डॉ.बचन सिंह सिंह सिकरवार

गत दिनों बजट सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान और उसके बाद संसद के बाहर काँग्रेस समेत 14 विपक्षी राजनीतिक दलों के नेताओं ने अपनी बाँह पर काली पट्टी बाँध कर ‘सेव इण्डिया’, ‘नो टू सीएए, एनपीआर, एनसीआर’, लिखी तख्तियाँ लेकर सरकार विरोधी नारे लगाये जाने से स्पष्ट है कि ये लोग अल्पसंख्यकों की तुष्टिकरण के लिए इन्हें लेकर मुसलमानों को भयभीत ,भ्रमित और भड़काने और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजग सरकार को हैरान-परेशान और बदनाम करने के साथ-साथ अपने ही कहे तथा करे से मुकरने की मुहिम बन्द करने को तैयार नहीं है, जिसके कारण ये लोग देशभर में आन्दोलित हैं। इनके हिंसक तथा अराजक आन्दोलन में 25 से अधिक लोगों की जानें जाने के साथ बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी तथा आन्दोलनकारी जख्मी भी हुए है। इनकी वजह से करोड़ों रुपए की सार्वजनिक तथा निजी सम्पत्ति भी नष्ट हुई है। इनसे सबसे बड़ी क्षति सामाजिक सौहार्द को पहुँचायी है। विपक्षी दलों की इस अनुचित राजनीति के चलते बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों के बीच अनावश्यक/ गैरजरूरी अविश्वास बढ़ा है।
विडम्बना यह है कि इसके बाद भी ये सियासी पार्टियाँ बड़ी बेशर्मी से ‘सेव इण्डिया’ यानी ‘ ’ का नारा भी लगा रही हैं। इसके साथ ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’(सीएए)को अनावश्यक बताते हुए देश के आर्थिक हालात तथा बेरोजगारी को शोर मचा रही हैं, जैसे काँग्रेस शासनकाल में ये समस्याएँ नहीं थीं, महज पिछले छह साल में ही पैदा हुई है। वैसे जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के भेजे इस्लामिक आतंकवादियों , पाकिस्तान और दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम दहशतगर्द संगठन ‘आइ.एस.’के झण्डे फहराते हुए ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद‘, ‘हिन्दुस्तान मुर्दाबाद‘ केे नारे लगाते हुए सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने वाले अलगाववादियों से काँग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद समेत किसी भी वामपंथी/सेक्युलर पार्टिओं के नेताओं को इस सूबे और बाकी मुल्क की सुरक्षा खतरा कभी नहीं महसूस नहीं हुआ। यहाँ तक कि सन् 1990 में नेशनल काँग्रेस और काँग्रेस की साझा सरकार के रहते इस्लामिक कट्टरपन्थियों द्वारा कश्मीरी पण्डितों के बड़ी संख्या में कत्ले-ए-आम करने, उनकी बहू-बेटियों के साथ बलात्कार तथा बन्दूक के जोर पर उन्हें लाखों की तादाद में अपने घरों से बेदखल करने पर कभी कुछ गलत नजर नहीं आया, लेकिन उन्हीं गुलामी नबी आजाद को अब जहाँ राष्ट्रपति को अपने अभिभाषण में सीएए को शामिल करने पर बहुत ऐतराज है और इसे शर्मनाक बता रहे हैं, वहीं माकपा नेता सीताराम येचुरी को सीएए केन्द्र सरकार देश को विभाजित करने का एजेण्डा तथा मुल्क के लिए बेहद खतरनाक भी दिखायी दे रहा है, जिसके जरिए पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश जैसे इस्लामिक मुल्कों से धार्मिक कारण से प्रताड़ित/उत्पीड़ित हिन्दुओं, सिखों, जैनों, पारसियों, ईसाइयों को भारतीय नागरिकता दिये जाने का प्रावधान है, जो 31 दिसम्बर, 2014 से पहले से भारत में रह रहे थे। अपनी जान/बहन, बेटी की इज्जत बचाने की खातिर भारत आए हैं, इन लोगों से भारत की सुरक्षा को