राजनीति

हिन्दू और उनकी आस्थाओं पर ही पर प्रहार क्यों ?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में मध्य प्रदेश के गढ़ा स्थित बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पण्डित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री द्वारा भगवान हनुमान जी कृपा से अपने आश्रम/कार्यक्रमों में पधारे लोगों के निजी जानकारी बताने, उनके विभिन्न रोगों का निदान करने तथा मनोरोगियों ( भूत-प्रेत उतारने) का उपचार करने को अन्ध विश्वास फैलाने का आरोप लगाते हुए उन्हें ढोंगी बताकर बदनाम करने में लगे हैं, वहीं बिहार की महागठबन्धन सरकार के शिक्षामंत्री चन्द्रशेखर प्रसाद और अब समाजवादी पार्टी के एम.एल.सी. तथा पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘श्रीरामचरित मानस’ की चौपाइयों की अनुचित व्याख्या करते हुए उसे प्रतिबन्धित किये जाने की जिस प्रकार माँग की गई, इन सभी वाकयों के अनेकानेक निहितार्थ हैं। इन दोनों मुद्दों ने करोड़ों हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत हुई। इसलिए उनमें आक्रोश व्याप्त है और सन्त समाज उद्वेलित और आन्दोलित हैं। देश के कई शहरों में इन निन्दकों के विरोध में हिन्दू प्रदर्शन कर उनके पुतले तक फूँके जा रहे हैं, लेकिन वोट बैंक की सियासत करने वाले नेता खुलकर पण्डित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री तथा श्रीराम चरित मानस पर अनर्गल बयान बाजी करने वालों की खुलकर निन्दा करने से यथा सम्भव बचने की कोशिश कर रहे हैं या फिर खामोश बने हुए हैं, वहीं वामपंथी, घोर जातिवादी राजनीतिक पण्डित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री और श्रीरामचरित मानस के आलोचकों को सही ठहराते हुए उनके बचाव में लगे हैं। अब लखनऊ के हजरतगंज कोतवाली में श्रीरामचरित मानस पर विवादित टिप्पणी को लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ एफआइआर भी दर्जा करा दी गई है। इन मुद्दों पर टी.वी.चैनल बहस करा रहे हैं। कुछ चैनल तो पूरे दिन आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री का ही समाचार दिखा रहे हैं,जैसे देश-दुनिया कुछ और नहीं घट रहा है। प्रश्न यह है कि जो लोग पण्डित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री को ढोंगी, पाखण्डी बताते हुए अप्रत्यक्ष रूप से हिन्दू देवी-देवताओं की सामर्थ्य पर सवाल खड़े कर रहे हैं,क्या ये लोग किसी और धर्म/मजहब/सम्प्रदाय पर और उसके पवित्र ग्रन्थों के बारे एक शब्द बोलने का साहस दिखाने की हिम्मत दिखा सकते हैं। अगर देश में ऐसे लोग होते, तो क्या भगवान शिवलिंग का उपहास उड़ाने पर एक महिला नेत्री उसके धर्मग्रन्थ का उल्लेखभर से सर तन से जुदा के नारे लगाने की कोई जुर्रत करता?
अपने देश में चाहे लिखने की बात हो या सिनेमा या फिर विमर्श अभिव्यक्ति स्वतंत्रता सिर्फ हिन्दुओं की आस्था,उनके देवी-देवता, रीति-रिवाज, परम्परा,ग्रन्थ तक सीमित क्यों हैं?दूसरे धर्म/मजहब के मामले इन सभी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहाँ विलुप्त हो जाती है?
अब जहाँ तक बाघेश्वर धाम के पण्डित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री को निशाने पर लेने की बात है तो उसका तात्कालिक कारण उनके द्वारा कोई 250 ईसाइयों की पुनःहिन्दू धर्म में लाना या उनकी घर वापसी के साथ-साथ एक मुस्लिम युवती को हिन्दू धर्म अंगीकार करना रहा है। उनका यह कृत्य वामपंथियों और ईसाई मिशनरियों के पक्षधरों को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने नागपुर की संस्था अन्ध विश्वास निर्मूल समिति के सदस्य श्याम मानव को उनके पीछे लगा दिया। अब ज्ञात हुआ है कि अब ये ही श्याम मानव राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा में दिखायी दे रहे हैं। इससे क्या साबित होता है? ऐसे में किसी समझाने की जरूरत कहाँ रह जाती है? वस्तुतः पण्डित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की भागवत कथा को सुनने को हजारों लोग आते हैं, अब उन्होंने घर वापसी अभियान छेड़ा हुआ है। इससे ईसाई बेहद परेशान हैं।
