अपराध

भ्रष्टाचार का पर्याय है, डॉ. भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा

प्रोफेसर विनय पाठक

डॉ. बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय(सीएसजेएमयू) कानपुर के कुलपति तथा डाॅ.भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के पूर्व कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक पर लगे अनियमितताओं, भ्रष्टाचार, जबरन चैथ वसूली, धमकी देने के लगे आरोपों की जाँच अब ‘केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो’(सी.बी.आइ.) को सौंपी गई, जिनकी अब तक जाँच एस.टी.एफ. कर रही थी। इसे लेकर लोगों की राय बँटी हुई है। जहाँ एक बड़ा तबका सी.बी.आइ.की जाँच को  बेहतर मानते हुए आरोपियों को दण्डित किये जाने की आशा व्यक्त कर रहा है, वहीं दूसरे वर्ग एस.टी.एफ. की जाँच को सही मान बताते हुए इसे आरोपियों को बचाने की साजिश रचने  की आशंका जताता रहा है। इसका कारण अभी तक प्रोफसर विनय कुमार पाठक को एस.टी.एफ.के बार-बार बुलाये जाने पर उनका अपनी सफाई में  बयान दर्ज कराने  नहीं आना। इसके बावजूद उन्हें अभी तक गिरपतार नहीं किया जाना है। यहाँ तक कि विश्वविद्यालय द्वारा उनका वेतन भी जारी कर दिया गया। इस बीच 18 जनवरी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्ड पीठ ने कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय कुमार पाठक तथा उनके साथ आरोपित बनाए गए प्राइवेट कम्पनी के मालिक अजय मिश्र की जमानत स्वीकार हो गई है।अब सी.बी.आइ. प्रो.पाठक पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाली कम्पनी के प्रबन्ध निदेशक को अपने दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा है।

बी.ए.एम.एस. परीक्षा की उत्तर पुस्तिका बदलने का मामला पिछले 27 अगस्त को सामने आया। इसके बाद पुलिस ने इस मामले में शामिल टेंपो चालक, डाॅक्टर, छात्र नेता और विश्वविद्यालय के कर्मचारी गिरपतार कर जेल भेजे गए

वस्तुतः विश्वविद्यालय में बी.ए.एम.एस. परीक्षा की उत्तर पुस्तिका बदलने का मामला पिछले 27 अगस्त को सामने आया। इसके बाद पुलिस ने इस मामले में शामिल टेंपो चालक, डाॅक्टर, छात्र नेता और विश्वविद्यालय के कर्मचारी गिरपतार कर जेल भेजे गए। इसी तरह का खेल  एम.बी.बी.एस. परीक्षा में भी चल रहा था। मामला उजागर होने के बाद जाँच एस.टी.एफ. को सौंप दी गई। इसके पश्चात् 29 अक्टूबर,2022 को पूर्व कार्यवाहक कुलपति डाॅ.विनय कुमार पाठक और एक्सएल आइसीटी कम्पनी मालिक अजय मिश्र के खिलाफ जानकीपुरम निवासी  डिजिटेक्स टेक्नोलाॅजी इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी के प्रबन्ध निदेशक डेविड मारियो डेनिस द्वारा बिल का भुगतान कराने के नाम पर जबरन वसूली, धमकी, गाली-गलौज और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा में लखनऊ के इंदिरा नगर थाने में एक एफ.आइ.आर. दर्ज करायी गई थी। एस.टी.एफ. ने जाँच  के दौरान विश्वविद्यालय में परीक्षा सम्बन्धी कार्य देखने वाली डिजिटेक्स टेक्नालाजिज इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड के प्रबन्ध निदेशक डेविड मारियो डेनिस को पूछताछ के लिए बुलाया गया। लखनऊ के इंदिरा नगर थाने में दर्ज अभियोग में  विश्वविद्यालय के पूर्व कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक और एक्सएलआइसीटीसी कम्पनी के मालिक अजय मिश्रा पर बिल भुगतान के बदले 15प्रतिशत कमीशन लेने का आरोप लगाया। डेविड का आरोप  है कि प्रोफेसर पाठक ने अजय मिश्रा के माध्यम से कमीशन के रूप में उनसे  1.41लाख रुपए ले लिए। इनमें से कुछ एक कम्पनी के खाते में जमा कराए, जबकि  कुछ नकद लिए। अभियोग दर्ज होने के बाद लखनऊ एस.टी.एफ.टीम  ने जाँच शुरू कर दी। लखनऊ की टीम के साथ एस.टी.एफ. की आगरा यूनिट ने विश्वविद्यालय में जाँच की। परीक्षा, सम्बद्धता और निर्माण सम्बन्धी कार्यों के दस्तावेज कब्जे में लेने के साथ ही करीब 100बैंक खाते की जाँच की। 100से अधिक कर्मचारियों से पूछताछ की गई। कई शिक्षकों और अधिकारियों को बयान के लिए लखनऊ बुलाया जा चुका है।

