राजनीति

राष्ट्र रक्षा को जरूरी है मतान्तरणरोधी केन्द्रीय कानून

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों मतान्तरण के विरुद्ध याचिका की सुनवायी के दौरान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा छल-बल, धोखे, लालच और जोर-जबर्दस्ती कराए जाने वाले धर्मान्तरण/मतान्तरण पर जैसी गम्भीर चिन्ता जताते हुए केन्द्र सरकार से इस पर प्रतिबन्ध/रोक लगाने का जो निर्देश दिया है, वह पूर्णतः सत्य, सर्वथा उचित, सामयिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अपरिहार्य है। इसके लिए केन्द्र सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर शीघ्र प्रभावी मतान्तरणरोधी कानून बनाने का कदम उठाने चाहिए,क्योंकि मतान्तरण के पीछे मूल उद्देश्य राष्ट्रान्तरण है। यह भी देश के लिए आतंकवाद से किसी भी माने में कम खतरनाक नहीं है। भारत इसका स्वयं भुगत भोगी और विभाजन की पीड़ा को अच्छी तरह समझता है। सन् 1947में देश के बँटवारे के लिए मुसलमानों ने खुद को अलग कौम बताते हुए अपने लिए अलग मुल्क ‘ पाकिस्तान’ की माँग की थी। इसमें भारत को अपना एक तिहाई से बड़ा भू-भाग गंवाना पड़ा। उस समय दस लाख से अधिक लोग मारे गए और तमाम महिलाओं के साथ बलात्कार किये गए और बड़े पैमाने पर उनका अपहरण भी किया गया। वैसे अपने देश में मतान्तरण की समस्या सदियों पुरानी है जिसकी वृहत स्तर पर शुरुआत इस्लामिक आक्रान्ताओं से हुई। उन्होंने गैर मुसलमानों को अपनी तलवार के जोर पर, तो कुछ को छल और लालच देकर अपना मजहब कुबूल करने को मजबूर किया। कालान्तर में जब अपने देश में व्यापारी के रूप/भेष में पुर्तगाली, फ्रान्सीसी, ब्रिटेन के हमलावर ईसाई आए और बाद में यहाँ के शासक भी बने, तब वे अपने साथ ईसाई मिशनरी लाए, ताकि स्थानीय लोगों को धर्मान्तरित कर उनकी हिन्दू धर्म में आस्था/विश्वास, देश की सभ्यता,संस्कृति के प्रति निष्ठा समाप्त कर अपनी शक्ति/संख्या बढ़ायी जा सके। इसलिए मिशनरियों ने हर तरह के हथकण्डे (सेवा, शिक्षा, चिकित्सा, धन, नौकरी, छल, बल आदि) अपनाकर यहाँ के लोगों को बड़े स्तर पर ईसाई बनाया। दुर्भाग्य से देश के स्वतंत्र होने के बाद भी मुल्ला-मौलवियों और ईसाई मिशनरियों द्वारा देसी-विदेशी धन की सहायता से मतान्तरण का सिलसिला बन्द नहीं हुआ। ऐसा नहीं कि अपने देश के नेताओं को मतान्तरण से उत्पन्न देश की सुरक्षा के खतरों समेत आर्थिक, सामाजिक दुष्प्रभाव का ज्ञान नहीं है, किन्तु थोक वोट बैंक की राजनीति और उससे सत्ता की चाहत की वजह से काँग्रेस और दूसरे राजनीतिक दल मतान्तरण की न केवल बराबर अनदेखी करते रहे हैं, बल्कि उसमें मददगार भी बने रहे हैं। इनके विपरीत धर्मान्तरण के खतरे को देखते हुए देश के स्वतंत्र होने पहले आर्य समाज के संस्थापक महर्षि स्वामी दयानन्द,उनके बाद स्वामी श्रद्धानन्द आदि ने मतान्तरित हिन्दुओं को फिर से हिन्दू धर्म में लाने के अभियान चलाये थे। इनके अलावा में सन् 1930 के आसपास कुछ रियासतों द्वारा बलपूर्वक मतान्तरण पर रोक लगाने के लिए कानून बनाए जाने लगे थे। इनका उद्देश्य अपनी हिन्दू जनसंख्या को अँग्रेज मिशनरियों के प्रभाव में आने से बचाना था।
