डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में राजस्थान के करौली जिला मुख्यालय पर नव संवत्सर पर हिन्दूवादी संगठनों की ओर से निकाली जा रही बाइक रैली पर बगैर किसी भड़कावे की कार्रवाई के जिस तरह समुदाय विशेष के लोगों द्वारा किये गए पथराव में आधा दर्जन पुलिस कर्मियों समेत 45 लोग घायल, 35 दुकानें ,दो घरों तथा कई दुपहियों वाहनों को भी जलाया गया है, यह मजहबी कट्टरता पंथियों की खीज और गैर मुसलमानों के प्रति उनकी नफरत को दर्शाता है, जो ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म के प्रदर्शन के बाद इनकी जिहादी मानसिकता और काली करतूतों के खुलासे के साथ-साथ चार राज्यों में भाजपा की जीत से पैदा हुई है। देश में भाजपा के विस्तार और उसके लगातार मजबूत होने से इस्लामिक कट्टरपंथियों को हिन्दुस्तान को इस्लामिक मुल्क बनाने का अपना ख्वाब टूटता नजर आ रहा है। केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता सम्हालने के बाद से विदेशों से आने वाले धन को मजहबी और देश विरोधी गतिविधियों में लगी संगठनों उनसे बेहद नाराज हैं, क्यों कि उन्होंने इस धन की जाँच कराने के बाद उस पर पाबन्दी लगा दी है।
अब जहाँ तक करौली की वारदात सवाल है तो नवरात्र में करौली में हिन्दुओं पर हमला कोई सामान्य घटना नहीं है, क्योंकि इस समय करौली स्थित देवी माँ के दर्शन के लिए आसपास के राज्यों से लाखों दर्शनर्थियों की उपस्थिति रहती है। इसके बावजूद कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दुओं की रैली पर हमला किया जाना, उनका दुःसाहस ही माना जाएगा, जिसकी असल वजह राज्य की काँग्रेस सरकार द्वारा अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति है, जो उनके दुष्कृत्यों की लगातार अनदेखी किया जाना रहा है। ये लोग हिन्दू युवतियों विशेष रूप से दलितों के साथ छेड़छाड़ और उनके अपहरण तथा उनका मतान्तरण कराके निकाह करते आए हैं, लेकिन पुलिस उनके खिलाफ राजनीतिक कारणों से कार्रवाई नहीं करती। नतीजा कट्टरपंथियों के जुल्मों से परेशान होकर मेवात इलाके में हिन्दू पलायन करते आए हैं। करौली में नवसंवत्सर के अवसर पर हिन्दुओं के जुलूस पर षड्यंत्र पूर्वक किया गया,क्योंकि मुसलमानों के घरों पर अचानक इतने सारे पत्थर कहाँ से आ गए। इसी तरह 3 अप्रैल को राजस्थान के अजमेर जिले के ब्यावर में सब्जी मण्डी में बीच सड़क पर बाइक खड़ी करने को लेकर दो दुकानदारों में शुरू हुए विवाद ने साम्प्रदायिक रूप ले लिया। इसमें एक समुदाय के दर्जनभर लोगों ने लाठी और लोहे की सरियों से दूसरे समुदाय के दुकानदारों पर हमला कर दिया। इसमें एक दुकानदार की मौत हो गई और उसके दो बेटे घायल हैं। ऐसे ही बूँदी में मुसलमानों ने नवसंवत्सर पर जुलूस नहीं निकलने दिया गया।दुर्भाग्य की बात यह है कि इतने पर भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हिंसा के लिए धार्मिक आधार पर गोलबन्दी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।