डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर आर्मीनिया की यात्रा पर जाना और वहाँ के प्रधानमंत्री, विदेशमंत्री तथा नेशनल एसेम्बली के प्रेसिडेण्ट से अलग-अलग भेंट करने के गहरे निहितार्थ रहे हैं। इसे भारत की उससे शत्रुभाव रखने वाले देशों के प्रति उन्हीं के तरीकों से प्रत्युत्तर देने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। इस नीति के तहत भारत ग्रीस और आर्मीनिया के साथ अपने सम्बन्धों को सुदृढ़ और बहुआयामी बनाने के लिए निरन्तर गम्भीर प्रयास कर रहा है, जिनके अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का राग अलापने में पाकिस्तान का साथ देने वाले तुर्की से वर्तमान मंे बेहद तनावपूर्ण सम्बन्ध बने हुए हैं। यद्यपि भारत के आर्मीनिया और ग्रीस से पुराने मित्रवत् सम्बन्ध रहे हैं, तथापि हाल के वैश्विक राजनीतिक माहौल में भारतीय हितों को देखते हुए इनका महत्त्व पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। यहीं कारण है कि विदेशमंत्री एस.जयशंकर से पहले कोई भी भारतीय विदेशमंत्री इन दोनों देशों के दौरों पर कभी नहीं गया था। वस्तुतः भारत आर्मीनिया और ग्रीस से रिश्तें मजबूत कर तुर्की को यह जताना-बताना चाहता है कि यदि उसने उसके दुश्मन मुल्क पाकिस्तान की मदद करना ऐसे ही जारी रखा, तो भी वह भी उसके दुश्मनों मुल्कों की हर तरह से सहायता करने में पीछे नहीं रहेगा। दरअसल, जब से तुर्की में रेसेप तैय्यप एर्दोगन राष्ट्रपति बने हैं, तब से तुर्की इस्लामिक कट्टरवाद की राह पर चला पड़ा। वह पहले की तरह इस्लामिक मुल्कों का खलीफा बनाना चाहता है। इसलिए वह पहले इस्लामिक कट्टरपन्थी मुल्क पाकिस्तान, मलेशिया के साथ मिलकर मुस्लिम जगत् का नेतृत्व सऊदी अरब की जगह खुद लेने की कोशिश में लगा है,लेकिन इसमें इसमें अभी तक वह नाकाम रहा। बाद में सितम्बर,2020में आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच नार्गोरनो काराखाब को लेकर जब जंग हुई,जो पड़ोसी अजरबैजान का स्वशासित क्षेत्र है, तब इस जंग में तुर्की ने अजरबैजान के इस्लामिक मुल्क होने के नाते उसे खुलकर सैन्य सहायता दी। इसमें पाकिस्तानी सेना भी उसके साथ लड़ी थी। इस कारण ईसाई बहुल देश आर्मीनिया की पराजय हुई थी, जो रूस की सैन्य मदद की राह ही देखता रह गया,क्योंकि उसने रूस के साथ सन् 1997में सन्धि कर उसे अपने देश में 25साल तक सैन्य अड्डे संचालित करने की स्वीकृति दी हुई है। वैसे भी आर्मेनिया की तुर्की से दशकों पुरानी दुश्मनी है। एक सदी पहले सन् 1915से 1918के मध्य तुर्की आटोमन साम्राज्य ने आर्मेनिया में भीषण नरसंहार किया था,जिसमें लगभग 15लाख आर्मेनियाइयों को मारा गया था।तब से इन दोनों देशों के रिश्ते खराब चले आ रहे हैं। ऐसे में भारत ने तुर्की को भारत के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार को देखते हुए उसके शत्रु देशों में से एक आर्मेनिया से रूस और पोलैण्ड को पछाड़ते हुए 280करोड़ रुपए यानी40मिलियन डाॅलर का रक्षा सौदा किया।इस सौदे के तहत भारत आर्मेनिया को चार स्वदेशी ‘स्वाथ वैपन लोकेटिंग राडर’ निर्यात करेगा,जिन्हें ‘रक्षा अनुसन्धान तथा विकास संगठन(डीआरडीओ)तथा ‘भारत इलैक्ट्रोनिक्स लिमिटेड’(बीइएल)ने तैयार किये है।