राजनीति

मौर्य ने तब विरोध क्यों नहीं जताया ?

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में कैबिनेट श्रम, सेवायोजन एवं समन्वय मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा अपने मंत्री पद और भाजपा से इस्तीफ देते हुए सरकार पर दलित, पिछड़े, गरीब, शोषित, युवा, महिला, व्यापारी वर्ग, सीमान्त किसानों की उपेक्षा करने तथा आरक्षण की धज्जियाँ उड़ाने के, जो आरोप लगाये हैं, उन पर शायद कोई विवेकशील व्यक्ति विश्वास करेगा और उनके आरोपों के पीछे के निहितार्थ न समझेंगा। वैसे भी यदि ऐसा अनर्थ हो रहा था, तो स्वामी प्रसाद मौर्य,उनके साथ ही वन्य और पर्यावरण मंत्री दारा सिंह चैहान,आयुष मंत्री डाॅ.धर्म सिंह सैनी,तथा दूसरे विधायकों को उसी वक्त विरोध करना चाहिए था,तो उनकी मुखालफत का असर भी होता, लेकिन तब चुप्पी साधे पूरे पाँच साल तक सत्ता का भरपूर आनन्द लेते रहे। जब विधान सभा के चुनाव की घोषणा हुई, वैसे ही अचानक उन्हें सरकार की नीतियों और उसके कामोें में तमाम खामियाँ नजर आने लगीं। साथ ही इन पिछड़े वर्ग के सभी मंत्री पद,विधायकी,पार्टी को छोड़ने का ख्याल भी आ गया। पाँच साल तक इन सभी की आखिर ऐसी कौन-सी मजबूरी थी, जो सरकार को अपनी जाति-वर्ग के लोगों के साथ अन्याय, अत्याचार, शोषण, भेदभावपूर्ण नीतियाँ, आरक्षण की धज्जियाँ उड़ाते हुए क्यों देखते रहे?
अगर भाजपा वास्तव में दलित ,पिछड़ा और ओबीसी विरोधी है, तो फिर वर्तमान में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, राज्यपाल आदि जैसे सर्वोच्च और प्रमुख पदों पर कैसे पहुँच गए? पिछड़ो, दलितों, ओबीसी जातियों का स्वयं को नेता बताने वाले अब यह बतायेंगे कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने दो करोड़ से अधिक शौचालय और प्रधानमंत्री तथा मुख्यमंत्री आवास योजना के तह 45 लाख आवास बनवाकर दिये हैं, क्या वे सभी सवर्णों को दे दिये हैं? उज्ज्वला योजना के तहत रसोई गैस, आयुष्मान योजना के अन्तर्गत 5 लाख रुपए की योजना, किसान सम्मान निधि आदि योजनाओं को सबसे ज्यादा कौन-सी जातियों के लोग लाभान्वित हुए हैं। सौभाग्य योजना के तहत बड़ी संख्या में गाँवों का विद्युतीकरण हुआ, उसका लाभ क्या सिर्फ अगड़ों को हुआ? असंगठित क्षेत्र कार्यरत श्रमिकों का पंजीकरण उन्हें आर्थिक सहायता दिया जाना। रेहड़ी/पटरी वालों को सुविधा देना और क्या जाति देखकर किया गया है? इसी सरकार में बड़ी संख्या में मेडिकल काॅलेजों की स्थापना तथा, पूर्वांचल एक्सप्रेस, बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस गंगा एक्सप्रेस आदि का निर्माण से क्या सिर्फ अगड़ों को फायदा होगा? योगी सरकार के दौरान सरकारी नौकरियों में किस भर्ती में आरक्षण की अनदेखी की गई? अगर भूल/चूक हुई, तो क्या उसका बेजां फायदा पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तरह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सिर्फ अपनी बिरादरी या क्षेत्र के अभ्यर्थियों को दिलाया?
क्या सपा/बसपा के बाहुबली भूमफिया सांसद/विधायक अतीक अहमद,मुख्तार अंसारी आदि की अवैध सम्पत्तियों पर बुलडोजर चलाने से केवल अगड़ों को लाभ मिला है? उनकी हथियाई सरकारी जमीन पर अब क्या अगड़ों के आवास बनेंगे? सपा के बड़े नेता आजम खाँ द्वारा जब अपनी यूनिवर्सिटी के लिए अनुसूचित जाति, मुसलमानों, पिछड़ों की जमीनों पर गैर कानूनी कब्जा किया गया था, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें ऐसा करने से क्यों नहीं रोका?
