डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में संविधान दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संविधान और लोकतंत्र के खतरे का शोर मचा रहे काँग्रेस समेत ज्यादातर विरोधी दलों के उनके परिवारवादी और लोकतंत्र तथा संविधान की भावना का कोरा दिखावा वाले चाल-चरित्र को उजागर कर जो करारा वार-प्रहार किया है, उसमें न कुछ भी असत्य है, बल्कि उन्हें आइना दिखाने वाला है। इससे उनके संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था में आगाध श्रद्धा और निष्ठा रखने और जताने के उस ढोंग की पोल कर रख दी, जिसका वे केन्द्र में ‘राजग’ और राज्यों में भाजपा के सत्तारूढ़ होने और खुद सत्ता से बेदखल होने पर जोर-शोर से ढिंढोरा पीटते आए हैं। वैसे भी ये लोग संविधान से कितना प्रेम तथा निष्ठा रखते हैं,उसका प्रमाण इन सभी राजनीतिक दलों का संविधान दिवस पर उनके संसद के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित कार्यक्रम में शामिल न होने से स्पष्ट है ? जो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के इतिहास के एक महत्त्वपूर्ण अवसर ‘संविधान दिवस’ पर भी अपनी ओछी सियासत करने से बाज नहीं आए।ये जिन सियासी पार्टियों की अगुवाई करते हैं,उनमें ही जम्हूरियत नहीं है। वे अपनी पार्टी के शीर्ष पर काबिलियत और पार्टी के सदस्यों से चुने जाने की वजह से नहीं,बल्कि संस्थापक के वारिस होने की वजह से पहुँचे हैं। ऐसे में उन्हें संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की दुहाई देने से पहले अपने गिरबां में झंकाने की जरूरत हैं।
वैसे भी सच्चाई यह है कि देश के स्वतंत्रता के बाद से कुछ सियासी नेता लोकतंत्र का जाप करते -करते हुए अपनी तिकड़म से परिवारिक सियासी पार्टियाँ बनाकर इसे सामंतशाही में बदल चुके हैं । कश्मीर से कन्याकुमारी तक ये अपनी पार्टियों का संचालन निजी दुकानों की तरह कर रहे हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी उन्हीं के परिजन शीर्षस्थ पदों पर काबिज होते आए हैं। वंशवादी दल स्वयं लोकतांत्रिक चरित्र खो चुके हैं,वे लोकतंत्र की रक्षा कैसे कर सकते हैं? वर्तमान में परिवादी पार्टियाँ हैं, जो पार्टी फार फैमिली, पार्टी बाय फैमिली, के मंत्र पर काम कर रही हैं। विडम्बना यह है कि वर्तमान में संविधान और लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा होने का हल्ला मचा रहे हैं। देश के स्वतंत्र होने पर जम्मू-कश्मीर में शेख अब्दुल्ला ने अपनी पारिवारिक पार्टी ‘मुस्लिम कान्फ्रेंस’ का नाम अचानक बदल कर ‘नेशनल कान्फ्रेंस’में तब्दील कर दिया। देश के पहले प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने बिना चुनाव के महाराजा हरिसिंह को शेख अब्दुल्ला को इस सूबे की बागडोर सौंपने को मजबूर कर दिया था।तदोपरान्त शेख अब्दुला के असली चरित्र और इरादों को जानते हुए में उन्हें जेल में डालना पड़ा। बाद में न केवल वे मुख्यमंत्री बने, बल्कि उनके बेटे डॉ.फारूक अब्दुल्ला,उनके पौत्र उमर अब्दुल्ला भी इस पद तथा केन्द्र में मंत्री रह चुके हैं। इसी सूबे की दूसरी बड़ी पार्टी ‘पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी’(पीडीपी) की स्थापना केन्द्रीय गृहमंत्री एवं मुख्यमंत्री रहे मुपती मुहम्मद सईद ने की थी, उनके न रहने पर उनकी बेटी महबूबा मुपती जम्मू-कश्मीर की मुख्य मंत्री बनीं। इस पारिवारिक
पार्टी के ज्यादा प्रमुख पदों पर उनके परिजन और रिश्तेदार रहे हैं।इस समय भी महबूबा मुपती ही पी डी पी की अध्यक्ष हैं। पंजाब में धार्मिक पार्टी ‘अकाली दल’ प्रकाश सिंह बादल की पारिवारिक पार्टी है। वे स्वयं कई बार मुख्यमंत्री तथा उनके बेटे सुखवीर सिंह बादल उपमुख्यमंत्री, उनकी पत्नी परनीत कौर केन्द्र में मंत्री रह चुकी हैं। हरियाणा में ‘नेशनल लोकदल’ (एनएलडी) ओमप्रकाश चौटाला की निजी पार्टी है, जिसमें सभी बड़े पदों पर परिवार के सदस्य आसीन हैं। काँग्रेस भले ही स्वयं को राष्ट्रीय पार्टी बताती है, पर उस काबिज डॉ.नेहरू-गाँधी परिवार का रहा है। इसके परिवार से प.जवाहर लाल नेहरू, श्रीमती इन्दिरा गाँधी, राजीव गाँधी प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके है। इसी के सोनिया गाँधी तथा राहुल गाँधी भी अध्यक्ष रह चुके हैं, वर्तमान में सोनिया गाँधी ही कार्यकारी अध्यक्ष तथा उनकी बेटी प्रियंका गाँधी वाड्रा महासचिव हैं। किसान नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह द्वारा गठित ‘राष्ट्रीय लोकदल’ में इसके बाद उनके पुत्र चौधरी अजित सिंह और अब उनके पौत्र चौधरी जयन्त दल की कमान सम्हाल हुए हैं। इसी तरह समाजवादी पार्टी की स्थापना उ.