राजनीति

ऐसा क्या गुनाह कर दिया जनरल रावत ने ?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

हाल में छात्रों के एक कार्यक्रम में थलसेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत का यह कथन कि जिस तरह से शहरों में लोगों को हिस्सा के लिए भड़काया जा रहा है, वह नेतृत्व नहीं है। लोगों को सही दिशा में ले जाने वाले को ही नेता कहा जाएगा, सर्वथा उचित, पूर्णतः सत्य और सामयिक है जिसमें उन्होंने किसी राजनीतिक दल, व्यक्ति विशेष या घटना का उल्लेख नहीं किया है, इसके लिए वे साधुवाद के पात्र है। यह उन्होंने न अनजाने में कहा और न ही देशहित के आगे किसी तरह की कथित मर्यादा की परवाह है। इसके पीछे उनका कोई स्वार्थपूर्ति भी नहीं है। इससे पहले भी ये समय-समय पर राष्ट्र की सुरक्षा और उसके हित में निर्भीकता से ऐसी ही बेबाक टिप्पणियाँ करते आए हैं। फिर भी उनके इस सीधे-सच्चे बयान पर जिस तरह काँग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह तथा पूर्व सांसद संदीप दीक्षित, ऑल इण्डिया मजलिस-ए- इत्तेहाद मुसलमीन (एएमआइएम) असदुद्दीन ओवैसी, माकपा पोलित ब्यूरो ने अपनी-अपनी तरह से जैसी आपत्तियाँ जतायी हैं, उनसे इन सभी के चेहरे खुद व खुद बेनकाब हो गए हैं,जो भारतीय संविधान में स्वतंत्रता, समानता, पंथनिरपेक्षता, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देते हुए सत्ता के लिए इसके हर प्रावधान का सरासरा उल्लंघन करते आए राष्ट्रहित के विरुद्ध वह सारे कृत्य रहे हैं,जो राष्ट्रद्रोह सरीखे या उसी श्रेणी में आते हैं। अब अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति करते हुए पहले ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’(सीएए)और प्रस्तावित ‘राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर’(एनआरसी)को लेकर मुसलमानों को गुमराह और भड़का कर देशभर में विरोध की आड़ में पत्थरबाजी, अराजकता, आगजनी, हिंसा फैला चुके हैं और अब ‘राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर’(एनपीआर)पर भी उन्हें भरमाने में लगे हैं। अल्पसंख्यकों की वोट बैंक के लालच में ज्यादातर सियासी पार्टियाँ इस कदर अन्धी हो गई हो गई है जो पत्थरबाजों, आगजनी, अराजकता, हिंसा फैलाने वालों की निन्दा करने बजाय पुलिसकर्मियों की भर्त्सना करने में शर्म-संकोच महसूस नहीं करती है। काँग्रेसी नेता राशिद अल्बी दंगाइयों को ‘शहीद‘ बता रहे हैं,जो दंगा करते नहीं,संविधान की रक्षा करते हुए मारे गए हैं। उनकी पार्टी की महासचिव प्रियांका वाड्रा भी हाल के दंगों में मरों के यहाँ जाकर शोक जताते हुए उन्हें संविधान का रक्षक बता रही हैं।ऐसी मानसिकता वाले भला जनरल बिपिन रावत के बयान से कैसे सहमत हो सकते हैं? इसी मुद्दे पर पूर्व नौसेना प्रमुख एल रामदास ने जो बयान दिया है,वह उन्होंने बगैर पूरे सन्दर्भ को समझे दिया गया है। यह सच है कि सेनाध्यक्ष हो या कोई सैनिक हो,उसे राजनीति विवाद से बचना चाहिए,क्योंकि सेना को राजनीतिक बल नहीं है। यहाँ प्रश्न यह है क्या जनरल रावत ने उक्त कथन किसी राजनीतिक फायदे के लिए दिया है? फिर छात्रों की लीडर समिट में उक्त वक्तव्य सिवाय क्या बोलते? यह भी ये लोग बतायें?
