राजनीति

पीएफआई-एक दुःस्वप्न का अन्त

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
आखिर केन्द्र सरकार ने आतंकरोधी कानून ‘गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम कानून’(यूएपीए) के तहत ‘पापुलर फ्रण्ट ऑफ इण्डिया’(पीएफआई) और उसके सहायक 8 राष्ट्रघाती/ विघटनकारी संगठनों को पाँच साल के लिए प्रतिबन्धित किये जाने जो सामयिक और साहसिक निर्णय लिया है, उसका यह अत्यन्त सराहनीय कदम है, जिसकी देश के लोग बहुत समय से प्रतीक्षा कर रहे थे। वैसे भी कर्नाटक,गुजरात, उŸार प्रदेश सरकार तो काफी पहले से पीएफआई पर प्रतिबन्ध लगाने की केन्द्र सरकार से अनुशंसा कर चुकी थीं। अब देश की सियासी पार्टियों के रुख-रवैये को देखते हुए तथा इस पाबन्दी के खिलाफ पीएफआई के अनुकर भविष्य में अदालत में केन्द्र सरकार के फैसले को गलत ठहराने को लेकर उसने इसके लिए विरुद्ध पुख्ता सुबूत जुटाये हैं। इनमें जघन्य हत्याओं के 10 मामलों इसकी सीधी संलिप्तता, इसके कई सदस्य आइ.एस. की सीरिया, इराक, अफगानिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना, गैरकानूनी गतिविधियों के समाज के विभिन्न वर्गों में पैठ, इसके पदाधिकारियों का पूर्व प्रतिबन्धित सिमी का संस्थापक सदस्य होना आदि हैं। पीएफआई के खिलाफ जाँच एजेंसियों की कार्रवाई के विरोध इसी 23सितम्बर को इसके समर्थकों द्वारा केरल में जिस तरह सरकारी और गैर सरकारी सम्पत्तियों की भारी तोड़फोड़ और आगजनी के साथ दंगा-फसाद किया। उसका केरल उच्च न्यायालय ने स्वतःसंज्ञान लिया। इसके बाद इस पर 5.20करोड़ रुपए का जर्माना लगाया। केरल उच्च न्यायालय का यह निर्णयणीय है और पीएफआई के गैरकानूनी कामों की पुष्टि करता है। अब केन्द्र सरकार के आदेश इस संगठन के इण्टरनेट पर मौजूद विभिन्न मंचों को हटा दिया गया है,ताकि यह इनका लोगों को गुमराह करने के लिए दुरुपयोग न कर सके।
वस्तुतः पीएफआई सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक संगठन की आड़ में अपने छद्म/गुप्त एजेण्डे को पूरा करने को एक विशेष समुदाय(मुस्लिम)को कट्टरपंथी बनाकर लोकतांत्रिक अवधारणा को कमजोर कर और देश की सरकार तथा संवैधानिक ढाँचे के प्रति अनादर का भाव पैदा करने में जुटा था। यह देश की आन्तरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। अब सरकार के लिए पीएफआई और उसके सभी आठों संगठनों के खातों और सम्पत्तियों को सील करने का रास्ता भी साफ कर दिया गया है।
वैसे यह कट्टरपंथी अलगाववादी,दहशतगर्द संगठन सिर्फ नाम से डेढ़ दशक पुराना है, पर हकीकत में यह प्रतिबन्धित दहशतगर्द संगठना ‘सिमी’ का नया संस्करण है। इसके 50फीसद पदाधिकारी सिमी के संस्थापक सदस्य रहे हैं, लेकिन अब केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने ‘ऑपरेशन आक्टोपस’ के माध्यम से ‘राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी’(एनआईए), ‘आई.बी.’, प्रर्वतन निदेशालय(ईडी), सी.बी.