ये राडर 50किलोमीटर की सीमा में हथियारों, मोर्टार, राॅकेट जैसे स्वचालित हथियारों की सटीक स्थिति पता करने में सक्षम हैं। तुर्की की पड़ोसी देश ग्रीस से भी पुरानी दुश्मनी है। अगस्त,2020में तुर्की ने पूर्वी भू-मध्य सागर में अपनी नौसेना के साथ समुद्र में गैस की खोज करने वाला ‘ओरुच रेइस’ नामक जहाज भेजा,जिसे रोकने के लिए ग्रीस ने भी अपने जहाज भेज दिया और तुर्की के जहाजों को वापस जाने को कहा।उसके समर्थन में फ्रान्स और संयुक्त अरब अमीरात(यूएई)भी आ गया। यूएई ने ग्रीस की मदद के लिए चार एफ-16लड़ाकू विमान भी भेज दिया। फिर उसके साथ पूर्वी भू-मध्यसागर में साथ-साथ युद्धाभ्यास भी किया। वैसे तुर्की यूएई से इजरायल से सामान्य सम्बन्ध स्थापित करने से भी नाराज है। यूएई और तुर्की राजनीतिक इस्लाम और लीबिया की जंग में एक-दूसरे के खिलाफ हैं। दरअसल, ग्रीस पूर्वी भू-मध्य सागर में अपना एकाधिकार मानता है,जो तुर्की को मंजूर नहीं है। वह भी इस क्षेत्र में गैस की खोज कर ऊर्जा संसाधन बढ़ाना चाहता है। इस घटना से पहले जुलाई,2020में ग्रीस और तुर्की के बीच इस्ताम्बुल में स्थित ‘हागिया सोफिया’ को लेकर विवाद बढ़ गया था,जिसे 86साल तक संग्रहालय रहने के बाद राष्ट्रपति एर्दोगन ने फिर से इसे मस्जिद मानते हुए उसमें नमाज शुरू करा दी। हागिया सोफिया मूलतः आर्थोडाक्स ईसाइयों का छठवीं सदी में निर्मित गिरजाघर/चर्च है,जिसे मुसलमानों ने ईसाइयों को पराजित करने बाद इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया। कालान्तर में इसे ‘संग्रहालय’बना दिया गया,जहाँ आर्थोडाक्स ईसाई धर्म मानने वाले ग्रीक धार्मिक भावनाओं से वशीभूत होकर आते हैं। उस समय राष्ट्रपति एर्दोगन के इस कदम पर दुनियाभर के ईसाई धर्मगुरुओं, अमेरिका, यूनान समेत अनेक देशों ने चिन्ता जतायी थी।
वर्तमान में आर्मेनिया और ग्रीस के साथ-साथ तुर्की का तीसरे पड़ोसी देश साइप्रस से भी उसके रिश्ते बिगड़े हुए हैं। पूर्वी भू-मध्यसागर बेसिन के उत्तर -पूर्वी कोने पर स्थित साइप्रस से भी तुर्की की शत्रुता है, क्योंकि सन् 1974 में तुर्की ने इस पर हमला किया था। अब भी इस देश का 40प्रतिशत भू-भाग उसके कब्जे में है। तुर्की के कब्जे वाले साइप्रस के उत्तरी इलाके ने तुर्की के इशारे पर सन् 1975 में ‘टर्किश साइप्रियोट फेडेªटडेट राज्य’ की घोषणा की। फिर सन् 1983 में इस राज्य अपना नया नाम ‘टर्किश रिपब्लिक आॅफ नार्थन साइप्रस’ रख लिया।अपने इस अपमान को साइप्रस भूला नहीं है,वह अपने खोए हुए इस इलाके को फिर से पाने को प्रयासरत है।
भारत ने विभिन्न मामलों में अपने खिलाफ बोलने,पाकिस्तान और तुर्की का साथ देने वाले मलेशिया से बड़ी मात्रा में आयात किये जाने वाले पाम आयल पर प्रतिबन्ध लगा दिया है,ताकि आर्थिक मार कर उसे अच्छा सबक सिखाया जाए सके। भले ही भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर ग्रीस और आर्मेनिया की यात्रा अब गए है, पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक साल पहले ही तुर्की के दुश्मन देश आर्मेनिया, ग्रीस, साइप्रस के शासकों से पहले ही फिर से रिश्ते मजबूत करने की शुरुआत कर चुके हैं।उनकी इस पहल के निहितार्थों को तुर्की न समझता हो, ऐसा सम्भव नहीं है।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.न.9411684054
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