वैसे जब लखनऊ के इंदिरा नगर थाने में जब कुलपति तथा उनके सहयोगी निजी कम्पनी के मालिक अजय मिश्रा के खिलाफ जब रिपोर्ट दर्ज हुई थी, तब  किसी को भी आश्चर्य नहीं हुआ। ताजुब्ब तो उन्हें जानकार हुआ है कि इतने दिनों बाद भ्रष्टाचारियों के खिलाफ किसी व्यक्ति ने  एफ.आइ.आर. कराने का हौसला दिखाया।

वैसे भी इस विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार का यह कोई पहला मामला नहीं है। डाॅ.भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय( पूर्ववर्ती आगरा विश्वविद्यालय),आगरा कभी विशाल क्षेत्र और अपनी उपलब्धियों के लिए देश के बड़े विश्वविद्यालयों में गणना होती थी, लेकिन कोई डेढ़ -दो दशक से यह विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया है, जहाँ अब कोई काम बगैर रिश्वत दिये नहीं होता। भ्रष्टाचार की स्थिति यह है कि अब कोरी सिफारिश से कोई कार्य करना मुश्किल ही नहीं,असम्भव है। दूसरे शब्दों में कहें तो यहाँ बगैर जेब गर्म किये आम आदमी दूर तो दूर  विश्वविद्यालय का कोई भी पूर्व और वर्तमान कर्मचारी भी सहकर्मियों से अपने स्वजनों/परिचितों का सही कार्य भी नहीं करा सकता। लेकिन रिश्वत देकर यहाँ बड़े से बड़ा गलत काम बहुत आसानी से कराए जा सकते हैं। यहाँ अंक तालिका,उपाधि पत्र(डिग्री) समेत दूसरे प्रपत्रों का प्राप्त करने या उनमें में किसी तरह का सुधार कराने के लिए, अंक पत्र, उपाधि के सत्यापन, परीक्षा केन्द्र बनवाने या परीक्षा केन्द्र बदलवाने, पीएच.डी. करने या उसकी मौखिक परीक्षा के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। इस विश्वविद्यालय में अधिकारियों और कर्मचारियों का अपने कार्यालय में अपने स्थान पर बैठे देखना ही मुश्किल है। अगर उन्होंने आप की समस्या सुनकर आवेदन पर हस्ताक्षर कर दिये,तो यह मान लेना आपकी भारी भूल होगी कि अब आप आपका कार्य हो ही जाएगा। इसे देखकर लगता है कि अधिकारी सिर्फ आपको गुमराह करने को बैठे हैं।

