डॉ.बचनसिंह सिकरवार
गत दिनों दोहा के ‘अल रेयान’ के ‘अल खलीफा स्टेडियम’ में आयोजित फुटबॉल के फीफा विश्व कप के दौरान मैच से पहले ईरान के खिलाड़ियों ने अपने देश में हिजाब की मुखालफत/विरोधी मुहिम की हिमायत/समर्थन में अपना राष्ट्रगान न गाते हुए जिस तरह पूरी शान्त तथा भावुक मुद्रा में खड़े रहकर बहादुरी, हिम्मत, इन्सानियत, कुर्बानी की, जो मिसाल कायम की है, वह हकीकत में बेमिसाल और तारीफ के काबिल है। इन सभी ने वह कर दिखाया, जो बड़े से बड़े विरोध प्रदर्शन करने पर भी सम्भव नहीं था।दुनिया के लिए मुखालफत का अपनी तरह का यह बेजोड़ तरीका साबित होगा। वैसे भी ईरानी लोग अपने इस टीम को राष्ट्रीय प्रतीक मानते हैं। अब ‘महसा अमीनी’ भी ईरान ही नहीं,दुनिया में महिलाओं और दूसरे लोगों के लिए ‘मजहबी कट्टरपंथी रवायतों की मुखालफत करने वाली‘ जंगजू / प्रतीक बन गई है।
बेशक ये सभी खिलाड़ी अपनी इस हरकत के लिए ईरान के कानून के मुताबिक गुनाहगार हों, लेकिन अपने मुल्क की औरतों को आजादी दिलाने के लिए इन सभी ने अपने इस रुख-रवैये के चलते अपने करियर,जीवन की सम्भावनाओं, अपनी आजादी और यहाँ तक कि अपने जीवन को भी दाँव पर लगा दिया है। वैसे ईरान में महिलाओं के लिए अनिवार्य डेªस की मुखाफलत करने वाले ये फुटबॉल खिलाड़ी न पहले हैं और न अकेले हैं। ईरान में दर्जनों बड़ी-बड़ी हस्तियों, एथलीटों, अभिनेता, अभिनेत्रियों समेत विभिन्न कलाकारों ने प्रदर्शनकारियों के साथ अपनी एकजुटता दिखाते आए हैं। इतना ही नहीं, विश्वभर के अलग-अलग मुल्कों में रह रहे ईरान के मुसलमानों के अलावा दूसरे देशों की महिलाओं ने भी ईरान के हिजाब विरोधी प्रदर्शन को अपने-अपने तरीके से उनकी मुखालफत कर समर्थन किया है। अब ईरान के प्रसारणकर्ताओं ने फुटबॉल टीम के इस कृत्य को अपने देश के टी.वी.चैनलों पर नहीं दिखाया है। गत 16सितम्बर से शुरू हुए इन प्रदर्शनों में अब तक 400से अधिक लोग मारे गए हैं। इनमें 58बच्चों की जानें गई हैं।
वैसे ईरान में पहले भी दो बार इस तथाकथित इस्लामी शासन के खिलाफ बगावत का माहौल बना था, किन्तु महसा अमीनी का यह मामला इतना जोर पकड़ लेगा, इसका किसी को अन्दाजा नहीं था। ंहिजाब के विरोध ने आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहे ईरान की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। अब ईरानी न अयातुल्ला के फरमान को मान रहे हैं और न राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की धमकी की परवाह कर रहे हैं। ईरानी फौज के प्रमुख मेजर जनरल हुसैन सुल्वमी ने पिछले दिनों एक बयान मंे कहा है कि यह जनता का आक्रोश स्वाभाविक है। ईरान की लोग कट्टर इस्लामिक हैं। वह हिजाब को बेहद जरूरी मानते हैं,पर अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, इजरायल जैसे ईरान विरोधी देश को बहका और भड़का दिया है, किन्तु असलियत यह है कि ईरान इस्लामी राज्य पूरी तरह बन्दूक के जोर पर चल रहा है। यहाँ की 80 प्रतिशत से भी अधिक जनता हिजाब के विरुद्ध है। शंहशाह रजा पहलवी के जमाने में महिलाएँ अपने पहनावे और रहन-सहन के मामले में यूरोपीय महिलाओं से भी अधिक आधुनिक लगती थीं,किन्तु ईरान के गाँवों में तब भी महिलाएँ हिजाब, नकाब, बुर्का पहना करती थीं। अच्छी बात यह है कि कट्टर इस्लामिक लोग भी खुले अल्फाजों में कह रहे