डॉ.बचन सिंह सिकरवार

हाल में पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के धार्मिक रूप से प्रताड़ित/उत्पीड़ित हिन्दू, सिख, बौद्ध,जैन, ईसाई, पारसी शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए ‘नागरिकता संशोधन विधेयक’(सीएबी-कैब)का काँग्रेस समेत तथाकथित सेक्यूलर, वामपंथी राजनीतिक दलों ने इसे असंवैधानिक, समानता के अधिकार का हनन करने वाला, मुस्लिम विरोधी बताते हुए उसके खिलाफ जिस सुनियोजित तरीके से बड़े पैमान पर दुष्प्रचार किया , उसकी परिणति अब पूर्वोत्तर राज्यों में आगजनी, हिंसक आन्दोलन के रूप में हुई है। यद्यपि राजग सरकार भले ही संसद के दोनों सदनों में उक्त को विधेयक को पारित कराने में सफल रही है,तथापि काँग्रेस ,वामपन्थी और भाजपा विरोध राजनीतिक दल इस विधेयक के खिलाफ भ्रम फैलाकर पूर्वोत्तर के लोगों को भड़का कर में असम ,त्रिपुरा में हिंसक आन्दोलन की आग में झोंकने में पूरी तरह कामयाब रहे हैं। अब जहाँ काँग्रेस और भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों शासित राज्य अपने यहाँ नागरिकता संशोधन विधेयक कानून लागू करने से इन्कार कर रहे हैं, वहीं काँग्रेस सांसद जयराम रमेश तथा चार मुसलमान सांसद इस विधेयक के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल करने जा रहे हैं। इसी विधेयक के विरोध में अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी और जामिया मिलिया यूनीवर्सिटी के छात्र-छात्राएँ आन्दोलनरत हैं और उ.प्र.के मुस्लिम बहुल कई शहरों में 13दिसम्बर को जुम्मे की नमाज के बाद लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। आखिर क्यों?इस विधेयक से इनकी सेहत पर क्या फर्क पड़ना है? इनसे यह सवाल कोई क्यों नहीं करता?इधर इस विधेयक को भारत की संकल्पना तथ मुसलमानों के खिलाफ बताते हुए विरोध में महाराष्ट्र कॉडर के

आइ.पी.एस.अधिकारी अब्दुर्रहमान का इस्तीफा देना भी समझ से परे हैं। उनका आरोप है कि यह विधेयक जाति और धर्म के आधार पर देश को बाँटेगा। अनुसूचित, अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ-साथ गरीब तथा वंचित वर्ग के लिए यह सबसे ज्यादा नुकसानदेह है। लेकिन उनके इन आरोपों में दम नहीं है, क्यों कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से आने वाले ज्यादातर हिन्दू, ईसाई अनुसूचित, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के ही हैं, जिन्हें भारतीय नागरिकता मिलने के बाद अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जीने और शारीरिक रक्षा का अधिकार मिल जाएगा। इस कारण यह विधेयक भारतीय संकल्पना और मुसलमानों के खिलाफ कैसे हो गया? क्या यह विधेयक इन मुल्कों के किसी प्रताड़ित मुसलमान शरणार्थी को भारतीय नागरिकता कानून के मुताबिक नागरिकता देने पर रोक लगाता है? यदि अब्दुर्रहमान को इन जातियों के लोगों के हितों का इतना ही ख्याल या फिक्र थी, तो उन्होंने जम्मू-कश्मीर में कोई सात दशक से बगैर मताधिकार के रहने वाले अनुसूचित जाति के हिन्दुओं के साथ होने वाले हर तरह के भेदभावों को दूर करने का ख्याल क्यों नहीं आया? शायद तब उनकी जुबान अपने हममजहबी सियासी नेताओं की वजह से बन्द थी। फिर अपनों द्वारा किया गया जुल्म कोई जुल्म थोड़े ही होता है। नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर भारत के इस्लामिक कट्टरपंथियों की मुखालफत की सबसे बड़ी वजह पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान अल्पसंख्यक विरोधी बताया-जताना है,जो इनके लिए ‘पाक’ स्थान हैं, इससे इन इस्लामिक मुल्कों विशेष रूप से पाकिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय छवि खराब होने का खतरा बढ़ गया है। इस कारण उसे विदेशी आर्थिक सहायता मिलने में मुश्किलें आएँगीं। लेकिन इन कट्टरपंथियों ने इन मुल्कों में मजहब के नाम पर कभी हिन्दुओं, ईसाइयों समेत दूसरे समुदायों पर होने वाले जुल्मों को लेकर कभी जुबान खोलना मुनासिब नहीं समझा,क्यों?