विश्वविद्यालय में व्याप्त  भ्रष्टाचार से हर कोई परिचित है। इसके खिलाफ छात्रों ने कई आन्दोलन, अनशन आदि किये हैं, पर भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगी। आश्चर्य की बात यह है कि फिर भी विश्वविद्यालय की इस दुर्दशा से आगरा और अलीगढ़ मण्डल के सभी राजनीतिक दलों के सांसद और विधायकों ने भी कभी संसद या विधानसभा में उठाने की आवश्यकता अनुभव नहीं की। इन जनप्रतिनिधियांे में से सांसद/केन्द्रीय मंत्री, उच्च मंत्री/विधायक दूसरे विधायक हैं। इनकी बोलती क्यों बन्द रहती है, ये इतने संवेदनहीन क्यों हैं? यह शोध का विषय है।

प्रो.आशुरानी

एक समय था जब कुलपति के पद पर शिक्षाविद् और इसी क्षेत्र की जानीमानी हस्तियों को सुशोभित किया जाता था, लेकिन पिछले काफी समय से इस पद पर भी राज्यपाल की भाँति राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों को बैठाया जाने लगा है। कुछ सूत्रों के अनुसार  इसमें भी अब केवल राजनीतिक विचारधारा/ निष्ठा ही नहीं, धन का बोलावाला भी हो गया। जो अभ्यार्थी कुलपति   के पद को पाने के लिए  अधिक बोली लगाता है, वह ही यह पद पाने में सफल होता है। डॉ. बी.आर.ए. विश्वविद्यालय,आगरा में  कुलपति के पद काफी समय रिक्त होने की भी यह वजह बतायी जा रही थी। इस बीच कुलपति का अतिरिक्त कार्यभार सम्हालने वाले डाॅ.विनय कुमार पाठक इस पद सौंपने वाले/वालों को विश्वविद्यालय के विभिन्न कार्यों से अवैध वसूली कर उन्हें धन की माँग की पूर्ति करते रहे। देशभर में विश्वविद्यालयों के लिए कुलपति की नियुक्ति  विभिन्न राज्यों के राज्यपालों/कुलाधिपतियों द्वारा की जाती है। अब बाकायदा लाखों-करोड़ों रुपए लेकर कुलपति बनाया जाता है। यही कारण है कि कुलपति बनने के बाद कोई सुधार करने के बजाय वसूली के स्रोत तलाशने में लग जाता है। इसी वजह से कुलाधिपति कभी कुलपति की शिकायत पर ध्यान नहीं देते थे। इसी तरह कुलपति के निदेशों/आदेशों कुलपतियों द्वारा उन पर अमल नहीं दिया जाता है। विश्वविद्यालय से परेशान/पीड़ित होने पर जब छात्र इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर न्याय पाने को जाते हैं, तब अक्सर यहाँ से आदेश पारित कर कुलाधिपति के  पास भेज दिया जाता है या फिर कुलपति को नियमानुसार सुनवायी करने को कहा जाता है,जबकि याचिकाकर्ता उसी कुलपति के अनुचित निर्णय से पीड़ित होता है। इस कारण विश्वविद्यालय के ज्यादातर पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता। अन्त में विश्वविद्यालय की व्यवस्था में सम्मिलित होने को विवश हो जाते हैं। निजी काॅलेज की स्थापना हेतु  शासन की एनओसी , कुलपति के  कार्यालय,  विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों से  काॅलेजों की स्थापना, सम्बद्धता और दूसरे कार्य  लाखों रुपए रिश्वत में लेकर किये जाते हैं। यहाँ तक  िकइस विश्वविद्यालय से बगैर प्रवेश लिए इंजीनियर, बी.एड. आदि की डिग्रियाँ भी बाँटी जाती रही है। इसी भ्रष्टाचार के कारण विश्वविद्यालय द्वारा आर.टी.आई.का उचित /वाजिब जवाब समय से देने से बचा जाता है। इसके बावजूद इसके विश्वविद्यालय के खिलाफ कभी दण्डात्मक कार्रवाई नहीं की गई है।

जहाँ तक डॉ. बी.आर.ए.विश्वविद्यालय का प्रश्न है,तो इसमें कई दशक से भ्रष्टाचार के नए-नए रिकाॅर्ड बनाए गए हैं। सन् 2005में बी.एड.घोटाला हो चुका है। इस घोटाले में साढ़े चार हजार ऐसे छात्रों को बी.एड. डिग्रियाँ दे दीं, जिन्होंने न कभी प्रवेश परीक्षा दी और न किसी काॅलेज पढ़ाई की। ऐसे परीक्षा देना का प्रश्न ही कहाँ पैदा होता है?

