देश-दुनिया

सार्क को प्रतिस्थापित कर रहा है बिम्सटेक

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों बिम्सटेक( बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फार मल्टी सेक्टोरल टेक्नीकल एण्ड इकोनोमिक कोऑपरेशन) के श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में वर्चुअल शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों द्वारा पहली बार अपना घोषणापत्र (चार्टर) और कनेक्टिविटी की एक भावी योजना (रोडमैप) को स्वीकृति प्रदान कर दी है। इस तरह उन्होंने इस समूह के बड़े पुनर्गठन को स्वीकृति दे दी है, निश्चय ही अब इस क्षेत्र के देशों के बीच बहुआयामी रूप में तकनीकी तथा आर्थिक सहयोग बढ़ेगा। इसके चार्टर में इस संगठन के व्यापक उद्देश्य तथा लक्ष्यों को भी निर्धारित किया गया है। अब चार्टर की मंजूरी बिम्सटेक को एक अन्तर्राष्ट्रीय पहचान प्रदान करेगा। शिखर बैठक में बाद संयुक्त घोषणा पत्र में आतंकवाद को लेकर सामूहिक नीति का उल्लेख है। इसे लेकर भारत विशेष रूप से दबाव बना रहा है। उसका एक अहम उद्देश्य दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों के बीच आतंकवाद के विरुद्ध अधिकाधिक सहयोग स्थापित करना है,जो सार्क संगठन में पाकिस्तान के रहते सम्भव नहीं था।
वैसे यह भी तय है कि इस संगठन को आगे बढ़ाने में भारत की भूमिका की अहम रहेगी। बिम्सटेेक के सदस्य भारत, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, थाईलैण्ड, श्रीलंका के शीर्ष नेताओं के बीच सात क्षेत्रों में सहयोग करने पर सहमति बनी है। इसमें हर सदस्य देश को एक क्षेत्र का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। भारत को बिम्सटेक में सुरक्षा व्यवस्था के क्षेत्र में होने वाले सहयोग का नेतृत्व करने करने की दायित्व मिला है।
‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय देशों का सहयोग संगठन’(दक्षेस) यानी ‘सार्क’ संगठन के गठन का मुख्य उद्देश्य दक्षिण एशियाई देशों के मध्य परस्पर आर्थिक सहयोग बढ़ा कर विकास मार्ग प्रशस्त करना था,जो इस क्षेत्र में बगैर शान्ति के सम्भव नहीं था। लेकिन इसका सदस्य देश पाकिस्तान अपने यहाँ दहाशतगर्दों को पनाह, प्रशिक्षण,उनकी तरह-तरह के हथियारों और धन से मदद करने में लगा था।जहाँ तमाम इस्लामिक दहशतगर्द संगठनों के अड्डे चल रहे हैं, जिनमें कई देशों के युवाओं को दहशतगर्दों को प्रशिक्षण, हथियार, पनाह दिया जाता है। इस मुल्क में कई ऐसे दहशतगर्द संगठनों के सरगना पनाह पाए हुए हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबन्धित किया हुआ है। यहाँ तक कि उसने 11 सितम्बर, 2000 को अमेरिका के न्यूयार्क स्थित ‘वर्ड टेªड सेण्टर’ समेत चार स्थानों पर ‘अलकायदा’ के दहशतगर्दों ने विमान अपहरण(हाईजैक) कर हमले किये थे, इस हमले से अमेरिका दहल गया था। इसमें करीब 3000 लोगों की जान गई थी। इस दहशतगर्द संगठन के सरगना ओसमा बिन लादेन को पाकिस्तान ने अपने यहाँ छुपाया हुआ था,जिसका पता कर अमेरिका के सील कमाण्डों ने मार था। दुनियाभर में आतंकवाद को पनपने और फैलाने में पाकिस्तान की सक्रिय भूमिका के चलते सन् 2016 में सार्क देशों की प्रस्तावित बैठक नहीं हो पायी थी। उसके भेजे इस्लामिक कट्टरपंथी दहतशतगर्द भारत में जम्मू-कश्मीर से लेकर दूसरे राज्यों मंे बम विस्फोट और लोगों की जान लेकर दहशतगर्दी मचाये हुए थे। उसका यह अनुचित रवैया सार्क के विकास में बाधक था। उसके विकल्प के रूप में अब बिम्सटेक की स्थापना की गई है। इसके जरिए भारत अपने पड़ोसी मुल्कों को एकजुट कर दहशतगर्दी, आर्थिक