कोराना महामारी के दोनों दौरे के समय जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) के स्वयंसेवक और भाजपा के कार्यकर्ता जहाँ बगैर भाव के आमजन को भोजन, औषधि आदि की व्यवस्था में जुटे थे, तब अपने को पिछड़ों की सबसे हिमायती पार्टी बताने वाली समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके पार्टी के दूसरे नेता और दलितों के एक मात्र मसीहा/ठेकेदार बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती तथा उनके दूसरे नेता भी कहाँ थे? वैसे चुनावी मौसम में अब रामपुर के सपा के एम.एल.सी.घनश्याम लोधी का भी यह कहते हुए इस्तीफा देना भी चैंकाने वाला है कि समाजवादी पार्टी पिछड़ों के उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है। क्या उन्हें सपा में सम्मिलित में होते समय पता नहीं था कि सपा का कैसा चरित्र है? ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य क्या जवाब देंगे? वैसे बसपा और सपा के सत्तारूढ़ रहते दलित,पिछड़ों का कितना और कैसा विकास/कल्याण/ कितनों को सरकारी नौकरियाँ मिली थी,ये बतायेंगे? अगर किसी जाति विशेष के नेता के सत्ता शीर्ष रहने से उस वर्ग,जाति की गरीब और दूसरी समस्याओं का हल हो जाता,तो अब तक हो जाना चाहिए था। यथा अनुसूचित जाति की मायावती के चार बार मुख्यमंत्री रहने से इस वर्ग का कल्याण हो जाना चाहिए था। फिर पिछड़े वर्ग के बहुत बड़े नेता कल्याण सिंह भी भाजपा के मुख्यमंत्री रहे चुके हैं,अब पिछड़े वर्ग के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले सात साल से सत्ता में हैं, फिर भी पिछड़े -पिछड़े क्यों हैं? योगी आदित्य नाथ के मुख्यमंत्री रहते कितने सवर्णों का उद्धार हो गया?
कोरोना काल में उ.प्र.सरकार द्वारा बड़ी संख्या में लोगों को निःशुल्क राशन उपलब्ध कराया जा रहा है, जिनमें ज्यादा किस बिरादरी के हैं?
अब भाजपा छोड़ने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चैहान और दूसरे विधायक दलितों की सबसे बड़ी हितैषी पार्टी बसपा में रह चुके हैं, उसमें ये सभी दलितों, पिछड़ों और अपना कितना भला कर पाये थे, यह भी बतायें? स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा सरकार में मुख्यमंत्री मायावती सरकार में दूसरे महत्त्वपूर्ण पद रहते हुए कितना अपना और अपने परिवार का और कितना अपनी जाति का कल्याण कर पाने में कामयाब रहे। फिर बसपा तो दलितों की सबसे बड़ी पार्टी थी और उसमें वह दूसरे स्थान पर थे। फिर भी उससे उन्होंने क्यों इस्तीफा दिया। क्या मायावती दलित, पिछड़ों, ओबीसी विरोधी थीं? फिर बसपा को छोड़कर ये सभी सवर्णों/अगड़ों/हिन्दुत्ववादी, साम्प्रदायिक पार्टी में न केवल शामिल हुए ,बल्कि पूरे पाँच साल मंत्री/विधायक बने रहना क्यों मंजूर किया? अब भाजपा को छोड़कर उस समाजवादी पार्टी का दामन थमकर धन्य क्यों समझ रहे हैं, जो एक जाति विशेष और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की सियासत करने के लिए जानी जाती है, जिसके बारे में बसपा में रहते हुए ये सभी यह नारा लगाते हुए नहीं थकते,‘‘चढ़ गुण्डों की छाती पर, मुहर लगाओ हाथी पर।’’ भाजपा को छोडने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चैहान, डाॅ.