डॉ..पाठक पर आरोप है कि डॉ.बी.आर.ए.विश्वविद्यालय,आगरा के कार्यवाहक कुलपति रहते हुए  कम्पनी की ओर से किये गए करोड़ों के काम का बिल पास करने के लिए 15 प्रतिशत कमीशन वसूला था। जब मामले की विवेचना लखनऊ पुलिस से एसटीएफ को सौंप दी गई है,जिसने कुलपति के सहयोगी अजय मिश्र को गिरपतार कर लिया है। अजय के पास 10लाख और बीएमडब्ल्यू  कार भी बरामद की गई है। पीड़ित ने एक करोड़ 41लाख रुपए कमीशन दिये जाने का आरोप लगाया है। यह भी कहा है कि उसकी जान को खतरा है और कुछ भी दुर्घटना होने पर डॉ. पाठक इसके जिम्मेदार होंगे।

प्रोफेसर पाठक पर ये हैं आरोप –

1.प्रोफेसर पाठक ने अलीगढ़ के राजा महेन्द्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के 225 काॅलेजों को निरीक्षण मण्डल गठन किया बिना सम्बद्धता दी। बी.ए.,बी.एससी. और बी.काम के लिए दो-दो लाख तथा बी.एड.के लिए तीन-तीन लाख रुपए प्रति कालेज के लिए। कुल 10 करोड़ रुपए की धन राशि अनैतिक रूप में एकत्र की गई।

2.लगभग 270 कालेजों के विभिन्न पाठ्यक्रमों  को भी नियम विरुद्ध मान्यता देकर लगभग 15करोड़ रुपए की धनराशि रिश्वत के रूप में ली गई।

  1. सम्बद्धता विभाग द्वारा प्रोफेसर पाठक के निर्देशों पर एक ही डिस्पैच नम्बर पर कई काॅलेजों को पिछले तारीख/बैक डेट में पत्र जारी किए गए।
  2. नियुक्तियों में फर्जी शिक्षक पकड़े जाने की शिकायत पर भी कोई कार्रवाई नहीं की। कई काॅलेजों की स्नातक स्तर की मान्यता स्थायी न होने के बाद भी परास्नातक पाठ्यक्रमों की सम्बद्धता प्रदान की कर दी गई।
  3. 14-15 मई को पेपर लीक मामले के बाद नोडल केन्द्रों पर बिना किसी क्रय-प्रक्रिया के आइएफआइडी लाॅक के लिए 25 लाख रुपए का भुगतान किया, जबकि इनकी बाजार कीमत 10लाख रुपये हैं। यह लाॅक अजय मिश्रा की एजेन्सी द्वारा लगाए गए थे।
  4. आरक्षण नियमों का पालन किये बगैर विषय विशेषज्ञों की भर्ती की। इसके लिए कई बार विज्ञापन जारी किये गए।

7.विश्वविद्यालय के कुछ संस्थानों के कुछ संस्थानों के निदेशकों को प्रोफेसर पाठक ने बिन किसी विधि सम्मत प्रक्रिया को अपनाए बिना हटा दिया।

8.डिजिटाइजेशन के लिए रिश्तेदार आदर्श पाठक की फर्म को काम दिया गया। इसके लिए 25 लाख रुपये का भुगतान भी किया गया।

