डॉ.बचन सिंह सिकरवार
देश को अँग्रेजों की गुलामी से आजाद हुए पौन सदी हो गई, लेकिन विरासत में मिले भ्रष्टाचार का सुरक्षा के मुँह की तरह बढ़ना जारी है। वर्तमान में इसकी चपेट में आए बगैर देश में आम आदमी का जीना दुश्वर हो गया है। केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकारें भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टोलरेन्स का दावा कर रही हैं, पर हकीकत इसके उलट है। यह सच है कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने को केन्द्र और उ.प्र.सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम को सख्ती से लागू करने का प्रयास किया है और बड़ी संख्या में पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई भी की है। उर्वरक यूरिया पर नीम की कोटिंग/लेपन, सार्वजनिक खाद्य वितरण केन्द्रों पर इलैक्ट्रोनिक डिवाइस अंगूठा लगवाने, सार्वजनिक अनुदान का डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम आदि से एक सीमा तक भ्रष्टाचार पर रोक लगी है। अपने देश भ्रष्टाचर रोकने के लिए सी.बी.आइ.से लेकर तमाम विभाग हैं, फिर भी सरकारी कार्यालयों/न्यायालयों में रिश्वतखोरी बदस्तूर जारी है। इतना ही नहीं, जिन पर भ्रष्टाचार के निवारण का दायित्व है, वे मूकदर्शक बने हुए हैं या फिर उसमें शामिल हैं। इनमें सभी राजनीतिक दलों के जनप्रतिनिधि भी कहीं न कहीं सम्मिलित हैं। कठोर सच्चाई यह है कि अपने देश में व्यक्ति के जन्म लेने से लेकर मरने और उसके मृत्यु प्रमाण तक भ्रष्टाचार से अटूट रिश्ता बन जाता है। इन भ्रष्टाचारी असुरों पर अच्छे-अच्छे सूरमा भी पार नहीं पा पाए हैं। इस अपरिमित भ्रष्टाचार/अनाचार से ग्राम प्रधान से लेकर शीर्ष नेता तक भली भाँति परिचित हैं, पर इस संजाल का तोड़ने को किसी में भी वैसी आकुलता-व्याकुलता/बेचैनी दिखायी नहीं देती है, जिसकी आम आदमी उनसे अपेक्षा करता है।
क्षोभ की बात यह है कि केन्द्र और राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारें आयीं और गईं, जो राजनीतिक दल विपक्ष में रहते हुए सत्तारूढ़ दल पर भ्रष्टाचार करने या उसे शरण या उसका बचाव करने का आरोप लगाते हैं, वे ही सरकार में आने पर उसी व्यवस्था का हिस्सा बन जाते हैं। जहाँ कहीं जिन लोगों ने भ्रष्टाचार के इस अजदह को चुनौती दी, उसने उसे ही समूचा निगल लिया। इसका कारण पूँजीपतियों, नेताओं, नौकरशाहों, इंजीनियरों, ठेकेदारों, सरकारी कर्मचारियों, पुलिसकर्मियों का देश के प्राकृतिक संसाधनों और जनता के उत्पीड़न तथा शोषण करने की दुरभि सन्धि है।
