डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
पड़ोसी श्रीलंका में गम्भीर आर्थिक संकट लगातार गहराता ही जा रहा है,इससे दुःखी-परेशान लोग वर्तमान राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की सरकार को जिम्मेदार मानते हुए उनके समेत पूरे राजपक्षे परिवार के सदस्यों को हटाने के लिए बड़े पैमाने पर आन्दोलनरत हंै। आन्दोलनकारी अपने देश के इस आर्थिक संकट के लिए एक हद तक चीन को भी दोषी मानते हैं, जिसके कड़ी शर्तों वाले भारी कर्ज ने अर्थव्यवस्था की दुर्गति को बढ़ाया है। देश की लोगों की भारी नाराजगी को देखते हुए राष्ट्रपति राजपक्षे द्वारा अपने भाई तथा वित्तमंत्री बासिल राजपक्षे को बर्खास्त करने, 26 मंत्रियों के अपने पद से त्यागपत्र देने और सर्वदलीय सरकार गठन किये जाने का दाँव भी चला,लेकिन वह नाकाम रहा। तब गत 6अप्रैल को राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने स्पष्ट घोषणा कर दी है कि किसी भी सूरत में वे अपने त्यागपत्र नहीं देंगे,जबकि देश की जनता उन्हें अब इस पद पर बने रहने देना नहीं चाहती।इससे पहले गठबन्धन सरकार 50से अधिक सांसदों ने सरकार से अपने समर्थन वापस ले लिया है और नए वित्त मंत्री अली साबरी ने भी 24घण्टे बाद अपना पद छोड़ दिया। फिर भी 6 अप्रैल को संसद को सम्बोधित करते हुए मुख्य सचेतक मंत्री जानसन फर्नांडो ने कहा कि सरकार देश की इस समस्या का सामना करेगी। राष्ट्रपति के इस्तीफे का कोई कारण नहीं,क्योंकि उन्हें इस पद के लिए चुना गया है।वैसे राष्ट्रपति राजपक्षे ने यह भी कहा कि अगर किसी पार्टी ने संसद में बहुमत सिद्ध करने वाली पार्टी को सत्ता सौंप देंगे। इस बीच यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि वे अपने बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के स्थान पर कोई नया प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकते हैं या फिर मध्यावधि चुनाव करा सकते हैं।
वैसे भी श्रीलंका का वर्तमान संकट राजनीतिक से कहीं आर्थिक है। वैसे इसका हल असम्भव नहीं,तो मुश्किल जरूर है। इस देश का आर्थिक संकट मुख्यतः सरकारी गलत नीतियों के कारण बढ़ा है,जिसमें राजपक्षे परिवार उत्तरदायी है,क्योंकि ज्यादातर महत्त्वपूर्ण सरकारी पदों पर राजपक्षे परिवार का कोई न कोई सदस्य पदस्थ है। यही कारण है कि लोग विरोध तथा नाराजगी सरकार से कहीं ज्यादा राजपक्षे परिवार के खिलाफ है। श्रीलंका राजपक्षे बन्धुओं की तानाशाही ,भ्रष्टाचार ,भाई-भतीजावाद, कुशासन,अनुचित नीतियाँ ही उत्तरदायी मान रही है। श्रीलंका की राजनीति में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखने राजपक्षे परिवार पर भ्रष्टाचार आरोप पहले भी लगाए जाते रहे हैं,लेकिन श्रीलंका में अलगाववादी लिट्टे के सफाये में अहम भूमिका के कारण उनकी अनदेखी की जाती रही है। लेकिन अब 2.2 करोड़ की आबादी वाले इस द्वीप राष्ट्र श्रीलंका की जनता आर्थिक अव्यवस्था और मूलभूत चीजों की तंगी से आजिजयहाँ खाने-पीने की वस्तुओं से पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस, बिजली,दवाएँ तथा अन्य चिकित्सीय उपकरण जैसी मूलभूत चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं या फिर उपलब्ध ही नहीं है। वर्तमान में देश में मुद्रास्फीति 17.5 प्रतिशत तक बढ़ी हुई है। इस आर्थिक बदहाली के लिए लोग सरकार की गलत आर्थिक नीतियों, कुप्रबन्धन, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, फिजूलखर्ची