किया, बल्कि उनके धार्मिक स्थल भी नष्ट कर दिये।लेकिन तत्कालीन नेशनल कॉन्फ्रेंस तथा काँग्रेस की साझा सरकार समेत केन्द्र सरकार मूकदर्शक बनी रही।
अब धार्मिक स्वतंत्रता के लिए बने गठबन्धन में अमेरिका, ब्रिटेन, आस्टेªलिया, इजराइल, नीदरलैण्ड, ब्राजील,ग्रीस, यूक्रेन आदि 27 मुल्क शामिल हुए हैं। इस गठबन्धन को लेकर अमेरिकी विदेश मंत्री माइकल पोंपियो का कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी धार्मिक मान्यता के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करे, यह गठबन्धन की सर्वोच्च प्राथमिकता है। इसके लिए गठबन्धन ऐसे प्रयास करेगा, जो कभी नहीं हुए हैं। इस समय दुनिया के दस में से आठ लोग अपनी धार्मिक मान्यता के अनुसार जीवन व्यतीत नहीं कर पा रहे हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा था कि वह आतंकवादियों और हिंसक अतिवादियों की निन्दा करती है, जो धार्मिक अल्पसंख्कों को निशान बनाते हैं। चाहे वे इराक में याजिदी समुदाय के लोग हों, पाकिस्तान में हिन्दू हों, नाइजीरिया में ईसाई हों या म्यांमार में रोंहिग्या मुसलमान हों। हम ईशनिन्दा कानून और स्वधर्म त्याग कानून की भर्त्सना करते हैं। ये कानून मनुष्य की आत्मा के साथ अपराध करते हैं। वह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सभी धार्मिक गतिविधियों के दमन वाले कृत्यों की भी भर्त्सना करते हैं। चीन के दाबव के बावजूद कुछ इस गठबन्धन में शामिल होने को तैयार हुए हैं, वह उनका शुक्रिया अदा करते हैं। निश्चय ही उनके इस कथन और गठबन्धन से पाकिस्तान तथा चीन का परेशानी हो रही होगी,क्यों कि इस कारण उनका असली चेहरा दुनिया के सामने उजागर हुआ है जिसकी ये बार-बार छुपाने की नाकाम कोशिशें करते आए हैं।
धार्मिक आधार पर दुनिया के अनेक देशों में लोगों को उत्पीड़न किया जा रहा है,जैसे चीन में तिब्बतियों और उइगर मुसलमानों, अफगानिस्तान में सिख और हिन्दुओं, इराक, ईरान, तुर्की इत्यादि में कुर्द मुसलमानों, श्रीलका में तमिल हिन्दुओं, मलेशिया में तमिल हिन्दुओं, ईसाइयों, कई अफ्रीकी देशों में ईसाइयों के साथ। इस्लामिक दुनिया के मुल्क ईरान, इराक ,यमन, सीरिया, लीबिया आदि में सुन्नी तथा शियाओं के संघर्ष से सभी परिचित हैं,जो एक-दूसरे का खून बहा रहे हैं, फिर भी इस्लामिक रहनुमा खामोश बने हुए है,यह देखकर हैरानी होती है । चीन के शिनजियांग प्रान्त में दस लाख से अधिक उइगर मुसलमानों को यातना शिविरों रखा जा रहा है। उन पर दाढ़ी रखने, नमाज पढ़ने, रोजा रखने, महिलाओं को बुर्का, हिजब पहनने, अरबी नाम रखने आदि पर पाबन्दी है।उनकी मस्जिदों की मीनारें तुड़वा दी गईं हैं। सन् 2011 में मुस्लिम बहुल सूडान से अलग हेाकर नीलोटिक ईसाई समुदाय के लिए दक्षिण सूडान देश बना। ऐसे ही इण्डोनेशिया के कब्जे वाले तिमोर द्वीप का वर्ष 2002 में विभाजन कर केवल 15000वर्ग किलोमीटर में उत्पीड़न के शिकार ईसाई समुदाय के लिए पूर्वी तिमोर नामक देश की स्थापना हुई।
अब आशा की जानी चाहिए कि अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता का गठबन्धन के बनने के बाद दुनिया में धार्मिक असहिष्णुता बरतने जाने की घटनाओं में कमी आएगी।इसके लिए दुनिया के बड़े देश तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन धार्मिक उत्पीड़न तथा भेदभाव की नीति पर चलने वाले मुल्कों पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने जैसे प्रभावी कदम भी उठायेंगे।

सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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