आई., ‘आतंकवाद निरोधक दस्ता’ (एटीएस), ‘स्पेशल टास्क फोर्स’ (एसटीएफ), स्थानीय पुलिस की सहायता से इसके मंसूबे नाकाम कर दिये। इस ऑपरेशन के तहत गत 22 सितम्बर को पीएफआई के खिलाफ 15राज्यों मंे उसके 93 ठिकानों पर धावा बोला और 106 आरोपियों को गिरफ्तार किया। फिर इन आरोपियों से पूछताछ के उपरान्त 27 सितम्बर को 7 राज्यों इसके ठिकानों पर छापे मार कर 170 लोगों को हिरासत में लेकर इस अभियान का समापन कर दिया। आखिर में मारे छापों में सबसे अधिक 75 कर्नाटक तथा उत्तर प्रदेश के 26 जिलों से 57 लोग पकड़े गए। इन सभी से बरामद सामग्री में दुनिया भर के सबसे बड़े इस्लामिक कट्टरपंथी दहशतगर्द संगठन‘ इस्लामिक स्टेट (आइ.एस.), ‘जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश’(जेएमबी) आदि से सीधे रिश्ते तथा खाड़ी देशों से मनीलांड्रिंग के जरिए चन्दा इकट्ठा करने तथा जकात का धन लाने, घातक हथियार बनाने तथा चलाने का प्रशिक्षण ,मजहबी नफरत फैलाने वाला साहित्य,खंजर समेत दूसरे हथियार, नकदी,विदेशों से मिले धन आदि के सुबूत मिले हैं।

निश्चय ही अब इस फैसले से देश में एक विशेष वर्ग के लोगों में मजहबी कट्टरता और दूसरे समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने के साथ हिंसक गतिविधियों तथा विध्वंसक कार्रवाइयों के जरिए देश में दहशत का माहौल बनाने में लगे ऐसे ही दूसरे मजहबी कट्टरपंथी संगठन हतोत्साहित होंगे। इस पाबन्दी से उन इस्लामिक कट्टरपंथी संगठनों के नेताओं और सियासी पार्टियों के मुँह बन्द हो गए, जो हर मजहबी हिंसक घटना के बाद पीएफआई के खिलाफ उठाने वाली आवाज पर यह जताने की कोशिश करते आ रहे थे कि उसके खिलाफ सरकार कार्रवाई क्यों न नहीं करती? सचमुच हालात ऐसे ही थे कि केरल की वामपंथी या फिर काँग्रेस गठबन्धन की वाली सरकारें भी पीएफआई की दहशतगर्दी के बारे में सबकुछ जानते भी अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति के कारण इसके खिलाफ सख्त कदम उठाने से बचती रही थीं। इसके सदस्यों द्वारा आरएसएस के नहीं, कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्Ÿााओं की हत्याएँ और हिन्दू तथा ईसाई युवतियों को ‘लव जिहाद’ के जरिए मतान्तरण किया जाना आम बात हो गई थी।
यही वजह है कि सन् 2010 में जिन प्रोफेसर टी.जे.जोसेफ की इस संगठन के जिहादी मानसिकता वालों ने प्रश्न पत्र में पैगम्बर मुहम्मद साहब से सम्बन्धित प्रश्न बनाने पर हथेली काट दी और कई बार उन हमला किया गया। वह जिस ईसाइयों के कॉलेज में पढ़ाते थे उन्होंने इन्हें नौकरी से हटा दिया। इससे परेशान होकर इनकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली। अब ये प्रोफेसर टी.जे.जोसेफ इतने भयभीत हैं कि उन्होंने पीएफआई पर पाबन्दी लगाए जाने को लेकर प्रतिक्रिया देने से साफ इन्कार कर दिया। दक्षिण भारत के केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना हिन्दू संगठनों के कार्यकर्Ÿााओं के हत्या के अलावा इसके आनुषांगिक संगठन ‘कैम्पस फ्रण्ट ऑफ इण्डिया’ द्वारा हिजाब विवाद, इससे पहले ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’(सीएए) का दिल्ली के शाहीन बाग समेत देश के अलग-अलग हिस्सों में उग्र प्रदर्शन, दिल्ली में साम्प्रदायिक दंगा, हाथरस में दलित युवती के हत्या काण्ड में अशान्ति फैलाने की कोशिश, राजस्थान के करौली में नववर्ष के जुलूस पर हमला, फिर इसके दूसरे शहरों में रामनवमी, दिल्ली में हनुमान जयन्ती के जुलूस ,नूपुर शर्मा प्रकरण में उनका समर्थन करने वालों की सर काट कर निर्मम हत्याएँ, सर तन से जुदा के धमकियाँ देकर डराना और दुनियाभर में भारत में मुंसलमानों के उत्पीड़़न की अफवाह फैलाकर बदनाम करने आदि वारदातों की एक लम्बी सूची है।
