डॉ.बचनसिंह सिकरवार
हाल में केरल की राजधानी तिरुवन्तपुरम के कन्नूर विश्वविद्यालय में आयोजित ‘भारतीय इतिहास काँग्रेस’ (आई.एच.सी.) के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान को जाने-माने इतिहासकार इरफान हबीब द्वारा थप्पड़ मारने का प्रयास तथा उन्हें बचाने पर कुलपति गोपीनाथ बालकृष्णन एवं उनके अंगरक्षक के साथ धक्का-मुक्की और बोलने न देना और मंच के सामने बैठे लोगों द्वारा भी भाषण में बार-बार बाधा डालना की जो घटना घटित हुई है, वह अपने वामपंथी बताने वाले इरफान हबीब की घोर असहिष्णुता का दर्शाने के साथ-साथ उनके पद की गरिमा तथा अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के सरासर उल्लंघ है। इस घटना की जितनी निन्दा और भर्त्सना की जाए, वह कम ही होगी। वैसे इरफान हबीब जैसों की आरिफ मुहम्मद खान के प्रति ऐसी नफरत एकदम नई नहीं है, क्यों कि कट्टरपंथी मुसलमान तो सम्भवतः उन्हें मुसलमान ही नहीं मानते। इसकी वजह यह है कि जब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने निर्णय में शाहबानो को गुजारा भत्ता दिये जाने का आदेश दिया, तब बड़ी संख्या में देश के मुसलमानों द्वारा उसका विरोध किया गया। तब उन्हें खुश करने के लिए तत्कालीन राजीव गाँधी सरकार की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को बदलने के लिए संसद में कानून पारित कराया, जिसका उनके मंत्रिमण्डल के सदस्य रहते हुए आरिफ मुहम्मद खान ने जमकर विरोध किया और मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था। इसके अलावा आरिफ मुहम्मद खान विभिन्न मुद्दों पर कट्टरपंथी मुसलमानों के विपरीत देशहित में अपने विचार व्यक्त करने के लिए जाने जाते हैं। जब मोदी सरकार द्वारा उन्हें केरल का राज्यपाल बनाये जाने की घोषणा की, तो इससे कट्टरपंथियों खुशी जाहिर नहीं की, क्यों कि ये लोग नहीं चाहते कि देश के मुसलमान राष्ट्र की मुख्यधारा का हिस्सा बनें, अगर ऐसा होता है,तो इन कट्टरपंथियों की सियासत कैसे चलेगी? कन्नूर विश्वविद्यालय में इरफान हबीब की नफरत की असल वजह आरिफ मुहम्मद खान का उदार मुसलमान का चेहरा होना है,जो उन जैसों को पसन्द नहीं है।
विडम्बना यह है कि ये ही वामपंथी भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आर.एस.एस.) और अन्य दक्षिणपंथी संगठनों पर अक्सर असहिष्णु होने का आरोप लगाते रहते हैं। यहाँ तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजग सरकार पर असहिष्णु होने के आरोप लगाकर उसके विरोध में वामपंथी विचारधारा के कथित साहित्यकार,कलाकार,चित्रकार अॅवार्ड वापसी अभियान चला चुके हैं। वर्तमान में भी वामपंथी राजनीतिक दलों के नेता ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’(सीएए) के खिलाफ जुलूस, प्रदर्शन, पत्थरबाजी, दंगा और आगजनी करने वालों विरुद्ध पुलिस कार्रवाई करने पर केन्द्र की राजग और उ.प्र.की भाजपा सरकार पर असहिष्णु और फासीवादी होने का आरोप लगा रहे हैं। अब इस घटना ने एकबार फिर से वामपंथी विचारधारा के लोगों के असल चेहरों और उनके वास्तविक आचरण को सामने ला दिया है। इनके असहिष्णु तथा हिंसक रवैये के कारण बार-बार वामपंथियों तथा रा.स्व.सं.के कार्यकर्ताओं के बीच खूनी संघर्ष होते रहते हैं। इस राज्य वामपंथी विचारधारा वालों द्वारा बड़ी संख्या में संघ के कार्यकर्ताओं की निर्ममता से हत्याएँ की गई हैं।
