राजनीति

‘ हिजाब’ की चाहत या फिर कुछ और ?

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार

हाल में हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ द्वारा हिजाब को इस्लाम का हिस्सा न मानते हुए इस पहनने की माँग को करने वाली उडुपी की छह मुस्लिम छात्राओं की याचिकाएँ खरिज करने को जो सर्व सम्मति से निर्णय लिया है, वह ऐसे मसले से सम्बन्धित भारतीय संविधान के प्रावधानों के सर्वथा अनुरूप है। फिर भी इन छात्राओं के साथ-साथ उनके ज्यादातर हममजहबियों को उसमें खोट दिखायी दिया। यही वजह है कि फैसले के आते ही इनमें से एक छात्रा इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका लेकर पहुँच गई। इस फैसले की इस्लामिक कट्टरपन्थी मुल्ला,मौलावी और सियासी पार्टियाँ और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुपती, नेशनल काॅन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला आलोचना कर रहे हैं। यहाँ तक कि पाकिस्तान भी इसे मुसलमानों की आजादी पर हमला और उनके मानवाधिकार का हनन बता रहा है। ये लोग यह कह कर अपने मजहब के लोगों को भरमाने/ भड़काने/उकसाने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार हमारी बेटियों के हिजाब/नकाब,बुर्का पहनने पर बन्दिश लगा रही है,जबकि यह मसला सिर्फ शिक्षण संस्थानों में उनके निर्धारित गणवेश/यूनिफार्म/डेªस पहन कर आने का है। दरअसल, इन छात्राओं द्वारा कर्नाटक के स्कूल/काॅलेजों द्वारा डेस कोड के तहत उनके हिजाब पहनने पर रोक लगाने को उन्हें संविधान में मिली धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताते हुए हिजाब पहने को अपनी मजहबी बुनियादी हक माँग बताते हुए यह याचिका दायर की थी।इस पर पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि इस्लामी आस्था में हिजाब पहनना धार्मिक प्रथा का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और इस तरह का यह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं है। राज्य सरकार द्वारा स्कूल डेªस का निर्धारण संविधान संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत छात्रों के अधिकारों पर तर्कसंगत नियंत्रण है और कर्नाटक सरकार द्वारा जारी किया गया गत 5फरवरी का आदेश अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। हाई कोर्ट ने स्कूल, काॅलेजों समेत शैक्षिणिक संस्थानाओं में हिजाब पहनने पर रोक लगाने के कर्नाटक सरकार के आदेश को सही ठहराया है। कर्नाटक समेत पूरे देश भर में शिक्षण संस्थाओं में अपने छात्र-छात्राओं के गणवेश/यूनीफार्म नियत होता है।प्राचीनकाल से ही गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त करने वाले शिक्षा प्राप्त करने वालों का कुछ न कुछ गणवेश निर्धारित होता था। इस हकीकत से मुस्लिम समुदाय,जिन्होंने हिजाब पहनने को स्कूल में पहनने की माँग पूरी कराने को हाईकोर्ट की शरण ली थी। अब जहाँ इस मसले पर कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर मुस्लिम धर्म ग्रंथों के जानकार एवं केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का कहना है कि इस निर्णय से मुस्लिम महिलाओं को घर की चहारदीवारी में धकेलने का प्रयास नाकाम होगा। युवा मुस्लिम महिलाओं में अपनी अन्य बहनों की तरह ही राष्ट्र