कविता

हर इक बात मेरे पापा की बड़ी निराली होती थी,

अपने पिताजी को समर्पित

हर इक बात मेरे पापा की बड़ी निराली होती थी,
आँसू पीकर सदा एक्टिंग हँसने वाली होती थी।

गहरे से गहरे संकट में पापा कभी न डरते थे,
कभी नहीं घबराते थे वो जब भी जो भी करते थे।
चेहरे पे था नूर सोच भी हिम्मत वाली होती थी।
आँसू पीकर……..

सारी मांगे मान के मेरी झट से हाँ कह देते थे,
दो होते थे जेब में लेकिन मुझको दस दे देते थे।
कभी कभी तो उनकी पॉकेट बिल्कुल खाली होती थी।
आँसू पीकर………

बाद मेरे वो सोते थे मुझसे पहले उठ जाते थे,
घड़ी नहीं थी तो क्या वो खुद अलार्म बन जाते थे।
मेरे हर इक पल पे उनकी नज़र सवाली होती थी।
आँसू पीकर………

मेरी सुख सुविधा में कोई कमी न होने देते थे,
सदा हंसाते रहते थे वो कभी न रोने देते थे।
पापा जी थे तब तक मेरी रोज़ दिवाली होती थी।
आँसू पीकर……….

हम तो सूट बूट में तनकर खड़े खड़े इतराते थे,
उनसे पूछो वो सब जाने कैसे कैसे लाते थे।
उनके तन पर पेंट शर्ट इक ढीली ढाली होती थी।
आँसू पीकर………

कड़की के मौसम में भी वो जाने क्या क्या लाते थे,
पहले सब खा लेते थे तब थोड़ा सा वो खाते थे।
फाकों में भी मेरे आगे पहले थाली होती थी।
आँसू पीकर………

जब भी मेरे पापा मुझको साथ कहीं ले जाते थे,
थक जाने पर मुझको अपनी बाहों में भर लाते थे।
पापा की बाहों में दुनिया सपनों वाली होती थी।
आँसू पीकर सदा एक्टिंग हँसने वाली होती थी।
प्रकाश गुप्ता ‘बेबाक’
आगरा।
मोब.नंबर – 9997829172.

About the author

Rekha Singh

Add Comment

Click here to post a comment

Live News

Advertisments

Advertisements

Advertisments

Our Visitors

0112601
This Month : 7922
This Year : 49894

Follow Me