लेख साहित्य

गणतंत्र दिवस कविता

हर शाख़ पर कुसुम रस छाया है,
स्वतंत्रता की दुल्हन पर संविधान का श्रंगार आया है।

शीर्ष हिमालय पर तिरंगा गर्व से लहराया है,
घाटी – घाटी नें राष्ट्रगान सुनाया है।

चोटी – चोटी नभ को चूम रही है,
समन्दर की हर लहर नें राष्ट्रगीत गुनगुनाया है।

मन – मयूर सा ” साजिद ” का,
सावन में जैसे हर्षित हो रहा है।
प्रत्येक राज्य का आज राज्याभिषेक हो रहा है,
राजपथ पर पर्व मनाने सम्पूर्ण भारत सिमट आया है।

संविधान नें राष्ट्र को सम्पूर्ण राष्ट्र बनाया है।
हो मुबारक कोटी कोटी,
गणतंत्र दिवस – राष्ट्र पर्व बन कर आया है।
गणतंत्र दिवस – राष्ट्र पर्व बन कर आया है।।

प्रस्तुत कर्ता:-
साजिद अहमद ख़ान
स्वतंत्र लेखक, कवि एवं प्रेरणा शिक्षक।

दूरभाष संख्या:- +918881033310

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