डाॅ. बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों भाजपा की निलम्बित नेता नूपुर शर्मा मामले में सर्वाेच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के आलोचना करने पर भारत के महान्यायावादी के.के.वेणुगोपाल द्वारा जिन तीन लोगों के खिलाफ न्यायालय की कार्यवाही की अनुमति न देने का जो निर्णय लिया है,वह अत्यन्त साहसिक, सर्वथा विवेक सम्मत, उचित और सामयिक है। उनका यह स्पष्टीकरण भी मानने योग्य है कि इन लोगों ने यह टिप्पणी न किसी गलत इरादे से की और न ही उसकी छवि को बिगाड़ने के लिए।
आश्चर्य/हैरानी की बात यह है कि इस सच्चाई को जानते-बूझते हुए भी अधिवक्ता सी.आर.जया सुकिन ने पत्र में तीन लोगों के खिलाफ न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही क्यों चाहते थे? क्या वे नहीं जानते थे कि भाजपा की प्रवक्ता नूपुर शर्मा के मामले में जिन लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर टिप्पणी की है,वे कोई आम आदमी नहीं हैं, बल्कि इनमें से एक दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस.एन.ढींगरा, दूसरे पूर्व एडीशनल साॅलिसिटर जनरल अमन लेखी और तीसरे वरिष्ठ अधिवक्ता के. रामाकुमार हैं, जो कानून की जानकारी रखने और न्यायालय की न्यायिक प्रक्रिया के विषय में विधिक ज्ञान में उनसे किसी के माने में कम नहीं हैं। वैसे भी कुछ लोगों का यह भ्रम है कि न्यायालय के निर्णय पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी करना उसकी अवमानना है, लेकिन अधिवक्ता सी.आर.जया सुकिन को यह जानकारी नहीं होगी, ऐसा नहीं लगता?
सम्भवतः अधिवक्ता सी.आर.जया सुकिन स्वयं को चर्चा में लाने या फिर न्यायाधीशों की सहानुभूति पाने अथवा देश और हिन्दू हित में बोलने वालों को दण्डित कराने के लिए इन तीनों लोगों के खिलाफ अवमानना की कार्य कराना चाहते थे। उनका यह कृत्य भत्र्सना योग्य ही माना जाएगा।देश में अपने राजनीतिक लाभ या धन अथवा पद पाने के लिए ऐसे दुष्कृत्य करने वालों की देश में कभी कमी नहीं रही है,तो देश को इतने वर्षों तक विदेशियों के अधीन रहा। अधिवक्ता सुकिन ने किस इरादे से इन तीनों के विरुद्ध न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही चाहते थे,इससे महान्यायावदी के.के.वेणुगोपाल न जानते-समझते हों,यह सम्भव नहीं है। फिर महान्यायावदी के.के.वेणुगोपाल जी उन्हें यह याद दिलाना जरूरी समझा कि उचित और तार्किक आलोचना से न्यायालय की अवमानना नहीं होती।
वस्तुतः मामला यह है कि टी.वी.चैनल की बहस के दौरान कथित इस्लामिक जानकार तस्लीम रहमानी ने जब हिन्दू-देवी-देवताओं के विरुद्ध अनर्गल टिप्पणियाँ कीं,तब उसके प्रत्युत्तर में भाजपा की प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने एक इस्लामिक पुस्तक का हवाला दे दिया। इसे अपने पैगम्बर का अपमान बताते हुए देशभर के मुसलमान न केवल सड़कों पर उत्पात मचाने निकल पड़े,वरन् उन्होंने नूपुर शर्मा के विरुद्ध देश के विभिन्न राज्यों के कई शहरों में मुकदमे दर्ज कराने के साथ-साथ उनका सिर काट कर लाने पर ईनाम देने का ऐलान तक कर दिया। सोशल मीडिया पर उन्हें गालियाँ ही नहीं, दुष्कर्म , परिवार समेत जान से मारने की धमकियाँ तक दी गईं। ऐसे में नूपुर शर्मा द्वारा प्राणों की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय से अपने विरुद्ध सभी मुकदमों को स्थानान्तरित कर दिल्ली में सुनवायी किये जाने के लिए याचिका दायर की गई,जो विधि सम्मत है। सर्वोच्च न्यायालय ऐसे कई दूसरे मामलों में निर्णय दे चुका है। पता नहीं कि किस वजह से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नूपुर शर्मा की याचिका नामंजूर कर दी गई, ऐसा करते हुए उसने यह भी नहीं देखा कि इस्लामिक कट्टरपंथियों से उनकी जान को से गम्भीर आसन्न खतरा है और वह महिला भी है। इसके विपरीत यह तल्ख टिप्पणी की कि नूपुर शर्मा स्वयं देश के लिए खतरा हैं।उन्हें फटकार लगाते हुए कहा कि ‘उनकी हल्की जुबान ने पूरे देश में आग लगा दी है। उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या के लिए भी वह जिम्मेदार हंै।उन्हें टी.वी.पर जाकर देश से माफी माँगनी चाहिए।
अब प्रश्न यह है कि क्या सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणिय से नूपुर शर्मा के विरुद्ध पुलिस और निचले/अधीनस्थ न्यायालयों में पूर्वाग्रह उत्पन्न नहीं कर दिया?एक ओर तो उन्होंने न्यायालय में विचाराधीन मामले पर बहस कराने के लिए टी.वी.चैनलों और उनमें भाग लेने के लिए पार्टी प्रवक्ताओं की आलोचना की। दूसरी ओर वे स्वयं एक विचाराधीन मामले पर ऐसी टिप्पणी कर गए,जो टिप्पणी कम और तल्ख फैसला ज्यादा लगता है।
सर्वोच्च न्यायालय के ये न्यायाधीश टी.वी.चैनल पर कथित इस्लामिक स्काॅलर तस्लीम रहमानी और नूपुर शर्मा देखने की बात करते हुए नूपुर शर्मा को गुनाहगार ठहरा रहे हैं,वहीं इस बहस को देखने वाले इस्लामी विद्वान ये मानते हैं कि नूपुर शर्मा ने जो कहा था,वह गलत नहीं है।
इन न्यायाधीशों को यह भी कहना है कि नूपुर शर्मा को टी.वी.चैनल पर जाकर क्षमा माँगनी चाहिए। उन्हें बगैर सुनवायी किये, गुनाहगार ठहराना जैसा नहीं है?इनके इस रवैये से अब कन्हैयालाल,उमेश कोल्हे,कमलेश तिवारी के जिहादी हत्याओं को ये कत्ल सही नहीं लगेंगे?