और तकनीकी सहयोग बढ़ा कर सभी तरह के विकास, व्यापारिक सम्बन्धों को विस्तार देना चाहता है। इसके पीछे उसका एक उद्देश्य इन देशों को चीन के कर्ज के जाल में फँसने से बचाना है। भारत के ऐसा न करने पर चीन इस क्षेत्र के देशों में आर्थिक सहायता की आड़ में अपना प्रभाव बढ़ाना स्वाभाविक है। श्रीलंका चीन के कर्ज के जाल में फँस कर अपनी आर्थिक व्यवस्था को बर्बाद कर चुका है। उसे अपने हवनटोटा बन्दरगाह तक चीन को 99 साल के पट्टे पर देने का मजबूर होना पड़ा है। चीन नेपाल को भी आर्थिक सहायता के जरिए में अपने जाल में फाँस चुका है और अब उसके ही सीमावर्ती भूभाग को हड़पने लगा हुआ है। इससे नेपाली जनता चीन से नाराज है। अब बिम्सटेक के माध्यम से भारत अपनी और पड़ोसी देश की सुरक्षा के साथ-साथ उन्हें आर्थिक रूप से विकसित करने के साथ उनके बीच व्यापार को भी बढ़ाना चाहता है। ऐसा होने पर उन्हें अपनी रक्षा और आर्थिक सहायता के लिए किसी बाहरी देश से सहायता के लिए मुँह ताकने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा।
अब बिम्सटेक के सदस्य देशों ने ही भारत से अधिक सक्रिय रहने का आग्रह किया। दरअसल, इसका एक अहम उद्देश्य दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों के बीच आतंकवाद के विरुद्ध अधिकाधिक सहयोग स्थापित करना होगा। अब भारत यह तय करने में बड़ी भूमिका निभाएगा कि बिम्सटेक देशों में किस तरह ज्यादा सुरक्षित बनाया जाए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बिम्सटेक को अब अधिक सक्रिय बनाना पड़ेगा। उन्होंने सदस्य देशों की क्षेत्रीय सुरक्षा को अधिक प्राथमिकता दिये जाने को अनिवार्य बताया। उन्होंने सदस्य दशों को सुरक्षा के साथ ही कृषि, कनेक्टिविट और चिकित्सा क्षेत्र में भारत की तरफ से हर सम्भव सहायता देने का आश्वासन दिया।
इस सम्मेलन में वर्चुअल रूप में लेते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिम्सटेक सचिवालय के संचालन बजट के लिए 10लाख डालर का तदर्थ अनुदान और समूह के मौसम व जलवायु केन्द्र पुनर्स्थापित करने के लिए 30 लाख डालर की सहायता देने की घोषणा की है। भारत बिम्सटेक को सुरक्षा कवच प्रदान करेगा। सदस्य देशों के बीच महत्त्वांकाक्षी आर्थिक एजेण्डे पर काम करने को लेकर भी सहमति बनी है जिसके तहत बिम्सटेक में अनुकूल व्यापार एग्रीमेण्ट (एफटीए) को लागू किया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में में एफटीए का विशेष रूप से उल्लेख किया। इस सम्मेलन में भाग लेने पहुँचे भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने सात सदस्य देशों के भारत, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, थाईलैण्ड, श्रीलंका से आतंकवाद और हिंसक कट्टरता के खिलाफ सामूहिक नीति बनाने का आह्वान किया। उनके वक्तव्य से स्पष्ट है कि भारत सार्क के जरिए अपने आसपास के मुल्कों के साथ दहशतगर्दाें और उनकी दहशतगर्दी खिलाफ इकट्ठे होकर उस रोक और खत्म करने के अपने मकसद को पूरा नहीं कर पा रहा था, वह अब बिम्सटेक के माध्यम से कर पाएगा। ऐसा विश्वास किया जा सकता है, क्योंकि इनमें से कोई भी देश आतंकवाद के साथ खड़ा नहीं है। इनमें श्रीलंका में ईस्टर के दिन इस्लामिक दहशतगर्द संगठन ‘नेशनल तौहीद जमात’(एनटीजे) ने आत्मघाती हमला किया, जिसमें बड़ी संख्या में लोग मारे तथा घायल हुए थे। इस देश में एक दूसरा आतंकवादी संगठन ‘जीमयथुल मिलाथु इब्राहिम’नामक भी सक्रिय है। इसके बाद से यह इस्लामिक दहशतगर्दों के खिलाफ मुहिम छेड़े हुए है। बांग्लादेश में ‘जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश’ (जेएमबी) समेत कई इस्लामिक कट्टरपन्थी संगठन मौजूद हैं। इनका एकमात्र मकसद बांग्लादेश में निजाम-ए-मुस्तफा’ कायम करना यानी इसे इस्लामिक मुल्क बनाना चाहते हैं। हालाँकि यहाँ की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद की सरकार अपने यहाँ इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन पर लगाम लगाना चाहती हैं, पर सियासती नुफा-नुकासन देते हुए उन्हें इनके खिलाफ जितनी सख्ती करनी चाहिए, उतनी वह नहीं कर पा रही हैं। नतीजा, आए दिन वहाँ इस्लामिक कट्टरपंथी बेखौफ होकर गैर मुस्लिम यानी हिन्दुओं, बौद्धों, ईसाइयों और उनके मन्दिर, मठों, गिरजाघरों पर हमले करते रहते हैं। इसी तरह नेपाल में भी कई कट्टर पंथी इस्लामिक संगठनों ने अपने अड्डे बनाये हुए हैं, जहाँ दुनियाभर के इस्लामिक दहशतगर्द आते-जाते तथा छुपते आए हैं। एक तरह नेपाल इनका सुरक्षित पनाहगाह बना हुआ है। कुछ सूत्रों के अनुसार चीन भी इनकी कई तरह से मदद करता आया है। ये आसानी से भारत,बांग्लादेश में घुसपैठ करते रहते हैं। म्यांमार भी कभी रांेहिग्या मुसलमानों ने दहशतगर्दी मचायी हुई। उसके बाद सरकार को उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी थी। थाईलैण्ड के भी कुछ इलाकों में इस्लामिक कट्टरपन्थी सक्रिय हैं। भारत स्वयं भी सालों से इस्लामिक आतंकवाद से पीड़ित है।
अब भारत श्रीलंका का संकट की घड़ी में मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। वैसे भी प्रधानमंत्री मोदी की सरकार पड़ोसी प्रथम (नेबरहुड फर्स्ट) की नीति पर चल रही है। वह श्रीलंका को मदद देने को लेकर कितनी तत्पर है इसे इस बात से समझा जा सकता है कि कोलम्बो की यात्रा पर गए विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने प्रोटोकाल की चिन्ता किये बिना ही वहां के अस्पतालों को सहायता देने की अभियान शुरू कर दी। हुआ यह है कि जैसे ही श्रीलंका के एक पत्रकार की ओर से इण्टरनेट से विदेशमंत्री एस.जयशंकर को जैसे ही श्रीलंका के अस्पतालों में दवा व चिकित्सा सामग्रियों की किल्लत का पता चला, वैसे ही उन्होंने बगैर कोई देरी किये भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बागले को सम्बोधित विभागों से सम्पर्क साधने और सहायता पहुँचाने को कहा। अब उनके इस कदम का श्रीलंका में बहुत सराहा जा रहा है। अब श्रीलंका ने भारत से एक अरब डालर का अतिरिक्त कर्ज देने की माँग की है, ताकि वह वह चावल, गेहूँ, दालें, चीनी, दवाओं का आयात कर सके। जनवरी, 2020 में विदेशी मुद्रा कोष में 70 प्रतिशत गिरावट के बाद श्रीलंका के समक्ष खाद्य पदार्थों तथा ईंधन के आयात में मुश्किलें पैदा हो गईं हैं।उसकी इस माँग को भारत ने पूरा कर दिया है।
सार्क की जगह लेने के लिए भारत ने जिस उद्देश्य से बिम्सटेक की स्थापना की है,उन्हें पूरा करने को भारत को प्राण पण से जुटना होगा। इसकी वजह यह है बिम्सटेक सदस्य देशों में कोई भी दूसरा देश ऐसा नहीं है, जो किसी भी दृष्टि से भारत के समतुल्य हो। फिर उनकी भारत जैसी व्यापक दृष्टि भी नहीं है। इनमें से कुछ देश छोटे-छोटे प्रलोभनों में चीन और दूसरे देशों के कर्ज के जाल में फँस चुके हैं। ऐसे देशों की स्वतंत्र पहल की आशा करना ही बेमानी होगा। इसलिए बिम्सटेक के लक्ष्यों को पाने के लिए भारत को ही हर क्षेत्र में सभी तरह की पहल करने को आगे आने के लिए सदैव तैयार रहना होगा, ताकि इसका हश्र भी सार्क जैसा न हो।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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