  1. विभागों के कंप्यूटराइजेशन के लिए कानपुर की फर्म से 35लाख से 35 लाख रुपये में सापटवेयर खरीदा गया। इसी फर्म ने कानपुर विश्वविद्यालय में भी सापटवेयर दिया है।

10.डीन अकादमिक, डीन एल्युमिनाई और डी फैकल्टी पदों का असंवैधानिक रूप से गठन किया।

11.दो हजार अभ्यार्थियों के लिए करायी गई पीएच.डी.की प्रवेश परीक्षा भी अजय मिश्रा की एजेन्सी  कराई, जिसके लिए 25 लाख रुपए का भुगतान हुआ।

12.40करोड़ रुपए की लागत से संस्कृति भवन और 20रुपए की लागत से बने शिवाजी मण्डपम का लोकापर्ण किया। इनकी उपयोगिता पर सवाल उठ रहे हैं।

13.परीक्षा केन्द्र निर्धारण में भी खेल हुआ, जिसकी प्रशासन द्वारा जाँच भी की गई थी और तीन दोषी भी पाए गए हैं।

14.स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति का विज्ञापन  निकाला गया। प्रोफेसर पद ईडब्ल्यूएस श्रेणी में दिया गया। विज्ञापन में करोड़ों रुपए खर्च किये गए। इसकी शिकायत मुख्यमंत्री के शिकायत पोर्टल पर हुई।

15.आवासीय इकाइयों में प्रवेश के विज्ञापन के लिए वित्त समिति से पाँच लाख रुपए इण्टरनेट मीडिया पर प्रचार के लिए स्वीकृत हुए, लेकिन ढाई करोड़ रुपये विज्ञापन पर व्यय किये गए।

  1. डॉ..भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय के पूर्व कार्यवाहक कुलपति प्रो.विनय पाठक के कृत्यों की सूची में आर.बी.एस.काॅलेज के प्रबन्ध तंत्र को नियम विरुद्ध अनुमोदन देने का एक और कृत्य जुड़ गया है।

अब नवनियुक्त कुलपति प्रो.आशुरानी ने अपने पूर्ववर्ती कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर विनय पाठक ने डाॅ.भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय कार्य जारी रखने के लिए जिस एजेन्सी 10लाख रुपए की रिश्वत न देने पर अनुबन्ध खत्म करने की धमकी दी थी, उससे अनुबन्ध समाप्त कर दिया है। अब जिस एजेन्सी से कार्य कराने का अनुबन्ध है वह गिरपतार अजय मिश्रा की है। इस सम्बन्ध में कुलपति प्रो.आशुरानी का कहना है,‘‘मैने  डिजिटेक्स से अनुबन्ध सम्बन्ध नहीं किया है। डिजिटेक्स एजेंसी भी विश्वविद्यालय में कार्य कर रही है। नई एजेन्सी का चयन उनकी नियुक्ति से पहले ही हो चुका था।  डिजिटेक्स सत्र 2021-2022तक का पूरा काम करेगी। अजय मिश्रा की एजेन्सी को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बाद हुए बदलावों के कारण यूपीसीएलके

प्रोफेसर अशोक मित्तल –

माध्यम से काम दिया गया है। इसके साथ ही चार्टों की स्कैनिंग का काम कोलकाता की एजेन्सी वेबर कर रही है।

प्रोफेसर अशोक मित्तल -भ्रष्टाचार,वित्तीय अनियमितताओं के आरोप में राज्यपाल ने पिछले साल  पाँच जुलाई को कार्य से विरत कर दिय था। लम्बे समय तक जाँच का सामना करने के बाद इस साल जनवरी में त्यागपत्र दे दिया।

प्रोफेसर भूमित्र देव

– प्रो.कुकला के दोनों निलम्बन काल के दौरान कार्यवाहक कुलपति बनाया गया। प्रो.कुकला के सेवानिवृत्त होने के बाद स्थायी कुलपति बने भ्रष्टाचार व वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की जाँच चल रही है।

