भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार से कब और कैसे करेंगे तौबा ?

डाॅ.बचनसिंह सिकरवार
गत दिनों आय से अधिक सम्पत्ति मामले में हरियाणा के 87वर्षीय पाँच बार के पूर्व मुख्यमंत्री और इण्डियन नेशनल लोकदल (इनलो) के सुप्रीमो ओमप्रकाश चैटाला को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने चार साल की सजा और 50लाख रुपए जुमाने के साथ-साथ उनकी पंचकूला, सिरसा, गुरुग्राम, असोला की सम्पत्तियाँ सीज करने का भी आदेश दिया है,उन्हें सुनायी यह कठोर सजा, निश्चय ही राजनीति से जुड़े उन लोगों के लिए सबक/चेतावनी है, जिन्होंने समाज/राष्ट्र सेवा के बहाने/आड़ में अपने और अपनों के सपने पूरे करने/अपनी जिन्दगी संवारने की चाहत में इस क्षेत्र को चुना है। कमोबेश ऐसी स्थिति ही बड़े-बड़े पदों पर आसीन भारतीय प्रशासनिक सेवा(आइ.ए.एस.),भारतीय पुलिस सेवा(आइ.पी.एस.),आइ.इ.एस.,न्यायिक सेवा आदि की है, जो प्रशासन,कानून व्यवस्था, सुशासन, न्याय, कर सेवा में उल्लेखनीय कार्य करने के बजाय रिश्वत लेकर धन के अम्बार लगाने में अपनी पूरी शक्ति झोंक देते हैं।
अफसोस की बात यह है कि देश और समाज को लूटने वाले इन दस्युओं के लिए दण्ड देने के लिए स्वतंत्रता के 75साल बाद भी कोई प्रभावी न्यायिक तंत्र नहीं बनाया गया,इस कारण ये लोग देश को बेखौफ लूटते आ रहे हैं। यूँ तो भ्रष्टाचार की शुरुआत आजादी के बाद से ही हो गया था। पण्डित जवाहर लाल नेहरू की सरकार के दौरान भी जीप घोटाला। फिर मूदड़ा काण्ड हुआ। इसके बाद प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी की सरकार में स्टेट बैंक/नागरवाला प्रकरण घटित हुआ। फिर प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की सरकार में बोफोर्स काण्ड हुआ। इसके बाद प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिंह सरकार में घूस प्रकरण छाया रहा। तत्पश्चात् प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की संप्रग दो सरकार तो घपला-घोटालों की पर्याय बन गई थी। उस दौरान कई तरह के घोटाले हुए थे। उसके बाद 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की केन्द्र में सत्तारूढ़ राजग सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार पर कहीं तक लगाम लगी है, पर राज्यों में कोई खास अन्तर नहीं आया है। उ.प्र.की योगी आदित्यनाथ की सरकार कहने को तो ‘भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टोलरेन्स’की नीति पर चल रही है,उसने कई बड़े पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई/बर्खास्तगी तक की है, पर निचले स्तर पर सरकारी कर्मचारियों का भ्रष्टचार जारी है,जिससे जनता सबसे ज्यादा पीड़ित होती है। वर्तमान में देश के विभिन्न सरकारी विभागों से लेकर न्यायालय भी भ्रष्टाचार से अछूत नहीं हैं। सरकारी विभाग में कोई भी काम दाम और दबाव के बगैर असम्भव है। यहाँ तक कि न्यायालयओं में सुनवायी पूरी होने के बाद रिश्वत के इन्तजार में महीनों-महीनों तक निर्णय नहीं लिखे जाते है। इसके विपरीत धन और राजनीतिक शक्ति या फिर किसी खास विचारधारा के लोगों के लिए सर्वोच्च न्यायालय तक आधी रात को और तत्काल सुनवाई करने लगता। देशभर में नेता, नौकरशाह, ठेकेदार, छोटे-बड़े कर्मचारी मिलकर रिश्वत के जरिए राजकोष और लोगों को लूट कर अपनी जेबें भरने में लगे हंै, इनकी दुरभि सन्धि के आगे सभी लाचार हंै।इनके अन्याय और अत्याचार के खिलाफ कहीं भी सुनवायी नहीं है।फिर भी देश की इस दुर्वस्था को शासन-सत्ता में बैठे लोग जान कर भी आन- अनजान बनने को ढोंग करते आए आ रहे हैं।