वैसे भी इस विधेयक को लेकर काँग्रेस के फैलाए भ्रम का फायदा उठाने में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी पीछे नहीं रहे। यहाँ तक उन्होंने इस विधेयक को लेकर वे सारी बातें कहीं,जो काँग्रेस द्वारा कही गई थी। हालाँकि संसद में इस विधेयक को लेकर इन दलों के सांसदों द्वारा जो-जो शंकाएँ उठायी गयीं, उनका केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उनका निराकरण विस्तार से उत्तर देकर उन्हें एक तरह से निरुत्तर कर दिया। लेकिन आजादी के बाद से अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के जरिए वोट बैंक की राजनीति करने वालों को उनके वक्तव्य से न सन्तुष्ट होना था और न वे हुए। दुर्भाग्य की बात यह है कि इस विधेयक के गुण-दोषों को अपनी कसौटी पर कसे बगैर कुछ मुसलमान विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों के लोग भी उनके द्वारा फैलाये भ्रम या उनकी साजिश के शिकार बन गए हैं। हैरानी की बात यह भी है कि इसके बावजूद इस आन्दोलन में बड़ी संख्या में लेखक , कलाकार और तमाम संगठन भी शामिल हुए,क्या उन्हें नागरिकता संशोधन विधेयक का पता है,या फिर वे राजनीतिक दलों के इशारे पर यह सब कर रहे है?
पूर्वोत्तर के राज्यों असम और त्रिपुरा में हिंसक आन्दोलन के कारण गुवाहटी, डिब्रूगढ़, जोरहाट और अगरतला की कारण आन्दोलनकारियों ने सरकारी कार्यालयों, वाहनों,रेलवे स्टेशनों को निशाना बनाते हुए आगजनी की, रास्ते जाम लगाए।सुरक्षा बलों पर पत्थराव किया तथा उन्हें भी गोलीबारी करना पड़ा। इन शहरों में कर्फ्यू लगाने के साथ इण्टरनेट सेवा बन्द करनी पड़ी। आन्दोलन की वजह से कई रेल और एयर लाइन्स सेवाएँ निलम्बित और रद् करनी पड़ीं। परिणामतः बड़ी यात्रियों को बहुत परेशानी उठानी पड़ी। इस आन्दोलन के कारण जनधन की भी भारी हानि हुई है।
नागरिक संशोधन विधेयक को लेकर इन राजनीतिक दलों ने यह भ्रम फैलाया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 के समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है जबकि यह अनुच्छेद भारतीय नागरिक को कुछ अपवादों के साथ समानता का अधिकार प्रदान करता है,न कि विदेशियों को। लेकिन काँग्रेसियों और विभिन्न सियासी पार्टियों के नेताओं ने यह भ्रम फैलाने का सिलसिला जारी रखा। अब जहाँ तक इस विधेयक में मुसलमानों को सम्मिलित न करने का प्रश्न है तो पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान मुस्लिम बहुल मुल्क हैं,वहाँ से किसी मुसलमान के मजहबी आधार पर उत्पीड़ित होने का सवाल ही नहीं उठता। वैसे अमित शाह ने यह भी स्पष्ट किया कि इस विधेयक के कारण मुसलमानों को देश में शरण माँगने का रास्ता बन्द नहीं किया गया है। मोदी सरकार ने पिछले 5साल में पाकिस्तान,बांग्लादेश, अफगानिस्तान से आने वाले 566 मुसलमान शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी है। केन्द्रीय गृहमंत्री शाह ने बार-बार मुसलमानों को भरोसा दिलाया कि इस देश के सम्मानित नागरिक हैं और रहेंगे। उन्होंने काँग्रेस से यह प्रश्न सही किया कि क्या छह पंथ के नागरिकों को सम्मिलित करने और सिर्फ मुसलमानों को न रखने से पंथनिरपेक्षता नहीं रहती? सचमुच काँग्रेस , वामपंथियों स

