डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों विशेष राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी (एन.आइ.ए.)के बेंगलुरु स्थित न्यायालय द्वारा सन् 2019 में जम्मू-कश्मीर में 14 फरवरी, 2019 को सी.आर.पी.एफ. जवानों को लेकर जा रही बस पर पाकिस्तान पोषित आतंकवादी संगठन ‘जैश-ए-मोहम्मद के दशगतर्दों के हमले के बाद फेस बुक पोस्टों पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ करने वाले 22 वर्षीय इंजीनियर छात्र फैज रशीद को जो पाँच साल की साधारण सजा तथा 25 हजार जुर्माने की सजा सुनाई है, वह सर्वथा उचित, सामयिक और सबक देने वाली है।
निश्चय ही इससे उस जैसे मजहबी और मुल्क से नफरत करने, जिहादी मानसिकता रखने और उसके खिलाफ काम करने वालों को सही सबक मिलेगा। इस सजा से फैज रशीदी जैसों को जरूर गहरा धक्का लगा होगा, जो अवयस्क होने समेत दूसरी फर्जी दलीलों के जरिए अदालत को गुमराह का इस जिहादी को बचाने की कोशिश में लगे हुए थे। वैसे अपने देशभर में में फैज रशीद जैसे तमाम युवक और दूसरे लोग देश को अन्न-पानी खा-पीकर बढ़े हुए हैं और सरकारी धन पर शिक्षा पाने के बाद भी उसे ही बर्बाद करने में लगे रहते हैं, ताकि यह मुल्क किसी भी तरह ‘दारुल हरब’ से ‘दारुल इस्लाम’ में तब्दील हो सके और यहाँ हममजहबियों के सिवाय कोई दूसरे मजहब का न बचे। वैसे चौंकाने की बात यह है कि इनमें से कोई भी अब तक दुनिया में किसी एक ऐसे इस्लामिक मुल्क का नाम बताने की हालत में नहीं है, जैसा उनके ख्वाब में हो या फिर जैसा अपना मुल्क बनाना चाहते हैं।
दरअसल, जब से अपने देश में इण्टरनेट का चलन बढ़ा है, तब से कुछ लोगों द्वारा इसका सदुपयोग की जगह दुरुपयोग कहीं ज्यादा हो रहा है। मजहबी कट्टरपंथियों/वतनफरोश/गुनाहगारों का तो यह एक बड़ा हथियार बना हुआ है। इसके जरिए मजहबी कट्टरपंथी जहाँ अपनी पहचान छुपाकर युवतियों को अपनी फर्जी मुहब्बत के जाल में फँसाते रहते हैं, वहीं दूसरी ओर झूठी खबरें/नफरती मजहबी जहर फैलाने वाली टिप्पणियों के जरिए सामाजिक-धार्मिक सौहार्द में पलीता/बिगाड़ने में लगे हैं। जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त, 2019से पहले पाकिस्तान परस्त इस्लामिक कट्टरपंथियों,अलगाववादियों द्वारा इण्टरनेट का दुरुपयोग हर जुमे/शुक्रवार को भीड़ जुटाने के लिए किया जाता था, जो नमाज के बाद मस्जिद से निकलते ही भारत विरोधी नारों के साथ सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाते थी। इसके बाद ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ की मुखाफत में विरोध-प्रदर्शन के दौरान, फिर दिल्ली दंगों, इसके बाद टी.वी.के डिबेट शो में नुपूर शर्मा और तस्लीम रहमानी के विवाद के सर तन से जुड़े प्रकरण में सामने आया। वैसे भी आम दिनों में सभी मजहबों के कट्टरपंथी इण्टरनेट पर एक-दूसरे के धर्मों/आस्थाओं के खिलाफ जहर उगलने के साथ भड़काऊ वीडियो आदि डालते रहते हैं,जो कई बार साम्प्रदायिक दंगों की वजह बनते हैं।इनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज होते रहते हैं। कुछ मामलों में ऐसे लोगों की गिरपतारियाँ भी हो चुकी हैं, लेकिन अभी तक इनमें से सजा शायद ही किसी को मिली हो। वैसे भी पुलिस और गुप्तचर एजेन्सियों की जाँच से यह भी पता चला कि ये कट्टरपंथी इण्टरनेट से आपस में देश में ही नहीं,विदेशी दहशतगर्दों के संगठनों से भी जुड़े हुए हैं। प्रतिबन्धित दहशतगर्द संगठन‘इस्लामिक स्टूडेण्ट यूनियन’ यानी ‘सिमी’ के बदले नाम से गठित पी.एफ.आई.के छात्र संगठन ‘कैम्पस फ्रण्ट ऑफ इण्डिया’(सी.एफ.आई.)जैसे संगठन छात्राओं को हिजाब के समर्थन में आन्दोलन करा रहे हैं और छात्रों को दूसरे मुद्दों पर दंगा-फसाद के लिए उकसाती रही है। ऐसे छात्र नेता उमर खालिद और दूसरे दिल्ली दंगें के सिलसिले में जेल में हैं।
