राजनीति

तरनतारन जिले के सरहाली थाने पर खालिस्तान समर्थक अतिवादी

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों पाकिस्तान-भारत सरहद पर स्थित पंजाब के तरनतारन जिले के सरहाली थाने पर खालिस्तान समर्थक अतिवादी-आतंकवादियों द्वारा लगभग अर्द्ध रात्रि को रूस निर्मित रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड(आरपीजी) से जिस तरह हमला किया गया, इसने 10 मई को मोहाली स्थित पुलिस के खुफिया विभाग के मुख्यालय पर ऐसे ही हमले का स्मरण कर दिया। इस हमले के पीछे ‘खालिस्तान लिबरेशन फोर्स’(केएलएफ)के आतंकवादी लखवीर सिंह का हाथ सामने आया है, जबकि मोहाली के हमले की जिम्मेदारी प्रतिबन्धित संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस’(एसएफजे)ने ली थी। इन हमलों से खालिस्तान समर्थक आतंकवादी संगठनों के दुस्साहस और पंजाब पुलिस की चूक/लापरवाही का पता चलता है, जो खुफिया एजेन्सियों के अलर्ट के बावजूद अपेक्षित सर्तकता-सावधानी नहीं बरत रही हैं। इनकी बेपरवाही का सुबूत इस थाने के सीसीटी कैमरों का खराब होना है। अगर ये चालू हालत में रहे होते, तो हमलावरों का आसानी से पता लग जाता। वैसे भी इस राज्य में कुछ ही समय में कई ऐसी घटनाएँ घटी हैं, जो हिन्दू और सिख समुदायों के रिश्ते बिगाड़ने, पहले की तरह हिन्दुओं को भयभीत करने और उनकी जान लेेने के लिए की जा रही हैं। साथ ही पाकिस्तान से ड्रोनों के जरिए हथियार और मादक पदार्थ लाए जा रहे हैं। तरनतारन के सरहाली थाने की घटना के दूसरे दिन 11दिसम्बर को पुलिस ने अबोहर में जमीन दबे घातक हथियार बरामद किये हैं। ये घटनाएँ राज्य की सुरक्षा-व्यवस्था के लिए खतरे की घण्टी नजर आ रही हैं। फिर भी पुलिस-प्रशासन से जिस तरह की सुरक्षा व्यवस्था किये जाने की अपेक्षा होती है, वैसा कुछ नहीं किया जा रहा है। यही नहीं, पंजाब के धार्मिक/मजहबी संगठन और भाजपा समेत सभी सियासी पार्टियाँ भी इस अति गम्भीर मसले/ खतरे को देखते-समझते हुए भी अपने राजनीतिक फायदे या फिर डर से खामोश बनी हुई हैं। वैसे भी पंजाब में सत्तारूढ़ आप सरकार का खालिस्तानियों को लेकर नरम रवैये की आलोचना की जाती रही है। वैसे इन मामलों में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी (एसपीजीसी) से लेकर कुछ लोग जैसा रुख-रवैया दिखा रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि इन्होंने इतिहास (1979 से 1984 कालखण्ड) से कोई सबक नहीं लिया है, जिसकी वजह से पंजाब में कोई 36 हजार से अधिक लोगों की जानें गई थीं।इनमें 24से 26 हजार हिन्दू और शेष सिख थे। उस समय खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिण्डरावाला अकाल तख्त साहिब में डेरा जमाये हुए था। वह खुलेआम भाषणों में अपने अनुयायियों को हिन्दुओं की हत्याएँ करने को उकसा कर उनसे दहशतगर्दी वारदातें करा रहा था। उस वक्त शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी(एसजीपीसी) खामोश बनी रही। इधर अकाली दली नेता अकाली मोर्चा निकाल रहे थे, तब केन्द्र सरकार ने पंजाब की नाजुक स्थिति को देखते हुए उनसे मोर्चा स्थगित करने को कहा था, पर ये नहीं माने। पंजाब की मजहबी राजनीति में बढ़त बनाने के लिए हठधार्मिता दिखाते रहे। इसके कारण 7जून,1984 को खालिस्तान समर्थकों को स्वर्ण मन्दिर से बाहर करने को केन्द्र सरकार को सेना को ‘ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार’ कराने का दुःखद निर्णय लेना पड़ा। उसके जख्म अब तक पूरी तरह भरे नहीं हैं, क्योंकि अलगाववादी/ राष्ट्रद्रोही समय-समय पर उन्हें कुरेद-कुरेद कर भरने नहीं दे रहे हैं। लेकिन ऐसे तत्त्वों पर केन्द्र और राज्य सरकारें अज्ञात कारणों से सख्ती से लगाम लगाने से क्यों बचती आ रही हैं, यह शोध का विषय है।
