डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों जवाहर लाल नेहरू(जे.एन.यू.)में छात्रों पर चेहरा ढके लोगों के हिंसा फैलाने के बाद यहाँ और दिल्ली विश्वविद्यालय में आन्दोलनरत कुछ छात्रों द्वारा कश्मीर की आजादी के नारे लगाये जाने तथा मुम्बई के ‘गेट ऑफ इण्डिया’ पर ‘फ्री कश्मीर’की तख्ती दिखाने के बाद जे.एन.यू. की वी.सी.हटाओं की माँग जैसी घटनाओं ने एक बार फिर दिखा दिया कि जे.एन.यू में शुल्क बढोत्तरी,फिर ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ के विरोध कर रहे वामपंथी राजनीतिक दलों, काँग्रेस से सम्बद्ध छात्र संगठनोें से जुड़े छात्रों को भड़काने के पीछे कौन-सी शक्तियाँ सक्रिय हैं और उनके असल मकसद का भी खुलासा हो गया। इससे स्पष्ट है कि ये राजनीतिक दल छात्रों को आगे कर उनके कन्धे पर न केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के अन्ध विरोध कर रहे हैं, बल्कि इसके लिए उन्हें राष्ट्रविरोधी तथा जिहादियों की सहायता लेने से भी परहेज नहीं हैं। पहले छात्रों के खिलाफ पुलिस की हिंसा के बहाने, फिर चेहरा ढके लोगों की मारपीट की निन्दा और भर्त्सना के साथ आन्दोलनरत छात्रों की हर तरह से हिमायत कर रहे इन राजनीतिक दलों से देश के लोगों को यह पूछना जरूरी है कि शुल्क वृद्धि का विरोध ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम‘ की मुखालफत उसके बाद कश्मीर की आजादी तथा जे.एन.यू. के कुलपति हटाने की माँग में कैसे तब्दील हो गया? सच्चाई यह है कि जे.एन.यू.में शुल्क बढ़ोत्तरी वापस ले ली गई तथा बढ़ाई गई हॉस्टल शुल्क भी आधी कर दी गई,जो अब क्रमशः 150 तथा 300रुपए मात्र है,जबकि इस विश्वविद्यालय के अधिकतर छात्रों को 2 हजार से लेकर 45हजार रुपए की छात्रवृत्ति प्राप्त होती है। ऐसे में इन छात्रों का शुल्क बढ़ोत्तरी को लेकर आन्दोलन कितना प्रासंगिक है? अब जहाँ तक ‘नागरिक संशोधन अधिनियम’का सवाल है,तो इससे किसी भी भारतीय का कोई सरोकार नहीं है। उसके बाद भी इसके खिलाफ जे.एन.यू., जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी,दिल्ली,अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी,जाधवपुर विश्वविद्यालय,कोलकाता, आई.आई.टी.मुम्बई, आई.आई.टी.कानपुर, हैदराबाद यूनिवर्सिटी आदि के छात्रों का उग्र हिंसक विरोध समझ परे है। इनमें जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हिन्दुत्व तेरी कबर बनेगी जामिया या ए.एम.यू.के मैदानों,गाय-गोबर /साधु-संन्यासियों की सरकार, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी,भाजपा के खिलाफ नफरत भरे नारे और आई.आई टी.कानपुर के मुस्लिम छात्रों द्वारा लाजिमी है हम देखेंगे शीर्षक वाली पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज की इस्लामी आस्था वाले अन्तिम दिन(कयामत के दिन)को विषय बनाकर लिखी नज्म ‘सब बुत उठाए जाएँगे/सब ताज उछाले जाएँगे/बस नाम रहेगा अल्लाह का।’’ का गायन कर विरोध जताया जाना अनायास नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे निहितार्थ हैं।