अब संविधान में सभी को अपने धर्म, मत/मजहब के प्रचार की स्वतंत्रता है, किन्तु इसका कुछ लोग द्वारा अनुचित लाभ उठाया जा रहा है। प्रचार की आड़ में ये लोग अपने धर्म/मजहब को श्रेष्ठ दूसरों को कमतर/ दोआयाम दर्जे का बताने के साथ-साथ प्रलोभन, धोखे,बहका/भरमाकर(भगवा वस्त्र, माला पहन कर देवी-देवताओं की जगह प्रभु/यीशु लगाकर) या फिर डरा-धमका/भयभीत कर मतान्तरित करा रहे हंै, ताकि इस मुल्क को ‘दारूल हरब’ से ‘दारूल इस्लाम’ या फिर ईसाई देश में परिवर्तित किया जा सके।
यद्यपि कुछ राज्य सरकारों ने धोखा और लालच देकर मतान्तरण को रोकने के लिए कानून बनाये हुए हैं,तथापि ये कानून उन संगठनों को हतोत्साहित करने में सक्षम/प्रभावी नहीं हैं, जो अपने देश में निर्धन, अनुसूचित/अनुसूचित जनजाति, आदिवासियों और दूसरे लोगों का अलग-अलग ढंग से मतान्तरण की मुहिम चला रहे हैं।
वैसे सन् 2015में केन्द्रीय विधि मंत्रालय ने कहा कि जबरन मतान्तरण पर राष्ट्रीय स्तर पर कोई कानून नहीं बनाया जा सकता है,क्योंकि कानून और व्यवस्था राज्यों का विषय है,इसलिए राज्य इस सम्बन्ध में कानून बना सकते हैं। वैसे केन्द्रीय विधि मंत्रालय की इस टिप्पणी के बहुत पहले से राज्यों ने अपने स्तर पर कानून बनाने शुरू कर दिये थे। मतान्तरण पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए सबसे पहले सन् 1967 में ओडिसा ने, फिर सन् 1968 में म.प्र., तत्पश्चात् सन् 1978 में अरुणाचल ने, उसके बाद सन् 2003 में गुजरात ने,इसके उपरान्त सन् 2006 में छत्तीसगढ़ ने ,फिर सन् 2017 में झारखण्ड, सन् 2018 में उत्तराखण्ड, सन् 2019 में हिमाचल, सन् 2020 में उत्तर प्रदेश सरकार मतान्तरणरोधी कानून बना चुकी है। इन कानूनों के तहत ऐसे मतान्तरण की स्थिति में मतान्तरण से 15दिन या 30दिन पहले सम्बन्धित लोगों द्वारा जिलाधिकारी या समकक्ष अधिकारी को सूचित करने का प्रावधान है।इन राज्यों ने अपने यहाँ मतान्तरण रोकने के लिए कानून जरूर बना लिए हैं,पर इससे बचने के लिए मतान्तरित कराने वाले उस राज्य में शरण ले लेते हैं,जिस राज्य में ऐसा कानून नहीं हैं।
इन राज्यों में मतान्तरण के मामले रुक नहीं पा रहे हैं। देश के कई राज्यों में ईसाई मिशनरियों द्वारा बेखौफ होकर मतान्तरण कराया जा रहा है, इनमें सिर्फ आदिवासी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति बहुल इलाके ही नहीं, पंजाब भी है। जहाँ ये सिखों को चंगताई /स्वस्थ करने के बहाने समेत दूसरे तरीकों से मजहब बदलवा रहे हैं। इतना ही नहीं, ये मिशनरी कर्नाटक में भाजपा के विधायक की माँ का मतान्तरण कराने जैसा दुस्साहस कर चुके हैं।