कैसे खतरा है, क्या ये नेता बताएँगे? गुलाम नबी आजाद और उनकी सहयोगी वामपंथी केन्द्र सरकार के गत 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाने तथा उसे दो केन्द्र राज्यों विभाजित किये जाने से बेहद गमजदा हैं,क्योंकि अब उनका इसे इस्लामिक मुल्क बनने का ख्वाब हमेशा के लिए टूट गया है। इन्हें अपने हममजहबियों की बेरोकटोक आवाजाही, इण्टरनेट सेवा बन्द किये जाने पर बहुत परेशानी हुई। वह और काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी कश्मीर के लोगों के हालचाल जानने का बार-बार बहुत उतावली दिखाते रहे, पर इन्हें पिछले 30 साल से विस्थापित शिविरों में खानाबदोशों की तरह जैसे-तैसे रह रहे, कश्मीर पण्डितों की सुध लेने का ख्याल कभी नहीं आया। इसी तरह इन सियासी पार्टियों ने असम, पश्चिम बंगाल आदि पूर्वोत्तर के राज्यों में अवैध रूप से सरहद में घुसे बांग्लादेशी मुसलमानों घुसपैठ पर चिन्ता नहीं जतायी है, जो इन राज्यों की सियासत की न सिर्फ दिशा और दशा ही बदल कर नहीं रख दी, बल्कि मुल्क की सुरक्षा के लिए भी खतरा बने हुए है। अब आप ही तय करें तथा बताएँ कि काँग्रेस कैसे भारत को बचाती आयी है और भविष्य में इसे कैसे बचाना चाहती है।
ऐसे में इनसे यह सवाल लाजिमी है कि वे देश में रह रहे अवैध घुसपैठियों/प्रवासियों को बनाये रखकर ये सियासी पार्टियाँ मुल्क की हिफाजत कैसे करेंगी? अगर ऐसा है तो भारत समेत दुनिया के दूसरे देशों को अपनी सीमाओं पर घुसपैठियों को रोकने को सैनिकों को क्यों तैनात किया हुआ है? क्या इन सियासी पार्टियों के नेता दुनिया के किसी ऐसे देश का नाम बतायेंगे, जहाँ बिना वीजा और पासपोर्ट के किसी भी दूसरे देश के व्यक्ति प्रवेश और वहाँ रहने/बसने की अनुमति हो? क्या काँग्रेस यह बतायेगी कि जब पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों के भारत में आने ही उसकी सुरक्षा बढ़ती है, तो केन्द्र में सत्ता में रहने के दौराने देश की सीमाओं विशेष रूप से पाकिस्तान और बांग्लादेश की सरहदों पर सेना क्यों तैनात कर रखी थी? वैसे सम्भवतः अब उसे अपनी इस गलती का अहसास हो गया है, क्योंकि अगर उसने ऐसा किया होता,तो उस दशा में भाजपा और शिवसेना को सत्ता में आने का मौका ही नहीं मिलता। उस पर सदैव काँग्रेस या फिर इण्डियन मुस्लिम लीग या फिर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इण्डिया मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुसलमीन (एआइएमआइएम) की ही हुकूमत रहती है। इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान या अलग इस्लामिक जम्मू-कश्मीर बनने में आसानी होती। देरसबेर पश्चिम बंगाल पर ममता बनर्जी की तृणमूल काँग्रेस की नहीं, बल्कि यह और असम भी नए मुस्लिम मुल्क बन जाते।
वैसे देश के आजाद होने के बाद से ही अल्पसंख्यकों को अपना वोट बैंक बनाये रखने के लिए दुनिया के सभी देशों के विपरीत उसने न केवल इस समुदाय को विशेष दर्जा दिया, बल्कि उनकी सभी बेजां हरकतों पर्दा डालते हुए उसे हर तरह की मनमानी करने की छूट दी। बहुसंख्यकों के साथ दोयम दर्जे को बर्ताव करते हुए उसकी एकजुटता तोड़ने के लिए आरक्षण का प्रलोभन देकर दलितों को उससे अलग करने की भी भरसक कोशिश की। यहाँ तक कि उनमें भी बहुसंख्यकों के प्रति उस नफरत और अविश्वास बढ़ाने की हर सम्भव प्रयास किये,जिसके बीज आजादी से पहले ही इनके जातिवादी नेता बो गए थे। इसी कारण ये लोग महात्मा गाँधी और उनके स्वतंत्रता संघर्ष से अलग और दूर रहे ं,जो सही माने में उनका न केवल उत्थान चाहते थे, बल्कि अपने जीवनकाल में उनकी भलाई के कार्यों में लगे रहे।