उनके कहने का अर्थ तो यही है कि हिन्दुओं को रैली निकालने की क्या आवश्यकता थी? उन्होंने ही मुसलमानों को पथराव और हिंसा करने को उकसाया/भड़काया है। मुख्यमंत्री गहलोत के इस पक्षपाती और अनुचित रवैये के चलते इस्लामिक कट्टरपंथियों के हौसले बुलन्द हैं। वैसे उनसे प्रश्न यह है कि क्या हिन्दू अपने ही देश में मुसलमानों की नाराजगी/ डर से अपने त्योहार मानना छोड़ दें?उ.प्र.के गोरखपुर में नाथ सम्प्रदाय की सर्वोच्च पीठ पर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निवास स्थल पर 3अप्रैल को मोहम्मद मुर्तजा अब्बासी द्वारा जिहादी नारे लगाते हुए दाव हथियार समेत अन्दर घुसने पीएसी के सिपाहियों पर हमला किया जाना क्या दर्शाता है?यह विचारणीय प्रश्न है।
वैसे भी अपने देश में इस्लामिक कट्टपंथी तरह-तरह के मुखौटे जरूर लगाए हुए हैं, लेकिन इन सभी का मकसद हिन्दुस्तान मंे ‘निजाम-ए-मुस्तफा’ कायम करना है। पिछले दिनों देश के सिनेमाघरों में प्रदर्शित ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने उनके जिहादी चेहरे को बेनकाब कर दिया है। इससे देशभर के विभिन्न सियासी पार्टियों के मुसलमान नेता, लेखक, पत्रकार, फिल्मी गीतकार, संवाद लेखक, कलाकार आदि बौखलाए हुए हैं। उन्होंने इस फिल्म के प्रदर्शन को रुकवाने की पुरजोर कोशिश में लग गए। दुर्भाग्य से मुसलमानों के एकमुश्त वोटों के तलबगार हिन्दू सियासी नेता भी उनके मददगार बन गए। इनका कहना था कि इससे हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच दरार बढ़ेगी। उनसे सवाल यह है कि इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा लगातार हर मामले में शरीयत की दुहाई देना और हिन्दुओं के खिलाफ बयानबाजी तथा उन पर हमला करने से क्या मुहब्बत बढ़ती है?
दरअसल, अभी तक कश्मीर घाटी से नब्बे के दशक में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा बन्दूक के जोर पर हिंसा, लूटपाट, बलात्कार के जरिए कोई पाँच लाख कश्मीर हिन्दुओं, सिखों को यहाँ से पलायन करने को मजबूर कर दिया गया था। फिर भी कट्टरपंथियों की हैवानियत और नरसंहार को कश्मीर घाटी से लेकर देश के तथाकथित सेक्युलर सियासी पार्टियों के नेता कश्मीरियत, जम्हूरियत, इंसानियत की फर्जी चादर से छुपाये रखा था। इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद जिहादी गमजदा हैं। ये लोग भाजपा के जीत से बहुत अधिक निराश-परेशान हैं। इसे देश के अलग-अलग हिस्सों में हो रही ये घटनाएँ हैं।
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के फाजिल नगर कस्बे में 19 मार्च एक सिनेमाघर में ‘द कश्मीर फाइल्स’ देखकर निकल रहे हिन्दू युवकों द्वारा देशभक्तिपूर्ण नारे लगा गए। उनका ऐसा करना मुस्लिम युवकों को बुरा लगा। वे उनसे झगड़ा करने लगे। इसके बाद इन मुस्लिम युवकों ने उन पर चाकुओं से हमला कर दिया। इसमें तीन हिन्दू युवक सचिन, कृष्णा, राहुल घायल हो गए। कुशीनगर में ही अगले दिन 20 मार्च विधान सभा चुनाव में भाजपा की जीत पर रामकोला थाने के अन्तर्गत कथारगढ़ी निवासी 25 वर्षी बाबर द्वारा जश्न मनाते हुए मिठाई बाँटने से कुपित उनके हममजहबियों ने पीट-पीट कर अधमरा कर दिया, जिनकी 25 मार्च को लखनऊ में इलाज के दौरान मौत हो गई। बाबर