डा अरविन्द दीक्षित

डा अरविन्द दीक्षित- विजिलेन्स जाँच चल रही है। आरोप है कि उन्होंने दलाली/कमीशन के लिए विश्वविद्यालय के परिसरों में अनावश्यक निर्माण कार्य कराए थे। शिकायती पत्र में उनकी नियुक्ति के साथ ही संविदा नियुक्तियों पर भी सवाल उठाए गए हैं। आरोपितों में एक प्रोफेसर,पूर्व प्रोफेसर और एक अधिकारी शामिल हैं।

प्रोफेसर डी.एन.जौहर

प्रोफेसर डी.एन.जौहर और प्रोफेसर मोहम्मद मुजम्मिल- दोनों कुलपति अपने-अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आरोपों में फँसे। बाद में हरीपर्वत थाने में दोनों कुलपतियों के साथ ही 19अधिकारियों के खिलाफ वित्तीय अनियमितता का अभियोग दर्ज हुआ। आरोपितों मे वित्त अधिकारी राम पटेल सिंह, वित्त अधिकारी, अमरचन्द सिंह,कुल सचिव डी.के.पाण्डेय, निदेशक गृह विज्ञान संस्थान भारती सिंह, इतिहास विभाग  के ली

प्रोफेसर मोहम्मद मुजम्मिल-

डर अमित वर्मा, सहायक कुल सचिव परीक्षा अनिल कुमार शुक्ला, भौतिकी विभाग  के रीडर बीपी सिंह,उप कुल सचिव  परीक्ष प्रभात रंजन, डिप्टी रजिस्ट्रार  वित्त अधिकारी बालाजी यादव,  गृहविज्ञान प्रवक्ता डॉ.अनीता चोपड़ा, वित्त अधिकारी राम सागर पाण्डेय, निदेशक राघव नारायण,माइण्ड लाजिस्टिक लिमिटेड बेंगलुरु के प्रोजेक्ट मैनेजर शैलेन्द्र टण्डन, मीनाक्षी मोहन और बालेश त्रिपाठी भी नामजद थे।

प्रोफेसर विनय पाठक-विश्वविद्यालय में डिग्री व अंकतालिका का काम करने वाली एजेन्सी के संचालक ने लखनऊ मे अभियोग दर्ज कराया है। भ्रष्टाचार, वित्तीय अनियमिततओं  और रिश्वत माँगने का आरोप है। उनके खिलाफ हाल में लखनऊ में प्राथमिकी दर्ज हुई है।

बीएचएमएस(बैचलर आफ होम्यापैथिक मेडिसिन एण्ड सर्जरी) का परिणाम पूर्व कार्यवाहक कुलपति के प्रोफेसर विय पाठक की मनमानी की भेंट चढ़ गया। उन्होंने नियम विरुद्ध पुनर्मूल्यांकन का परिणाम जारी कर दिया था। इसे गत 19 नवम्बर,2022 को परीक्षा समिति  की बैठक में निरस्त कर दिया। अब इस पर विश्वविद्यालय का ध्यान ही नहीं है।  19 नवम्बर, 2022 को परीक्षा समिति  की बैठक में डीन होम्योपैथी द्वारा प्रस्ताव रखा गया था कि बी.एच.एम.एस.(बैचलर आॅफ होम्यापैथिक मेडिसिन एण्ड सर्जरी) प्रथम, द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ प्रोफेशनल सत्र की परीक्षा डिजिटल मूल्यांकन प्रत्याषा में कराया गया। इसलिए परीक्षा समिति के सामने अनुमोदनार्थ प्रस्तुत किया जाता है,इस पर सदस्यों ने आपत्ति जताई कि यह मामला एस.टी.एफ. की जाँच में शामिल है। पिछले दो सालों से केन्द्रों पर सीसीटीवी कैमरे अनिवार्य करने के बाद भी विश्वविद्यालय इस नियम को सख्ती से लागू नहीं करा पाया। प्रो. विनय पाठक पर भी परीक्षा केन्द्र निर्धारण में किये गए खेल के आरोप लगे हैं। उनके करीबियों ने काॅलेजों से खुलकर वसूली की है, जिसकी शिकायत एसटीएफ के पास पहँुच चुकी है।