काँग्रेस समेत तथाकथित सेक्युलर सियासी पार्टियाँ सीएए को लेकर प्रधानमंत्री मोदी सरकार पर ऐसे हमलावर हो रही हैं, जैसे उसने कोई भारी गुनाह कर दिया हो। हकीकत में यह है कि देश के स्वतंत्र होने के बाद से महात्मा गाँधी से लेकर पण्डित नेहरू,मौलाना अब्दुल कलाम आजाद और बाद में 2003में राज्यसभा में मनमोहन सिंह,वामपंथी दलों के नेताओं, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलौत द्वारा पाकिस्तान, बांग्लादेश के हिन्दुओं और सिखों को नागरिकता दिये जाने की माँग करते आए हैं,जबकि काँग्रेस अपनी तुष्टिकरण नीति के कारण जो कार्य नहीं कर पा रही थी,वह उसने कर दिया है। फिर यह कानून किसी भी भारतीय की नागरिकता छीनने वाला नहीं, देने वाला है। फिर उसे लेकर देशभर में कोहराम मचा हुआ है। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर(एनपीआर) को काँग्रेस सन् 2010 में लागू कर चुकी है, जिससे प्राप्त विभिन्न सूचनाओं के माध्यम से सरकार जनकल्याण की नीतियाँ तैयार करती है। ऐसे ही राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर(एनआरसी) भी काँग्रेस के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने सन् 1985में असम समझौते के बाद शुरू हुआ। अब अगर एनआरसी का विचार सैद्धान्तिक रूप से सही है, तब क्या मात्र उसके क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों के आधार पर ही उसे खारिज करना उचित होगा? यह सही है कि एनआरसी को लेकर असम के अनुभव से कुछ प्रश्न अवश्य उठते हैं। तभी तो इसका वह प्रारूप देश के दूसरे भागों में नहीं आजमाया जा रहा है। वैसे भी इसका अन्तिम प्रारूप अभी तक तैयार नहीं हुआ है। जब तक सरकार अधिसूचित नहीं करती, तब तक इस दिशा में कोई अनुमान लगाना कोरी अटकलें ही होगी। फिर भी मुसलमानों को डराया जा रहा है कि उनसे नागरिकता साबित करने के लिए तरह-तरह के सुबूत माँगे जाएँगे। उनके न होने पर उन्हें देश निकाल दिया जाएगा या फिर डिटेंशन कैम्पों में भेजा जाएगा। वैसे भी सीएए के विरोधी इस असंवैधानिक बताते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिकाएँ दायर कर चुके हैं, यदि यह असंवैधानिक होगा, तो उसे रद्द कर दिया जाएगा,पर इनमें इतना धैर्य नहीं है। केन्द्र सरकार भी बार-बार उक्त मामलों में देश के लोगों विशेष रूप से मुसलमानों के सामने स्थिति स्पष्ट कर चुकी है फिर भी वे आन्दोलन छोड़ने को तैयार नहीं हैं। अन्त में फिर से प्रश्न काँग्रेस और तथाकथित सेक्युलर सियासी पार्टियों से है कि सीएए की मुखालफत और पाकिस्तान और बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठियों का बचाव करके वे अपनी कुर्सी मजबूत करेंगे या फिर मुल्क की सुरक्षा से खिलवाड़?
My developer is trying to persuade me to move to .net from PHP.
I have always disliked the idea because of the costs. But he’s tryiong none the
less. I’ve been using Movable-type on numerous websites for
about a year and am worried about switching to another platform.
I have heard excellent things about blogengine.net.
Is there a way I can import all my wordpress content into it?
Any help would be really appreciated!