इनके सिवाय सन् 1954 में ‘भारतीय मतान्तरण(नियमन एवं पंजीकरण)विधेयक लाया गया। इसमें मिशनरियों के लिए अनिवार्य लाइसेन्स तथा धर्म परिवर्तन की स्थित में सरकारी कार्यालय में पंजीकरण कराने का प्रावधान किया गया।यह अलग बात है कि संसद में इस विधेयक को बहुमत का समर्थन नहीं मिल पाया। इसके पश्चात् 1960में ‘पिछड़ा समुदाय’(धार्मिक संरक्षण)विधेयक लाया गया। इसका लक्ष्य किसी अभारतीय धर्म में किसी के मतान्तरित होने पर प्रतिबन्ध लगाना था। इस्लाम, ईसाई और यहूदी सहित कुछ धर्मों को इस श्रेणी में रखा गया था। फिर सन् 1979में ‘धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक’ लाया गया। इसमें किसी अन्य धर्म में मतान्तरित होने पर आधिकारिक रूप से रोक का प्रावधान किया गया था। इसे भी राजनीतिक समर्थन प्राप्त नहीं हुआ।
अपने देश में मतान्तरण के माध्यम से समाज के सांस्कृतिक चरित्र बदलने की जो प्रयास हो रहे हंै,वे राष्ट्रघाती हंै। केन्द्र सरकार का यह कहकर अपनी जिम्मेदारी/ कत्र्तव्य से बच नहीं सकती कि उसने मतान्तरण में लगे संगठनों पर नियंत्रण लगाने के लिए विदेश से चन्दा लेने सम्बन्धी नियम-कानूनों को कठोर बना दिये हैं।लेकिन हकीकत यह है कि इतने भर से बहुत अन्तर नहीं आया। मतान्तरण के मामले में विदेश से चन्दा लेने के लिए वैसे ही सख्त नियम-कानून बनने होंगे, जैसे आतंकवाद पर रोक लगाने के लिए चन्दा लेने पर प्रतिबन्ध लगाने को बनाया गया है।
देश में मतान्तरण के अलावा मानव तस्करी से कई राज्यों की जनसांख्यिकीय बदल रही है। जनसंख्या असन्तुलन से देश की भौगोलिक स्थिति पर गम्भीर प्रभाव पड़ते हैं। मतान्तरण के कारण अरुणाचल, मणिपुर और मेघालय में ईसाई जनसंख्या में बहुत अधिक बढ़ोतरी इसका सुबूत है। कई राज्यों में जनसंख्या में अप्रत्याशित परिवर्तन के पीछे मतान्तरण है। जैसे सन् 1951तक नगालैण्ड की आबादी में ईसाइयों की संख्या 52.98 प्रतिशत से अधिक हो गई है, वहीं 1981 तक राज्य में हिन्दुओं की आबादी 14.36 प्रतिशत हुआ करती थी,जो 2001में घटकर 7.70 प्रतिशत रह गई। मिजोरम, नगालैण्ड, मेघालय, अरुणालय, मणिपुर, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और लक्षद्वीप में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए हैं। दूसरे शब्दों में देश के कोई एक चैथाई राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। इसके राजनीतिक और सामाजिक नतीजे क्या निकलेेंगे समझना मुश्किल नहीं हैं। निश्चय ही इससे राष्ट्रीय सुरक्षा, आन्तरिक सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द प्रभावित होगा । इसलिए बगैर देर किये राष्ट्र व्यापी प्रभावी,सख्त मतान्तरण कानून बनाया बहुत जरूरी हो गया है, इसके अभाव में देश की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता, सम्प्रभुता को अक्षुण्ण रख पाना
सम्भव नहीं है।
सम्पर्क- डाॅ. बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

 

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