की माँ जैबुनिसा ने पुलिस पर आरोप लगाया कि उनके बेटे को कई माह से धमकियाँ दी जा रही थीं, जब चुनाव के भाजपा के उम्मीदवार का प्रचार कर रहा था। इसकी शिकायत पुलिस अधिकारियों से की गई, पर उसे सुरक्षा नहीं दी। ऐसे ही बरेली में एक मुस्लिम महिला के भाजपा को वोट दिये जाने से कुपित होकर उसे तलाक तक दे दिया। कुछ ऐसे ही मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर की पीर गली क्षेत्र में शरीफ, याकूब ओर सुल्तान मंसूरी के मकान में सालों से रह रहे युसूफ को इसलिए धमकियाँ दी जा रही हैं कि उन्होंने अपने घर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चित्र क्यों लगाया हुआ है। प्रधानमंत्री का चित्र हटाओ और न हटाने पर जाने हाथ धो बैठने की धमकी दी जा रही है। युसूफ ने इसकी शिकायत पुलिस आयुक्त से जन सुनवाई में की है। उ.प्र.के कानपुर के किदवई नगर में शकील अहमद भाजपा समर्थक होने और भाजपा विधायक को माला पहनाने से नाराज होकर उनके पड़ोसियों उनकी जमकर पिटाई की।
इधर कर्नाटक में स्कूलों में हिजाब विवाद पैदा करने में केरल की इस्लामिक कट्टरपंथियों की संस्था ‘पी.एफ.आइ.’की उपसंस्था ‘कैम्पस फ्रण्ट ऑफ इण्डिया’ का हाथ रहा है। अब हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला आ गया है जिसमें कहा कि हिजाब इस्लाम का हिस्सा नहीं है। हिजाब पहनने पर रोक से अनुच्छेद 25 में प्राप्त धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं होता। फिर भी कर्नाटक के बेंगलुरु में केएसटीवी हाईस्कूल में नूर फातिमा नामक शिक्षिका हिजाब पहन कर परीक्षा कराने आयीं, जब उन्हांेने हिजाब उतारने से मना कर दिया, तब उन्हें परीक्षा केन्द्र से वापस भेज दिया। बाद में शिक्षा विभाग द्वारा नूर फातिमा को निलम्बित कर दिया गया। इसी तरह बगलकोट जिले के इलकल कस्बे में कुछ मुस्लिम छात्राएँ भी हिजाब पहन कर परीक्षा देने पहुँचीं, जिन्हें हिजाब पहन कर परीक्षा देने से रोक दिया गया। इसके बाद वे बगैर परीक्षा दिये लौट गईं।उधर कर्नाटक के शिमोगा में हिजाब विवाद के दौरान बजरंग दल कार्यकर्ता हर्ष की हत्या के मामले की जाँच कर रही ‘राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी(एन.आइ.ए.)ने प्रारम्भिक जाँच में यह पाया है कि इस हत्याकाण्ड को साम्प्रदायिक हिंसा के षड्यंत्र के तहत अंजाम दिया गया था,ताकि इस सूबे में साम्प्रदायिक दंगे हों।
उ.प्र. में विधानसभा के चुनाव के दौरान कई दूसरे शहरों में भाजपा समर्थक या उनके द्वारा देशभक्ति या जय श्रीराम के नारे लगाने पर उनके हममजहबियों द्वारा पिटाई की गई। पिछले कुछ समय में अपने देश में इस्लामिक कट्टरपंथी अलग-अलग तरीके से अपनी जड़ें जमाने,विभिन्न समुदायों के बीच मजहबी नफरत फैलाकर दंगे-फसाद कराकर अराजक हालात पैदा करना चाहते हैं। कभी ये लोग नागरिक संशोधन अधिनियम ( सी.ए.ए.), फिर दिल्ली में दंगे कराये, त्रिपुरा की हिंसा के बहाने महाराष्ट्र के कुछ शहरों में जुलूस, दंगे और तो कभी हिजाब के बहाने दंगे कराने की कोशिश कर चुके हैं। इसी 31मार्च को राजस्थान की राजधानी जयपुर में एस.आइ.टी. द्वारा म.प्र. के रतलाम शहर के रहने वाले इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन ‘अल सूफा’ के तीन आतंकवादियों 12 किलो आरडीएक्स, टाइमर, कार के साथ पकड़ गए हैं,जो जयपुर में बम विस्फोट कर दहलाने की साजिश कर रहे थे। उनके 5 साथियों को टोंक तथा रतलाम से हिरासत में लिया गया है। जयपुर में सन् 2008 में श्रंृखलाबद्ध बम विस्फोट हुए थे, जिसमें 71 लोग मारे गए थे।