वैसे भी भ्रष्टाचार या आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में सजा पाने और जेल जाने वाले ओमप्रकाश चैटाला को पहले नेता नहीं हैं। उनसे पहले कई दूसरे राजनेता और नौकरशाह भी जेल जा चुके हंै।लेकिन यह भी सच है कि इस वर्ग के भ्रष्टाचारी कानून के शिकंजे में बहुत मुश्किल से ही आ पाते हैं। हाल में राजस्थान सरकार ने एक ऐसे आइ.ए.एस.अधिकारी आर.के.मीणा को 60 हजार करोड़ रुपए की जल जीवन परियोजना का दायित्व दिया है,जो 2016में रिश्वत लेते हुए न केवल गिरपतार हुआ था,बल्कि दो महीने जेल में भी रहा था। फिर पता नहीं,क्यों मुख्यमंत्री अशोक गहलौत को यह भ्रष्ट नौकरशाह ही उक्त परियोजना के लिए उपयुक्त लगा? यह शोध का विषय है। इधर महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी सरकार के मंत्री अनिल परब पर भी प्रवर्तन निदेशालय(ईडी) के शिकंजे में फँसते दिखायी दे रहे हैं, भ्रष्टाचार का यह मामला 2017में रत्नागिरि जिले के दापोली क्षेत्र में एक करोड़ रुपऐ में जमीन खरीद से जुड़ा है। इससे पहले महाराष्ट्र की इसी सरकार के गृहमंत्री अनिल देशमुख पुलिस अधिकारियों से होटल/शराबघरों/बारों आदि से 100 करोड़ रुपए की वसूली कराने के आरोप जेल में हैं। इसी सरकार के एक दूसरे मंत्री नवाब मलिक को अण्डर वल्र्ड से सम्बन्ध रखने तथा मनी लान्ड्रिग मामले में गिरपतार किया जा चुका है। बेशर्मी की हद यह है कि इसके बावजूद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इन दोनों मंत्रियों को अपने मंत्रिमण्डल से बर्खास्त करना जरूर नहीं समझा है। इसके विपरीत प्ंाजाब के मुख्यमंत्री भगवन्त सिंह मान ने स्वास्थ्य मंत्री डाॅ.वीरेन्द्र सिंगला को रिश्वत लेने के आरोप में मंत्रिमण्डल से बर्खास्त करने के साथ-साथ उन्हें गिरपतार भी कराके एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसी दौरान काँग्रेस के सांसद कीर्ति चिदम्बरम के विरुद्ध 263 चीनी नागरिकों को वीजा दिलाने से सम्बन्धित एक कथित घोटाले की जाँच चल रही है, जिसमें उन्होंने 50लाख रुपए लेकर चीनी नागरिकों को अवैध तरीके से वीजा दिलाया था,जब उनके पिता पी.चिदम्बरम केन्द्रीय गृहमंत्री थे।
इस बीच ही झारखण्ड की निलम्बत आइ.ए.एस.अधिकारी पूजा सिंघल के खिलाफ चल रही प्रवर्तन निदेशालय(ईडी)की जाँच चल रही है,उनके सी.ए.के यहाँ 19करोड़ रुपए से अधिक की नकद राशि पकड़ी गई,जो इन्हीं बतायी जा रही है। पूजा सिंघल की अवैध कमाई से खरीदी की कई करोड़ की नामी-बेनामी सम्पत्तियाँ भी बतायी जा रही हैंै। काँग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गाँधी,उनके पुत्र राहुल गाँधी भी नेशनल हैराल्ड, नवजीवन आदि समाचार पत्रों की सम्पत्ति से सम्बन्धित घोटाले में जमानत पर हैं। राजद के संस्थापक, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री तथा केन्द्रीय रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव करोड़ों रुपए के चारा घोटाले में सजा काट चुके हैं। अब रेल विभाग में नौकरी दिलाने के बदले में उनकी जमीन का बैनामा कराने के आरोप उनकी जाँच चल रही है। फिर लालू प्रसाद यादव अपने समर्थकों की नजर में पूरी तरह बेकसूर है और उन्हें बदले की भावना से झूठे मामलों में फँसाया गया है।