अब जे.एन.यू. में शुल्क वृद्धि को लेकर पिछले दो महीने से चल रहे छात्रों के आन्दोलन के कारण शिक्षण कार्य पूर्णतः बन्द पड़ा है। गत 5जनवरी को गैर वामपंथी छात्रों के परीक्षा हेतु पंजीकरण कराने से रोकने को लेकर वामपंथी और काँग्रेसी से जुड़े छात्र संगठनों के छात्रांे ने उनके साथ मारपीट और उसके बाद भाजपा से सम्बद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के छात्रों की बदले की कार्रवाई को किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन वामपंथी राजनीतिक दलों तथा काँग्रेस के नेता हिंसा के लिए दोषियों की निन्दा करने वालों के स्थान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के छात्रों, पुलिस और केन्द्र सरकार तथा जे.एन.यू.के कुलपति को ही दोषी ठहराने में जुट गए। इनमें से किसी ने भी छात्रों द्वारा पंजीकरण में व्यवधान डालने का सर्वर खराब करने ,पंजीकरण करा रहे छात्रों पर हमला करने वालों की निन्दा नहीं की है।इसके विपरीत काँग्रेस के नेता मोदी सरकार को हिटलर का नाजी शासन बता रहे हैं,माकपा नेता सीताराम येचुरी ने हिंसा के लिए जे.एन.यू. प्रशासन और एबीवीपी को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने इसे हिन्दुत्व के एजेण्डे का विरोध करने वाले छात्रों पर नियोजित हमला करार दिया। राकाँपा प्रमुख शरद पवार ने इसे गैर लोकतांत्रिक और नियोजित हमला बताया। कुछ ऐसे ही विचार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आदि के भी हैं। दुर्भाग्य से इनमें निर्धन, दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक समर्थक राजनीतिक दलों के किसी भी नेता ने उन छात्रों तथा शिक्षकों के प्रति अपनी हमदर्दी नहीं जतायी है जो पढ़ना और पढ़ाना चाहते हैं। यहाँ तक इन्हीं के विचारों से पोषित ऐसे हर छात्र तथा शिक्षक को नफरत से ‘संघी’ ठहराते नहीं थक रहे हैं। वस्तुतः भाजपा तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विरोधी देश के राजनीतिक दल सत्ता और अपना जनाधार खोने के बाद बेहद हताश और निराश है। ऐसे में उन्हें कट्टर इस्लामिक शक्तियों का साथ मिलने की उम्मीद है, जो उनके विभिन्न संगठनों को विदेशों से मिलने वाले धन की निगरानी और रोक, फिर तत्काल तीन तलाक विरोधी कानून, जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित संविधान के अनुच्छेद 370 तथा 35ए हटाने और इसे दो केन्द्र प्रशासित राज्य बनाये जाने,उनके कार्यकाल में ही दशकों से चले आ रहे श्रीरामजन्मभूमि/बाबरी मस्जिद विवाद का सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय होना, अब

नागरिकता संशोधन अधिनियम कानून पारित होने से बहुत बेचैन है, क्योंकि अल्पसंख्यकों लेकर चलने वाली सियासत के खत्म होने जा रही है। इनमें से कुछ पहले जम्मू-कश्मीर को ‘दारुल इस्लाम’ फिर भारत को ऐसा ही बनाने का ख्वाब टूटता दिखायी दे रहा है। इन्हीं कट्टरपंथियों इस्लामिक जिहादियों के संगठन ‘पापुलर फ्रण्ट ऑफ इण्डिया’ (पीएफआइ), एस.डी.पी.आइ.ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के मुखालफत में देशभर में हिंसक आन्दोलन कर अराजकता,आगजनी,पत्थरबाजी ,गोलीबारी की। इसमें कोई दो दर्जन आन्दोलनकारी मारे गए तथा सैकड़ों की संख्या छात्र तथा पुलिसकर्मी घायल हुए थे। विभिन्न राजनीतिक दलों में सम्मिलित ये इस्लामिक कट्टरपंथी अपने पुराने एजेण्डे को पूरा करने के लिए अब संविधान,पंथनिरपेक्षता का राग अलाप रहे हैंजबकि ये ही खुलेआम शरीयत, वन्देमातरम कहने, भारत माता की जय बोलने का विरोध करते रहे हैं। अब वामपंथी नेता डी.राजा, सीताराम येचुरी, शरद यादव समेत कई नेता जे.एन.यू.के कुलपति हटाने की माँग को लेकर निकाले जुलूस की अगुवाई कर अपने असल एजेण्डे के साथ सामने आगे आ गए हैं।