वैसे फैज रशीद जैसे मजहबी कट्टरपंथी विचार रखने वाले छात्र देश के विभिन्न स्कूल-कॉलेज,विश्वविद्यालयों में सरकारी खर्चे/वजीफे पर पढ़-लिख रहे हैं, जो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच में जीत-हार या फिर उनके मजहब/हममजहबी के साथ कोई बात होने पर, उनके लिए भारत अपना मुल्क नहीं रहता और सदियों से पड़ोसी गैर मुसलमान जानी दुश्मन बन जाता है। जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी,जामिया मिलिया इस्लामिया, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले छात्र इस कतर में सबसे आगे रहते हैं।वहाँ अक्सर ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे,इंशा-अल्लाह,इंशा-अल्लाह’,अफजल हम शर्मिंदा हैं,तेरे कातिल जिन्दा,कश्मीर माँगे आजादी सरीखे नारे लगते आए हैं। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए देश के बँटवारे के लिए जिम्मेदार मोहम्मद अली जिन्ना का फोटो लगाए रखने उनके लिए उनके लिए आन-बान शान का प्रतीक है। इसमें पाकिस्तान के जिन्दाबाद के नारे और इस मुल्क झण्डा लहरा जाना आम बात है।
वैसे आमतौर पर यह कहा जाता है कि मजहबी दंगे-फसाद गैर पढ़े लिखे लोग करते है,लेकिन हकीकत यह है कि वे मैदान में खून-खराब करते और उसके शिकार बनते जरूर नजर आते है, पर इन फसादों के पीछे पढ़े-लिखे लोगों का हाथ रहा होता है।इन छात्रों और गैर पढ़े-लिखे लोगों के दिमाग में मजहबी नफरत का जहर और देश से दुश्मन का सबक तब्लीगी जमात और मुल्ला-मौलवी सिखाते हैं।
अब फैज रशीद को लें, जो 14फरवरी, 2019को 19वर्ष का था और इंजीनियरिंग का छात्र था।यह पिछले साढ़े तीन साल से हिरासत में है। क्या वह नहीं जानता था कि देश की सुरक्षा में जुटे जवानों की जान लेने वाले देश और इन्सानियत के दुश्मन है और इस मुल्क के गुनाहगार हैं। फिर भी पुलवामा हमले के शिकार हुए सीआरपीएफ के 40जवानों के खिलाफ उसने बार-बार इण्टरनेट पर बार-बार आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कीं और उनकी मौत पर खुशी का इजहार किया। इसीलिए न्यायालय ने ‘भारतीय दण्ड संहिता’(आइ.पी.सी.)के धारा 153ए और धारा 201 तथा गैर कानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम की धारा 13के तहत उसे दोषी पाया और दण्डित किया है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर उसके विरुद्ध धारा 124ए(राजद्रोह)के तहत मुकदमा नहीं चलाया गया,लेकिन उसने फैज रशीद के वकील की उसे प्रोबेशन पर रिहा करने की माँग को नामंजूर करने के साथ-साथ उसकी इस दलील को भी नहीं माना कि उसने कोई दूसरा/अन्य गुनाह नहीं किया है। इस पर फैज रशीद के वकील जवाब में न्यायालय का यह कहना सर्वथा उचित है, ‘आरोपित ने एक या दो बार अपमानजनक टिप्पणियाँ नहीं की थीं। उसने फेस बुक पर सभी न्यूज चैनल्स को पोस्ट पर टिप्पणियाँ की थीं। यह कोई निरक्षर या साधारण व्यक्ति नहीं है। अपराध के समय वह इंजीनियरिंग का छात्र था और उसने टिप्पणियाँ जानबूझकर की थीं।’ न्यायालय ने कहा कि उसने जवानों की मौत पर खुशी महसूस की और ऐसे जश्न मनाया जैसे वह भारतीय नहीं है।
। अब भले ही इस्लामिक कट्टरपंथी फैज रशीद की सजा पर छाती और माथा कूटते हुए मातम मनाए,पर वह सचमुच मुल्क और इन्सानियत का गुनाहगार है। उसे मिली सजा से इसी तरह का आएदिन गुनाह करने वालों को जरूर सबक मिलेगा। लेकिन यह भी हकीकत है कि पुलवामा हमले में सीआरपीएफ के शहीद होने पर खुशी इजहार करने और जश्न मनाने वाला फैज रशीद अकेला नहीं था, उससे जैसे अनगिनत थे और अब भी हैं, जो 5अगस्त, 2019को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अस्थायी अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाये जाने से बेहद नाराज थे और अब भी हैं, जो उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यह सबक सिखाने चाहते थे कि उनका फैसला उन्हें मंजूर नहीं है, पर यह भी सच है कि तब भारतीय वायुसेना ने 26फरवरी,2019को सुबह 3.30 बजे गुलाम कश्मीर के बालाकोट में स्थित दहशतगर्दों के अड्डे पर एयर स्ट्राइक उन्हें और पाकिस्तान को माकूल जवाब दिया था। अब भी इस मानसिकता के लोग आम सभाओं,टी.वी.पर होने वाली बहस समेत इण्टरनेट आदि मजहबी कट्टरता,पाकिस्तान परस्ती,देश विरोधी एजेण्डा चलाने से बाज नहीं आते है,इन्हें ऐसे गुनाहों के लिए सख्त सजा की दरकार हमेशा रहेगी।ऐसा किये बगैर देश की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता, अक्षुण्णता सुरक्षित रख पाना सम्भव नहीं है।
सम्पर्क-डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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