डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा रूस को यह चेतावनी देना कि अगर उसने यूक्रेन हमला किया, तो अमेरिका और उसके सहयोगी उसके खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करेंगे। इसके प्रत्युत्तर में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का कहना है कि यह संकट अमेरिका के साथ उसके सम्बन्धों को पूरी तरह खत्म कर सकता है। इन दोनों के बयानों स्पष्ट है कि इनमें से कोई पक्ष भी अभी सुलह और समझौते के लिए तैयार नहीं हैं। यह देखते हुए रूस, यूक्रेन, अमेरिका और उसके नाटो सन्धि से सम्बन्धित मुल्कों में युद्ध छिड़ने की आशंका को लेकर तनाव व्याप्त है। यद्यपि अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी तनाव कम करने के लिए कूटनीतिक बैठकों का आयोजन कर रहे हैं,तथापि इनके कोई सार्थक परिणाम नहीं आ रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह अमेरिका और रूस का जानबूझकर यूक्रेन विवाद के मूल कारण की अनदेखी करना और अपनी- अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए शक्ति प्रदर्शन करना दिखायी दे रहा है।
वैसे अमेरिका और रूस के राष्ट्रपतियों के ऐसे ही बयान पहले भी दे चुके हैं। एक ओर रूस अपने इलाके में अमेरिका और नाटो देशों के असर को बढ़ने देना नहीं चाहते,तो दूसरी ओर अमेरिका और उसके सहयोगी देश भी रूस के क्षेत्र में अपनी घुसपैठ बढ़ाने का मौका खोना नहीं चाहते। इन दोनों महाशक्तियों के बीच यूक्रेन की दुर्गति हो रही है।सन् 1991 तक सोवियत संघ से अलग हुआ यूक्रेन उससे से युद्ध करने को विवश है,क्योंकि रूस न केवल उसके एक बड़े इलाके पर कब्जा किये हुए,बल्कि उसकी सीमा पर अपना सैन्य जमावाड़ा और युद्ध अभ्यास कर उसे भयभीत करने की कोशिश कर रहा है। अपने प्रति रूस के अनुचित रवैये को देखते हुए अपनी सुरक्षा के लिए उसने ‘उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन(नाटो)से जुड़ना जरूरी समझा,पर रूस को यह मंजूर नहीं है।
रूस और यूक्रेन के मध्य विवाद की शुरुआत सन् 2014 में तब हुई जब यूक्रेन की जनता यूरोपीय संघ(ई.यू.)के साथ गहरे आर्थिक सम्बन्धों पर जोर दे रही थी।लेकिन जनभावना के विपरीत यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने इस दिशा में उठाए गए कदम को रद्द कर दिया। उनके इस निर्णय का बहुत अधिक विरोध हुआ। उसके बाद वह देश को छोड़कर भाग गए। इसी दौरान मार्च,सन् 2014को रूस ने सैन्य कार्रवाई कर यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। उसके बाद रूस ने क्रीमिया पर अपने कब्जे को वैधता दिलाने को एक विवादित जनमत संग्रह कराया। उसके माध्यम से रूस ने यह दिखाने की कोशिश कि क्रीमिया पर उसके कब्जे को यहाँ की जनता सही मानती है और उसकी कार्रवाई का समर्थन करती है। उस समय रूस की इस मनमानी को रोकने के लिए यूक्रेन को अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों से उसके खिलाफ कदम उठाने की गुहार लगाने को मजबूर होना पड़ा था। उसका यह कदम रूस के लिए बेहद नागवार गुजरा था।