क्षोभ की बात यह है कि केरल में वामपंथी विचारधारा वाले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी(माकपा)की सरकार है। उसकी पार्टी के राज्य सचिव कोडियेरी बालकृष्णन ने इस दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के लिए खेद जताने के स्थान पर राज्यपाल आरिफ मुहम्मद को ही दोषी ठहराने का प्रयास किया है। उनका कहना है कि राज्यपाल अपने पद की सीमा को नहीं समझ रहे हैं,तो उन्हें पद से इस्तीफा देने को तैयार रहना चाहिए। उन्हें राज्यपाल का पद छोड़कर राजनीति के प्रति समर्पित हो जाना चाहिए। उन्हें कार्यक्रम में इतिहास पर चर्चा के लिए बुलाया गया था,न कि ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’पर। लेकिन यह भी सच है कि उन्हें ‘भारतीय इतिहास काँग्रेस’के कार्यक्रम में इतिहास पर ही अपने विचार व्यक्त करने चाहिए थे, पर जब उनसे पहले मंचासीन लोग इतिहास के बजाय ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ पर बोल रहे थे, उस दशा में उनके द्वारा उठाये गए मुद्दों का राज्यपाल खान द्वारा उत्तर देने पर उन्हें क्यों आपत्ति होनी चाहिए? दरअसल, वामपंथी, काँग्रेसी तथा दूसरे भाजपा विरोधी राजनीतिक दल ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ को लेकर पूरे देश में मुसलमानों को गुमराह कर उन्हें डरा कर केन्द्र सरकार के खिलाफ करने में लगे हैं। ऐसे में वामपंथी विचारधारा वाले इतिहासकार इरफान हबीब और उन जैसे दूसरे कट्टरपंथी शान्त रह कर राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान द्वारा उक्त अधिनियम की वास्तविकता का खुलासा होते देखना कैसे बर्दाश्त करते? उनके वक्तव्य से तो उनका पैदा किया भ्रम जाल ही टूट जाता। इसलिए उन्हें राज्यपाल खान को बोलना कैसे गवारा होता? यहाँ तक कि उन्हें बोलने से रोकने को हाथापाई करने चले आए। यह अपने देश का दुर्भाग्य है कि जो लोग अपनी अल्पसंख्यक वोट बैंक की खातिर इरफान हबीब और उन जैसे कथित इतिहासकार, साहित्यकार, कलाकार, पत्रकार, राजनेताओं की असलियत जानते हुए भी ,उनके खिलाफ अपने स्वार्थों की खातिर जुबान खोलने से परहेज करते हैं। इसी कार्यक्रम में उसी दौरान जब उन्हें इरफान हबीब बोलने से रोक रहे थे,तब उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आजाद का उल्लेख करते हुए अपनी वक्तव्य जारी रखना चाहा,तब इरफान हबीब ने चीखते हुए कहा,‘‘उन्हें मौलाना आजाद का नहीं,नाथूराम गोडसे का देना चाहिए।’’ऐसे में इरफान हबीब से पूछा जाना चाहिए कि क्या उनका आरिफ मुहम्मद के प्रति व्यवहार महात्मा गाँधी के विचारों के अनुरूप था?
वस्तुतः ये वामपंथी विचारधारा, पंथनिरपेक्षता,लोकतंत्र आदि नारों की आड़ में छिपे कट्टरपंथी जेहादी मानसिकता के लोग हैं,जो देश की स्वतंत्रता के बाद से ही भारत के एक ओर विभाजन के प्रयासों में लगे हैं। समूचे भारत ही नहीं,दुनिया को ‘दारुल इस्लाम’ बनाने का ख्वाब का देख रहे हैं। इरफान हबीब की यह बेजां हरकत कोई पहली नहीं है। यह देश के उन तथाकथित इतिहासकारों में से एक हैं जो भारतीय इतिहास को मनमाने तरीके से बदलते आए हैं। इन्होंने जेहादी मानसिकता वाले मुसलमान शासकों का भी ऐसा चित्रण किया है कि उन जैसा रहीम, करीम कोई शासक हो ही नही सकता। इरफान हबीब भी उन इतिहासकारों में से एक हैं जिन्होंने श्रीरामजन्मभूमि/बाबरी मस्जिद की खुदाई में बड़ी संख्या में निकले पुरावशेषों को प्राचीन मन्दिर का होने की सच्चाई को झूठलाने की भरसक कोशिश की और इस विवाद को बढ़ावा दिया। इसकी चर्चा प्रसिद्ध पुरातत्ववेता तथा भारतीय सर्वेक्षण विभाग के अधीक्षक रहे डॉ. के.के.