धर्म सिंह सैनी और उनके साथी बसपा की जाति-विद्वेष की सियासत करने की विरासत रही है, जो दलित, पिछड़ी, ओबीसी जाति के कल्याण कर सत्ता के जरिए अपना और अपने बेटे, बेटियों, भाइयो, परिजनों को घर भरते आए हैं। इनमें से कुछ ने न केवल स्वयं जिन्दगीभर सत्ता भोगने के साथ-साथ अपने बेटे-बेटियों और भाई-भतीजों सत्ता भोगते आए हैं, इनके पास अकूत सम्पत्ति भी है। वे ही अपनी बिरादरी के साथ भेदभाव का राग अलापते आए हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य लोकदल से अपनी सियासत की शुरुआत करते हुए जनतादल, बसपा,भाजपा अब सपा में सम्मिलित हुए हैं। बसपा में रहते हुए वह खुद विधायक/मंत्री रहते हुए दो बार अपनी बेटी डाॅ. संघमित्रा को लोकसभा का तथा बेटे उत्कृष्ट मौर्य का विधानसभा चुनवा लड़वाया, जिनमें विपुल धन भी खर्च किया ,लेकिन ये उन्हें चुनावी जीत दिलाने में नाकाम रहे। फिर 2017 में भाजपा सम्मिलित होकर स्वयं ने पेडरौना और बेटे उत्कृष्ट मौर्य ने ऊँचाहार से विधानसभा चुनाव लड़ा। उसमें खुद तो जीत गए, पर इनका बेटा सपा के उम्मीदवार से फिर हार गया।इसके बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने 2019 ने बेटी संघमित्रा को बदायूँ से भाजपा की प्रत्याशी के रूप में लोकसभा का चुनाव लड़वाया। इस बार वह जीत गईं। इसके बाद भी स्वामी प्रसाद मौर्य फिर अपने बेटे उत्कृष्ट मौर्य के लिए विधानसभा के लिए टिकट माँग रहे थे, पर भाजपा ने इन्कार दिया। इससे रूष्ट होकर उन्होंने भाजपा को बदनाम करते हुए इस्तीफा दे दिया। अब जहाँ तक स्वामी प्रसाद मौर्य के श्रममंत्री के रूप में कार्यकुशलता का प्रश्न है, तो उनके श्रममंत्री रहते राज्यभर के श्रम न्यायालयों में शायद ही किसी श्रमिक को घूस दिये बगैर न्याय मिला हो,क्यों कि इन न्यायालयों में मोटी रकम वसूल कर नियुक्तियाँ की गईं। उनकी शिकायत किये जाने पर भ्रष्ट न्यायाधीशों के विरुद्ध सुनवायी नहीं हुई।
अब उन्हें दम्भ है कि वह जिस पार्टी में होते हैं, वही सत्ता में आती है। इस बार भाजपा दहाई नहीं छू पायेगी। फिर उन्होंने भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को आरक्षण को निगलने वाले साँप और नाग तथा स्वयं को नेवला बताते हुए इन्हें का संकल्प भी लिया है। स्वामी प्रसाद मौर्य और उनसे जातिवादी नेताओं का कहना है कि पिछड़ों, दलितों की आबादी 85 प्रतिशत है फिर भी अगड़े सत्ता में हैं, बाकी 15 फीसद में भी बँटवारा है। ये स्वार्थी जातिवादी नेता सत्ता में रहते हुए कभी दलित/पिछड़ों की बालिकाओं के साथ छेड़छाड़ से बलात्कार और हत्या तक मामलों में कभी अपना मुँह नहीं खोला, ऐसे में उन जैसों से सहायता की उम्मीद करना ही फिजूल है। वैसे हकीकत यह है कि अगर दलित ,पिछड़ों और ओबीसी जातियों को उनके कल्याण के नाम सबसे ज्यादा धोखा दिया, तो उनके नेताओं ने। ऐसे लोगों के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सही कहा कि भ्रष्टाचार जिनके जीन का हिस्सा हो,वह सामाजिक न्याय की लड़ाई नहीं लड़ सकते। प्रदेश के लोग स्वामी प्रसाद मौर्य,दारा सिंह चैहान,डाॅ.धर्मसिंह सैनी जैसे मंत्रियों और दूसरे विधायकों जैसे मौसमी विज्ञानी/अवसरवादी नेताओं की असलियत अच्छी तरह जानते हैं। अब भाजपा को भी इन आयातित नेताओं की बेजां और ओछी हरकतों से सबक लेते हुए तात्कालिक चुनावी सफलता के लिए अपनी पार्टी के निष्ठावान, कर्मठ, सिद्धान्तवादी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर उनके स्थान पर दूसरी पार्टियों से आए ऐसे अवसरवादी नेताओं को अपना प्रत्याशी बनाने से परहेज करना चाहिए। ये जातिवादी/अवसरवादी नेता किसी के सगे नहीं होते, इनका एकमात्र उद्देश्य अपनी जाति के लोग के बीच जाति विद्वेष फैलाकर उनका एक मुश्त वोट हासिल कर चुनाव जीतकर धन कमाना है। आशा की जानी चाहिए कि प्रदेश की जनता 18वीं विधानसभा के चुनाव जातिवाद से ऊपर उठकर अच्छे-सच्चे जनसेवकों का विवेक सम्मत तरीके से चयन करेगी,जो सभी के हित और कल्याण के लिए कार्य करें।
सम्पर्क- डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर, आगरा- 282003 मो.नम्बर-9411684054

 

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