डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों मशहूर फिल्म गीतकार, संवाद लेखक, मकबूल शायर जावेद अख्तर द्वारा एक टी.वी. चैनल को साक्षात्कार के दौरान दुनियाभर के दक्षिणपन्थियों में अद्भुत समानता बताते हुए उनका यह कहना कि जहाँँ ‘तालिबान’ अफगानिस्तान को ‘इस्लामिक मुल्क’ बनाना चाहता है, वहीं ये लोग भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’। भले ही ऐसा करते हुए उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) और ‘विश्व हिन्दू परिषद्’ (विहिप) का नाम नहीं लिया, पर उनका इशारा किसकी ओर है, यह समझना कतई मुश्किल नहीं है। उनका खूंखार कट्टरपन्थी इस्लामिक दहशतगर्द ‘तालिबान’ से हिन्दू संगठनों से तुलना करने सवर्था अनुचित और औचित्यहीन है। निश्चय ही जावेद अख्तर के इस बेतुके बयान से उनके प्रशंसकों को भी गहरी निराशा और भावनाओं को आघात लगा होगा, जो उनकी शायरी, उनके लिखे भावात्मक फिल्मी गीतों और संवेदनशील और बौद्धिकतापूर्ण संवादों के मुरीद रहे हैं। अब उस तालिबान की हिमायत में उनके बयान को लेकर लोगों में भारी नाराजगी है जिसकी अफगानिस्तान में हुकूमत कायम होते ही हजारों की तादाद मंे लोग सब कुछ छोड़कर अपनी जान और औरतों की आबरू की हिफाजत के लिए वतन छोड़ने को मजूबर बने हुए हंै, क्योंकि उन्होंने तालिबानों की 1996 से नवम्बर, 2001 की हुकूमत के दौर को देखा और भुगता है। उस वक्त इन तालिबानों की हैवानियत, दरिन्दगी, जुल्मों, औरतों का अगवा कर जबरदस्ती निकाह, बलात्कार करने, औरतों के बगैर हिज्ब, बुर्का, बिना रिश्तेदार मर्द के अकेले घर से निकलने, पढ़ाई-लिखाई से लेकर नौकरी करने पर पाबन्दी लगाने, अपने से असहमत/विरोधी मुसलमानों, गैर मुसलमानों पर तरह-तरह जुल्म होते देखा था। तालिबानों की दहशतगर्दी के डर से कुछ अफगानिस्तानी हवाई जहाज से लटक कर , तो कुछ हवाई अड्डे के पास गन्दे पानी के नाले में कई-कई घण्टे खड़े होकर उसमें दाखिल होने को जदोजहद करते रहे। ऊपर से तालिबानी उन पर कोढे़ और गोलियाँ बरसा रहे थे। गत दिनों मुम्बई के लोगों अपने हाथों में जावेद अख्तर की तस्वीर लेकर उस पर कालिख पोती और उनके खिलाफ जमकर नारेबाजी की। लोगों के गुस्से को देखते हुए अब सरकार उनके घर के बाहर सुरक्षा कड़ी कर दी है। भाजपा विधायक और महाराष्ट्र इकाई के प्रवक्ता राम कदम ने कहा कि जब तक वह टिप्पणी के लिए माफी नहीं माँगते, ऐसी किसी भी फिल्म के प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी जाएगी, जिसमें वह शामिल हों। महाराष्ट्र सरकार में साझीदार शिवसेना ने भी जावेद अख्तर के बयान को अनुचित बताया है।
वैसे जावेद अख्तर जैसे अक्लमन्द और शायर, संवाद लेखक, साहित्यिक शख्सियत से ऐसी तुलना किये जाने की कतई उम्मीद नहीं की जानी चाहिए, किन्तु हकीकत यही है कि वे संवेदनशील, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्र, गरीबों, मजदूरों का पक्षधर, मानवतावादी होने का मुखौटा लगाए कट्टरपन्थी मुसलमान हैं, जो समय-समय पर पहले भी अपने मुल्क और हिन्दुओं के खिलाफ के नफरत भरे और हममजहबियों कट्टरपन्थियों के समर्थन में बयानबाजी करते आए हैं। पता नहीं किस मजबूरी में वे और उन जैसे लोग रहते हिन्दुस्तान में ,पर उनका दिल-दिमाग इस्लामिक मुल्कों में रमता है ? जावेद अख्तर भी मुल्क के ‘टुकड़े-टुकड़े गिरोह’, असहिष्णुता के बहाने अवार्ड लौटाने, मुल्क के रहने लायक न होने की तोहमत लगाने वालों की जमात के अहम हिस्से हैं, जिसमें