इस सच्चाई को देखते हुए जो व्यक्ति इस अनैतिक कुकर्म से स्वयं को बचाना चाहता है,उसे भी अपना सम्मान, धन-सम्पत्ति और अपना अस्तित्व सुरक्षित रखने को रिश्वत देने को विवश होना पड़ता है। इस भ्रष्ट व्यवस्था के चलते देश में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति मिलेगा, जिसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रिश्वत देने को मजबूर न होना पड़ा हो। कुछ कहना है,‘‘ भारत रहने लायक नहीं है,क्योंकि हर जगह रिश्वत का बोलवाला है, लेकिन यहाँ अच्छी बात यह है कि यहाँ रिश्वत देकर गलत काम भी आसानी से हो जाते हैं।’’ भ्रष्टाचार को लेकर यह कहावत भी प्रचलित है। ‘रिश्वत लेते पकड़े जाओ और रिश्वत देकर छूट जाओ।’ यथार्थ में हो भी यह रहा है। यही कारण है कि किसी भी भ्रष्टाचार सरकारी अधिकारी को अभी तक नमूने की सजा नहीं मिली है।
कटु सत्य है कि हर जगह रिश्वत देकर काम कराने की प्रवृत्ति की वजह से भ्रष्टाचार जिन्दगी का अभिन्न हिस्सा बन गया है। घर बनवाने के लिए जमीन खरीदने, उसका नक्शा पास करने, पानी और बिजली का संयोजन/कनेक्शन बगैर रिश्वत दिये नहीं मिलता। यूँ तो देश में कोई भी सरकारी विभाग ऐसा नहीं है, जहाँ रिश्वत का चलन न हो। लेकिन इनमें सर्वशक्तिमान सरकारी विभाग पुलिस है, जिसका सबसे छोटा कर्मचारी सिपाही को इतना अधिकार प्राप्त है कि वह चाहे तो किसी भी बड़े से बड़े तुर्रम खाँ यानी किसी भी अधिकारी, सांसद, विधायक, मंत्री, संत्री को उसके साथ सरे आम गाली-गालौंच से लेकर उसकी बेइज्जती और जमकर मारपीट भी कर सकता है। इतना ही नहीं, ये पुलिस कर्मी किसी को भी चोर, लुटेरा, डाकू, गांजा, अफीम, चरस, अवैध हथियारों का तस्कर बना कर हवालत में बन्द कर सकते हैं। यहाँ तक कि किसी को डाकू बताकर मुठभेड़ दिखाकर उसकी जान भी सकते हैं। अगर उन्हें ईश्वर का भय न हो, तो ये पुलिस कर्मी रिश्वत के लिए किसी की भी जान भी ले सकते हैं। निर्दोष को दोषी और अपराधी को साधू साबित करना इनका बायें हाथ का खेल है। इनके लिए सबसे अच्छा थाना वह समझ जाता है, जिसमें अधिकाधिक अवैध शराब, गांजे, जुए, वेश्यावृत्ति आदि अपराध के अड्डे हों, क्योंकि उनके संरक्षण के लिए बदले ही तो पुलिस थाने को महावारी/चौथ बँधी होती है। बगैर हथेली गर्म किये पुलिस सामान्य अपराधों की भी कार्यों रिपोर्ट दर्ज करने में आनाकानी करती है। यदि रिपोर्ट दर्ज भी हो जाती है तो मामले की छानबीन में उदासीनता बरती जाती है। इसमें आम आदमी का पुलिस पर भरोसा घटता है, तो घटता रहे है इनकी बला से। पुलिस जिस तरह अपराधों को गम्भीरता से नहीं लेती, उसी तरह वह सड़कों पर अतिक्रमण और सरकारी अथवा गैर सरकारी जमीन पर अवैध कब्जों की भी उसकी तरफ से अनदेखी ही अधिक होती है। इससे इन्हें कोई मतलब नहीं है। शहरों में जितने भी साप्ताहिक बाजार लगते है, उनसे पुलिस की चौथ बँधी होती है। विडम्बना यह है कि फिर भी थलसेना, वायुसेना, नौसेना, सभी प्रकार के सुरक्षा बलों, शासकीय सेवाओं में भर्ती के लिए पुलिस के प्रमाण पत्र की अनिवार्य आवश्यकता होती है, जिसके लिए पद के महत्त्व के अनुसार रिश्वत देने को विवश होना पड़ता। पासपोर्ट की जाँच भी बगैर चौथ दिये सम्भव नहीं है। यही स्थिति शासकीय सेवा में जरूरी चिकित्सक के स्वास्थ्य प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए है,यह भी रिश्वत दिये बिना नहीं मिलता। क्या इस सत्य से हमारे सांसद या विधायक से परिचित नहीं हैं?