वस्तुतः राजनीतिक फायदों के लिए देश को हिंसा की आग झोंकने वाले ये नेता थलसेनाध्यक्ष रावत द्वारा छात्रों को हकीकत बयां करने से बौखला गए,क्यों कि वामपंथी, काँग्रेसी, इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन कॉलेज,विश्वविद्यालय के छात्रों को सरकार के खिलाफ भड़का कर उन्हें हिंसक प्रदर्शनों के माध्यम से हर तरह से बदनाम करने में लगें। इसी कारण उन्हें थलसेनाध्यक्ष रावत की छात्रों को सही नेतृत्व पहचानने की नसीहत रास नहीं आयी और ये उन्हें पद की मर्यादा का पाठ पढ़ाने लग गए। लेकिन देश के लिए इन राजनीतिक दलों और उनके नेताओं की वास्तविकता से भलीभाँति परिचित हैं। अब जहाँ अपनी अनर्गल तथा अल्पसंख्यकों को खुश करने,उनकी हिंसक मजहबी हरकतों पर पर्दा डालने तथा हिन्दुओं और हिन्दुत्व को बदनाम करने का ‘भगवा आतंक’ फर्जी एवं विवादित बयानों के लिए जाने-जाने वाले काँग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने जनरल रावत को सही तो माना है,पर साम्प्रदायिक आधार पर नरसंहार की बात कहकर अप्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह पर निशाना साधने के फेर में खुद अपने कथन की सार्थकता गंवा दी,वहीं अपनी साम्प्रदायिकता के जहर से बुझी जुबान से मजहबी नफरत फैलाने वाले एएमआइएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने संविधान को नाम पर मुखालफत हक की तरफदारी करते-करते प्रधानमंत्री को भी अपना जैसा साबित तो किया,पर विरोध प्रदर्शन पर नियंत्रण की पुलिस की ड्यूटी बताते हुए अपरोक्ष रूप से जनरल रावत पर नागरिक मामलों में दखल देने की तोहमत लगाने से भी नहीं चूके। इसी मुद्दे पर काँग्रेस के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित का यह कहना कि सेना और पुलिस में आधे भ्रष्ट हैं। ये अपनी काली कारतूत छिपाने के लिए ‘राष्ट्रवाद‘ की बात करने लगते हैं। ये पहले भी बिपिन रावत को ‘सड़क का गुण्डा‘ बता चुके हैं,जब वे जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान और उसके भेजे आतंकवादियों को ललकार रहे थे। स्पष्ट है कि उन्हें और उनकी जैसी मानसिकता वालों को जनरल रावत से इतनी चिढ़ क्यों हैं? देश के लोग जिन्हें अपने ‘मुल्क का दुश्मन’ मानते हैं,उनसे संदीप दीक्षित और उनकी टोली के अल्पसंख्यक वोटों की तलबगार बेशर्मी से हमदर्दी जातते हैं। संदीप दीक्षित जैसे सत्ता के दलालों को एक सैनिक का अपने देश की रक्षा को लेकर असल दर्द का क्या पता ?जो भीषण सर्दी/गर्मी तथा अनेकानेक विषम परिस्थितियों में अपने घर-परिवार से हजारों कोस दूर रहकर रातदिन जाग-जाग कर सीमा की सुरक्षा करते-करते प्राण देते आए हैं।
कमोबेश रूप में ऐसा ही आशय माकपा पोलित ब्यूरो का है। उसने अपनी भड़ास निकालते हुए जनरल बिपिन रावत के बयान को न केवल असंवैधानिक बताया,बल्कि मोदी सरकार के शासन व्यवस्था पर ही सवाल खड़े कर दिया। यहाँ तक कि सेना के शीर्ष पर बैठे जनरल रावत के साथ सेना के पाकिस्तानक के रास्ते पर चलने का एक आरोप लगा दिया। दरअसल, वामपंथी, काँग्रेसी और दूसरे भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों के नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा का विरोध करते-करते हुए ये सभी देश और सेना,पुलिस की मुखालफत करने पर उतर आए हैं।