हाल में सुरक्षा एजेंसियों ने यह खुलासा किया है कि पंजाब में अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से 50 किलोमीटर के दायरे में केरल की संस्था ‘रिलीफ एण्ड चैरिटेबल फाउण्डेशन ऑफ इण्डिया (आरसीएफआइ) ने कश्मीर के बरामूला के दो लोगों द्वारा सन् 2019 में फरीदकोट जिले के फरीदकोट, जैतो और मत्ता अजीत सिंह गिल में तीन मस्जिदों को बनवाया । इस संस्था को विदेश में रह रहे लोगों द्वारा धन भेजा गया था। चौंकाने की बात यह है कि ये मस्जिदें लोगों की जरूरत को देखकर नहीं बनायी गई हैं। उदाहरण के तौर पर पौने सात लाख की आबादी वाले फरीदकोट में मुसलमानों की आबादी कोई दो हजार है, इस जिले में छोटी-बड़ी 20 मस्जिदें हैं। इनमें से ज्यादातर पुरानी होने के कारण बन्द पड़ी हुई हैं, तो कुछ पर लोगों ने कब्जा कर रखा है। रिपोर्ट के अनुसार भारत-पाकिस्तान पर स्थिति पठानकोट, गुरदासपुर, अमृतसर, तरनतारन, फिरोजपुर और फाजिल्का समेत देश के कुछ और हिस्सों में भी मस्जिद निर्माण के लिए 70करोड़ रुपए का अन्तर्राष्ट्रीय कोष उपलब्ध कराया गया है। बाबा फरीद गोसिया मस्जिद की देखरेख करने वाले बरकत अली और टेक चन्द के मुताबिक सन् 2018 में उनके पास बठिंडा के इमाम मौलाना हाजी रुजवान दो-तीन बार आए थे। उन्होंने हमें एक संस्था उन्हें निःशुल्क मस्जिद बनाकर देने की बात कही थी। हैरानी की बात इस्लामिक कट्टरपंथियों की इस साजिश का पता अब आकर चला है, जिन्हें हमारी सुरक्षा व्यवस्था में संेध लगाने के मंसूबे से इन्हें तामीर किया है। वैसे तो देश के सभी राजनीतिक दल अल्पसंख्यकों के थोक वोटों के तलबगार है, इनमें काँग्रेस सबसे आगे है,इसका सुबूत पिछले साल पंजाब मंे काँग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री कैप्टन अमिरन्दर सिंह द्वारा मुसलमानों को खुश करने को ऐन ईद पर भारत-पाकिस्तान की सरहद पर स्थित मुस्लिम बहुल तहसील मलेरकोटला को जिला घोषित करने से स्पष्ट है।
ऐसी स्थिति में देश और दूसरे मुल्कों में बैठे इस्लामिक कट्टरपंथियों के इरादे और उनके हरकतों पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। अगर हमारी सरकार ने ऐसा नहीं किया, तो उसके दुष्परिणाम भी भुगतने होंगे। वैसे जरूरत इस बात की है कि वक्त रहते सरकार को पहले से कहीं ज्यादा इनकी हर छोटी-बड़ी हरकतों पर पैनी नजर रखनी होगी, ताकि उनकी गतिविधियों को रोका जा सके। इसके बगैर देश की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता को अक्षुण्ण रख पाना सम्भव नहीं है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो. नम्बर-9411684054
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