डॉ.बचनसिंह सिकरवार

नागरिक संशोधन अधिनियम(सी.ए.ए.) के विरोध को लेकर देशभर में शुरू हुए धरना-प्रदर्शन और आन्दोलनों के इस दौर में अब ‘राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर’(एन.पी.आर.)और ‘राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर’(एन.आर.सी.)भी जुड़ गए हैं, लेकिन इनकी मुखालफत के इस आन्दोलन में एक बात अच्छी हुई कि जिस वर्ग के कुछ लोगों को राष्ट्रीयता के कई प्रतीकों से अपने मजहबी वजहों से सख्त परहेज था। वे लोग अब तिरंगा उठाये घूम रहे हैं।इनमंे कुछ लोग कल तक देश,राष्ट्रीयता और संविधान से बढ़कर अपने मजहब तथा शरीयत को तरजीह देते आए थे, वे धर्मनिरपेक्षता/सेक्युलरिज्म की दुहाई देते नहीं थक रहे हैं। इनमें से कोई भी भूले से भी ‘शरीयत’ लफ्ज अपनी जुबान पर नहीं ला रहा है। यहाँ तक कि जहाँ इन प्रदर्शनों, जुलूसों में तिरंगे के साथ महापुरुषों के चित्र लगी तख्तियाँ भी नजर आ रही हैं, वहीं इनकी सभाओं के मंचों पर भारत का मानचित्र, गाँधी, नेहरू, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, डॉ.भीमराव आम्बेडकर, भगत सिंह, अशफाक उल्लाह खान आदि की तस्वीरें दिखायी दे रही हैं। वैसे यह बात अलग है कि उनमें कश्मीर, केरल और न जाने किस-किस की और किससे -किससे आजादी के नारे भी लग रहे हैं। यहाँ तक कि जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी, जे.एन.यू.यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ-साथ भाजपा, आर.एस.एस. हिन्दुत्व की कब्र बनाने, हिन्दू विरोधी के नारे भी जीभर कर लगाये जा रहे हैं। इतना ही नहीं, दिल्ली में शाहीन बाग में चल रहे धरने में जाने-अनजाने में ‘जिन्ना वाली आजादी’के नारे भी लग गए, जो इनमें कुछ की सचमुच चाहत भी है। अब जहाँ भीषण सर्दी में पिछले एक माह से मुस्लिम महिलाएँ अपने बच्चों के साथ मुख्य सड़क को घेर कर रात-दिन बैठी हुई हैं। दरअसल, विपक्षी सियासी पार्टियों ने तिरंगे को सोच-समझ कर अपनी सियासत का हिस्सा बनाया है,ताकि इसकी आड़ में वे खुलकर अपनी मनमर्जी भी कर लें और कोई उन पर किसी तरह का इल्जाम भी न लगाए। जब सी.ए.ए. के विरोध में जहाँ मुम्बई में हुए प्रदर्शन में ‘फ्री कश्मीर’की तख्ती दिखायी गई,वहीं कानपुर में आइ.आइ.टी.में पाकिस्तान के फैज अहमद फैज मजहबी प्रतीकों नज्म ‘हम देखेंगे गाया जाने पर सवाल उठाये गए ,तो बड़ी मासूमियत से अपनी-अपनी तरीके से उनका बचाव भी किया गया, जबकि ऐसा किया जाना अनायास नहीं है। लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में यह सब कहाँ तक उचित और वैध है?विचार करें।
वैसे शाहीन बाग के धरने के कारण चार किलोमीटर तक पूरा मार्ग बन्द होने की वजह से दुकानें भी नहीं खुल रही हैं। इस कारण लोगों को कई -कई किलोमीटर चक्कर लगाकर तथा घण्टों जाम में फँस कर अपने काम-धन्धे पर जाने को मजबूर होना पड़ा रहा है। उनकी परेशानी से बेफिक्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विरोधी सियासी पार्टियों और छात्रों के नेता,अभिनेता अपनी राजनीति एवमं फिल्म का प्रचार भी कर रहे हैं और ये सभी लोगों को इन कानूनों को लेकर गुमराह कर डरा रहे हैं। यहाँ आकर पंजाब के किसानों और अकालियों का समर्थन देने और अब पंजाब की कैप्टन अमरिन्दर सिंह की काँग्रेस सरकार द्वारा केरल सरकार की तरह ही सी.ए.ए.के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने का औचित्य समझ से परे है,क्या पाकिस्तान, अफगानिस्तान के धार्मिक रूप से प्रताड़ित सिखों को भारत की नागरिकता देना गलत है?इस पर सिख समाज स्वयं विचार करें?