निर्माण के साथ अपने परिवारों की देखभाल करने में अहम भूमिका निभाने की क्षमता है। वे इस काम को बखूबी कर सकेगी,वहीं दारुल उलूम,देवबन्द के मोहतिम मुपती अबुल काशिम नौमानी का कहना है कि पर्दा इस्लाम का अहम हिस्सा है। कर्नाटक हाईकोर्ट का निर्णय स्वीकार नहीं है। यह सरासर गलत है। मुस्लिम संगठनों को इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए। इस्लाम में पर्दा फर्ज है और कुरान का हुक्म है। इधर ऐसा ही कुछ मुस्लिम महिला पर्सनल बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर का कहना है कि संविधान का अनुच्छेद 21 में राइट टू च्वाइस की आजादी है,जो लड़कियाँ अपनी मर्जी से हिजाब पहनना चाहती है उन्हें रोकना ठीक नहीं हैं जहाँ तक कर्नाटक का मामला है तो इसमें राजनीति की गई है,जिससे लड़कियों की शिक्षा पर बुरा असल पड़ा है।उधर कुछ ऐसा ही आॅल इण्डिया शिया मुसलमान बोर्ड के अध्यक्ष यासूद अब्बास ने फरमाया है,‘‘ मैं कर्नाटक हाईकोट के फैसले का सम्मान करता हूँ,लेकिन हिजाब हमारी मजहबी पहनावा है।हर मजहब में पर्दे की प्रथा है। केवल हिजाब पर हंगामा करना बहुत ही निराशाजनक है। औरत को इज्जत की नजर से देखने के लिए पर्दे की व्यवस्था है।’’
वैसे हिजाब पहनने के मामले पर संविधान और विधिक स्थिति स्पष्ट करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट पीठ ने कहा कि नियम का उद्देश्य एक सुरक्षित स्थान बनाना है,जहाँ ऐसी विभाजनकारी रेखाओं का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। उसने यह भी कहा कि छात्रों के लिए डेªस कोर्ड का पालन अनिवार्य है। धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर कहा कि अनुच्छेद 25के संरक्षण का सहारा लेने वाले को न केवल धार्मिक प्रथा साबित करनी होती है, बल्कि संवैधानिक मूल्यों के साथ जुड़ाव भी दर्शाना होता है। यदि प्रथा धर्म का अभिन्न हिस्सा साबित नहीं होती,तो मामला संवैधानिक मूल्यों के क्षेत्र में नहीं आता। अब जहाँ तक कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने यूनिफार्म के रंग में ही हिजाब की इजाजत दिये जाने की दलील का सवाल है तो उसने यह कहते हुए ठुकराते हुए कहा कि अगर इस प्रस्ताव का स्वीकार कर लिया जाता है तो स्कूल यूनिफार्म का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। वहाँ छात्राओं की दो श्रेणियाँ हो जाएगी। एक हिजाब के साथ यह यूनिफार्म पहनने वाली और दूसरी बगैर हिजाब के यूनिफार्म पहनने वाली। इससे यूनिफार्म निर्धारण का उद्देश्य निष्फल होगा।
कर्नाटक हाईकोर्ट के उक्त निर्णय आने कथित इस्लामिक विद्वान/मुल्ला-मौलवी जो ज्ञान बिखेर रहे थे,यह सभी पहले संवैधानिक अधिकारों की दुहाई देते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के निर्णय को मानने की बात करते थे,पर जब उसने फैसला दे दिया,तो उसमें कई तरह के खोट/कमियाँ निकालते-निकालते उसकी अवमानना पर उतर आए। इससे इन सभी का असल मकसद का पता लगाना मुश्किल नहीं। इन्हें हिजाब नहीं, इसकी आड़ में इस मुल्क में मुसलमानों को अपनी अलग पहचान जतानी,जिसकी बुनियादी पर ही तो उन्होंने देश का बँटवारा कराके पाकिस्तान हासिल किया था। अब ये संविधान को धता बता कर हर हाल में हिजाब/नकाब,बुर्का पहनाना चाहते हैं।
