राजनीति

ऐसे खत्म होगीं कश्मीर में लक्षित हत्याएँ

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों कश्मीरी हिन्दू पूर्ण कृष्ण भट्ट तथा  प्रदेश के कन्नौज जिले के दो श्रमिक मुनीश कुमार और रामसागर की लक्षित हत्याओं पर वर्तमान सांसद तथा जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री तथा नेशनल कान्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला का यह कहना कि जब तक इन्साफ नहीं मिलेगा, तब तक कश्मीर में हत्याएँ होती रहेंगी, उनके इस बेबाक/बेशर्म बयान से जाहिर है कि वे न के सिर्फ इस्लामिक दहशतगर्दों द्वारा बेकसूर निहत्थे कश्मीरी हिन्दुओं, प्रवासी श्रमिकों, गैर अलगावादी मुसलमानों के मारने/कत्ल को जायज मानते-समझते हैं, बल्कि उनके तरफदार भी हैं। उनकी निगाह में ये कातिल नहीं, ‘मुजाहिद’/आजादी के लड़ाके हैं। ये भी उन्हीं के जैसे हैं, जो इस सूबे में ‘दारुल इस्लाम’ कायम करने में लगे हैं। फर्क महज इतना है कि जो काम वह और उनके मरहूम अब्बाजान शेख अब्दुल्ला और बेटा उमर अब्दुल्ला सियासत का चोला/लबादा ओढ़ कर आईन, जम्हूरियत और कश्मीरियत की दुहाई देते हुए सालों से करते आए हैं, वहीं ये दहशतगर्द बन्दूक के जोर पर।
दरअसल, ऐसा बयान देने के पीछे डॉ.अब्दुल्ला की मंशा केन्द्र सरकार के अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को गलत ठहराना और कश्मीर की जनता को भरमाने/बहकाने की है। उनके इस बयान की कश्मीरी हिन्दुओं के प्रमुख संगठन ‘पनुन कश्मीर’के अध्यक्ष डॉ. अजय चुरंगु ने कड़ी निन्दा की है। उन्होंने यह भी सही कहा कि डॉ.अब्दुल्ला ने जो कहा है,वह एक तरह से कश्मीर में आतंकवादी हिंसा और टारगेट किलिंग को सही ठहराता है। हकीकत भी यही है कि कश्मीर घाटी आधारित सियासी पार्टियों के नाम भले ही अलग-अलग हों, पर इनके नेताओं का मकसद घाटी ही नहीं, पूरे जम्मू-कश्मीर को हिन्दू विहीन बनाकर ‘निजाम-ए-मुस्तफा’ कायम करना है। इनका सरगना कोई और नहीं, डॉ.फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती हैं।
लेकिन इसी 15अक्टूबर और 17अक्टूबर को क्रमशः पूर्ण कृष्ण भट्ट और दो प्रवासी श्रमिकों की लक्षित हत्याओं को लेकर कश्मीर हिन्दुओं में भारी दहशत व्याप्त है। वे सरकार द्वारा उनकी समुचित सुरक्षा न दे पाने को बेहद नाराज हैं और आन्दोलनरत हैं। यही नहीं,वे मौजूदा हालात में घाटी में रहना और काम करना नहीं चाहते।लेकिन उनके प्रलाप-विलाप और सरकार पर सुरक्षा न करने के आरोप लगाने से क्या वे दहशतगर्दों के मंसूबे पूरा नहीं कर रहे हैं?यह सवाल अपनी जगह मौजूं हैं।यदि एक हिन्दू की मौत होती है,तो दहशतगर्द भी आए दिन मारे जा रहे हैैं।सेना ने ऑपरेशन ऑल आउट के तहत उन्हें पकड़ा या मारा जा रहा है।
वैसे डॉ.फारूक अब्दुल्ला के कहे पर देश के लोगों को किसी तरह की हैरानी नहीं हो रही है, ये तो अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली के लिए चीन से मदद लेने तक की धमकी दे चुके हैं। लेकिन अफसोस तो उन्हें अपनी सरकार पर हो रहा है, जो डॉ.फारूक अब्दुल्ला और पूर्व मुख्यमंत्री तथा पी.डी.पी.की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती जैसे रहनुमाओं के साथ लगातार रहमदिली बरते और भरोसा जताने पर हो रहा है। पता नहीं, सरकार ये कैसे भूल गई कि ये वही डॉ.अब्दुल्ला हैं,जो खुलेआम यह कहते थे कि पी.ओ.के. क्या तुम्हारे बाप का है,जो उसे वापस लोगे?इसे हिन्दुस्तानी फौज भी किसी सूरत में उसे वापस नहीं ले पाएगी। यह वही महबूबा मुफ्ती जो पत्थरबाजों के प्रति खुलकर हमदर्दी जताती थीं।उन्होंने यह धमकी देने से गुरेज भी नहीं किया कि जिस दिन अनुच्छेद 370 को हटाया ,उस दिन सूबे में कोई तिरंगा उठाने को नहीं बचेगा। क्या सरकार अब भी इनसे अपना पुराना रुख- रवैया बदलने की उम्मीद कर रही है? क्या सरकार इतनी नासमझ है जो धरती के इस स्वर्ग को अपनी जागीर और इस्लामिक स्टेट बनाने के लिए अब तक न जाने कितनों लोगों का खून बहा कर इन्होंने इसे जहन्नुम/नरक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। फिर वह इन लोगों ने के असल इरादों से अभी तक नावाकिफ हो, ऐसा सम्भव नहीं है। निश्चित ही, उसकी अपनी, आन्तरिक और अन्तर्राष्ट्रीय सियासत को देखते हुए कुछ मजबूरियाँ रही होंगी, जिसकी वजह से इन जैसे मजहबी कट्टरपंथियों और वतनफरोशों को न सिर्फ खुला छोड़ा हुआ है,बल्कि जेहदियों , मुल्क ,अमन और इन्सानियत के इन दुश्मनों को बोलने/जहर उगलने की पूरी आजादी भी दी हुई है। तभी तो डॉ.