दुःख की बात यह है कि धरना, आन्दोलन,प्रदर्शन कर रहे लोगों, महिलाओं को इन पर तो भरोसा है,पर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री के कहे पर यकीन नहीं है। मान लेते हैं,इन्हें कानून की जानकारी नहीं है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के वकील और कानून मंत्री रहे काँग्रेस नेता कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, अभिषेक मनु सिंघवी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, केरल के मुख्यमंत्री, ए.आइ.आइ.एम.एम.के नेता असदुददीन ओवैसी समेत वामपंथी पार्टियों,सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव,बसपा की प्रमुख मायावती भी नहीं समझ रही हैं?ये सब कुछ समझ रहे हैं,पर न समझने का दिखावा कर रहे हैं। अल्पसंख्यक वोटों की ठेकेदार सियासी पार्टियों के साथ-साथ मुल्ला,मौलवियों ने जानबूझकर अपने लोगों में इन कानून को लेकर इतना गुमराह किया है कि वे हाथ में पत्थर लेकर सड़कों पर निकल कर अराजकता फैलाते हुए पुलिस पर पत्थरबाजी कर ,आगजनी पर उतर आए। इनमें से कोई तीन दर्जन लोगों की जानें चली गईं और बड़ी संख्या में दंगाई तथा पुलिसकर्मी घायल भी हुए। देश की करोड़ों रुपए की निजी तथा सार्वजानिक सम्पत्ति नष्ट हुई। केवल रेलवे को ही सौ करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान उठा पड़ा है। लेकिन इससे इन नेताओं को क्या?उनका प्रधानमंत्री मोदी की राजग सरकार को बदनाम करने को मकसद तो पूरा हो गया?ज्यादातर मुस्लिम महिलाएँ और कुछ मुसलमान जो अपने-अपने कारणों से भाजपा की तरफ आकर्षित हो रहे थे,उन्हें भाजपा से किसी हद दूर करने में भी ये जरूर कामयाब हो गए। दरअसल, केन्द्र मंे राजग सरकार बनने के बाद से देश में धर्मान्तरण,अलगाववादियों, आतंकवादियों की मदद में लगे लोगों ,मानवाधिकार, पर्यावरण आदि के नाम पर कार्यरत तमाम गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठनों(एन.जी.ओ.) के विदेशों से मिलने वाले धन की निगरानी और बन्द किये जाने, तत्काल तीन तलाक, जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे से सम्बन्धित अनुच्छेद 370 तथा 35ए को हटना तथा उसका दो केन्द्र शासित राज्यों में विभाजित करना, सदियों पुराने श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर/बाबरी मस्जिद विवाद को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय को देश के लोगों द्वारा शान्तिपूर्ण तरीके से स्वीकार कर लेने से विपक्षी सियासी पार्टियाँ विशेष रूप से पंथनिरपेक्षता की ओट में अल्पसंख्यक वोट बैंक सियासत करने वालियों को यह सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था। इसलिए उन्होंने ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’को अपने सियासत का हथियार बनाया,जो मुस्लिम बहुल पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के मजहबी वजहों से उत्पीड़ित/प्रताड़ित हिन्दू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन, पारसियों को नागरिकता देने के लिए बनाया गया, जिसकी पैरवी आजादी के बाद से महात्मा गाँधी, पण्डित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, मनमोहन सिंह, असम में मुख्यमंत्री तरुण गगोई,राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलौत,ममता बनर्जी, माकपा नेता प्रकाश कारन्त आदि कर चुके हैं। यह कानून किसी नागरिकता छीनने का नहीं है, देने का। फिर भी इसे संविधान की पंथनिरपेक्षता के खिलाफ बताकर इसका विरोध किया जा रहा है।