देश-दुनिया

जन अपेक्षाओं पर कितनी खरी उतरेगी ‘प्रचण्ड’ सरकार ?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
अन्ततः नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी नेपाल-माओवादी सेण्टर(सीपीएन-एमसी) के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’ चुनाव पूर्व गठबन्धन की सहयोगी नेपाली काँग्रेस से गठबन्धन तोड़कर सीपीएन-यूएमएल के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली से हाथ मिला समझौता कर नेपाल के तीसरी बार प्रधानमंत्री बन ही गए, इसके साथ ही इस पहाड़ी देश में राजनीतिक अनिश्चितता का दौर खत्म हो गया। हाल में हुए चुनाव में नेपाली काँग्रेस की बड़ी जीत को देखते हुए उसके नेता तथा पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के प्रधानमंत्री बनने के पूरे आसार दिखायी दे रहे थे, पर यकायक पाला बदल कर पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’ उनके विरोधी गठबन्धन में चले गए। नेपाल की राजनीति में यह सब पहले भी होता आया है। हालाँकि भारत की चाहत/पसन्द शेर बहादुर देउबा थे, जिन्हें भारत अपना अधिक हितैषी मानता है जबकि कम्युनिस्ट होने के नेता के.पी. शर्मा ओली तथा पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’ चीन के निकट माने जाते हैं। के.पी.शर्मा ओली ने तो प्रधानमंत्री रहते न सिर्फ चीन परस्ती के सारी हदें पार कर दी थीं , बल्कि तीन भारतीय इलाकों को नेपाल के नए नक्शे में दर्शा कर भारत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। वैसे भी नेपाल भौगोलिक दृष्टि से अपने सामरिक महत्त्व से अच्छी परिचित है। इसलिए वह भारत और चीन से इसका अधिकाधिक मूल्य वसूलना चाहता है तथा वसूलता भी आया है। वह जानता है कि भारत चाह कर भी उसे नाराज नहीं करेगा, क्योंकि वह अपने पड़ोसी देश में चीन का वर्चस्व कभी भी स्वीकार नहीं करेगा।ऐसा करना उसके लिए हर तरह से नुकसानदेह होगा। इसी तरह चीन भी अपने पड़ोसी मुल्क नेपाल को अपनी ओर करने के के मौके किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहता। वह अपने इस हम साया मुल्क में भारत के एकछत्र प्रभाव को स्वीकार नहीं करता।
सम्भवतः भारत की इस शंका को देखते हुए पुष्पकमल दहल ‘प्रचण्ड’ ने एक भारतीय टी.वी.चैनल को दिये साक्षात्कार में यह सफाई देना जरूरी समझा कि वह ने तो भारत के पक्षधर हैं और चीन परस्त। वह तो नेपाल परस्त हैं। वह अपने दोनों पड़ोसी देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए भरसक प्रयास करते रहंेगे। प्रचण्ड ने के.पी.शर्मा ओली के प्रधानमंत्री रहने के दौरान उनके भारत विरोधी रुख को अतीत/इतिहास बताते हुए भूल जाने की बात कही है।
वैसे जहाँ तक भारत का सम्बन्ध है, तो उसके साथ सदियों से धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक,रोटी-बेटी जैसे विशेष यानी रक्त सम्बन्ध हैं,जो किसी अन्य देश से नहीं है। वैसे भी प्रधानमंत्री बनने पर ‘प्रचण्ड’को सबसे पहले भारतीय राजदूत,उसके तुरन्त बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही उन्हें बधाई दी, जिसमें उन्होंने कहा,‘‘ भारत तथा नेपाल के मध्य अद्वितीय गहरे सम्बन्ध हैं। मैं दोनों देशों के सम्बन्धों को और मजबूत करने के लिए उनके साथ काम करने को उत्सुक हूँ।’’
जहाँ तक चीन से खास रिश्तों की शुरुआत की बात है तो यह वीर विक्रमशाह देव के शासन काल में हो गई थी। उन्होंने अपने देश में चीन के सहयोग से सड़कों के निर्माण से सम्बन्धित परियोजना शुरू की थी। इस समय भी चीन यहाँ कई परियोजनाएँ चला रहा है। वह रेल मार्ग से भी अपने देश को जोड़ रहा है। नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार के गठन के तुरन्त बाद चीन काफी सक्रिय हो गया है। उसने नेपाल-चीन क्रास बार्डर रेलवे लाइन की तैयारी के लिए तकनीकी विशेषज्ञों की एक टीम काठमाण्डू भेज दी। राजधानी काठमाण्डू स्थित चीनी दूतावास ने ट्वीट कर कहा, ‘‘चीन-नेपाल क्रास-बॉर्डर रेलवे के सर्वेक्षण के लिए विशेषज्ञों का दल 27दिसम्बर को पहुँच चुका है। इसमें हमारे नेताओं की सहमति है। यह नेपाल के फायदे के लिए उठाया गया ठोस कदम है।’’
नेपाल में गत 20 नवम्बर को प्रतिनिधि सभा और सात प्रान्तीय विधायिकाओं के लिए चुनाव हुए थे,पर किसी भी दल या गठबन्धन को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। नेपाल की 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा के लिए हुए चुनाव में नेपाली काँग्रेस को 89,सीपीएन-यूएमएल के 78, सीपीएन-एमसी के 32, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी(आरएसपी) के 20, आरपीपी के 14, जेएसपी के 12, जनमत के 6 तथा नागरिक उन्मुक्ति पार्टी के तीन सदस्य निर्वाचित हैं।राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी(आरएसपी) के रबी लामिछाने पूर्व में टीवी एंकर थे और महज एक माह पूर्व ही पार्टी का गठन कर चुनाव मैदान में उतरे थे। उनकी पार्टी को 20सीटें मिली हैं