मेत तथाकथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के लिए मुसलमानों का तुष्टीकरण और हिन्दुओं और उनकी मान्यताओं का अन्ध विरोध ही पंथनिरपेक्षता है।अब भाजपा विरोधी इन सभी सियासी पार्टियों की इस विधेयक की मुखालफत सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों को अपनी ओर गोलबन्दी करना भर है,ताकि उनके पूरे के पूरे वोट अपनी झोली में डलवाये जा सकें।
काँग्रेस को आईना दिखाते हुए उन्होंने कहा कि किस तरह सन् 1947 मेें काँग्रेस कार्य समिति में पाकिस्तान में प्रताड़ित सिखों और हिन्दुओं के हितों की रक्षा के लिए प्रस्ताव पारित किया था। इसी तरह संप्रग सरकार के दौरान राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की माँग पर 18हजार सिखों तथा हिन्दुओं को नागरिकता दी गई थी। 18 दिसम्बर, सन् 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी बांग्लादेश के उत्पीड़न के शिकार हिन्दू शरणार्थियों को नागरिकता देने की संसद में बात की थी। ऐसे में उन्होंने काँग्रेस के अधूरे कार्यों को पूरा किया है,तब उसके विरोध का औचित्य क्या है? कुछ दक्षिण भारतीय राजनीतिक दलों ने इस विधेयक को लेकर अपने विरोध की वजह श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थियों को सम्मिलित न करना बताया,जबकि उन्हें समय-समय पर आवश्यकता के अनुसार भारत की नागरिकता दी जाती रही है और भविष्य में देने पर रोक नहीं है।दरअसल,ये सभी अल्पसंख्यक वोट बैंक के लिए विरोध के लिए बस बहाना चाहते थे।
अब आते हैं कि नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर पूर्वाेत्तर राज्यों में हो रहे विरोध के औचित्य पर है,तो बताते हैं कि यह विधेयक एक बड़े क्षेत्र पर प्रभावी नहीं होगा,जिसका यह लोगों को डर दिखाया जा रहा है कि इसके कारण बड़े पैमाने बांग्लादेशी हिन्दू भारतीय नागरिक बनकर यहाँ बस जाएँगे। सच्चाई यह है कि इस विधेयक से कई राज्यों को इससे छूट दी गई है। यद्यपि असम के कुछ हिस्से इसकी जद में है। इस कारण ही इस विधेयक के खिलाफ यहाँ आन्दोलन शुरू हो चुका है, तथापि इस विधेयक के कुछ तथ्य जान लेना जरूरी है। नागरिकता संशोधन विधयेक के दायरे से बाहर वाले क्षेत्र की दो श्रेणियाँ हैं जिन्हें इस विधयेक से दूर रखा गया है। ये हैं- ‘इनर लाइन’द्वारा संरक्षित राज्य और संविधान की छठी अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्र। पहली व्यवस्था इनर लाइन परमिट(आइएलपी)की है। -यह एक विशेष परमिट है, जो भारत के अन्य हिस्सों के नागरिकों को आइएलपी द्वारा संरक्षित राज्य में प्रवेश करने की अनुमति प्रदान करता है। राज्य सरकार द्वारा दिए गए आइएलपी परमिट के बिना किसी भी अन्य राज्य का भारतीय आइएलपी के अधीन आने वाले राज्य में जा नहीं सकता है। आइएलपी व्यवस्था वाले राज्यों में देश के दूसरे राज्यों के लोगों समेत बाहर के लोगों को अनुमति लेनी पड़ती है। भूमि ,रोजगार के सम्बन्ध में स्थानीय लोगों को संरक्षण दिया जाता है। अरुणाचल, नगालैण्ड और मिजोरम के बसउ मणिपुर चौथा राज्य है,जहाँ आइएलपी को लागू किया गया है। बंगाल ईस्टर्न फ्रॉण्टियर नियमन,1873 की धारा दो के तहत अन्य राज्यों के नागरिकों को इन तीनों राज्यों में जाने के लिए आइएलपी की जरूरत पड़ती है।आइएलपी व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य मूल आबादी के हितों की रक्षा के लिए तीनों राज्यों में अन्य भारतीय नागरिकों को बसने से रोकना है।