मान रहे हंै। उनमें अपनी सरकार को लेकर भारी असन्तोष और आक्रोश व्याप्त है। हजारों की तादाद में सड़कों पर आकर सरकार को विरोध कर रहे हैं, जिस पर काबू पाने को देश में आपातकाल घोषित करने के साथ कपर्यू भी लगा दिया गया था,जिसे 5अप्रैल की मध्यरात्रि का हटा लिया गया। इस आन्दोलन को और ज्यादा फैलने से रोकने के उद्देश्य गत 3अप्रैल का 15घण्टे तक इण्टरनेट सेवा बन्द रखी गई। फिर भी 4अप्रैल को सिंहली बहुल दक्षिण श्रीलंका में तांगले स्थित प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के निजी आवास के के बाहर जुटे कोई 2000 प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए पुलिस ने आँसू गैस का इस्तेमाल किया,जबकि यह इलाका राजपक्षे परिवार का गढ़ माना जाता है। आन्दोलन कारियों ने छह सांसदों के घरों के बाहर भी प्रदर्शन किया। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की अर्थव्यवस्था मूलतः पर्यटन उद्योग पर आधारित है,जो कोविड-19 महामारी से पहले ही मन्द पड़नी शुरू हो गई थी। फिर कोरोना काल में तो विदेशी पर्यटकों का आना पूरी तरह से बन्द हो गया। वैसे भी श्रीलंका की सन् 2020 में वृद्धि दर 3.6प्रतिशत तक कम हो गई थी,जिस वजह से हजारों लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए। विदेशी निवेश सूख गया, महँगाई बढ़ गई, नौकरियाँ जाने लगीं, विदेशी ऋण की स्थिति चिन्ताजनक हो गई, विदेशी मुद्रा का आरक्षित भण्डार कम होने लगा और व्यापार घटने लगा। सामाजिक तनाव के चिह्न दिखाई देने लगे। सरकार की अनिवार्य रूप से जैविक(आर्गेनिक)खेती करने की नीति से कृषि क्षेत्र को भारी क्षति उठानी पड़ी। इसके कारण अन्न उत्पादन बहुत अधिक घट गया। खाद्यान्न की कमी पड़ गई और उनके दाम बहुत अधिक बढ़ गए। बाद में इस नीति के कुछ प्रावधानों को वापस लेकर रासायनिक उर्वरक आयात करने का निर्णय लिया गया।लेकिन इससे कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। अनाज की कमी ने लोगों के संकट को बढ़ा दिया। वर्तमान में खाद्यान्न समेत अन्य कृषिगत चीजों की कमी के कारण सरकार की गलत नीतियाँ हैं। अगर अनाज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता, तो लोगों के भूखों मरने की नौबत न आती। श्रीलंका में विद्युत संकट भी बना हुआ है,7से 13घण्टे तक विद्युत कटौती करनी पड़ रही है। ईंधन में किरोसिन, पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की भारी किल्लत बनी हुई। डीजल लेने को हजारों लोगों की तीन किलोमीटर तक लम्बी लाइनें लगी हुई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ़ऋण प्रबन्धन की जो वर्तमान कठिनाइयाँ हैं उसका कारण 2007 से गैर राजस्व अर्जित करने वाली परियोजना के लिए व्यावसायिक ऋण हैं। समस्या इसलिए अधिक विकराल हो गई,क्यों कि सन् 2019 में बिना सोचे-समझे टैक्स बे्रक दिया गया। साथ ही श्रीलंका के स्वतंत्र होने से लेकर अबतक किसी भी सरकार ने राजकोषीय(फिस्कल)घाटा और चालू खाता(करण्ट अकाउण्ट) घाटे की दोहरी समस्याओं पर ध्यान ही नहीं दिया गया। राज्य में राजस्व में जो पिछले दो वर्षों के दौरान सरकार ने स्वयं ही कमी की है। उसके संचित ऋण का बोझ का प्रबन्ध कठिन हो गया है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष(आइ.एम.