डॉ.बचन सिंह सिकरवार

अन्ततः जेद्दा में आयोजित बैठक में मुस्लिम देशों के सबसे बड़े संगठन ‘इस्लामी सहयोग संगठन’(ओआइसी)की बैठक ने भी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा प्रस्तावित मध्य-पूर्व की शान्ति योजना को खारिज करते हुए अपने सभी 57 मुल्कों से इस योजना को लागू करने में सहयोग न करने का आह्नान किया है। विश्व की लगभग 150करोड़ आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली इस संगठन ने कहा कि ट्रम्प की यह योजना फलस्तीनियों की न्यूनतम आकांक्षाओं तथा न्यायसंगत अधिकारों को भी पूर्ण नहीं करती है।इसके विपरीत यह योजना अभी तक शान्ति प्रक्रिया से बने हालात का भी उल्लंघन करती है। इससे पहले फलस्तीन ने इसके विरोध में इजरायल और अमेरिका से सभी समझौते तोड़ने की घोषणा कर ही दी,जिसकी आशंका उनके ऐलान के समय से ही हो गई थी। हालाँकि इसे लेकर न केवल राष्ट्रपति ट्रम्प बहुत उत्साहित और आशावान थे,वरन् उनके इस प्रस्ताव को सदी के प्रस्ताव की संज्ञा दी जा रही थी। उसे देखते हुए लग रहा था कि फलस्तीन और इजराइल के बीच आए दिन होने वाली गोलीबारी तथा बमबारी से छुटकारा मिलेगा और इस इलाके में शान्ति और विकास का माहौल बनेगा। फलस्तीन के इस ऐलान के बाद मध्य एशिया में शान्ति स्थापित होने का सुखद सम्भावना पर भी विराम लग गया है। अब फलीस्तीन की इस घोषणा के पीछे केवल वह ही नहीं है,बल्कि अरब लीग से जुड़े दूसरे अरब देश भी हैं। फलस्तीन ने दोनों देशों से सुरक्षा सम्बन्धी वह समझौता भी तोड़ा दिया, जिसके तहत फलस्तीन के कब्जे वाले इलाके में इजराइली सुरक्षा बल तैनात रहते थे। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प की नई योजना तहत फलस्तीन क्षेत्र का पूरी तरह से असैन्यीकरण किया जाना है।उसकी सुरक्षा का दायित्व इजराइल का होगा। इससे स्पष्ट है कि फलस्तीन को इजराइल पर अपनी सुरक्षा का भरोसा नहीं है।

इससे पहले मिस्र की राजधानी काहिरा में आयोजित ‘अरब लीग‘ की आपात बैठक राष्ट्रपति अब्बास ने कहा,‘‘ हम इजराइल पक्ष की सूचित करते हैं कि अब हमारा अमेरिका और पूर्व हुए सुरक्षा समझौते से कोई रिश्ता नहीं है। उस समय सऊदी अरब ने जेद्दा में होने जा रही ‘ओआइसी में बैठक में ईरान के प्रतिनिधि मण्डल के भाग लेने पर रोक लगा दी थी ,जिसमें राष्ट्रपति ट्रम्प के पश्चिम एशिया के शान्ति प्रस्ताव पर चर्चा होनी थी। उस वक्त ही यह अन्दाज लग गया था कि ट्रम्प की शान्ति योजना पर सहमति सम्भव नहीं है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से फलस्तीनी उस समय से ही नाराज जब उन्होंने तेलअवीव के स्थान येरुस्लम को इजराइल की राजधानी की मान्यता दी थी, जिस पर मुसलमान ,यहूदी,ईसाई अपना-अपना दावा जताते आए हैं।