अब जहाँ केन्द्र सरकार के इस सख्त फैसले से देश के अधिसंख्यक लोग बेहद खुश हैं। इससे उन सभी दहशतगर्दों संगठन को बड़ा झटका लगा होगा, जो भारत को ‘इस्लामिक मुल्क’यानी ‘दारुल इस्लाम’ में तब्दील करने का ख्वाब देखते आए हैं। खासतौर से पीएफआई ने तो बकायदा आगामी 2047तक हिन्दुस्तान को ऐसा करने के लिए पूरी कार्य योजना बनायी हुई है, जिसका खुलासा इसी जुलाई को बिहार के बिहार शरीफ में पीएफआई के कार्यालय में मिले दस्तावेजों से हुआ था। वहीं दूसरी और हमेशा की तरह काँग्रेस, सपा, राजद समेत कथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के नेताओं ने पीएफआई पर पाबन्दी को बेमन से ठीक तो बताया है, पर साथ ही उन्होंने ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’(आरएसएस)को पीएफआई जैसा बताते हुए उस पर भी बन्दिश लगाने की अपनी मंशा भी जाहिर की है। इधर काँग्रेस के वरिष्ठ नेता रशीद अल्बी ने पीएफआई पर प्रतिबन्ध को चुनावी स्टण्ट बताते हुए उसका बचाव किया है, उधर इसी पार्टी के नेता के.सुरेश ने भी पीएफआई को खतरनाक संगठन मानते हुए उस पर पाबन्दी को सही माना, पर आरएसएस पर भी ऐसी ही कार्रवाई किये जाने की बात कही है, वहीं राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने पीएफआई के साथ आरएसएस पर प्रतिबन्ध न लगाने पर सवाल उठाया है। इससे स्पष्ट है कि वे देश की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता से जुड़े इस गम्भीर मुद्दे पर भी अपनी सियासत से बाज नहीं आए । ये सभी अब भी अपनी अल्पसंख्यक समुदाय की तुष्टीकरण की नीति छोड़ने को तैयार नहीं हैं। फिर उनसे सवाल यह है कि क्या इस समुदाय के सभी लोग पीएफआई जैसे मजहबी कट्टरपंथी तथा राष्ट्र विरोधी संगठनों से हमदर्दी रखते हैं? इस मामले में ‘ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इŸोहादुल मुसलमीन‘एआइ एम आइएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी कैसे पीछे रहते? उन्होंने पीएफआई के कार्यकलाप को गलत जरूर माना ,लेकिन उसके बचाव और हिमायत में यह कहने से भी नहीं चूके कि यह पाबन्दी कुछ लोगों के जुर्म के लिए पूरे संगठन पर लगाना जम्हूरियत के खिलाफ है। हद तो तब हो गई,जब इस्लामिक विद्वान मौलाना सज्जाद नौमानी ने पीएफआई पर लगे आरोपों को ही निराधार बता दिया। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इस बार पीएफआई के मामले में वामपंथी दल और उन्हीं के मानसिकता वाले बुद्धिजीवी, साहित्यकार, पत्रकार, फिल्मी अभिनेता, अभिनेत्रियाँ, गीतकार आदि खामोश रहे हैं, शायद यह सोच कि कहीं उनके बयानों से नाराज होकर हिन्दू दर्शक अभिनेता आमिर खान की फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ जैसा विरोध करना शुरू न कर दें। अच्छी बात यह है कि कुछ मुस्लिम मजहबी संगठन ‘ऑल