दूसरी श्रेणी छठी अनुसूची है। इसमें कुछ पूर्वोत्तर राज्यों के प्रशासन में विशेष प्रावधानों से सम्बन्धित है। यह इन राज्यों में स्वायत्त जिला परिषद्ों(एडीसी) के लिए विशेष अधिकार प्रदान करता है। एडीसी के पास विभिन्न विषयों पर अपने अधिकार क्षेत्र के तहत कानूनों को लागू करने की शक्तियाँ हैं। इसका एक उद्देश्य आदिवासी समुदायों द्वारा स्व-शासन को बढावा देना है।
नागरिक संशोधन विधेयक -किस राज्य में कितना प्रभावी -असम-राज्य में तीन स्वायत्त जिला परिषद् हैं,जो 70प्रतिशत क्षेत्र को कवर करती हैं। हालाँकि कुल जनसंख्या की दो तिहाई आबादी शेष 30 फीसद हिस्से में रहती है। इसका मतलब है कैब छोटे और अधिक घनी आबादी वाले क्षेत्र में प्रभावी होगा।
अब आते हैं मेघालय पर। इस राज्य में भी तीन एडीसी हैं। असम के विपरीत मेघालय में एडीसी लगभग पूरे राज्य को कवर करती हैं। केवल शिलांग का एक छोटा हिस्सा इसके दायरे में नहीं आता है। शिलांग के उस हिस्से में कैब प्रभावी होगा।
इसके बाद अरुणाचल की चर्चा करते हैं। यह पूरा राज्य आइएलपी के तहत कैब के दायरे से दूर होगा।इसी तरह नगालैण्ड में लाइन ऑफ परमिट की व्यवस्था है। इसलिए यह कैब के दायरे से दूर होगा।अब लेते हैं मिजोरम को,तो इस राज्य में भी आएलपी की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त राज्य में तीन एडीसी हैं,जो छठी अनुसूची के तहत संरक्षित है। अब चलते है त्रिपुरा की ओर। इस राज्य में एक एडीसी है,जो 70 प्रतिशत का क्षेत्र कवर करता है। हालाँकि कुल आबादी की दो तिहाई आबादी शेष 30प्रतिशत हिस्से में रहती है। इसका मतलब है कैब छोटे और अधिक घनी आबादी वाले क्षेत्रों से प्रभावी होगा। अब आखिर में मणिपुर की। इस सम्पूर्ण राज्य को भी आइएलपी का संरक्षण प्राप्त है। हालाँकि, पहले यह संरक्षित नहीं था, लेकिन संसद में नागरिकता बिल पेश किये जाने के बाद सरकार ने यहाँ भी आइएलपी की व्यवस्था लागू कर दी।
एक सवाल यह भी है कि धर्म/मजहब के नाम पर जो मुसलमान पाकिस्तान जाकर बसे थे,उन्हें भारत में क्यों आना चाहिए?वैसे भी मुसलमानों को एक वर्ग बार-बार यह कहता आया है कि भारत में असहिष्णुता बढ़ गई और उन्हें डर लगता है। वैसे भी ये वर्ग शरीयत के मुताबिक जीना चाहता हैं,तो उन्हें भारत आने की जरूरत ही क्या है?
नागरिकता संशोधन विधेयक के माध्यम से धार्मिक कारणों से प्रताड़ित हिन्दू,सिख,जैन,बौद्ध,ईसाई,पारसी शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देना असंवैधानिक,समानता के अधिकार का हनन बन जाता है और इन्हीं तीनों मुस्लिम बहुल मुल्कांे बेहतर जिन्दगी जीवन जीने या रोजगार की तलाश में आए मुस्लिम घुसपैठियों को वोट बैंक की बनाने के लिए फर्जी दस्तावेज बनाकर मतदाता बनाना वैध,मानवीयता काम है। यह भारत के तथाकथित पंथनिरपेक्षता और उसकी आड़ मेें मुस्लिम तुष्टीकरण का सबसे विद्रूप और शर्मनाक उदाहरण है,जिनके लिए देश की सुरक्षा ,उसके हितों से बढ़कर सत्ता है। इसके लिए उन्हें देश को बदनाम करने से लेकर हिंसा की आग में झोंकने में तनिक भी संकोच नहीं होता।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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