डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों ‘केन्द्रीय सर्तकता आयोग’ (सीवीसी) के एक आयोजन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कहना है कि निहित स्वार्थ वाले लोगों द्वारा भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने वाली संस्थाओं एवं एजेन्सियों के काम में बाधा डालने और उन्हें बदनाम करने की जिस तरह कोशिश की जा रही है, इससे भ्रष्ट तत्त्वों के दुस्साहस का पता चलता है। उनका यह कथन सर्वथा उचित, सामयिक और राष्ट्रहित में है। लेकिन यह भी सच है कि इसके लिए कहीं न कहीं देश की वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था उत्तरदायी भी है। इसमें जाति /मजहब / धन /बाहुबल का राजनीति में बोलवाला होना है। ऐसे में अपराधी मानसिकता/असामाजिक तत्त्वों जनप्रतिनिधि बन कर चलायी जा रही सरकारों में नौकरशाही को भी भ्रष्टाचार करने और उसमें बँटाई करने की पूरी छूट मिली हुई है। इसके सबके चलते अपराधी और भ्रष्टाचारी आसानी से चुनावी वैतरणी पर संसद तथा विधान सभा में ही नहीं पहुँच जाते हैं, बल्कि मंत्री और दूसरे उच्च पदों पहुँच जाते हैं। प्रधानमंत्री की पार्टी भाजपा भी इसका अपवाद नहीं है। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही किसी राजनेता और सियासी पार्टी का नाम नहीं लिया है, किन्तु उनका संकेत राजद अध्यक्ष/बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री/केन्द्रीय रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव की ओर था,जो करोड़ों रुपए के ‘चारा घोटाले’ में वर्षों जेल की सजा काटने के बाद भी बेशर्मी से सीना ताने सियासत कर रहे हैं। वर्तमान में इनके पुत्र बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, उनकी बेटी राज्य सभा की सांसद मीसा भारती, हेमा यादव पर रेलवे की आइआरटीसी में नौकरी देने के बदले अभ्यर्थियों से उनकी जमीन अपने नाम कराने के मुकदमे में आरोपित हैं। इसके बावजूद उनके समर्थकों को उनमें कोई खोट दिखायी नहीं देता, बल्कि उन्हें पुरस्कार देने की माँग कर रहे हैं।
मजे की बात यह है कि इन भ्रष्ट नेताओं के समर्थक इन्हें कसूरवार/गुनाहगार मनाने के बजाय उन्हें पूरी तरह बेकसूर/सताया हुआ मानते/समझते हैं। इसके विपरीत इन भ्रष्ट नेताओं को गिरपतार करने और सजा देने वाले न्यायाधीशों को ही ये लोग दोषी मानते हैं। इसकी असल वजह इन जातिवादी/मजहबी नेताओं द्वारा अपने बचाव में यह प्रचारित करना रहा है कि वर्तमान व्यवस्था में सवर्ण के लोग उनकी जाति के लोगों के उच्च पदों पर आसीन होना देखना नहीं चाहते। इस धारणा को इनके समर्थकों का सच मान लेना है। इसी तरह हाल में शिक्षक भर्ती घोटाले के आरोपी पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी, उनकी ंमहिला मित्र,एक हाउसिंग कॉलोनी के मामले में लाखों रुपए वसूलने शिवसेना के राज्यसभा के सांसद संजय राऊत, करोड़ रुपए की रिश्वत वसूलने वाले महाराष्ट्र की महाविकास अगाड़ी सरकार के गृहमंत्री अनिल देशमुख, एक दूसरे मंत्री नवाब मालिक, दिल्ली की ‘आम आदमी पार्टी’(आप) की सरकार के मंत्री सत्येन्द्र जैन भी तरह-तरह के भ्रष्टचार के आरोपों में गिपतार किये गए और जेल में है। फिर भी उन्हें पद से नहीं हटाया गया है। इससे इन पार्टियों का भ्रष्टचार के प्रति रवैया का पता चलता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कहना भी सही है कि अभी वैसी स्थितियों बनी हुई हैं, जिसमें भ्रष्टाचारी सरकारी एजेन्सियों को बदनाम करने में सक्षम हो जाते हैं। इन स्थितियों को प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जाना चाहिए, क्योंकि आदर्श स्थिति यही है कि भ्रष्ट तत्त्व भ्रष्टाचार निरोधक एजेन्सियों से भयभीत दिखें। अब प्रश्न यह है कि क्या केन्द्र और राज्यों में भाजपा के सत्तारूढ़ होने के बाद सचमुच भ्रष्टाचार खत्म करने की कोशिश की हैं। भले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने मंत्रियों और केन्द्र सरकार में एक सीमा तक भ्रष्टाचार लगाम लगाने पर कामयाब हुए हैं,लेकिन उनकी पार्टी की राज्य सरकारें अभी तक भ्रष्टाचार पर रोक लगाने को लेकर वैसी गम्भीर नहीं दिखाती है,जैसी उनकी पार्टी को वोट देते समय जनता ने अपेक्षा की थी।
वैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रवर्तन निदेशालय(ईडी),सी.बी.आई.,आयकर विभाग जैसी एजेन्सियों को जिस तरह यह निश्चित करने के लिए प्रोत्साहित किया है कि भ्रष्टाचारियों को बख्शा नही जाना चाहिए, भले ही वह व्यक्ति कितना शक्तिशाली क्यों न हो? इस बयान के लिए वह प्रशंसा/साधुवाद के पात्र हैं। उनका जाँच एजेन्सियों को अपना पूरा समर्थन दिया जाना और उन्हें खुलकर काम करने का संदेश देना,निश्चित रूप से भ्रष्टाचारियों के मन में यह खौफ पैदा करेगा कि अब वे अनुचित कार्य करके बच नहीं सकेंगे। इसी के साथ यह भी देखा जाना चाहिए कि सरकारी एजेन्सियाँ अनियंत्रित न होने पाएँ। वे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के नाम पर लोगों को परेशान/उत्पीड़न न करने में लग जाएँ। भ्रष्टाचार निरोधक एजेन्सियों को सक्षम बनाने के साथ यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गए लोगों को समय रहते सजा मिले। सामान्यतः सभी मामलों में ऐसा नहीं होता। ऐसे लोगों/भ्रष्टाचरियों के मामले लम्बे समय तक खिंचते रहते हैं। इससे समाज को कोई सही संदेश नहीं जाता है।
इससे सन्तुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि विभिन्न एजेन्सियों के भ्रष्टाचार में लिप्त तत्त्वों के यहाँ छापेमारी करती रहती हैं। इसके बाद भी ऐसे कोई प्रमाण नहीं दिखे रहे हैं कि भ्रष्टाचार पर कोई निर्णायक लगाम लगी हो। यह ठीक है कि केन्द्र सरकार के उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार पर एक सीमा तक रोक लगी है, लेकिन यह दावा नहीं किया जा सकता। इसी तरह यह नहीं कहा जा सकता कि निचले स्तर के भ्रष्टाचार में कोई बड़ी कमी आयी है। सच यह है कि निचले स्तर पर भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी है। जैसे निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं, वैसे ही रोजमर्रा/दिनप्रति के उस भ्रष्टचार पर भी, जिससे आम लोग पीड़ित हैं। इस पर भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण किया जाना जरूरी है, ताकि आमजन बदलाव महसूस करंे। इसके लिए उन वजहों का पता कर उन्हें पूरी तरह खत्म करना होगा, जिनके चलते भ्रष्टाचार पनपता और फलता-फूलता है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि तकनीक के इस्तेमाल ने व्यवस्था को पारदर्शी बनाने का काम किया जा रहा है, किन्तु अभी इस क्षेत्र में बहुत कम किये जाने की आवश्यकता है। ऐसे ही आवश्यकता राजनीतिक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के मामले में भी है। सरकार कुछ भी दावा करे, यह कहना कठिन है कि चुनावी बॉण्ड की व्यवस्था के बाद राजनीतिक चन्दे की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं बन गई है। सरकार को भ्रष्टचार मिटाने के लिए भ्रष्टाचारियों को त्वरित और कठोर दण्ड से दण्डित करने के तंत्र को भी सुदृढ़ करना होगा,ताकि कोई भ्रष्ट आचरण करने का साहस ही न करे। वर्तमान में देश में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहाँ भ्रष्टाचार व्याप्त न हो। सरकार की तमाम जन कल्याणकारी और विकासपरक योजनाओं में भ्रष्टचार की दीमक लगी हुई है, जिससे देश और समाज को वांछित लाभ नहीं मिल पा रहा है।इस समय शिक्षा के सबसे बड़े मन्दिर समझे जाने वाले विश्वविद्यालय भी भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए हैं,ऐसे में महाविद्यालयों विद्यालयों, शिक्षा विभाग भ्रष्टाचार के रोग से कैसे अछूत रह सकते हैं?
भ्रष्टाचार ऐसे दौर में भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगाए बगैर देश का भौतिक, आर्थिक और समाज का नैतिक विकास सम्भव नहीं है। वैसे यह भी सच है कि भ्रष्टचार खत्म करने और भ्रष्टाचारियों के महिमा मण्डन को रोकने का सारा उत्तरदायित्व सरकार का नहीं है। इसके लिए हर व्यक्ति को प्रयास करना होगा। लोगों को भी रिश्वत देकर अपना काम निकालने की प्रवृत्ति से बचने के साथ-साथ भ्रष्ट अधिकारी की शिकायत को भी आगे आना होगा। यही नहीं, भ्रष्ट तरीकों से धन अर्जित कर चुनाव में पानी की तरह उसे बहाने वालों को भी हराना होगा। साथ ही भ्रष्टचारियों की किसी तरह की सहायता, सहयोग और उसकी प्रशंसा करने से भी बचना होगा, तभी भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनेगा।
सम्पर्क- सम्पर्क- डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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