अब यूक्रेन ने दावा किया है कि रूस के 90 हजार से अधिक सैनिक सीमा पर जुटे हैं और उसके साथ बख्तरबन्द गाड़ियाँ और इलैक्ट्राॅनिक युद्ध प्रणालियाँ भी लगी हुई हैं। इसे लेकर यूक्रेन और नाटो गठबन्धन चिन्तित है कि कहीं रूस किसी तरह के आक्रमण की कोई योजना तो नहीं बना रहा है। उधर रूस का कहना है कि यूक्रेन ने एक लाख 20 हजार सैनिक सीमा पर तैनात कर रखे हंै। वह पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्पित विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्र को दोबारा हासिल करने में लगा हुआ है। यूक्रेन ने इस आरोप को गलत ठहराया है। पूर्व सोवियत रूस से दो अलग हुए भाई रूस और यूक्रेन अपनी सीमाओं पर सेनाओं की बड़े पैमाने पर तैनाती को लेकर आमने-सामने हैं। नाटो सैन्य गठबन्धन के नेता ,अमेरिका का कहना है कि रूस यूक्रेन के विरुद्ध आक्रामक रवैया अपनाने की योजना बना रहा है। हालाँकि रूस ने इस तरह की किसी योजना से इन्कार किया है। बताया जा रहा है कि स्वीडन राजधानी स्टाकहोम में हाल में हुई एक बैठक में अमेरिका के विदेश सचिव एण्टोने ब्लिंकेन ने अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के सामने दोहराया था कि अमेरिका ने रूस का यूक्रेन के साथ पश्चिमी सीमा पर अपनी सेनाओं को वापस बुलाने का आह्वान किया है। अमेरिकी सरकार के प्रवक्ता के अनुसार ब्लिंकेन ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर रूस अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाता है, तो अमेरिका और उसके सहयोगी तैयार हैं। रूस को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। यद्यपि ब्लिकेन के वक्तव्य से यह स्पष्ट नहीं है कि कीमत चुकाने से उनका क्या मतलब था। उनका मतलब किसी तरह के सैन्य प्रतिक्रिया से था या कुछ और।
अब यूक्रेन ने इस विवाद के चलते यूरोपीय संघ और नाटो से प्रतिबन्ध पैकेज तैयार करने और रूस के आक्रामक रवैये के खिलाफ सहयोग की गुजारिश की है। हालाँकि रूस नाटो के दिये किसी भी झटके का सामना करने के लिए तैयार नहीं है, फिर भी पुतिन ने मास्को में कहा था कि यूक्रेन की किसी तरह की सैन्य गतिविधि के गम्भीर परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि वह पश्चिम देशों से भरोसेमन्द और दीर्घ अवधि की गारण्टी चाहेंगे। नाटो पूर्व की ओर अपने कदम न बढ़ाने सके, जिससे रूस को अपने क्षेत्र में किसी की हस्तक्षेप की धमकी मिलती है।
सन् 2015 फ्रान्स और जर्मनी की मध्य स्थल को रूस और यूक्रेन में शान्ति कायम रखने को लेकर एक समझौता हुआ था कि जिसे ‘मिन्स्क समझौता’ कहा गया था,जो अभी भी जैसे-तैसे कायम है। हालाँकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह यूक्रेन के प्रतिकूल था। अमेरिकी विदेश सचिव ब्लिंकेन ने अपनी बात दोहराते हुए कहा था कि रूस के यूक्रेन पर हमले की योजना के उनके पास पुख्ता सुबूत हैं। उन्होंने स्टाकहोम में मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा कि रूस भले ही ही यूक्रेन पर हमले से इन्कार करे, लेकिन हम अच्छे से जानते है कि वह(पुतिन) कम वक्त में ऐसा करने की क्षमता रखते हैं। ब्लिंकेन ने कहा कि हमने साफ कर दिया है कि अगर ऐसा कुछ होता है तो दृढ़ता से जवाब देंगे, जिसमें आर्थिक प्रतिबन्ध भी शामिल होगा। अमेरिका राजनयिक और सैन्य संस्थानों ने यद्यपि यह साफ नहीं किया है कि प्रतिक्रिया किसी तरह की होगी। बस ब्लिंकेन ने यह कहा कि