राजनीति

ममता बनर्जी की दुराग्रहपूर्ण सियासत

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा सिलीगुड़ी में आयोजित एक जनसभा में बीरभूम जिले के रामपुरहाट थाने के अन्तर्गत बोगटूई गाँव में सियासी वजहों से आगजनी और हिंसा में 10 लोगों के जिन्दा जलाकर मारने(नरसंहार) के मामले की जाँच कर रही‘केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (सी.बी.आइ.)को विपक्षी राजनीतिक पार्टियों भाजपा, काँग्रेस, माकपा के इशारे पर काम न करने को लेकर जिस तरह उसके खिलाफ आन्दोलन करने की चेतावनी है, उसे किसी भी माने में उचित नहीं माना जा सकता, बल्कि इसे पूर्वाग्रह/ दुराग्रह ही कहा जाएगा। वैसे भी सियासी हिंसा को लेकर ममता बनर्जी का ऐसा रवैया कुछ नया नहीं हैं। अफसोस की बात यह है कि वह स्वयं भी इस सूबे में तीन दशक तक सत्तारूढ़ रहे वाम दलों की सरकार की हिंसा की राजनीति से लड़कर सत्ता में आयी हैं, फिर वह उन्हीं के सियासती रास्ते पर क्यों चल रही हैं? यह प्रश्न अभी तक अनुत्तरित बना हुआ है। इस नरसंहार के बाद भी हमेशा की तरह ममता बनर्जी हिंसा से पीड़ित परिवारों के लोगों से मिलने तीन दिन बाद तब पहुँचीं, जब भाजपा समेत दूसरे दलों नेता उन्हें ढाँढस देने पहले ही पहुँच चुके थे।उनके जाने के बाद ही पुलिस हरकत में आयी,उससे पहले तक निष्क्रिय बनी हुई थी।
लेकिन पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के इस वीभत्स हत्याकाण्ड से लेकर पूर्व में राजनीतिक विरोधियों की हत्याओं पर देशभर के गैर भाजपाई राजनीतिक दलों के नेताओं की खामोशी भी हैरान-परेशान करने वाली है, वैसे इस सूबे में एक माह में 27 सियासी हत्याएँ हुई हैं,इसके बावजूद सभी राजनीतिक हमेशा की तरह शान्त हैं,क्योंकि उनके इन्सानियत से बढ़कर सियासत है। ये राजनीतिक दल ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सत्ता से बेदखल करने को अपना सबसे बड़ा योद्धा मान चुके हैं।इस कारण वे उनके हर तरह के धतकरमों की अनदेखी करते आए हैं।
बंगाल में गत वर्ष मई माह में विधानसभा के चुनाव के बाद सियासी खूनखराबे की वजह से बड़ी संख्या में राजनीतिक विरोधियों और आम लोगों की हत्याओं तथा महिलाओं के साथ बलात्कार तक किये थे। तब कोई पाँच हजार लोग अपनी जान बचाने को घर द्वार छोड़ कर पड़ोसी असम राज्य में शरणार्थी बनने को मजबूर हुए थे,जिनमें कुछ ही वापस लौटे हैं।दुर्भाय की बात यह है कि सत्ता के मद में चूर ममता बनर्जी ने आजतक उन्हें वापस लाने का कोई प्रयास नहीं किया है। ममता बनर्जी की हिंसा की राजनीतिक के चलते भाजपा और दूसरे राजनीतिक दलों के नेता-कार्यकर्ताओं के साथ-साथ भाजपा के कई विधायक अपनी विधायकी तथा पार्टी छोड़ने को विवश हो गए हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की हिंसक वारदातों पर तब थोड़ा ध्यान दिया,जब देशभर में उनकी निन्दा और आलोचना होने लगी, क्योंकि उनके सत्ता सम्हालने के बाद बंगाल की पुलिस ने खूनखराबे को रोकने की कोशिश नहीं की। इसकी वजह हिंसा करने वाले आम अपराधी नहीं, सत्तारूढ़ टीएमसी के नेता और कार्यकर्ता थे। तब भी कोलकाता उच्च न्यायालय को सी.बी.