हैं कि कुरान शरीफ में हिजाब को औरतों के लिए कहीं भी अनिवार्य नहीं बताया गया है। अफसोस की बात यह है कि इसके बावजूद अपने देश में कर्नाटक सरकार ने जब विद्यालयों/कॉलेजों में डेªस कोड लागू किया, तो कट्टरपंथी मुसलमानों के संगठन और सियासी पार्टियों के नेता हिजाब की हिमायत में आन्दोलित हो गए। इनका मुस्लिम छात्राओं और महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ साथ दिया। यहाँ तक कि ये लोग पहले उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँच गए। वैसे यूरोप के अनेक देशों ने हिजाब/बुर्का पर पहले ही पाबन्दी लगायी हुई है।
ईरान में सन् 1979 में अयातुल्ला खुमैनी का शासन आया। शंहशाह रजा पहलवी को ईरान का देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा था। हिजाब न पहनने के कारण पहले भी कई ईरानी महिलाओं को बेइज्जती और सजा भुगतनी पड़ी हैं। कई युवाओं को टी.वी.चैनलों पर माफी माँग जान बचायी है। यह जनता का आक्रोश तीव्र और उग्र रूप धारण करता जा रहा है। यह शहर-शहर और गाँव -गाँव फैल गया है।
ईरान का क्षेत्रफल-16,48,000वर्ग किलोमीटर और इसकी जनसंख्या-7,50,78,000से अधिक है। इस देश की राजधानी-तेहरान और भाषा-फारसी, तुर्क,कुर्दिश और अरबी है। ईरान की मुद्रा-रियाल है।
ईरान एक प्राचीन और महान देश है, जो अपनी सभ्यता और वीरता के लिए विख्यात है। पहलवी वंश के अन्तिम शासक मुहम्मद रजा पहलवी को देशव्यापी विद्रोह के कारण ईरान छोड़कर जाना पड़ा। फरवरी, 1979में इस्लाम के धर्मगुरु अयातुल्ला खुमैनी ईरान लौटै। ईरान पहली अपै्रल, 1979 को इस्लामिक गणराज्य बना।
अब आते हैं वर्तमान विवाद पर। ईरान की राजधानी तेहरान में 22वर्षीय कुर्द मुस्लिम युवती महसा अमीनी को उचित ढंग से हिजाब ने पहनने के आरोप में धार्मिक -नैतिक(मोरल)पुलिस ने गिरपतार किया था, उस समय वह अपने परिवार के साथ थी। तीन बाद पुलिस उसे बेहोशी(कोमा) की हालत में कसरा अस्पताल में लायी , जहाँ 16सितम्बर को उसकी संदिग्ध परिस्थितियों में इलाज केे समय मौत हो गई। पुलिस महसा अमीनी की मौत की वजह पुरानी बीमारी बता रही है, पर इसके विपरीत उसकी आँखों,सिर टांग पर चोटों के निशान और कान से बहता खून उसके साथ दरिन्दगी से की गई पिटाई के सुबूत थे। कठोर इस्लामिक डेªस कोड के मुताबिक न पहने के इल्जाम में महसा अमीनी की मौत के खबर लगते ही तेहरान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होने लगे। ईरान में औरतों के लिए डेªस कोड अनिवार्य है। प्रदर्शनों का यह सिलसिला जल्दी ही देशभर में फैला गया। प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर अवरोध लगाकर, टायर आदि जला कर सरकार के विरोध में नारे लगाने शुरू कर दिया।इन्हें भगाने और कुचलने के लिए पुलिस ने मिर्ची स्प्रे का इस्तेमाल किया। फिर लाठी-डण्डे चलाये। बाद में वह गोलियाँ चलाने पर उतर आयी। इनमें पुरुष-महिलाओं के साथ रिवोल्यूशनरी गार्डस भी मारे गए। इस दौरान ं युवतियों ने अपने चेहरों से हिजाब उतार कर उन्हें जला कर और अपने बाल काट कर मुखालफत शुरू कर दी।