इसके दीर्घकालिक परिणम होंगे। वहीं अमेरिका और नाटो देशों के स्टाफ के प्रमुख मार्क मिले ने कहा कि इस तरह से अमेरिका और नाटो देशों के सुरक्षा हित दाँव पर लगे हैं। रूस ने ऐसे देश पर सैन्य कार्रवाई की थी, जो सन् 1991 में स्वतंत्र हुआ था। वहीं रूस का मानना है कि नाटो ने तनाव कम करने और खतरनाक घटनाओं से बचने की हमारे प्रस्ताव की रचनात्मक जाँच से इन्कार कर दिया है,वहीं गठबन्धन का सैन्य ढाँचा रूस की सीमाओं के करीब आ रहा है।
इस बीच रूस और अमेरिका अपने देशों में राजनयिको के निष्कासन में लगे हुए है। क्रीमिया पर कब्जे के बाद से रूस पर अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबन्ध लगा रखे हैं इसके अलावा यूक्रेन को सैन्य हथियारों की मंजूरी के साथ-साथ अमेेरिका ने एक अरब डाॅलर की रक्षात्मक सहायता भी प्रदान की है। तनाव कम करने के लिए कोई प्रयास किये गए- ऐसा कहा जा रहा है कि ब्लिंकेन और लावरोव की बैठक के बाद जल्दी ही पुतिन और जो बाइडेन सम्पर्क कर सकते हैं। रूस के उपविदेशमंत्री सर्गेई रयाव ने कहा था कि सम्पर्क होगा बहुत जरूरी है,हमारी दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं। उधर उक्रेन के राष्ट्रपति वालो डिमिर जेलेवस्की ने भी रूस के साथ बातचीत पर जोर दिया है।यह पूर्व सोवियत संघ के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। काला सागर का तट इसके पास है और इसकी सीमाएँ रोमानिया, हंगरी, पोलैण्ड और चेकोस्लोवाकिया(पश्चिम देश)और बेलारूस,रूस से मिलती है। यूक्रेन का क्षेत्रफल- 6,03,700वर्ग किलोमीटर तथा राजधानी- कीव है। इसकी जनसंख्या-4,57,78,500 से अधिक है,जो यूक्रेनियन,रूसी बोलते हैं तथा ईसाई,इस्लाम मजहब के अनुयायी हंै। यूक्रेन की मुद्रा-हिरिबिनिया है। 24अगस्त,1991को सोवियत संघ से अलग होकर स्वतंत्र देश बना।यह घना बसा हुआ है।पूर्व सोवियत संघ के दूसरे धनी देश में सर्वाधिक कीमती जमीन है। 1985 में सोवियत संघ के कुल उत्पादन का 46 प्रतिशत यहाँ हुआ था। इसे सोवियत संघ का गेहूँ क्षेत्र कहा जाता है। मिस्र और इजरायल के बाद यूक्रेन सर्वाधिक अमेरिकी सहायता प्राप्त करने वाला तीसरा देश है। जुलाई, 1997 में नाटो चार्टर पर हस्ताक्षर के साथ यूक्रेन गुटनिरपेक्ष देश हो गया। अब वह अपने सम्बन्ध रूस और पश्चिम से सामान्य रूप में रख सकता है। यूक्रेन के गेहूँ, शक्करकन्दी, सूरजमुखी ,कपास ,फलैक्स,तम्बाकू,सोया, फल,सब्जी ,माँस, दूध कृषि और पशु उत्पाद है। इसके प्राकृतिक स्रोत- लौह अयस्क, मैग्नीज, तेल,नमक रसायन है। इसके उद्योग मुख्यतः फेरस, मेटालार्जिक रसायन, मशीनरी, कागज, टी.वी.,उपभोक्ता सामान, खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने में लगे हुए हैं।
वर्तमान यूक्रेन विवाद की मूल समस्या रूस का उसके इलाके क्रीमिया पर बलात कब्जा है और उसे अपनी सैन्य शक्ति से भयभीत करना है। ऐसे में रूस को यूक्रेन को क्रीमिया वापस लौटाने के साथ उसकी सुरक्षा का भरोसा देना होगा। उसी स्थिति में यूक्रेन अमेरिका और नाटो का आसरा छोड़ पाएगा।यही यूक्रेन विवाद का सही और स्थायी समाधान है।
सम्पर्क- डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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