घोर जातिवादी सियासत करने वाली लालू प्रसाद यादव की ‘राष्ट्रीय जनता दल’(राजद) के सरकार के शिक्षामंत्री चन्द्रशेखर प्रसाद और ‘समाजवादी पार्टी’ (सपा) के एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्य की सत्ता की भूख इतनी बढ़ गई, उन्हें न तो इसके लिए हिन्दुओं को जातियों के नाम पर आपस में बाँटने और लड़ाने में कोई शर्म तथा संकोच है। इस तिकड़म से ही वह और उन जैसे तमाम लोग सत्ता की मलाई चटते आए हैं। वैसे भी स्वामी प्रसाद मौर्य की सियासत की शुरुआत जिस सियासी पार्टी में हुई थी,उसमें हिन्दू देवी-देवताओं के खिलाफ न जाने क्या-क्या कहा जाता रहा है। फिर उसकी बुनियाद ही विभाजनकारी जातिवादी नफरत क पर टिकी है। एक तरफ इन्हें हिन्दू धर्म में दुनियाभर के खोट दिखायी देते हैं, वहीं दूसरे मजहब में एक भी कमी नहीं नजर आती है,क्योंकि उसके बगैर सत्ता नहीं मिलेगी। वैसे स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे लोग जानते हैं हिन्दू सहनशील हैं, वे दूसरों की तरह तन सर से जुदा में यकीन नहीं रखते है, इसलिए उनके देवी-देवताओं को कुछ कहते रहो। स्वामी प्रसाद मौर्य हों या चन्द्रशेखर प्रसाद हों, हकीकत में उन्हें श्रीरामचरित मानस की चौपाइयों को लेकर कोई परेशानी नहीं है। दरअसल, ये दोनों तो श्रीरामचरित मानस को हथियार बना बस अपनी जातिवादी सियासत को धार देना चाहते हैं। ये सोचते हैं कि ऐसा कर वे अनुसूचित और पिछड़ी जातियों को भाजपा के पाले से निकाल कर अपने पक्ष में कर लेंगे। हालाँकि श्रीरामचरित मानस पर विवादित टिप्पणियों को हिन्दुओं की नाराजगी को देखते हुए समाजवादी पार्टी न स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से अपना पल्ला झाड़ लिया है,बल्कि कुछ उसके प्रवक्ताओं ने श्रीरामचरित मानस के पक्ष में बहुत कुछ है। यह अलग बात है कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी सियासती नफा-नुकसान को देखते हुए खामोश बने हुए हैं। इस दौरान स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित टिप्पणी को राजनीतिक दलों के साथ संतो और मुस्लिम धर्म गुरुओं ने उनके बयान की निन्दा करते हुए अपने शब्द वापस लेने की माँग की है। जहाँ तक श्रीरामचरित मानस का प्रश्न है तो उसमें भगवान श्रीराम का चरित्र, आचरण, कार्यकलापों का उल्लेख है। उनका आदर्श चरित्र ही भारतीयों और उनके परिवार के चरित्र का प्रतिमान बना हुआ है। उस पर प्रश्न करना स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे लोगों की बुद्धि पर प्रश्न चिह्न लगाता है? क्या स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे लोग किसी राजा-महाराजा की संतान नहीं है, पर उनका अहंकार किसी चक्रवर्ती सम्राट से कम दिखायी नहीं देता,वहीं भगवान राम ने न केवल सत्ता का परित्याग किया, वरन् समाज के हर वर्ग का समादर करते हुए निषादराज, शबरी के झूठे बेर खाए, वानरों को गले लगाया, पक्षीराज जटायु को सम्मान दिया। फिर भी उनके उपासक गोस्वामी पर जातिवाद फैलाने का मिथ्या आरोप लगाने का दुस्साहस किया है।
वैसे स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे लोगों को इस सच्चाई का पता चलना चाहिए कि अब हिन्दू जाग गया है। जातपांत में बाँट कर अपनी सत्ता की जुगाड़ करने और उन जैसे दोहरे चरित्र वालों की असलियत वह जान जा चुका है।वह उनके किसी बहकावे में आने वाला नहीं है। वह यह भी जान गया है कि उसके और देश के लिए कौन सही है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003,मो.नम्बर-9411684054

 

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