कार्यक्रम

पत्रकारिता और पत्रकार के जीवन की सच्चाई से साक्षात्कार करता नाटक

ताज महोत्सव’ नाट्य समीक्षा
डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों ‘ताज महोत्सव’ के तत्वावधान में ‘भारतीय जन नाट्य संघ’(इप्टा),आगरा द्वारा स्थानीय ‘सूर सदन’ प्रेक्षागृह में नाट्य पितामह राजेन्द्र रघुवंशी, ललित मोहन थपल्याल द्वारा लिखित नाटक तथा दिलीप रघुवंशी निर्देशित ‘मैं भी कैसा पत्रकार हूँ’’नाटक की प्रस्तुति हुई, जिसे देखकर दर्शकों ने बार-बार करतल ध्वनि से सराहा गया। इस नाटक के माध्यम से पत्रकारिता और पत्रकार की जिन्दगी की सच्चाई से साक्षात्कार कराया गया है कि किस तरह पत्रकार घर-बाहर की तमाम विषम परिस्थितियों से झूझते और तरह-तरह के दबाब को सहते हुए देश-दुनियाभर के छोटे-बड़े समाचार यथा सम्भव सच्चाई से अपने पाठकों-दर्शकों तक पहुँचाते हैं। नाटक के इस सार को संक्षेप में निम्न गीत से भी प्रेषित किया गया है।
‘मैं भी कैसा पत्रकार हूँ।
देख रहा अपनी आँखों से कटते -मरते भेड़ों के ये झुण्ड
नाम फौजें अमरीकी
फिर भी सच्ची खबरें जग में छुपा रहा हूँ।’इस नाटक का कथा सार कुछ इस प्रकार है-
‘‘मैं भी कैसा पत्रकार हूँ।;; सत्तर-अस्सी के दशक का नाटक है जिसमें पत्रकार गोविन्द के जीवन की विषमताओं को रेखांकित किया गया है। देर रात तक समाचार पत्र में काम करना, सुबह घर लौटने की वजह से पति-पत्नी में कलह बढ़ जाना,आर्थिक अभाव, गोविन्द का नित्य नई समस्याओं से सामना होना। समाचार पत्र के कार्यालय में विभिन्न लोग अपने समाचार प्रकाशित कराने आते हैं। नौंक-झौक के साथ हास्य रस से भरपूर नाटक समाज को ये संदेश देता है कि हमें प्रत्येक विषम परिस्थिति में से लड़ना है, निराश नहीं होना है। पत्रकारिता का धर्म निभाते हुए पारिवारिक मूल्यों की स्थापना करनी है।
नाटक में पत्रकार गोविन्द के रूप में असलम खान और उनकी पत्नी कमला के रूप में अपनी भूमिका से न्याय किया है। यमुना की रेतिया में अपने भैंसा की लड़ाई का समाचार छपवाने आए शराबी चैधरी के रूप में मुक्ति किंकर ने अपने संवादों तथा हास्यपूर्ण अभिनय से कई बार तालियाँ बजवायीं, कभी इस चरित्र को स्वयं स्वर्गीय राजेन्द्र रघुवंशी जी निभाया करते थे।
नेता/तिरक्षे के रूप में संजय सिंह ने अपनी भूमिका को अच्छी तरह से निभाया है। उन्होंने गली-मुहल्ले के नेता के चरित्र को जीवन्त किया है। खबरवाला की संक्षिप्त भूमिका को इस नाटक के निर्देशक दिलीप रघुवंशी ने बाखूबी निभाया। हर रिश्ते से अपने व्यावसायिक फायदा उठाने वाले सेठ की भूमिका में राधेश्याम यादव ने प्राण फूँके हैं। अन्य भूमिकाओं में पत्रकार सतीश के रूप में जयकुमार , महिला नेत्री के रूप में ततहीर चैहान, गोरखनाथ के रूप में सूरज सिंह, भैंस वाले व्यक्ति के रूप में सिद्धार्थ रघुवंशी, छात्र नेता के रूप में अनुज गोस्वामी, नेता घुन्ने बाबू ने ब्रजेश राज श्रीवास्तव, सच्चिदानन्द के रूप में कमल गोस्वामी आदि का अभिनय भी सराहनीय रहा।
नाटक को प्रभावशाली बनाने में मंच तैयार करने से लेकर उसके पीछे कार्यरत लोगों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण होती है। इस नाटक में जहाँ मंचा संज्जा का दायित्व आनन्द बंसल तथा दृश्य सज्जा का शकील चैहान ने निभाया, वहीं प्रकाश एवं ध्वनि प्रभाव मिलिन्द नान्देड़कर और पाश्र्व संगीत सिद्धार्थ रघुवंशी ने। इनके अलावा संगीत विमर्श- परमानन्द शर्मा, भगवान स्वरूप ‘योगेन्द्र’, नाट्य सामग्री -संजय सिंह, सूरज सिंह, पात्रों को सजाने संवारने की भूमिका का निर्वहन नीतू दीक्षित ने सम्हाली। कुल मिलाकर अपने शीर्षक के अनुरूप दर्शकों पर अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रहा।

Live News

Advertisments

Advertisements

Advertisments

Our Visitors

0145656
This Month : 4445
This Year : 82949

Follow Me