एफ.) का भी मानना है कि सरकार नीतियों में मुख्य परिवर्तन उधार लिए गए धन से अनावश्यक खर्च और 2019मंे जो कारपोरेट को करों में बहुत छूट दिया जाना है। उनके कारण श्रीलंका में आर्थिक संकट आया है। कुछ लोगों का विचार कि चीन से जो ऋण लिया गया,उसके कारण श्रीलंका में आर्थिक संकट आया है,किन्तु यह धारणा एक हद तक ही सच है,क्योंकि चीन के इस ऋण के साथ कड़ी शर्तों जुड़ी हैं। इसी धारण के कारण राजपक्षे बन्धुओं के साथ साथ चीन के विरुद्ध भी बहुत अधिक आक्रोश है और उसके खिलाफ प्रदर्शन भी हो रहे हैं। वैसे सन् 2000 से ही चीन श्रीलंका को व्यावसायिक ऋण देता आ रहा है,जो ज्यादातर संरचनात्मक परियोजनाओं (इन्फ्रास्ट्रकचर प्रोजेक्ट्स), में खर्च किया गया है। इनमें हम्बनटोटा बन्दरगाह भी सम्मिलित है। इसलिए आरोप लगाया जाता है कि चीन की वजह से श्रीलंका ‘कर्ज के जाल’में फँस गया है। इस संकट में चीन की भूमिका बहुत कम है। अप्रैल,2021 तक श्रीलंका पर 35 बिलियन से अधिक विदेशी कर्ज था, जिसमें करीब 10प्रतिशत ही चीन से लिया गया है,जबकि आधे से अधिक पूँजी बाजार से लिया गया कर्ज है। श्रीलंका को लिए ऋण पर इतना ब्याज देना होता है,जितना कि उसका जीडीपी है। वस्तुतःसमस्या यह है कि चीन से जो व्यावसायिक कर्ज लिया गया है उसमें बहुत धन ऐसी परियोजनाओं पर व्यय किया गया,जिनसे किसी तरह का राजस्व प्राप्त नहीं होता। जैसे-कोलम्बो का ‘लोटस टावर’। इसका अर्थ यह है कि श्रीलंका का आर्थिक संकट सरकार की अनुचित नीतियों, गैर जरूरी खर्चों,भ्रष्टाचार का परिणाम अधिक है। इसे कोरोना महामारी बहुत अधिक बढ़ा दिया।
वैसे श्रीलंका की आर्थिक स्थिति सदैव ऐसी ही नहीं रही है। एक श्रीलंका उच्च विकास श्रेणी में होने तथा मानव विकास सूचकांक (एचडीआइ) मूल्य में भारत, पाकिस्तान,बांग्लादेश से भी बेहतर प्रदर्शन करने वाला था। सन् 2019में श्रीलंका में मानव विकास सूचकांक (एचडीआइ) मूल्य 0.782 था,जबकि भारत का 0.645,बांग्लादेश का 0.632,पाकिस्तान का 0.557 उससे बहुत पीछे था। श्रीलंका में मानव विकास सूचकांक(एचडीआइ)मूल्य रैंक 72 थी तथा भारत की 131,बांग्लादेश की ि133 तथा पाकिस्तान की 154 उससे आसपास भी नहीं थी। लिंग असमनता में भी सूचकांक में भी श्रीलंका की स्थिति 90,भारत 123,बांग्लादेश 133,पाकिस्तान 135से बेहतर थी।यह मानव विकास केवल इसलिए सम्भव हो सका,क्योंकि श्रीलंका की आर्थिक स्थिति न सिर्फ अच्छी थी,वरन् प्रगति कर भी रही थी,पर स्थिति यह है कि लोगों की आवश्यकता चीजें तक नहीं मिल पा रही हैं। अगर मिल रही हैं,तो बहुत महँगी हैं और लोगों की क्रय शक्ति से बहुत दूर हैं। अब जहाँ तक भारत का प्रश्न है वह अपने पड़ोसी देश के इस आर्थिक संकट को लेकर न केवल चिन्तित है,बल्कि हर तरह से उसकी सहायता भी कर रहा है। भारत ने श्रीलंका की सरकार की माँग के अनुसार उसे विदेशी मुद्रा भी उपलब्ध करायी है,ताकि वह दूसरे देशों से अपनी जरूरत का सामना आयात कर सके।
अब देखना यह है कि श्रीलंका में किस तरह का राजनीतिक परिवर्तन होता है और वह किस तरह अपने देश को आर्थिक संकट से उबारने में कहाँ तक सफल हो पाता है?लेकिन श्रीलंका के आर्थिक संकट ने भारत समेत दुनियाभर के देशों को यह सबक अवश्य दे दिया है कि राजनीतिक लाभ के लिए अपने लोगों को करों में छूट तथा तरह-तरह की निःशुल्क सुविधाएँ देने के साथ-साथ विदेशों से कर्ज बहुत सोच-समझ कर लेने के साथ-साथ उसे उत्पादक कार्यों में ही निवेश करना चाहिए।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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