अब जहाँ तक कर्नाटक में हिजाब विवाद का प्रश्न है तो हिजाब विवाद की सच्चाई यह है कि इस आन्दोलन के पीछे संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले ‘कैम्पस फ्रण्ट आॅफ इण्डिया’ का हाथ बताया जा रहा है, जो ‘पापुलर फ्रण्ट आॅफ इण्डिया’(पीएफआई) की छात्र शाखा है। यह प्रतिबन्धित कुख्यात संगठन ‘इण्डिय मुस्लिम स्टूडेण्ट मूवमेण्ट आॅफ इण्डिया’ (सिमी)का बदला हुआ नाम है। सिमी ने देश में कई जगह बम विस्फोट और दंगे कराये थे। उसने इन छात्राओं को हिजाब पहनने के लिए भड़काया है,ताकि ऐसा कर हिन्दू-मुसलमानों के बीच नफरत को बढ़ाया जाए। यहाँ ‘शिक्षा अधिनियम’-1983 की धारा 133(2)के तहत शिक्षण संस्थानों में डेªस कोड का प्रावधान है कि उनमें शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र/छात्राओं को उस शिक्षण संस्थान द्वारा निर्धारित पोशाक ही पहनकर आना अनिवार्य है। वर्तमान विवाद की शुरुआत इस राज्य के उडुपी जिले के मणिपाल स्थित ‘महात्मा गाँधी मेमोरियल काॅलेज’ से दिसम्बर माह से हुई, जब छह छात्राओं ने हिजाब पहन कर कक्षा में प्रवेश करने की शुरुआत की, जिस पर काॅलेज प्रशासन ने उन्हें रोका। धीरे-धीरे उनकी देखा-देखी दूसरी मुस्लिम छात्राओं ने भी हिजाब पहनकर ही काॅलेज आने की जिद की,तो हिन्दू छात्र-छात्राओं ने इसके विरोध में भगवा पटका या शाॅल ओढ़ कर आना शुरू कर दिया। इसी 8फरवरी को मुस्कान नामक मुस्लिम छात्रा जब हिजाब पहन कर काॅलेज में आयी, तब वहाँ भगवा पटका पहने और जयश्रीराम के नारे लगाते हुए 20-25 हिन्दू छात्रों ने उसे रोकने का प्रयास किया, तब मुस्कान ने बदले में ‘अल्लाह हु अकबर’ नारे लगाते हुए कक्षा में चली गई।
उडुपी में काॅलेज की मुस्लिम छात्राएँ भी दूसरी छात्राओं यूनिफार्मकी तरह ही पहन कर आती थीं,पर ‘कैम्पस फ्रण्ट आॅफ इण्डिया’ के उकसाने/भड़काने पर हिजाब पहन करने की जिद करने लगीं। फिर इनके देखते -देखते पूरे कर्नाटक ही नहीं,देश के कई राज्यांे में छात्राएँ हिजाब पहनकर आने लगी। विवाद राष्ट्रीय स्तर पर गरमा गया,वह भी तब जब देश के पाँच राज्यों में चुनाव प्रचार चल रहा था।अफसोस की बात यह है कि इस मसले पर वे महिलाएँ भी खामोश हैं,जो तीन तलाक के मुद्दे पर मुल्ला-मौलवियों और कथित मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के खिलाफ मुखर थीं। फिर यह विवाद मुस्लिम छात्राओं को हिजाब,नकाब,बुर्का आम जीवन पहनने से नहीं , सिर्फ शैक्षणिक संस्थानों में गणवेश पहनकर आने को पाबन्द करता है। इसके बाद भी ये सभी देश के आम मुसलमानों को गुमराह करने में लगे हैं।यह साजिश नहीं,तो क्या है?
अब आप ही तय करें कि कर्नाटक हाईकोर्ट के निर्णय में कहाँ और कैसी चूक/त्रुटि रह गई है,जिससे कर्नाटक की मुस्लिम छात्राएँ समझना नहीं चाहती या फिर उससे इस्लामिक संगठन ‘पीएफआई’ का ‘कैम्पस फ्रण्ट आॅफ इण्डिया’ समझने देना नहीं चाहता है। यही कारण है कि छह मुस्लिम छात्राएँ अपनी पढ़ाई छोड़ कर मजहब बचाने की फिक्र में बगैर हिजाब पहनने परीक्षाएँ देने से इन्कार कर रही हैं।हकीकत यही है कि हिजाब के जरिए जिहाद की जंग में पीएफआई ही है।
सम्पर्क- डाॅ. बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर, आगरा- 282003 मो.नम्बर-9411684054

 

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