चूँकि भारत गाँवों में बसता है और वहाँ ज्यादातर लोग कृषि से जीविका कमाते हैं।इसलिए उनका सबसे ज्यादा तहसील के लेखपाल/पटवारी से पड़ता। यही सबसे अधिक ग्रामीण को शोषण करता है और ग्रामीण विवादों के लिए उत्तरदायी है। तहसील में लेखपाल से बगैर जेब गरम करे उससे कोई भी छोटा-बड़ा कार्य जैसे जाति, आय प्रमाण पत्र, अनुदान आदि प्राप्त करने से लेकर जमीन की माप कराना असम्भव है। आप उसके भ्रष्टाचार की शिकायत कर उसका बाल बांका भी नहीं बिगड़वा सकते। वह चाहे तो आपको अर्स से फर्श पर ला सकता है। गाँवों में ग्रामीणों को भी सरकारी योजनाओं को लाभ पाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। बेसिक शिक्षा विभाग में किसी भी प्रकार का अवकाश स्वीकृत कराने, बकाया वेतन या वृद्धि, तबादला कराने आदि के लिए चढ़ावा जरूर चढ़ना पड़ेगा। ऐसा किये बिना कार्य करना आसमान से तारे तोड़ लाना होगा।नगर पालिका हो या नगर निगम जन्म या मृत्यु प्रमाण पत्र या अपने घर के गृहकर में सुधार करना आदि हर कार्य करने के लिए रिश्वत ली जाती है। सभी शहरों में दुकानदारों को विभिन्न सरकारी विभागों के अधिकारियों/कर्मचारियों को रिश्वत देनी पड़ती है, ऐसा किये बगैर एक दिन भी दुकान चलाना सम्भव नहीं है। अगर ये ऐसा नहीं करते, तो कभी खाद्य विभाग का छापा पड़ेगा, तो बाँट तोल विभाग या फिर कभी श्रम विभाग के अधिकारी नियत समय से अधिक देर तक आरोप लगा कर,तो कभी श्रमिकों को लेकर दण्ड का भय दिखाकर चौथ लेकर ही उसका दामन छोड़ते हैं। इसके अलावा जी.एस.टी. की अलग क्लेश। इससे कबाड़िये भी अब नहीं बचे हैं। हर शहर में श्रम विभाग के अधिकारियों की कारखानों से निश्चित चौथ बँधी होती है।
यातायात विभाग को भ्रष्टाचार का अड्डा कहना अनुचित न होगा इसमें लाइसेन्स या परमिट या वाहन की किसी तरह की जाँच कराने, शुल्क जमाने कराने, लाइसेन्स का नवीनीकरण कराने या किसी भी प्रकार गलती पर पैनल्टी कम कराने या बचने के लिए अधिकारियों/लिपिकों को रिश्वत देनी पड़ती है, इसमें रिश्वत की दरें नियत होती हैं। सच्चाई यह है कि आप के पास कितने भी सही प्रपत्र हों, पुलिस और परिवहन विभाग के कर्मियों को मुँहमाँगी चौथ देने के साथ-साथ उनकी गालियाँ, पिटाई और हर तरह की बेइज्जती सहने के शक्ति/सामर्थ्य नहीं है तो आप देश में कहीं भी ट्रक और टैक्सी आदि नहीं चला सकते। इस क्षेत्र में वही सफल होता, जो उक्त कलाओं में पारंगत है। सिंचाई विभाग में पतरौल से लेकर दूसरे अधिकारियों/कर्मचारियों रिश्वत दिये बिना बम्बा, नहर की न सफाई होगी और न उसमें पानी आएगा। यहाँ तक कि किसी और गलती पर आपको दण्डित कर दिया जाएगा।
जो जनसंचार-समाचार पत्र-पत्रिकाएँ, रेडियो, दूरदर्शन,टी.वी.चैनल स्वयं लोकतंत्र का चौथा खम्भा होने का भ्रम पाले हुए हैं उन्हें भी अपने से सम्बन्धित सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, आर.एन.आई.,डी.ए.वी.पी.