प्र.मुख्यमंत्री तथा केन्द्र में रक्षामंत्री रहे मुलायम सिंह यादव ने की। अब इस पार्टी की कमान उनके पुत्र तथा उ.प्र.के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पास है। इस पार्टी में परिवार के सदस्य ही प्रमुखों पर आसानी होते आए हैं। अब इनके चाचा शिवपाल सिंह यादव ने ‘प्रगतिशील समाजवादी पार्टी’बना ली हैं। इस राज्य में कुर्मी नेता सोहन लाल पटेल ने अपनी पारिवारिक पार्टी ‘अपना दल’ बनाया,जो वर्तमान मेंदो गुटों में बँट गया है।इसके गुट की अगुवाई उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल तथा दूसरे को उनकी पत्नी कृष्णा पटेल कर रही हैं। इस तरह ओमप्रकाश राजभर ने तथा संजय निषाद ने भी अपनी पारिवारिक जातिवादी पार्टियाँ बना रखी हैं। बिहार में लालू प्रसाद यादव द्वारा राष्ट्रीय जनता दल(राजद)पारिवारिक पार्टी है, जिसके मुखिया और दूसरे प्रमुख पदों पर परिवार के लोग ही काबिज होते आए हैं। लोजपा का गठन रामविलास पासवान द्वारा की गई।उनके न रहने के बाद एक गुट की अगुवाई उनके बेटा चिराग पासवान तथा दूसरे का भाई पारसनाथ पासवान कर रहे हैं।इसी प्रदेश की दूसरी पारिवारिक दल हैं- ‘विकास इन्सान पार्टी’(वी.आइ.पी.)के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश सहनी है, पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की ‘हिन्दुस्तान अवाम पार्टी’ है। ओडिसा में बीजू जनतादला(बीजद)का गठन केन्द्रीय मंत्री तथा मुख्यमंत्री रहे बीजू पटनायक ने की थी। अब उनके बेटे तथा मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इसके अध्यक्ष हैं। पश्चिम बंगाल में केन्द्रीय मंत्री तथा वर्तमान में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तृणमूल काँग्रेस(टीएमसी)का गठन किया है।यह भी पारिवारिक पार्टी है। महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी(राकाँपा) की स्थापना केन्द्रीय मंत्री रहे शरद पवार ने की है जिसमें सभी बड़े पदों पर उनके परिजन आसीन हैं। इसी तरह शिवसेना भी एक पारिवारिक पार्टी है,जिसका गठन बाल ठाकरे ने की किया था, अब उन्हीं के पुत्र उद्धव ठाकरे इस सूबे के मुख्यमंत्री हैं। दक्षिण भारतीय राज्य आन्ध प्रदेश में तेलुगू देशम की स्थापना एन.टी.रामाराव ने की थी,जिसकी कमान उनके दामाद चन्द्राबाबू सम्हाले हुए हैं।तेलंगाना में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ‘एआइएमआईएम’भी पारिवारिक पार्टी है।वीआरएस काँग्रेस की स्थिति भी ऐसी हैं। कमोबेश यही स्थिति तमिलनाडु की दूसरी सियासी पार्टियाँ डीएमके, एडीएमके की है। पूर्वात्तर राज्यों में कुछ राज्यों ऐसी पारिवारिक पार्टियाँ सियासत में हैं। हकीकत यह है कि राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में भाजपा और वाम पार्टियों को छोड़ दे,तो कोई भी राजनीति दल ऐसा नहीं है,जो परिवारवादी न हो। जहाँ तक अपने देश में परिवादी सियासत की बात है,तो इन पारिवारिक सियासी पार्टियों के गठन की सीख/ प्रेरणा इनके नेताओं ने काँग्रेस से ली है, जो स्वयं एक समय उसकी परिवादी नीतियों के घोर विरोधी रहे थे। कालान्तर में ये सभी काँग्रेस की देखादेखी खुद भी उसी की राह पर चले पड़े या कह गए रंग गए हैं। यही कारण है इनमें से ज्यादातर काँग्रेसी हैं। इस मामले में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिमी भारत तक के क्षेत्रीय दलों में विचित्र समानता देखने को मिलती है। अब तो ऐसे परिवारवाद के पक्ष में तरह-तरह तर्क दिये जा रहे हैं, जिन्हें कुतुर्क कहना गलत न होगा। इस मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह कहना कहीं तक सही है कि एक परिवार से एक से अधिक लोेगों का राजनीति में सक्रिय हों, इसमें कुछ गलत नहीं, लेकिन जब वे योग्यता और जनता से चुनकर आएँ,पार्टी के परिवारीजन होने के कारण नहीं। यदि एक से अधिक लोग राजनीति में हैं, तो पार्टी परिवारवादी नहीं बन जाती है। यदि किसी पार्टी के पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार संचालित करता रहे, और सारी व्यवस्था परिवार के पास ही रहे, तो लोकतंत्र के लिए संकट होता है। जैसे किसी रियासत /राज्य की गद्दी राजा के परिवार लोग ही बैठते हैं, कुछ वैसे किसी पार्टी पर एक ही परिवार का कब्जा होना है,राजशाही नही ंतो क्या है? ऐसे में इन कथित सियासी पार्टियों को आईन और जम्हूरियत की पैरोकारी तथा उसका राग अलापना शोभा नहीं देता।देश के लोग उनकी असलियत से अच्छी तरह वाकिफ है,ऐसे उनके जम्हूरित के लिए रुदन के कोई माने नहीं रह जाते हैं। सम्पर्क- डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
आईन तथा जम्हूरियत के फर्जी पैरोकार ?

Add Comment