यदि इसमें मुसलमानों को भी शामिल कर लिया जाता,तो इस अधिनियम को बनाने को औचित्य ही क्या रह जाता? सी.ए.ए.के विरोधियों से प्रश्न यह है कि यदि पाकिस्तान,बांग्लादेश,अफगानिस्तान में मुसलमान प्रताड़ित है,तो इन देशों को ही भारत में क्यों नहीं मिला देते? या फिर सरहद पर भारतीय सेना को तैनात करने की आवश्यकता ही क्या जरूरत है?क्या इसकी मुखालफत करने वालों को मुस्लिम मुल्कों से धर्म के कारण अपनी जान तथा स्त्रियों की इज्जत बचाने को भारत आने और आर्थिक कारणों/रोजगार के लिए आने वालों में फर्क नजर नहीं आता? फिर जो लोग शरीयत कानून मानने वाले हैं,उन्हें धर्म निरपेक्ष देश में आने की क्या आवश्यकता है?
केरल सरकार ने सी.ए.ए. के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर सर्वोच्च न्यायालय मेें इसकी वैधानिकता को चुनौती दी है।अब छत्तीसगढ़ भी इसी राह पर है। महाराष्ट्र,पंजाब,पश्चिम बंगाल की सरकारें इस लागू न करने की बात कर रही हैं। इनमें से पिछली जनगणना के साथ एन.पी.आर.पहले भी हो चुका है। इसके लिए किन्हीं कागजात दिखाने की बाध्यता नहीं होगी। जहाँ तक एन.आर.सी.का सवाल है तो उसकी शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यू.पी.ए.सरकार में असम में हुई थी।अभी पूरे देश में एन.आर.सी.होने को लेकर कुछ भी नहीं हुआ है। इसके बाद भी धरने पर बैठी मुस्लिम महिलाएँ इस कानून के बारे में प्रधानमंत्री मोदी से खुद आकर सफाई देने की माँग पर अड़ी हैं।
अब दिल्ली के शाहीन बाग की कामयाबी को लेकर ये सियासी पार्टियाँ पहले प्रयागराज(इलाहाबाद)और लखनऊ में भी महिलाओं और बच्चों को आगे कर धरना दिलवा रही हैं। हैदराबाद में तिरंगा फहराते हुए ओवैसी ने अपनी जहरीली जुबान से खुले आम मुसलमानों को गुमराह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। केन्द्र सरकार के खिलाफ जमकर भड़काते हुए उन्हें कहा है कि इन कानूनों के जरिए वह मुसलमानों को यातना शिविरों में डाल देगी या मुल्क से बाहर कर देगी। मोदी विरोधियों ने गुमराह करने में अल्पसंख्यक बच्चों को भी नहीं छोड़ा है। उन्हें समझाया जा रहा है कि एन.आर.सी.के दौरान अपने माता-पिता से अलग रखा जाएगा,जहाँ उन्हें एक समय ही खाना मिलेगा और वे कपड़े भी पूरे नहीं पहन पाएँगे।
जब सियासत करने वालों की सत्ता हासिल करने की चाहत इस हद तक बढ़ जाए,कि उन्हें लोगों को गुमराह कर उनसे मुल्क को बर्बाद कराने में कुछ भी गलत नजर ना आए,तो उस मुल्क का भविष्य कैसा होगा?विचार करें।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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