संस्कृति भवन

तत्कालीन कुलपति डॉ. अरविन्द दीक्षित ने नियमों को दरकिनार कर बाग फरजाना क्षेत्र में इस संस्कृति भवन का निर्माण कराया था। सन् 2019में इसका निर्माण हो गया। जन निगम की निर्माण एण्ड डिजायन शाखा किये गए इस निर्माण पर 40करोड़ रुपए  व्यय हुए थे।  प्रो.पाठक ने इस वर्ष जनवरी में कार्यवाहक कुलपति का पदभार ग्रहण किया था। इस भवन का लोकापर्ण कराया गया। इस भवन का मालिकाना  हक विश्वविद्यालय के पास नहीं है। उद्घाटन के आठ माह बाद ही इस भवन में सीलन, पपड़ी के अलावा पार्किंग का फर्श भी टूट गया था। इस फर्श को ठीक कराया जा रहा है। सीमेण्ट की टाइल लगायी जा रही है। सीलन को दूर करने के लिए ट्रीटमेण्ट  कराया जा रहा है। विश्वविद्यालय के भवन के बाहर की तरफ आपात स्थिति के लिए लोहे की सीढ़ी का निर्माण भी कराया है। संस्कृति भवन में बने तरणताल में पानी भरने के तुरन्त टाइलें तैरने लगी। तरणताल को अब बन्द कर दिया गया। विश्वविद्यालय ने तरणताल में मरम्मत कार्य शुरू करा दिया है। टाइल लगायी चुकी हैं।

डा.अरविन्द  दीक्षित ने सन् 2017में बाग फरजाना में ललिता कला संस्थान की भूमि पर संस्कृति भवन बनाने का विचार किया। इसके लिए जरूरी था कि विश्वविद्यालय का कोई विभाग प्रस्ताव दे। लेकिन गड़बड़ी देखकर कोई भी विभाग इस भवन के निर्माण को लेकर सहमत नहीं था। डा.दीक्षित ने 2019 में कागजों पर एक संस्थान/इण्टरनेशनल टूरिज्म एजूकेशनल इंस्टीट्यूट खड़ा कर दिया। प्रो.विनीता सिंह को निदेशक बनाया। जीवाजी विश्वविद्यालय,ग्वालियर के प्रो.रामअवतार शर्मा को सलाहकार न विषय विशेषक नियुक्त किया। इन्हीं माध्यम से संस्कृति भवन के निर्माण को फर्जी प्रस्ताव तैयार करा लिया और भवन तैयार हो गया। विश्वविद्यालय के पास संस्कृति भवन की भूमि का मालिकाना हक न होने पर एडीए ने नक्शा निरस्त कर दिया। इस बीच कुलपति डा.दीक्षित का कार्यकाल भी खत्म हो गया था। जब एस.टी.एफ. ने जाँच के लिए विश्वविद्यालय में परीक्षा सम्बन्धी कार्य देखने वाली कम्पनी डिजिटेक्स टेक्नालाजिज इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड के प्रबन्ध निदेशक डेविड मारियो डेनिस  ने पूछताछ के लिए बुलाया जा चुका है।उसने पुलिस के सामने विश्वविद्यालय में कमीशन के खेल का पर्दाफाश किया। अब देखना ये है कि विश्वविद्यालय नया रास्ता खोजेगा या पुरानी परिपाटी पर परीक्षा केन्द्र बनाएगा।

सम्पर्क-डा. बचन सिंह सिकरवार, 63ब,गाँधी नगर,

आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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