वैसे तो काँग्रेस ,वामपंथी तथा उन जैसे तथाकथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के नेताओं का संविधान, लोकतंत्र, समानता, स्वतंत्रता, मानवाधिकारों को लेकर शुरू से दोहरा रवैया रहा है। ये लोग अक्सर संवैधानिक अधिकारों की दुहाई देते हुए अनुसूचित /अनुसूचित जनजातियों के लोगों से सहानुभूति जताते नहीं थकते, पर जम्मू-कश्मीर में इन्हीं जातियों के हिन्दुओं के समर्थन में इन्होंने कभी अपनी जुबान नहीं खोली,जिन्हें अनुच्छेद 35ए के कारण नागरिकता प्राप्त न होने के कारण सात दशक से अधिक समय तक हर तरह का अन्याय सहना पड़ा। इसकी वजह उन्हें अल्पसंख्यक वोट खिसकने का डर होना था। इसी कारण इन पार्टियों ने जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित अनुच्छेद 370 तथा 35ए हटाने का विरोध किया।अब जब केन्द्र सरकार ने ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019के माध्यम से मुस्लिम बहुल अफगानिस्तान,पाकिस्तान,बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न/प्रताड़ना के शिकार हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाइयों को नागरिकता देने का प्रावधान किया है तो उसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं,जब कि इन हिन्दू,सिख,ईसाई शरणार्थियों में से ज्यादातर अनुसूचित जाति के हैं।लेकिन अल्पसंख्यक वोटों के लालच के आगे इनसे कोई हमदर्दी नहीं है।यही हालत दलितों की एकमात्र मसीहा बताने वाली बसपा नेता मायावती की है। ऐसी कथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों को कभी कश्मीर पण्डितों को पंथनिरपेक्षता, समानता,उनके मानवाधिकार दिखायी नहीं दिये,जिन्हें नब्बे के दशक में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने बन्दूक के जोर पर उन्हें न केवल अपना घर-बार छोड़ने पर मजबूर किया,बल्कि उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार और हत्याएँ भी की थीं। काँग्रेस, वामपंथी, दूसरी गैर भाजपा राजनीतिक पार्टियों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ,केन्द्रीय गृहमत्री अमित शाह से नफरत और उनकी मुखालफत की असल वजह जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे से सम्बन्धित अनुच्छेद 370 तथा 35ए हटाना, तत्काल तीन तलाक अधिनियम और अब नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित करने के साथ इनके कार्यकाल में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर/बाबरी मस्जिद विवाद का शान्तिपूर्ण तरीके से निर्णय हो जाना है,जिनके कारण उनकी और उनके सहयोगी इस्लामिक कट्टरपंथियों की न केवल राजनीतिक दुकानें चल रही थीं,बल्कि इनमें से कुछ लोग जम्मू-कश्मीर को ही नही,पूरे भारत को ‘दारुल इस्लाम’बनाने का जो ख्वाब देख रहे थे,वह अब उन्हें टूटता नजर आ रहा है। भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर दहशतगर्दों के अड्डों को तहस-नहस करने का हैरतअंगेज कारनामा जनरल बिपिन रावत के रहते हुआ है। इस कारण ये लोग बौखलाए हुए हैं। वैसे भी इन्हें ‘राष्ट्रवाद’और ‘राष्ट्रप्रेम’से चिढ़ है,ये तो ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’के नारे लगाने वाले अफजल प्रेमी गिरोह से सहानुभूति रखने वाले हैं। ऐसे में इन लोगों की थलसेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत के प्रति चिढ़ और नफरत स्वाभाविक है,जो अक्सर जम्मू-कश्मीर में ही नहीं, देश की दूसरी सरहदों पर जाकर न केवल अपने सैनिकों की हौसला अफजाई करते आए है,बल्कि मुल्क के दुश्मनों को चुनौती देकर ललकारते भी आए हैं।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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