
ऋचा श्रीवास्तव
केन्द्र सरकार ने जब से नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 पारित हुआ है,तब से ही इसके विरोध में असम समेत पूर्वोत्तर राज्यों से लेकर देश के विभिन्न राज्यों में उग्र ,हिंसक प्रदर्शन किये जा रहे हैं,उनका सिलसिला अब तक जारी है।प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी सरकार ने इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पारित तो कर लिया, लेकिन काँग्रेस सहित विपक्षी राजनीतिक दलों यथा- मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, सपा,तृणमूल काँग्रेस, बसपा,द्रमुक,एआइएमआइएम आदि द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है। इसके कारण उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, ओडिसा आदि में गैर भाजपा राजनीतिक दलों के साथ मुसलमानों द्वारा हिंसक प्रदर्शन किया गया। इसमें आन्दोलनकारियों द्वारा आगजनी,पत्थरबाजी तथा जमकर सार्वजानिक और निजी सम्पत्ति को क्षति पहुँचायी गई। कई जगह गोलियाँ भी चलायी गईं। पुलिस को हिंसक प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने को आश्रुगैस के गोले चलाने के साथ-साथ लठ्ठियाँ भी भाँजनी पड़ीं।इन आन्दोलनों में दो दर्जन लोगों की जानें गईं है और बड़ी संख्या में लोग और पुलिसकर्मी भी घायल हुए है। इसके साथ करोड़ों रुपए की सम्पत्ति नष्ट हुई है।दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी,जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों ने भी सीएए के विरोध और देश विरोधी नारे लगाते हुए हिंसक जुलूस निकाल गए। दिल्ली के शाहीन बाग में धरना-प्रदर्शन किया गया। देश के काँग्रेस तथा गैरभाजपा शासित राज्य केरल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़,राजस्थान, पंजाब, पश्चिम बंगाल ने नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019को असंवैधानिक घोषित करते हुए इसे अपने यहाँ लागू करने से मना भी कर रहे हैं। इसके खिलाफ कुछ राज्यों तथा नेताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएँ भी दायर की हुई हैं,इस पर उसने केन्द्र सरकार को 4सप्ताह में अपना जबाव देने को कहा है।
आइए आपको ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 के सम्बन्ध में कुछ तथ्यों की जानकारी देतें-
1.इस अधिनियम के तहत अविभाजित भारत में रहने वाले गैर मुस्लिम भारतीयों को हिन्दुओं, जैन,सिख, बौद्ध,पारसी,ईसाइयों को नागरिकता देने का प्रावधान है,जो सन् 1947में देश के विभाजन के बाद इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में रह गए थे। इन देशों में धार्मिक आधार पर इनके साथ हर मामले में भेदभाव किये जाने के साथ-साथ उनका शारीरिक -मानसिक उत्पीड़ित/प्रताड़ित किया जाता था। इनकी बहन,बेटियों का अपहरण कर उनका धर्मान्तरण कराया जाता रहा है।इस कारण इन मुल्कों से उक्त समुदाय के लोग अपना मुल्क हमेशा के लिए भारत में शरण लेने को मजबूर हुए हैं।इनकी वीजा तथा पासपोर्ट की अवधि गुजर गई है या अवैध रूप से सीमा पार कर आए हुए हैं। 31दिसम्बर,सन् 2014से पहले आकर भारत में रह रहे ऐसे लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।नागरिकता कानून-1955 के अनुसार किसी अवैध अप्रवासी को भारत की नागरिकता प्राप्त करने के लिए कई निर्धारित शर्तों/नियमों का पालन करना पड़ता है। इसके लिए वर्षों प्रतीक्षा करनी पड़ती थी।
2. नागरिकता संशोधन अधिनियम -2019को विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा असंवैधानिक बताते हुए विरोध किया जा रहा है,क्यों कि यह भेदभावपूर्ण है।इसमें उक्त मुल्कों से आने वाले मुसलमानों को सम्मिलित नहीं किया गया है। इस पर केन्द्र सरकार का कहना है कि इसमें संविधान का अनुच्छेद 14के समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है। जिस प्रकार विशेष परिस्थितियों में सकारात्मक कारणों से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों को आरक्षण दिया गया है। उसी तरह पड़ोसी इस्लामिक मुल्कों में धार्मिक कारण प्रताड़ित गैर मुसलमानों को नागरिकता दी गई है।
3.असम तथा पूर्वोत्तर राज्यों के मूल निवासियों के विरोध कारण यह है कि इस अधिनियम से बांग्लादेश से बड़ी संख्या में आए इन लोगों के कारण उनकी भाषा, संस्कृति के साथ-साथ आर्थिक संसाधनों और कार्यों के अवसरों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
4.मुसलमानों के विरोध का कारण राजनीतिक है। वे चाहते हैं कि पाकिस्तान तथा बांग्लादेश से अवैध रूप से आए मुसलमानों को भी भारत की नागरिकता मिल जाए,ताकि उनमें राज्यों में वह आसानी से सत्ता में आ सकें या वे राजनीतिक रूप से बेहतर स्थिति में आ जाएँ।इस अधिनियम के माध्यम से मुसलमानों को नागरिकता नहीं दिये जाने कारण पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश का घोषित रूप से इस्लामिक मुल्क होना है। इस वजह से यहाँ के मुसलमानों का मजहबी कारण धार्मिक उत्पीड़न का सवाल ही नहीं है।
5. नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 से किसी भारतीय की नागरिकता पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ेगा,क्यों कि इसके द्वारा पाकिस्तान,अफगानिस्तान, बांग्लादेश से धार्मिक रूप से प्रताड़ित हिन्दू,जैन, सिख, बौद्ध, पारसी,ईसाइयों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी। 6.नागरिकता अधिनियम के अन्तर्गत मुसलमान समेत किसी भी देश का नागरिक उसके लिए अपेक्षित अर्हताएँ तथा प्रक्रियाएँ पूर्ण कर भारतीय नागरिकता ग्रहण कर सकता है।
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