अब भी कुछ लोग देश-परदेस में बैठकर खून-खराबे/हिंसा के बल पर खालिस्तान के गठन का ख्वाब देख रहे हैं। इसकी एक झलक शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी द्वारा एक दिसम्बर से उन सिख कैदियों की रिहाई की मुहिम चलायी हुई है, इनमें पूर्व मुख्यमंत्री बेअन्त सिंह के हत्यारे से लेकर बम विस्फोट करने वाले मुजरिम भी हैं। ऐसा करते हुए इसे उन लोगों की भावनाओं का कतई ख्याल नहीं है, जिनके स्वजनों-परिजनों ने उनकी हिंसा के शिकार होकर अपनी जानें गंवायी थीं। इतना ही नहीं, इन लोगों ने देश की एकता-अखण्डता को आघात पहुँचाने की कोशिश कर देशद्रोहपूर्ण दुष्कृत्य भी किया था। वैसे भी एसजीपीसी सालों से ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार की बरसी मनाती आयी है, इसलिए उसके मकसद को समझना मुश्किल नहीं। वैसे भी एसजीपीसी ने कभी अपनी पुरानी भूलों-चूकों पर विचार नहीं किया, जिनके कारण ‘ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार‘ की नौबत आयी थी।
वैसे इन हमलावरों का कहीं न कहीं पड़ोसी पाकिस्तान से समर्थन, सहयोग और सहायता मिल रही है, यह तथ्य भी किसी से छुपा नहीं है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण आएदिन सरहदी जिलों में पाकिस्तान की ओर से आने वाले ड्रोन हैं, इनमें से कुछ ड्रोन सीमा सुरक्षा बलों से हमले के बाद पाकिस्तान की सरहद में लौटने में कामयाब रहे हैं, तो कुछ का उसने इन्हें मार गिराने में सफल रहे हैं। इन ड्रोनों से घातक और अत्याधुनिक हथियार और नशीले पदार्थ भी बरामद किये जाते रहे हैं। इस हकीकत को भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता कि पंजाब में पिछले समय में पुलिस सुरक्षा/अंगरक्षकों के रहते कुछ लोगों की सरे आम हत्याएँ की गई हैं। 10नवम्बर को सच्चा डेरा समर्थक और बेअदबी का आरोपी प्रदीप सिंह की फरीदकोट में सरेआम 6 गोलियाँ दाग कर हत्या कर दी गई। इससे पहले 4नवम्बर को अमृतसर में देवी-देवताओं की मूर्तियों के अनादर और कुछ तत्त्वों द्वारा उनके लिए अपशब्द कहने के विरोध में धरने पर बैठे वाई श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त शिवसेना/हिन्दू नेता सुधीर सूरी की अंगरक्षकों और पुलिस अधिकारियों/कर्मियों के सामने संदीप सिंह ने गोली मार हत्या कर दी।इसके बाद 12नवम्बर को न्यायालय परिसर कट्टरपंथी सिख संगठनों से जुड़े लोगों ने हत्यारे संदीप सिंह पर फूलों की बरसा की। संदीप सिंह ‘वारिस पंजाब दे’ नामक खालिस्तान समर्थक संगठन के मुखिया अमृतपाल सिंह से जुड़ा है। अमृतपाल ने खुलेआम संदीप के समर्थन में बयान देते हुए उसके परिवार की जिम्मेदारी उठाने का ऐलान किया।फिर भी पंजाब पुलिस उसकी जाँच करने से बच रही है।10मई को मोहाली के पंजाब पुलिस के खुफिया मुख्यालय पर रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड से हमला किया। इसके अगले दिन हिमाचल प्रदेश की असेम्बली के बाहर खालिस्तान झण्डे मिले थे।