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के उक्त रवैये से व्यथित होकर दिल्ली उच्च न्यायालये पूर्व न्यायाधीश एस.एन.ढींगरा को यह कहना पड़ा कि सर्वोच्च न्यायालय की नूपुर शर्मा के खिलाफ एकतरफा तल्ख टिप्पणियाँ गैरजिम्मेदाराना और गैर कानूनी हैं। देश में हिंसा की ताजा घटनाओं के नूपुर शर्मा को जिम्मेदार ठहराने की शीर्ष न्यायालय की टिप्पणी पर उनका कहना था कि यह कैसे साबित होगा कि उदयपुर की घटना नूपुर के कारण हुई है?बगैर जाँच या गवाहों और नूपुर को सुने बिना इस तरह का अवलोकन करना अवैध-अनुचित है।
पूर्व न्यायाधीश ढींगरा का यह कथन भी विचारणीय है कि सर्वोच्च न्यायालय कानून से ऊपर नहीं है। कानून कहता है कि किसी को दोषी ठहराने चाहते हैं तो पहले आरोप तय करने होंगे।सभी पक्षों को अपनी बात रखने की अनुमति देनी होगी।यहाँ तो दुष्कर्म और जान से मारने की मिल रहीं धमकियों को देखते हुए विभिन्न राज्यों में दर्ज मामलों के स्थानान्तरित कराने की माँग की गई थी,लेकिन शीर्षस्थ न्यायालय ने ही बयान जनता को भड़काने वाला बता दिया। वैसे सर्वोच्च न्यायालय स्वयं अपने निर्णय में सुझाव दे चुका है कि न्यायाधीशों को अनुचित टिप्पणी करने से बचना चाहिए।टिप्पणी करनी ही थी तो लिखित में करते,ताकि इसके विरुद्ध उच्च पीठ में जाया जा सके।लेकिन नूपुर शर्मा के मामले में न्यायालय ने ने अपने निर्णय में इन टिप्पणियों का उल्लेख क्यों नहीं किया है। शायद उन्हें उच्च पीठ में अपनी टिप्पणियों के निरस्त होने का अन्देशा रहा होगा।
वस्तुतः सर्वोच्च न्यायालय को नूपुर शर्मा की याचिका में की प्रार्थना को स्वीकार या अस्वीकृत करना था। लेकिन अनावश्यक रूप से उक्त घटना के लिए नूपुर शर्मा का पक्ष जाने बगैर उन्हें अपराधी ठहरा दिया।उसके इस कृत्य को किसी भी स्थिति में उचित नहीं माना जा सकता। यद्यपि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी नूपुर शर्मा के मामले में किसी फैसले का हिस्सा नहीं थी,तथापि मुस्लिम पक्ष इसे नूपुर शर्मा के खिलाफ इन टिप्पणियों को फैसले की तरह लिया। सर्वोच्च न्यायालय की इस गैर जरूरी टिप्पणी से देशभर में नूपुर शर्मा के पहले से विषाक्त वातावरण और भी अधिक खराब हो गया।
ऐसे में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस.एन.ढींगरा, एडीशनल साॅलिसिटर जनरल अमन लेखी तथा वरिष्ठ अधिवक्ता के.रामाकुमार ने सर्वोच्च न्यायालय के टिप्पणियों का प्रतिवाद कर उचित कार्य किया था,जिसके लिए इन सभी की प्रशंसा की जानी चाहिए था,पर अधिवक्ता ने स्वार्थवश या द्वेष वश इनके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय अवमानना की कार्यवाही की माँग की,जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं थीं। इस मानसिकता के लोगों की पहचान जरूर की जानी चाहिए,ताकि न्याय का लबादा ओढ़े ऐसे लोगों से देश और समाज की रक्षा के सतर्क-सावधान किया जा सके।
डाॅ. बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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