फारूक अब्दुल्ला वह अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर भाजपा और केन्द्र सरकार पर यह तंज करने से भी चूके कि लक्षित हत्याएँ (टारगेट किलिंग) अब क्यों नहीं रुक रही हैं? इतना ही नहीं, अनुच्छेद 370 का बचाव करते हुए है,उन्होंने यह भी कहा कि इस सूबे में आतंकवादी हिंसा के लिए अनुच्छेद 370 कभी भी जम्मू-कश्मीर में जिम्मेदार नहीं था, जम्मू-कश्मीर आतंकवाद के तार तो बाहर से हिलते हैं,इसे कोई दूसरा शह देता है। लेकिन यह सब कहते हुए इसकी हकीकत भी बयां कर गए। वैसे उनके कहने/इशारा करने से क्या फर्क पड़ता है कि इस सूबे में दहशतगर्दी को शह और मदद पड़ोसी पाकिस्तान और दुनियाभर में फैले इस्लामिक कट्टरपंथी देते आए हैं, किन्तु उनका यह कहना गलत है कि अनुच्छेद 370के हटने के बाद दहशतगर्दी में कमी नहीं आयी है और सूबे के हालात नहीं बदले हैं। सच यह है कि अब मस्जिदों से हर शुक्रवार/जुमे को अलगाववादी पाकिस्तान और दहशतगर्द संगठन‘आइ.एस.के झण्डे लहराते हुए पाकिस्तान जिन्दाबाद,हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए सुरक्षा बलों पर पत्थराव करते नहीं निकलते। इस बार 15 अगस्त,पर यहाँ के लोगों द्वारा श्रीनगर के लाल चौक समेत हर जगह तिरंगा शान से फहरा गया। विकास से जुड़ीं विभिन्न परियोजनाओं पर काम हो रहा है।कट्टरपंथियों पर एनआइए के छापे पड़ रहे हैं और इनमें से कुछ जेल में हैं। इस्लामिक देशों के धन पर पलने वाले इस्लामिक कट्टरपंथी डॉ. फारूक अब्दुल्ला का यह कहना भी सही नहीं है कि अनुच्छेद 370से पहले सब कुछ ठीक था। सन् 1990 के दौर इन्हीं इस्लामिक कट्टरपंथी और अलगाववादियों कश्मीर घाटी में डॉ.फारूक अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री रहते बड़े पैमाने पर कश्मीर पण्डितों का नरसंहार हुआ और उन्हें अपना सब कुछ छोड़कर पलायन को मजबूर होना पड़ा था। तब डॉ.अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे। इस नरसंहार को रोकने बजाय ये इस्तीफा देकर मौज मस्ती करने लन्दन चले गए थे। उसके बाद भी कश्मीर हिन्दुओं का खून बहाने का सिलसिला कभी थमा नहीं। फिर हकीकत यह है कि इस अस्थायी अनुच्छेद के रहते इस सूबे के मुसलमानों ने यह ख्वाब देख लिया था कि एक दिन यह इस्लामिक मुल्क/सूबा बन जाएगा। इसकी वजह से ही उन्होंने सात दशक तक खुद को भारतीय नहीं माना/समझा। कुछ तो अब भी खुद को कश्मीरी कहने में फख्र महसूस करते हैं और अनुच्छेद 370 की वापसी का मन्सूबा पाले हुए हैं, जिसे 5अगस्त, 2019को हमेशा के लिए खत्म कर दिया गया है। अब जहाँ तक जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी हिन्दुओं, प्रवासी श्रमिकों, देशभक्त कश्मीरी मुसलमानों की सुरक्षा और लक्षित हत्याएँ न होने देने के लिए जरूरी पहले की भाँति अधिक सतर्कता-सावधानी, जाँच-पड़ताल और गुनाहगारों को तत्काल नमूने की सजा दिलाने का तंत्र कायम करना होगा। साथ ही मजहबी नफरत तथा कट्टरता फैलाने वालों की कठोर निगरानी। यह सच है कि हिन्दू घाटी में सुरक्षित नहीं हैं,पर सरकार के लिए हरेक की सुरक्षा का बन्दोबस्त कर पाना सम्भव नहीं, ऐसे में हिन्दुओं को इन दहशतगर्दों से भय से पलायन करने के स्थान पर हथियारबद्ध होकर उनका सामना करने को अपने को सक्षम बनना होगा। शास्त्र के साथ उन्हें अपने प्राणों की रक्षा के लिए शस्त्र भी उठाने हांेगे,तभी जिहादियों को मंसूबे नाकाम होंगे।
केन्द्र सरकार को डॉ.फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे घाटी के नेताओं की सरकारी सुविधाओं में कटौती करने के साथ-साथ उनके साथ सख्ती बरतनी होगी। सरकार को न इन पर ऐतबार करने की जरूरत है और न ही सूबे के मामलों में किसी तरह की सलाह लेने की। ऐसा किये बगैर इस सूबे में जम्हूरियत का चोला ओढ़े इस्लामिक कट्टरपंथी, वतनफरोश रहनुमाओं को बेनकाब करना और उनके नापाक मंसूबे नाकाम करने में कामयाबी मिलना सम्भव नहीं है।
डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

 

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