जे.एन.यू.के छात्रों के आन्दोलन में वामपंथी और काँग्रेसी नेताओं के साथ मुम्बई इनके समर्थन हुए प्रदर्शन में फिल्म अभिनेता,अभिनेत्रियों के साथ मलिका मिर्जा प्रभु नामक युवती को ‘फ्री कश्मीर‘ लिखा पोस्टर लेकर सम्मिलित हुई,जब उस पर देशद्रोह का मुकदमा दायर हुआ,तो अपनी सफाई में कहने लगी,वह तो लेखिका है और कश्मीर में बन्द मोबाइल,इण्टरनेट का विरोध जता रही थी।स्पष्ट हैउसका मकसद सिर्फ इतनाभर नहीं था। इसमें शामिल फिल्मकार अनुराग कश्यप कहना था कि ‘ये मेरा देश नहीं।अच्छा है यहाँ(महाराष्ट्र) में उनकी सरकार नहीं है। नहीं तो पता नहीं,हम कितने सुरक्षित रहते हैं।’यहाँ उनसे प्रश्न यह है तो पिछले 5साल तक तो महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार तो वह कैसे जीवित/सुरक्षित बने रहे?फिल्म गीतकार/संवाद लेखक जावेद अख्तर के बेटे अभिनेता फरहान अख्तर को नागरिकता संशोधन अधिनियम के बारे में कुछ भी पता नहीं था। इससे पहले सुशान्त सिंह, जावेद जाफरी ने अपने-अपने तरीके से केन्द्र सरकार के खिलाफ जहर उगल चुके हैं। शर्मनाक बात यह है कि अभिनेत्री दीपिका पादुकोण भी जे.एन.यू. के आन्दोलनरत छात्रों के बीच पहुँच गई, जहाँ ये छात्र देश विरोधी नारे लगा रहे थे, जिनका मकसद अपनी फिल्म ‘छपाक’का प्रचार करना था।धिक्कार ऐसे व्यावसायिक फायदे पाने के लालच करने वालों को। वैसे इन अभिनेता-अभिनेत्रियों का मौजूदा केन्द्र सरकार की मुखालफत का असल वजह दाउद इब्राहिम सरीखे इस्लामिक कट्टरपंथियों का इनकी फिल्मों में धन लगाना है,इसलिए ये लोग उसके और उस जैसों के इशारे पर मोदी और भाजपा का विरोध करते आए हैं।
अब जे.एन.यू.के कुलपति को हटाये जाने की माँग का कारण उनके द्वारा विश्वविद्यालय में उपद्रव होने पर पुलिस को बुलाया जाना बताया जा रहा है। दरअसल, अपने विरोधियों को फासीवादी,नाजीवाद, असहिष्णु, अभिव्यक्ति विरोधी आदि शब्दों से बदनाम करना वामपंथियों की आदत में शुमार है। अब तक ये लोग सत्ता का साथ पाकर जे.एन.यू. समेत हर जगह मनमानी करते आ रहे थे। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बनने के बाद अपने एकाधिकार पर खतरा दिखायी दे रहा है, इसलिए वे उन्हें सत्ता से बेदखल करने को कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। इन वामपंथियों की सहिष्णुता का नमूना इतिहासकार इरफान हबीब हैं,जिन्होंने केरल के कन्नूर विश्वविद्यालय में मुख्य अतिथि के रूप पधारे राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान को बोलने से रोकने के लिए थप्पड़ मारने की कोशिश की और उनके समर्थकों ने उनके खिलाफ जमकर नारेबाजी की। वर्तमान में जे.एन.यू.में उनके एकाधिकार में कमी आ रही है,तो विभिन्न तरीकों से अपनी विचाराधारा से भिन्न छात्रों तथा शिक्षकों को विश्वविद्यालय छोड़ने को मजबूर करने पर उतारू बने हुए हैं। अब जहाँ जे.एन.यू.में स्थायी शान्ति की बात है तो जब तक वामपंथी विचारधारा वाले अपने से अलग विचारों के साथ रहना स्वीकार नहीं करते, तब तक शान्ति की बात सोचना ही निरर्थक है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार, 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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