फलस्तीन और इजराइल विवाद को समझने के लिए इनके इतिहास पर दृष्टिपात करना अति आवश्यक है। इजराइल मध्य-पूर्व(पश्चिम एशिया)में स्थित है,जो तीन ओर से अरब देशों से घिरा हुआ है। इस राज्य में प्राचीन फलस्तीन का थोड़ा-सा भाग है। 29 नवम्बर,सन् 1947 को राष्ट्रसंघ ने फलस्तीन का विभाजन करके एक हिस्सा यहूदियों और एक हिस्सा अरबों को दे दिया। 15 मई, सन् 1948 को यहूदियों ने अपने भाग को इजराइल देश घोषित कर दिया, लेकिन पड़ोसी अरब देशों ने इजराइल पर हमला कर दिया। फिर सन् 1949 में युद्ध विराम हुआ। तब तक इजराइल के क्षेत्र में एक तिहाई की बढ़ोत्तरी हो चुकी थी। मिस्र के साथ भी इजराइल की कई लड़ाइयाँ हुईं। सन् 1956 में स्वेज संकट ,सन् 1967

में 6 दिवसीय युद्ध में गाजा पट्टी ,पश्चिमी तट/किनारा (जॉर्डन नदी) तथा सिनाई प्रायद्वीप पर इजराइल का आधिपत्य स्थापित हो गया। सन् 1973 में फिर जंग हुई। सन् 1978 में मिस्र और इजराइल में समझौता वार्ता संयुक्त राज्य अमेरिका के ‘कैम्प डेविड’ में शुरू हुई। मार्च, सन् 1979 में शान्ति सन्धि पर हस्ताक्षर हुए। अप्रैल, सन् 1992 में इजराइल सिनाई पट्टी से हट गया। 30अगस्त,सन् 1993 को इजराइल ने सीमित फलस्तीन स्वायत्ता का सहमति दी। यह 26वर्षों से साथ के क्षेत्रों से सेना के आधिपत्य की समाप्ति पहला कदम था। फलस्तीन मुक्ति मोर्चे(पी.एल.ओ.) और इजराइल के बीच 13 सितम्बर को ऐतिहासिक समझौता हुआ। इजराइल एवं जॉर्डन ने जुलाई, सन् 1994 में एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करके 46 वर्षीय युद्ध की समाप्ति की। अगस्त, सन् 1995 में इजराइल और फलीस्तीन मुक्ति मोर्चे के मध्य एक समझौते से पश्चिमी तट में फलस्तीन स्वशासन की स्थापना हुई।
जून,सन् 1996 में इजराइल में दक्षिण पंथी लिकुड पार्टी के नेता नेतान्याहू ने कहा कि वे कभी अलग फलस्तीन राज्य को समर्थन नहीं देंगे। इजराइल ने जून, सन् 1997 को येरुस्लम में फलस्तीनियों द्वारा आत्मघाती बाम्बिंग के बाद शान्ति के बाद शान्ति बन्द कर दी। गाजा पट्टी का क्षेत्रफल-363वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या-10,54,200से अधिक है। इजराइल और पीएलओ के बीच 1993-94 के समझौते के तहत यह क्षेत्र स्वायत्तशासी क्षेत्र घोषित किय गया। इसकी रक्षा का दायित्व इजराइल सम्हालेगा और नागरिक प्रशासन फलस्तीन अधिकारियों के पास होगा। यहाँ पर रहने वाले अधिकतर शरणार्थी अरब हैं। पश्चिमी तट का क्षेत्रफल- 5.879 वर्ग किलोमीटर तथा जनसंख्या-15,57,000से अधिक है। यहाँ के अधिकांश शहरों का प्रशासन फलस्तीन अधिकारियों के पास है, किन्तु एक बड़े भू-भाग पर इजराइल का कब्जा है। सन् 1994 में जेरिको फलस्तीनियों को दिया गया है। सन् 1995 में यहाँ स्वायत्ता दी गई। सन् 1997 में आंशिक तौर पर हेब्रोन से हटने पर समझौता हुआ। अब कुछ फलस्तीन के बारे में भी जान लेते हैं।
फलस्तीन मुक्ति मोर्चा(पी.एल.ओ.) के अध्यक्ष यासर अराफत ने 15नवम्बर, 1988 को अल्जीरिया में स्वतंत्र फलस्तीन की ऐतिहासिक घोषणा की थी। उनकी घोषणा के राज्य की सीमाएँ गाजा पट्टी और जॉर्डन नदी(रिवर जॉर्डन) के पश्चिमी तट तक थीं। फलस्तीन का मुख्यालय ट्यूनिश में सन् 1994 में यासर अराफत के जेरिको आने तक रखा गया। फलस्तीन अरबों की राष्ट्रीय प्रेरणा के रूप में पी.एल.ओ. की स्थापना सन् 1964 की गयी थी। सन् 1974 में संयुक्त राष्ट्र ने इसे स्थायी पर्यवेक्षक बनाया गया और सन् 1976 से पी.एल.