मुहम्मद ने अपने लेखों में की है, जो उक्त विवादित स्थान की खुदाई में शामिल रहे थे। कन्नूर विश्वविद्यालय की घटना के पश्चात् टिवटर यूजर ने इरफान हबीब के सम्बन्ध में लिखा है ,‘‘इस व्यक्ति ने अपने चाटुकारों के साथ मिलकर झूठ फैलाने के लिए इतिहास को तोड़-मरोड़ कर रख दिया और झूठ के आधार पर एक धारणा स्थापित की।’’एक अन्य यूजर ने लिख है ,‘‘सहिष्णुता की वाम- उदार शैली। यह तभी तक उदार है जब तक आप उनकी हाँ मेें हाँ मिलाते हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर और उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल देना चाहिए।’’इनके सिवाय एक अन्य का कहना है,‘‘इरफान हबीब पर शर्म आती है। उनमें और एक पत्थरबाज में कोई अन्तर नहीं है।’’
इरफान हबीब के पेट में तब भी बहुत दर्द हुआ, जब सरकार ने कुछ जगहों नाम बदलने का प्रस्ताव रखा था। उस समय उन्होंने घोर विरोध करते हुए भाजपा सरकार पर यह आरोप लगाया था वह देशभर में गैर मुस्लिम नाम बदलने का अभियान चला कर ‘आर.एस.एस./दक्षिण पंथियों की हिन्दुत्व की नीति पर चल रही है। तब इनका यह भी कहना था कि ऐसा ही है तो भाजपा को अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नाम के पीछे लगे ‘शाह’ शब्द को हटा दे,क्यों कि यह फारसी भाषा का शब्द है,जिसे सैय्यद मुसलमान अपने नाम के साथ लगाते हैं,लेकिन उन्हें यह ज्ञात नहीं है कि ‘शाह‘ शब्द फारसी के साथ-साथ उसकी व्युत्पत्ति संस्कृत के शब्द ‘साधु’से भी हुई है,जिसका अर्थ ‘भला मनुष्य’/नेक इन्सान होता है। इस शब्द को कारोबारी ‘वैश्य’ समुदाय के साथ कई राज्यों जैन भी उपनाम के रूप में लगाते हैं।
वस्तुतःसाम्यवादी विचारधारा वाली शासन व्यवस्था में असहमति का कोई स्थान नहीं होता,यह निरंकुश, एकाधिकारी है,इतिहास इसका साक्षी है। लेकिन इस सच्चाई के विपरीत भारत में वामपंथी राजनीतिक दल विशेष रूप से भाजपा तथा सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर फासिस्ट/फासीवादी और असहिष्णु होने का आरोप लगाते आए हैं,जबकि स्वंय ऐसे ही हैं। भारत में इनके शासित राज्य पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा,केरल के लोग इनसे भलीभाँति परिचित हैं। अब आते है कन्नूर विश्वविद्यालय की घटना पर जहाँ गत 28दिसम्बर को कुलाधिपति के नाते राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान को मुख्य अतिथि के रूप में ‘भारतीय इतिहास काँग्रेस’ के कार्यक्रम का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया गया था।लेकिन विश्वविद्यालय में प्रवेश करते ही उन्हें विरुद्ध नारेबाजी की गई। जब वह मंच पर विराजमान थे,तब इतिहास विषयक उस कार्यक्रम में कई वक्ताओं ने केन्द्र सरकार द्वारा पारित ‘ नागरिकता संशोधन अधिनियम’ के विरुद्ध अपने विचार व्यक्त किये और उस पर तरह-तरह के सवाल उठाये। इस बीच राज्यपाल खान ने मंच पर अपने समीप बैठे मलियाली साहित्यकार शाहजहाँ से कहा कि आप वरिष्ठ नागरिक हैं। इसलिए बाहर जो लोग नारेबाजी कर रहे हैं,उनके पास जाएँ और उन्हें मेरी ओर से मंच पर आमंत्रित कर अन्दर बुला लाएँ। लौट कर उन्होंने बताया कि नारेबाजी करने वाले कह रहे हैं कि वे विरोध करने आए हैं,बात करने के लिए नहीं। मैंने उनसे कहा कि जब चर्चा करने की सम्भावना बन्द होती है तब हिंसा और घृणा का माहौल पैदा होता है। इस पर इरफान हबीब मुझे मारने दौड़े तथा अन्य लोगों ने नारेबाजी शुरू कर दी अब आप स्वयं अनुमान लगा लें कि ऐसा कहकर राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान ने क्या गुनाह किया था।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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