अब ईरान में हिजाब विरोधी आन्दोलन थमता नजर नहीं आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने प्रदर्शनकारियों के साथ ईरान सरकार के सलूक पर चिन्ता व्यक्त गई है। उसने हिरासत में लिए गए प्रदर्शनकारियों को छोड़ने से इन्कार करने के साथ-साथ मारे गए लोगों के शवों को भी लौटाने से मना किया जा रहा है। जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की उच्चायुक्त रवीना शमदासानी ने कहा कि हमने प्रदर्शनकारियों के साथ दुर्व्यवहार के साथ ही उनके परिवारों को उत्पीड़न भी देखा है।
ईरान विरोधी आन्दोलन की चुनौती से डरी सरकार तेहरान में अब हजारों प्रदर्शनकारियों पर मुकदमा चलाने की तैयारी कर रही है। इससे पहले प्रदर्शन कुचलने के लिए सरकार अपने सारे पैतरें आजमा चुकी है। फिर भी प्रदर्शनकारी आन्दोलन को जारी रखे हुए हैं, जबकि सरकार इसे दुश्मन देशों की साजिश बता रही है।
तेहरान के मुख्य न्यायाधीश के हवाले से कहा है कि देश के कानून का उल्लंघन करने वाले करीब एक हजार लोगों के विरुद्ध रिवोल्युशनरी कोर्ट में मुकदमा चलाया जाएगा। इन पर तोड़फोड़ करना, मृत सुरक्षा गार्डों से दुर्व्यवहार, सार्वजानिक सम्पत्ति में आग लगाने जैसे आरोप शामिल हैं। अभी तक गिरपतार हुए हजारों प्रदर्शनकारियों में मानवाधिकार समर्थक विद्यार्थी, वकील, पत्रकार और एक्टिविस्ट भी हैं। गत 3नवम्बर को महसा अमीनी के गृहनगर साकेज में उसकी कब्र पर भीड़ जमा हो गई। प्रदर्शनकारी तानाशाह मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे। इधर अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने कहा कि अमेरिका महिलाओं से दुर्व्यवहार करने वाले ईरान को संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं के अधिकार सम्बन्धी आयोग से हटाने की माँग की है। लैंगिग समानता और नारी सशक्तिकरण पर कार्य करने वाले 45 सदस्यीय आयोग में ईरान ने अभी अपना चार साल का कार्यकाल शुरू किया है। हैरिस ने कहा कि कि अमेरिका का मानना है कि महिलाओं के अधिकार को कुचलने वाला देश किसी अन्तर्राष्ट्रीय या संयुक्त राष्ट्र जैसे निकाय में महिलाओं के हित में कैसे काम कर सकता है। हिजाब विरोधी आन्दोलन ने ईरान के लिए गम्भीर चुनौती खड़ी कर दी है। अमेरिका और अल्बानिया ने परिषद् की अनौपचारिक बैठक से बुधवार को भाग लिया। इसमें ईरान में जारी प्रदर्शन पर चर्चा की। बैठक में ईरान की नोबेल पुरस्कार विजेता शिरीन एबादी और ईरानी मूल की अभिनेत्री और एक्टिविस्ट नाजनीन बोनिवाद दोनों ने अपने विचार व्यक्त किये।
ईरान में हिजाब विरोधी आन्दोलन के चलते तीन माह से अधिक समय हो गया है, पर यह आन्दोलन थमता नजर नहीं आ रहा है। ईरान सरकार के अपने दमन चक्र के बल पर हिजाब की मुखालफत में चल रही मुहिम को खत्म करना चाहती है। इस्लामिक कट्टरपंथी सरकार के लिए अपनी मजहबी रवायतों के आगे रहम और इन्सानियत के कोई माने नहीं है। उसे विश्व जनमत की भी कोई चिन्ता नहीं है।वैसे भी ईरान पर उसकी परमाणु नीति के कारण अमेरिका समेत यूरोपीय देशों ने आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए हुए हैं। ऐसे में ईरान सरकार को यह याद रखना है कि अगर उसने जल्दी ही कोई बीच का रास्ता नहीं निकाला, तो हिजाब विरोधी यह मुहिम भी आसानी से थमने वाली नहीं है, क्योंकि यह मुहिम सिर्फ कुर्दिश मुसलमानों की नहीं रह गई है। अब इसमें शिया समेत दूसरे फिरकों के मुसलमान भी शामिल हैं।
सम्पर्क- डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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