अब बात करते हैं ओमप्रकाश चैटाला की। वे गत वर्ष जुलाई को शिक्षक भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा काट कर तिहाड़ जेल से रिहा हुए थे। उन्हें और 53 अन्य लोगों को जून, 2008 में 1999-2000 के दौरान हरियाणा 3200 जूनियर बेसिक शिक्षकों की नियुक्ति मे अनियमितता में आरोपी बनाया गया था। जनवरी, 2013 में नई दिल्ली की एक अदालत में चैटाला और उनके बेटे अजय सिंह चैटाला को दस साल की सजा सुनायी थी। अब जहाँ तक आय से अधिक सम्पत्ति मामला है तो इसकी शिकायत सी.बी.आई.से काँग्रेस के नेता शमशेर सिंह सुरेजावाला ने 2005 में की थी और 26मार्च, 2010में आरोप पत्र दाखिल । ओमप्रकाश चैटाला के खिलाफ पर आय से 189 गुना ज्यादा पैसा कमाने का आरोप लगा था। इससे यही पता चलता है कि नेता सत्ता का कितना मनमाना इस्तेमाल करते हंै। भ्रष्टाचार का यह दूसरा मामला है,जिसमें चैटाला को सजा सुनायी गई है। इसमें चैटाला 1993 और 2006 के बीच अपनी वैध कमाई से अधिक 6.09 करोड़ रुपए की सम्पत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया था। कायदे से इसके निस्तारण में इतनी देर नहीं लगनी चाहिए थी। अगर नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगनी है, तो सबसे पहले तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उनके मामलों की सुनवाई केवल प्राथमिकता के आधार पर हो, बल्कि कहीं अधिक तेजी से हो। ऐसा करके ही भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों को सही सन्देश दिया जा सकेगा। उचित यह होगा कि केन्द्र सरकार सी.बी.आई. और ई.डी. जैसी उसकी एजेन्सियों के साथ न्यायपालिका इसके लिए कोई ऐसी ठोस व्यवस्था का बनाये,जो नेताओं और नौकरशाहों के भष्टाचार के मामलों का निस्तारण के एक नियत अवधि में करे। यह उचित नहीं है कि कई बार विशेष अदालतों के गठन के बाद भी ऐसे मामलों में का फैसला जल्दी नहीं हो पाता है। एक समस्या यह भी है कि जब कभी निचली अदालतें समय से निर्णय कर देती हैं, लेकिन उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की ओर से तत्परता नहीं दिखायी जाती। ऐसी स्थिति में अन्तिम निर्णय आने में दशकों लग जाते हैं। इस दौरान भ्रष्टाचार में आरोपित नेता जमानत पाकर जेल से बाहर आकर जनता से यह कह कर सहानुभूति अर्जित कर लेता है कि उसे राजनीतिक विरोधियों ने झूठे आरोपांे या राजनीतिक बदले की भावना से फँसा दिया था। ऐसा करने के बाद वह बड़े आराम से चुनाव लड़ता है। कई बार जनता इनके ऐेसे किसी झांसे में आ जाती है या फिर जातिवाद/क्षेत्रवाद के चलते उस चुन लेती है। फिर चुनाव में जीत हासिल कर ऐसे लोग मंत्री और मुख्यमंत्री,केन्द्रीय मंत्री तक बन जाते हैं। ऐसे में जनता को जागरूक करना आवश्यक है कि वह भ्रष्ट और अनैतिक नेताओं को चुनाव में अपना मत न दे। इसके साथ ही लोग सरकार पर दाबव बनाये कि भष्ट नेताओं और नौकरशाहों को नमूने की सजा दिलाने के लिए प्रभावी न्यायिक तंत्र बनाए। सम्भव हो,तो राजकोष और जनता को लूटने वालों की सम्पत्ति जब्त करने का भी प्रावधान किया जाए।
स,म्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003,मो.नम्बर-9411684054

Live News

Advertisments

Advertisements

Advertisments

Our Visitors

0105406
This Month : 727
This Year : 42699

Follow Me