ऐसे में बहुमत के लिए 138सदस्यों की आवश्यकता होती है।इस चुनाव में नेपाली काँग्रेस 89 सीटें जीतने के साथ सबसे बडे़ दल के रूप में उभरी। तत्पश्चात शेर बहादुर देउबा पार्टी के संसदीय दल के नेता चुने गए। सत्तारूढ़ नेपाली काँग्रेस गठबन्धन बहुमत के आंकड़े 138 से दो सीट दूर रह गया। इधर पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’ प्रधानमंत्री पद के लिए अड़ गए। लेकिन देउबा उनकी इस माँग को मानने को तैयार नहीं थे। इसके बाद ‘प्रचण्ड’ ने 25 दिसम्बर को गठबन्धन से अलग होने का निर्णय लिया। ओली के आवास पर हुई बैठक में प्रधानमंत्री पद के प्रचण्ड के नाम पर सहमति बनी थी। इस समझौते के अनुसार ‘प्रचण्ड’ और ओली बारी-बारी से इस पद को सम्हालेंगे। इस तरह ‘प्रचण्ड’ राजनीति के सबसे बड़े सौदागार बन गए हैं। इस दौरान राष्ट्रपति विद्यादेवी भण्डारी ने संविधान के अनुच्छेद-76 के खण्ड-2 के तहत प्रतिनिधि सभा के किसी भी सदस्य की 26दिसम्बर शाम 5 बजे तक अन्य पार्टियों के सहयोग से बहुमत का आंकड़ा पेश करने का समय दिया था। नेपाल की 275 सदस्यीय संसद में प्रचण्ड के गठबन्धन का 168 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है। जहाँ तक पुष्पकमल दहल‘प्रचण्ड’ के परिचय का प्रश्न है तो उनका जन्म 11दिसम्बर, 1954को पोखरा के निकट कास्की जिले के चिकुर पोखरी में हुआ था। ये करीब 13 भूमिगत रह चुके हैं। ‘प्रचण्ड‘ ने सन् 1996 से 2006 तक सशस्त्र गुरिल्ला संघर्ष का नेतृत्व किया। नवम्बर,2006 को उन्होंने व्यापक शान्ति समझौते पर हस्ताक्षर किये।उसके बाद सीपीएन-एमसी ने राजनीति का रास्ता अपनाया।
नेपाल हिमालय पर्वत के दक्षिण ढलान पर भारत और चीन के बीच में स्थित है। इसके उत्तर में तिब्बत है और पूर्व में भारत का प्रान्त सिक्किम और पश्चिम बंगाल,दक्षिण-पश्चिम में बिहार, उत्तर प्रदेश है। यहाँ 1846 से 1951तक राणा परिवार का शासन रहा। यही परिवार प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता था। नवम्बर में राणा प्रधानमंत्री ने त्यागपत्र दिया। 10अप्रैल, सन् 1961 में 15ताल्लुकेदारों ने अपना इलाका देश में मिलाया। 16 अप्रैल, 1990से लोकतंात्रिक आन्दोलनों के कारण महाराजा शाह ने सरकार को बर्खास्त कर दिया और निर्वाचित पंचायत प्रणाली को भंग कर दिया। 9नवम्बर, 1990 को महाराजा ने नये संविधान की घोषिणा की। नये संविधान में महाराजा के अधिकारों को सीमित कर दिया। इस संविधान के अनुसार नेपाल बहुदलीय प्रणाली वाला राज्यतंत्र बन गया। संसद के दो सदन बने और 205 सदस्यों की प्रतिनिधि सभी बनी, जिसमें 10सदस्यों का नामांकन महाराजा द्वारा होता है।1जून,2001 की रात महाराजा वीरेन्द्र ,महारानी ऐश्वर्या और राजघराने के छह सदस्यों की हत्या हो गई। ऐसा माना जाता है कि युवराज दीपेन्द्र ने अपनी पसन्द की शादी के विरोध में बहस में आपा खो दिया। उन्होंने अन्धाधुन्ध गोली चलाकर सभी को मार डाला। फिर स्वयं को भी गोली मार ली। महाराजा वीरेन्द्र के भाई ज्ञानेन्द्र को नया महाराजा बनाया गया।अप्रैल, 2006 में विपक्षी दलों के संगठन ने आन्दोलन का विरोट रूप खड़ा कर दिया। अन्त में राजा को झुकना पड़ा और उन्होंने संसद बहाल कर गिरिजा प्रसाद कोइराला को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। माओवादियों ने तीन महीने का युद्ध विराम घोषित किया। मई में संसद में नरेश की शक्तियाँ कम करने का विधेयक रखा गया। विरोधी नेता ‘प्रचण्ड’ और कोइराला में बैठक हुई। जनवरी, 2007 में माओवादी नेता अन्तरिम संविधान में शामिल हुए अप्रैल में माओवादी नेता सरकार में शामिल हुए जिसमें एक आन्दोलन राजनीतिक मुख्यधारा में शामिल हो गया
नेपाल वन सम्पदा और क्वार्ट्ज भण्डार की दृष्टि से समृद्ध है। यहाँ के निर्यात होने वाली मुख्य वस्तुएँ पटसन, चावल, पशु, खालें, गेहूँ तथा जड़ी-बूटियाँ है।यहाँ का पशुपतिनाथ का मन्दिर बहुत ही प्रसिद्ध है।