इण्डिया शिया पर्सनल बोर्ड के महासचिव तथा वरिष्ठ शिया धर्मगुरु मौलाना याकूब, ‘दरगाह आला हजरत से जुड़े ऑल इण्डिया मुस्लिम जमात’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रिजवी, ‘दरगाह आला हजरत के मदरसा-ए-मंजर-ए-इस्लाम’ के मुफ्ती सलीम आदि ने पीएफआई पर पाबन्दी को सही ठहराया है, पर इनमें से ऑल इण्डिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रिजवी को पीएफआई के खिलाफ बोलने पर उनके वजूद को खत्म करने की फोन धमकी भी मिल रही है। इनके सिवाय ऑल इण्डिया इमाम आर्गनाइजेशन के चीफ इमाम डॉ.उमेर अहमद इलियासी को आरएसएस के सरसंघ चालक डॉ.मोहन भागवत को अपने यहाँ मस्जिद में बुलाने तथा उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ और ‘राष्ट्रऋषि’कहे जाने पर इंग्लैण्ड, पाकिस्तान समेत देश के अलग-अलग जगहों से फोन ‘तन सर से जुदा’ करने की धमकियाँ मिल रही हैं,जिसकी उन्हें थाने में रिपोर्ट करानी पड़ी है।
दरअसल,पीएफआई अपने आठ अनुषांगिक संगठनों ’कैम्पस फ्रण्ट ऑफ इण्डिया’ (केएफआइ), ’रिहैब इण्डिया फाउण्डेशन’ (आरआरएफ),‘ऑल इण्डिया इमाम कौंसिल’ (एआइआइसी), ‘नेशनल कान्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन’ (एनसीएचआरओ), ‘नेशनल वूमेन फ्रण्ट’ (एनडब्ल्यूएफ), ‘जूनियर फ्रण्ट’ (जेएफ), ‘रिहैब फाउण्डेशन केरल’ (आरएफके ) के माध्यम से महिलाओं, बच्चों, छात्र-छात्राओं, युवकों, इमामों,वकीलों में अपनी पैठ बढ़ाकर उनमें मजहबी नफरत के बीज बोने से लेकर धन जुटा रहा है। इसकी भयावहता के बारे में केरल की वामपंथी सरकार सन् 2010में तथा काँग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार सन् 2013में केरल उच्च न्यायालय में हलफनामा देकर इसके सुबूत दे चुकी थी।
अब जहाँ तक पीएफआई के इतिहास की जानकारी का सवाल है तो इस समूह की स्थापना 19दिसम्बर, 2006 को कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और नेशनल डेवलपमेण्ट फ्रण्ट(एन.डी.एफ.) के विलय के साथ हुई थी, जबकि एन.डी.एफ. का गठन अयोध्या में विवादास्पद श्रीरामजन्मभूमि/बाबरी मस्जिद ढाँचा विध्वंस और उसके बाद सन्1993 में हुए साम्प्रदायिक दंगों के बाद हुआ था। सन् 2014में केरल पुलिस ने उच्च न्यायालय में अपने शपथपत्र में पीएफआई कार्यकर्Ÿााओं पर हत्या के 27, हत्या के प्रयास 85 और साम्प्रदायिक हिंसा 106 मामलों में संलिप्तता का उल्लेख किया था और यह सिमी का नया रूप है।
अब केन्द्र सरकार को पीएफआई जैसे राष्ट्रघाती संगठन पर पाबन्दी लगा कर ही सन्तुष्ट होकर चुप बैठना नहीं होगा। उसे सिमी वाली गलती दोहराने से हर हाल में बचना होगा,जिसे 2001 में प्रतिबन्धित जरूर किया गया, पर उसके समर्थकों के खिलाफ पहले और बाद में देशव्यापी कार्रवाई नहीं की गई। इस कारण वह अपना रूप बदलने में सफल हो गया। इसके लिए पीएफआई के समर्थकों और उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने के साथ दोषियों को सख्त सजा दिलाने के हर सम्भव प्रयास करने होंगे,ताकि फिर ऐसे विषधर फन उठाने से हजार सोचें।
डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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