आइ. को जाँच के आदेश देना पड़ा था। उसी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग(एनएसआरसी) को जाँच से भी करायी थी,जिसने अपनी जाँच में विपक्षी दलों के आरोपों का सही पाया। उसने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बंगाल में कानून का राज नहीं, सत्ता में बैठे लोगों के कानून के चलने का आरोप भी लगाया था। लेकिन ममता बनर्जी को मानवाधिकार आयोग की यह रिपोर्ट पसन्द नहीं आयी। वह अब भी पहले की तरह खूनखराबे की राजनीति में मशगूल हैं। इसी वजह से बंगाल में हिंसा की राजनीति जारी है। बंगाल में कानून और व्यवस्था चिन्ताजनक बनी हुई है,जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के सर्वथा विपरीत है। वर्तमान में देश में बंगाल और केरल हिंसा राजनीति के चलते सत्तारूढ़ तृणमूल काँग्रेस तथा वाम दलों से इतर दूसरे राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं विशेष रूप से भाजपा/आर.एस.एस. के कार्यकर्ताओं की आए दिन हत्याएँ होती रहती हैं। बंगाल और केरल में कानून का शासन कायम होने के लिए केन्द्र सरकार और उच्चतम न्यायालय की ओर से विशेष ध्यान दिया जाना जरूरी है।
जहाँ तक बंगाल में टीएमसी के कार्यकर्ताओं की हिंसा तथा आतंक के विरुद्ध जब कभी राज्यपाल जगदीप धनकड़ उनसे आपत्ति/शिकायत की, तब भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उनकी अवहेलना ही नहीं, बल्कि उनका अपमान करने में पीछे नहीं रही है।वह उन्हें भाजपा का एजेण्ट बताते आए हैं। हालाँकि अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस सच्चाई को स्वीकार किया कि इस बीरभूम के नरसंहार के पीछे गहरी साजिश है। इसके पीछे मकसद बीरभूम में ‘बृहद देवचा पचामी कोयला खनन परियोजना‘ को रुकवाना है। उन्होंने इस मामले में पुलिस की गलती भी मंजूर की है, जो घटनास्थल के करीब होने के बाद भी मौके पहुँचने की क्यों जरूरत न समझी? बीरभूम हिंसा के मामले में लापरवाही बरतने के आरोप में राज्य सरकार ने रामपुरहाट के दो पुलिस अधिकारियों ने खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई भी की है। अब सी.बी.आइ. के जाँचकर्ताओं का सवाल यह है कि पुलिस बल ने इतने निकट होने के बावजूद आरोपितों को क्यों नहीं रोका गया?उसने अब पीड़ितों के बयान दर्ज कर लिए हंै और आगे जाँच जारी है।
वैसे एक हकीकत यह भी है कि बीरभूम की वारदात का भी अंजाम भी वही रहा होता, जैसा कि अब तक हिंसा और हत्याकाण्डों में होता आया है, पर इस मामले को कोलकाता हाई कोर्ट ने स्वतंः संज्ञान लेकर सी.बी.आइ.से जाँच कराने का आदेश पारित किया।उसके फैसले का राज्य के लोगों द्वारा स्वागत किया गया है, जिसे ममता बनर्जी को न चाहते हुए मंजूर करने को मजबूर होना पड़ा है।इस मामले में मुख्य आरोपित और टीएमसी नेता अनारूल हुसैन को तब गिरपतार किया गया,जब स्वयं ममता बनर्जी ने ऐसा करने का निर्देश दिया। अब बड़ी संख्या में आरोपी फरार हैं।
अब यहाँ के लोगों को पूरा भरोसा है कि बीरभूम जिले इस नरसंहार के असली मुजरिमों को गिरपतार कर उन्हें कठोर सजा दिलाने में जरूर कामयाब होगी। इससे बंगाल के ममता बनर्जी की पार्टी की सरकार के संरक्षण पाए अपराधियों पर लगाम लगेगी और राज्य जनता को आएदिन के खूनखराबे से छुटकारा मिलेगा। वे सुकून की जिन्दगी भी बसर कर सकेंगे।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

 

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