।सन् 1950भारत-नेपाल मैत्री सन्धि है,जिसे नेपाल समाप्त करना चाहता।राष्ट्रपति भण्डारी ने तीन उपप्रधानमंत्रियों और दूसरे मंत्रिमण्डल में मंत्रियों को भी शपथ दिलायी। इनमें ओली सीपीएन-यूएमएल के बिष्णु पौडेल, सीपीएन-एमसी के नारायण काजी श्रेष्ठ और राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के रबी लामिछाने सम्मिलित हैं। पौडेल को वित्त, श्रेष्ठ को बुनियाद ढाँचा और लामिछाने को गृहमंत्रालय दिया गया। सीपीएन-यूएमएल की ज्वाला कुमारी साह, दामोदार भण्डारी और राजेन्द्र कुमार राय और जनमत पार्टी के अब्दुल खान को मंत्रिमण्डल में जगह मिली है। वैसे प्रधानमंत्री ‘प्रचण्ड’ और उनके गठबन्धन के सहयोगी के.पी.शर्मा ओली इस तथ्य को भली भाँति परिचित है कि चीन उसके कई इलाकों पर अपना होने का न केवल दावा करता आया है,बल्कि कुछ इलाकों पर अतिक्रमण उन पर अपना कब्जा कर चुका है। चीन छोटे तथा कमजोर आर्थिक स्थिति वाले देशों को कर्ज के जाल में फँसा कर उन्हें उनका हर तरह से शोषण करता है। इसके विपरीत उसे ऐसा कोई खतरा भारत से नहीं है। नेपाल की जनता भी चीन के नीयत पर शक करती आयी है,पर उसके नेता अपने निहित लाभों से उससे दोस्ती निभाते आए है,जिसकी भविष्य में नेपाल को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। नेपाल में जब से बहुदलीय लोकतांत्रिक राजनीति प्रणाली आयी है,तब से यहाँ राजनीतिक अस्थिरता हुई है,इसका कारण राजनीतिक नेताओं की सत्ता लोलुपता है।उन्हें देश के लोगों के हितों की चिन्ता नहीं है,जो निर्धनता, बेरोजगारी, महँगाई,पिछड़ेपन जैसी समस्याओं से घिरी हुई है।लेकिन राजनीतिक पार्टियाँ अपने कथित नीतियों और सिद्धान्तों को भुलाकर नए गठबन्धन बनाकर सरकारें बदलती रहती हैं।

अब देखना यह है कि प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल‘ प्रचण्ड’ के नेतृत्व वाली नेपाल की नई गठबन्धन सरकार अपने घटक दलों के साथियों को साधे रखते हुए अपने लोगों को अपेक्षाओं को पूर्ण करने में कहाँ तक सफल होते हैं? इसके साथ ही ये सरकार पड़ोसी भारत तथ चीन के साथ रिश्तों में सन्तुलन बनाये रखने में सफल हो पाती है?
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

 

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