आदि से अपने काम निकलने को अधिकारियों को खुश करना पड़ता है। ठेकेदारों को हर कोई बेईमान बताकर उनके बारे में अपशब्द बोलता है, जबकि उसका इस क्षेत्र कार्य अत्यन्त दुरुह है। उसे ठेका लेने से लेकर निर्माण कार्य भुगतान लेने के लिए हर जगह खुशामद करने, दुतकार खाने से लेकर रिश्वत देनी पड़ती है और काम में पायी जाने पर आर्थिक क्षति/जुर्माना ही नहीं,जेल तक जाना पड़ता है। ठेकेदार को निर्माण कार्य के लिए आवण्टित राशि में से लगभग आधी धन राशि राजनेता, अधिकारियों, इंजीनियरों, रंगबाजों, क्लर्कों को चुकानी पड़ती है। फर्म्स, सोसाइटी एण्ड चिट्स कार्यालय रिश्वत लेकर किसी भी पक्ष को जीता और हरा कर किसी भी सार्वजनिक संस्था/मठ/मन्दिर/गोशाला/कॉलेज आदि को मालिक बना देता। इस कार्यालय के उपनिबन्धक के आदेश को कोई नहीं काट सकता है। इस विभाग से बगैर चौथ दिये अपने पक्ष में/न्याय मिलना असम्भव है। फिर आज तक किसी सरकार ने इनके अधिकारियों की चौथ वसूली पर रोक लगाने की कोशिश नहीं की। इससे यही प्रतीत होता है कि इन अधिकारियों की नियुक्ति ही रिश्वतखोरी किये जाने के लिए होती है। वैसे भी कोई भी भ्रष्ट अधिकारी /कर्मचारी का यही कहना होता है कि उसे ऊपर भी पहुँचना होता। रेलवे में भी उच्च अधिकारियों को स्थान्तारण से लेकर ठेकेदारों से रिश्वत लेने के मामले पकड़े गए है। यात्रियों से रिश्वत लेकर सीट देना आम बात है। इतना ही नहीं,पार्सल विभाग में लादन आदि में भी व्यापारियों से रिश्वत ली जाती है। जेल में भी बिन रिश्वतखोरी के गुजरा नहीं। अपनी मेहनत कटवाने, फर्जी तरीके से अस्पताल में दाखिल होने और बीमारी के बहाने से बेहतर सुविधा पाने, मिलाई, पिटाई से बचने, बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, मोबाइल आदि की सुविधाएँ पाने के लिए रिश्वत की दरें निर्धारित हैं,जेल में रहकर बचना नामुमकिन है। ऐसा होने पर बेहिसाब पिटाई और अपमान झेलने का तैयार रहना होगा। राजनीतिक दल रुपए लेकर पार्टी में उच्च पद देने से लेकर विधायक/सांसद के टिकट दिये जाने के आरोप आम हैं। विश्वविद्यालय में शिक्षकों, कर्मचारियों की नियुक्तियाँ, निर्माण कार्यों, एजेन्सियों को काम देने पर रिश्वत देने आरोप लगते रहते हैं। एक भुक्तभोगी के अनुसार ‘‘जब किसी सरकारी अधिकारी से अपने कार्य कराने जाओ, तो वह कहेगा क्लर्क से टिप्पणी करा कर लाओ। जब क्लर्क फाइल पर अपनी टिप्पणी लगाने को कहो,तो वह कहता है कि मैं कोई तुम्हारे कहने से थोड़े ही करूँगा, जब मेरे अधिकारी कहेंगे, तब टिप्पणी लिखूँगा। आप को मुझ से परेशानी है, तो मेरी शिकायत कर पटल बदलवा दो या तबादला करा दो।’’ जैसे ‘हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता’है कुछ वैसे ही भ्रष्टाचार गाथा का भी कोई ओर छोर नहीं है। अपने देश में आज जो कामयाब है,उसके पीछे उस शख्स का सिर्फ अथक परिश्रम नहीं,बल्कि उसका इस भ्रष्ट व्यवस्था से अच्छा तालमेल बना रहा होता है, जो इसमें नाकाम रहता है, वह कितनी ही कठोर मेहनत कर ले,पर हर जगह नाकामयाब साबित होता है। इस हकीकत से सभी अच्छी तरह वाकिफ हैं, फिर भी अनजान होने का ढोंग करते आए हैं। इस अब प्रश्न यह है कि ऐसे हालात में अपने देश के लोगों का स्वाभिमान और सत्यनिष्ठ रह कर जीवन बसर कितना दुष्कर है? इस ज्वन्त प्रश्न को लेकर कोई वैसे चिन्तित नहीं है, जैसे कि एक सच्चे-अच्छे देशभक्त नेता, नौकरशाह, आम आदमी को होना चाहिए। सोचने का सवाल यह है कि इस भ्रष्टाचार के रहते देश आर्थिक रूप से कैसे उन्नति कर सकता है, जहाँ बगैर भ्रष्टाचार की कीचड़ में सने कोई भी काम करना सम्भव नहीं है, तब व्यवसाय, उद्योग चलाना कितना मुश्किल होगा? यह प्रश्न विचारणीय है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार,63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
भ्रष्टाचार से आजादी कब मिलेगी ?

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