गत 29मईको मानसा में पंजाबी गायक शुभदीप सिंह मूसेवाला को 19गोलियाँ से भून डाला। 6अप्रैल का पटियाला स्थित एक विश्वविद्यालय के बाहर कबड्डी खिलाड़ी धर्मेन्द्र सिंह, तो 14मार्च को जालन्धर देहात क्षेत्र में एक मैच के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी संदीप नंगल अम्बिया को गोलियाँ चला कर मार डाला। वैसे जिस दिन मार्च माह में भगवन्त सिंह मान मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, उसी दिन जालन्धर में माता के जागरण में दो लोग तलवार घुसे तथा प्रसाद बाँट रहे लोगों से अभद्रता करते हुए श्रद्धालुओं को साथ पूजा के मंच पर हमला किया। इसमें कुछ महिलाएँ भी घायल हुईं। 29 अप्रैल, 2022को खालिस्तानी नेता गुरुवन्त सिंह पन्नू द्वारा खालिस्तान दिवस मनाने का सन्देश दिया,तब पटियाला में हिन्दू शिवसेना के प्रदेश उपाध्यक्ष हरीश सिंगला ने भी ‘खालिस्तान मुर्दाबाद’ मार्च निकाला। उस दिन भी कट्टरपंथी सिखों और हिन्दू नौजवानों के बीच हिंसक झड़पें हुई। तब भी राज्य सरकार ने पर्याप्त सतर्कता-सावधानी नहीं बरती थी। कृषि कानून के विरोध में पंजाब, दिल्ली,उसके आसपास धरने पर बैठे किसानों में खालिस्तानियों की उपस्थिति साफ दिखायी दी।लाल किले पर उपद्रव में इन्हीं का हाथ था,पर केन्द्र सरकार भी सियासी वजहों से चुप्पी साधे हुए है।पंजाब में जनरैल सिंह भिण्डरावाले की फोटो छपी शर्टे बिकते,उसके फोटो और खालिस्तान जिन्दाबाद लिखे नारे लिखे मिलना आम बात हो गई है।
कुछ समय पहले एक दिन के लिए नजरबन्द किये गए अमृतपाल जनरल सिंह भिण्डरावाले जैसी वेशभूषा में अपनी राइफलें लहराते समर्थकों के साथ स्वर्ण मन्दिर गया और हजारों की भीड़ के सामने उसने भाषण भी दिया। इस वाकये को खालिस्तान समर्थकों ने इण्टरनेट पर वायरल भी किया। यह सब देख कर लगता है कि वह खुद भिण्डरावाले को वारिस साबित करने की कोशिश कर रहा है।
पिछले साल पंजाब के तरनतारन जिल के भिखीविण्ड में खालिस्तानी आतंकवादियों से मुकाबला करने वाले शौर्य चक्र विजेता कामरेड बलविन्दर सिंह की गोली मार कर हत्या दी। हकीकत में वर्तमान में पंजाब में जैसा माहौल बन रहा है, ठीक वैसा ही खालिस्तानी आतंकवाद के दौर में था।
अब पंजाब सरकार बन्दूक संस्कृति और भड़काऊ गानों पर तो प्रतिबन्ध लगाने की बातें कर रही है, पर सार्वजानिक रूप से हथियार लहराने और देश विरोधी बयान देने वालों पर किसी तरह की रोक नहीं लगा रही है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवन्त सिंह मान और उनके पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल अपराधी तत्त्वों पर लगाम लगाने के कितने ही दावे करते रहे हैं, किन्तु असलियत में ऐसे तत्त्वों पर प्रतिबन्ध लगाने पर पंजाब सरकार विफल सिद्ध हो रही है। खालिस्तान समर्थक खुल कर खेल रहे हैं और उनके हौसले भी बढ़े हुए हैं, यह कहने में शायद ही किसी को गुरेज हो? इन्हें देश-विदेशी समर्थकों को पूर्ण समर्थन प्राप्त है। पंजाब सरकार के सुरक्षा व्यवस्था के कड़ी कहने भर से कुछ होने वाला नहीं है। उसे सियासी नफा-नुकसान की परवाह न करते हुए ऐसे तत्त्वों के साथ बेहद सख्ती से निपटना होगा। अन्यथा पंजाब की कानून व्यवस्था को सम्हाल पाना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा। वैसे पंजाब के जैसे हालात बने हुए हैं, उन्हें देखते हुए केन्द्र सरकार को पंजाब के विघटनकारी तत्त्वों पर अंकुश लगाने का स्वयं पहल करनी चाहिए।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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