ओ.अरब लीग का स्थायी सदस्य बन गया। 40 वर्षों के अनवरत संघर्ष के बाद अस्तित्व के बाद अस्तित्व में नये राष्ट्र को भारत समेत विश्व के लगभग 80 देशों ने तुरन्त ही मान्यता दे दी। हालाँकि इजराइल की दक्षिण पंथी लिकुड ब्लाक की सरकार तथा वाम दृष्टिकोण लेबर पार्टी ने यित्झाक शामिर- -प्रधानमंत्री के साथ पी.एल.ओ.को फलस्तीन जनता का वैधानिक प्रतिनिधि मानने से इन्कार कर दिया। 44 वर्षीय अरब-इजराइल संघर्ष में फिलिस्तीनियों की माँग पश्चिमी तट/किनारा(वेस्ट बैंक) और गाजा पट्टी में राजधानी येरुस्लम को लेकर स्वशासन की रही है। सन् 1993, अगस्त में एक बड़ा ऐतिहासिक मोड़ आया, जब इजराइल ने फलस्तीनी स्वशासन को मान्यता दी। इजराइल गाजा पट्टी और पश्चिमी तट से हट जाएगा। सितम्बर के पूर्वार्द्ध में पी.एल.ओ. और इजराइल ने एक-दूसरे को मान्यता देने की घोषणा की। 13सितम्बर को ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए। 13मई,सन् 1994में की इजराइल ने जेरिको को फलस्तीनी अधिकारियों को सौंप दिया। 5 जुलाई को अराफत ने यहाँ पर फलस्तीन सरकार की स्थापना की। जनवरी,सन् 1996 में राष्ट्रपति पद के चुनावों में यासर अराफत को 82 प्रतिशत मत मिले और वे भारी बहुमत से निर्वाचित राष्ट्रपति बने। अमेरिका के राष्ट्रपति क्लिण्टन की मध्यस्थता में बातचीत का दौर शुरू हुआ।
यासर अराफत ने फरवरी,सन् 1998मंे महमूद अब्बास को अपना उत्तराधिकारी बनाया। फिर 4 मई,सन् 1999 को स्वतंत्र फिलिस्तीन राज्य की घोषणा की जानी थी, लेकिन इजराइल में तुरन्त बाद होने वाले चुनावों और वाई समझौता जिस पर अभी बातचीत जारी थी,के लागू न होने के कारण यह घोषणा नहीं की जा सकी। पोप जान पॉल द्वितीय ने फलस्तीन की यात्रा पर अपने वक्तव्य में स्वतंत्र फलस्तीन राज्य स्तर पर सहमति जतायी। अप्रैल,सन् 2004 को दो हमास नेताओं की हत्या कर दी गई। आत्मघातक बमबार और प्रतिशोध कार्रवाई जारी रही। जून में स्थिति बिगड़ गई। इजराइल का कहना था कि यासर अराफत को हटा देगा। सन् 2005 में यासर अराफत का निधन ही हो गया। सन् 20006 में उग्रवादी इस्लामिक आन्दोलन ‘हमास‘ की चुनावों में अप्रत्याशित जीत ने फिलिस्तीनी गुटों में भयानक तनाव पैदा कर दिया। फरवरी,सन् 2007 में ‘हमास‘ और ‘फतह‘ में राष्ट्रीय एकता के लिए सरकार बनाने पर सहमति बनी, लेकिन सन् 2007में हमास ने गाजा पट्टी पर अधिकार जमा लिया, जिसमें गठबन्धन में गम्भीर दरार बन गई। अब्बास ने सरकार भंग कर दी। इस प्रकार गाजा पट्टी और पश्चिमी तट पर ‘फतह‘ का कब्जा हो गया। प्रत्येक अपने आपको फलस्तीन पर अधिकार मानने लगा। यह तनाव अब भी चल रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्य-पूर्व की इस शान्ति योजना फलस्तीन समेत पूरे मुस्लिम जगत् द्वारा नामंजूर किये जाने से स्पष्ट है कि सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात आदि मुस्लिम मुल्क अपने-अपने कारणों से अमेरिका के साथ जरूर है,पर अपने हममजहबी मुल्क फलस्तीन के हितों की अनदेखी की कीमत पर हरगिज नहीं है।
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