आमिर खान, फरहान अख्तर, नसीरुद्दीन शाह, अनुराग कश्यप, स्वरा भास्कर, तापसी पन्नू, शायर मुनव्वर राणा, सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क आदि शामिल हैं। लेकिन इस बार अच्छी बात यह रही कि अपने पुराने रुख-रवैये से हटकर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने तालिबान को हैवान बताते हुए न सिर्फ उसकी मजम्मत की, बल्कि इस्लाम में सुधार लाने की नसीहत भी दी है। लेकिन उनके इस बयान की किसी भी खुन्दा के बन्दे ने तारीफ नहीं की,उल्टे इससे नाराज होकर मुल्ला-मौलवियों ने उनकी यह कहते हुए जमकर आलोचना की है कि उन्हें इस्लाम के बारे में कोई जानकारी नहीं है। वैसे जावेद अख्तर समेत कट्टरपन्थी मुसलमानों की तकलीफ, बेचैनी, परेशानी की सबसे बड़ी वजह केन्द्र में भाजपा का सत्तारूढ़ होना, उसके द्वारा जम्मू-कश्मीर के खास दर्जे देने वाले अनुच्छेद 370 और 35 ए का खत्म कर देना, एक साथ तीन तलाक को गैर कानूनी ठहराना है। इससे इन जैसे को हिन्दुस्तान में ‘गजवा-ए-हिन्द’ कायम होने का ख्वाब टूट जाना रहा है। अब उन्हें अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत कायम होने से फिर से अपना ख्वाब पूरा होने की उम्मीद बँधी है। फिर जावेद अख्तर यह बताएँ, भारत में ऐसा कौन-सा हिन्दू संगठन हंै, जो ‘तालिबान’ और दूसरे इस्लामिक दहशतगर्द संगठन ‘अलकायदा’, ’आइ.एस.आइ.एस’.,जैश-‘ए-मुहम्मद‘, ‘लश्कर-ए-तैयबा’, ‘तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान‘(टीटीपी), ‘हक्कानी नेटवर्क’,हिजबुल मुजाहिदीन आदि की तरह एक से एक बढ़कर अत्याधुनिक घातक हथियार लेकर भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाने का अभियान चला रहा है।क्या उनके पसन्दीदा इस्लामिक दहशतगर्द संगठनों की तरह हिन्दुओं के किस संगठन ने मुसलमानों का कत्ल-ए-आम किया है? कश्मीर घाटी से हिन्दुओं को किसने मारकाट कर पलायन को मजबूर किया था? इसके विपरीत इस्लामिक दहशतगर्द संगठन भारत समेत दुनियाभर के मुल्कों में जगह-जगह ‘अल्लाहू अकबर’ का नारा लगाते हुए आत्मघाती हमलों में बम विस्फोटों या अन्धाधुन्ध गोलीबारी या धारदार हथियार से गर्दन काटकर बेगुनाह का खून बहाकर अपनी दहशतगर्दी के दम पर ‘निजाम-ए-मुस्तफा’ कायम करने के लिए जिहाद कर रहे हैं। अब जहाँ अपने देश में सपा के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क, शायर मुनव्वर राना, मुस्लिम पर्सनल लाॅ के सदस्य सज्जाद नौमानी, जम्मू-कश्मीर की पूर्वमुख्यमंत्री तथा पीडीपी की अध्यक्ष्स महबूबा मुफ्ती,नेशनल काॅन्फ्रेंस के अध्यक्ष, पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व केन्द्रीयमंत्री डाॅ.फारूक अब्दुल्ला आदि तालिबानी दहशतगर्दों के अफगानिस्तान पर बन्दूक के जोर पर कब्जे को जायज ठहराते हुए उन्हें आजादी के लड़ाके बताते हुए उनका खैरमखदम कर रहे हैं, तो दुनिया के दूसरे इस्लामिक मुल्क भी उनकी दहशतगर्दी को खामोशी से देख रहे हंै। क्या उन्हें अफगानिस्तान के लोगों खासतौर पर युवक, युवतियों, महिलाओं और लोगों की तकलीफ नहीं दिखायी देती, जिसकी वजह से तालिबान की हुकूमत की मुखालफत कर रहे हैं? सच्चाई यह है कि उनकी यह खामोशी से पूरे मजहब को बदनाम करने वाली है, जो अमन-चैन, इन्सानियत , बराबरी, खातूनों को इज्जत और भाईचारे को बढ़ावा देने वाला बताया जाता रहा है।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.न.9411684054
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