देश-दुनिया

तालिबानों के जुल्मों पर हैरान करने वाली खामोशी ?

डाॅ. बचन सिंह सिकरवार
इसी पन्द्रह अगस्त अफगानिस्तान पर दुर्दान्त खूंखार दहशतगर्द इस्लामिक संगठन तालिबान के कब्जे के बाद से उससे खौफजदां अफगान नागरिक अपने परिवार समेत मुल्क छोड़कर दूसरे देशों में पनाह लेने को काबुल के हवाई अड्डे पर जमे हुए है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि दुनिया के 50 से ज्यादा मुस्लिम मुल्कों में से कोई भी अपने इन परेशान हममजहबियों को पनाह देने को आगे नहीं आया है। यहाँ तक कि मुस्लिम जगत् का फिर से खलीफा बनने की कोशिश कर रहे तुर्की ने तो अफगानिस्तान के शरणार्थियों को अपने यहाँ आने से रोकने के लिए सरहद पर बहुत लम्बी दीवार खड़ी कर दी। अपने तक कि यहाँ अफगान शरणार्थियों को शरण देने के अमेरिकी आग्रह को अभी तक बांग्लादेश, कजाखस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, कतर जैसे देश भी नकार चुके हैं, ये सभी मुस्लिम बहुल देश हैं, जबकि अमेरिका समेत ईसाई बहुल तमाम पश्चिमी मुल्क अफगान शरणार्थियों को खुशी-खुशी अपने यहाँ आने का आमतंत्रण दे रहे हैं। वह भी यह जानते हैं कि जिन-जिन मुल्कों ने रहम खाते हुए मुसलमानों को अपने मुल्क में शरण और रोजगार दिया, वे ही अपनी कट्टरपन्थी मजहबी रवैये के चलते उनके लिए मुसीबतें पैदा करते आए हैं। वैसे अमेरिका, यूरोप या फिर भारत में किसी एक भी मुसलमान के साथ कुछ हो जाए, तो इन मुल्कों के बाशिन्दे उसके विरोध में सड़कों पर उतर आते हैं। भारत में भी पैगम्बर मुहम्मद साहब का कार्टून फ्रान्स में प्रकाशित होने या फिर उसके शिक्षक के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उदाहरण देने पर उसकी मुसलमान छात्र द्वारा उसकी बर्बर तरीके हत्या, उसके बाद फ्रान्स के राष्ट्रपति मैक्रो के ऐसी अभिव्यक्ति पर पाबन्दी लगाने से इन्कार करने पर अपने देश में कट्टरपन्थियों कितना उपद्रव मचाया था,उसे देश भूला नहीं है। फलस्तीन और इजरायल की जंग के वक्त भारत में ये लोग कैसी प्रतिक्रिया देते आए हैं,सभी जानते हैं। ऐसे ही अमेरिका के इराक पर हमले पर कट्टरपन्थी अमेरिका के खिलाफ लामबद्ध होकर विरोध जताने लगे थे। वैसे अफगानिस्तान के लोगों के साथ इस्लामिक मुल्कों के इस रवैये को देखकर यही कहा जा सकता है कि इनका मुस्लिम भाईचारा कोरा दिखावा है,नहीं तो क्या मुसीबत में ऐसे मुँह फेर लिया जाता है? इसी तरह अफगानिस्तान के मामले में संयुक्त राष्ट्र संघ की उदासीनता ने उसे एक बार फिर से निरर्थक और खोखला साबित कर दिया है।
अब अफगानिस्तान में काबिज होते ही तालिबानों ने अपना पुराना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। उन्होंने दोहा में हुए समझौते की शर्तों को एक-एक तोड़ रहे हंै। ये लोग घरों में घुसकर तलाशी लेने के बहाने लूटपाट, किशोरियों, युवतियों को ही नहीं, किशोरों को भी अपनी हवस का शिकार बना रहे हैं, ,जबकि पहले महिलाओं की इज्जत करने का वादा कर रहे थे। । यहाँ तक कि कुछ तो महिलाओं की लाशों के साथ बलात्कार करने से नहीं चूके हैं। कुछ कम उम्र की लड़कियों का अपहरण कर जबरदस्ती ज्यादा उम्र के तालिबानों से निकाह करा रहे हैं। सड़कों पर भी आते-जाते लोगों का भी उत्पीड़न करते हुए अकारण उन पर गोलीबारी चला देते हंै। हजारा मुसलमानों के सामने उनके बच्चों को गोली मारने, युवाओं को फाँसी दे रहे हैं। इतना ही नहीं, बूढ़ों को भी जान लिए बगैर नहीं छोड़ रहे हैं। अब बगैर बुर्के और निकट रिश्तेदार के बिना महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर पाबन्दी है। उनके नौकरी करने की मनाही है। अफगानिस्तान में संगीत,नाचने-गाने पर, फिल्म, टी.वी. देखने पर रोक लगा दी गई है। तालिबानी अफगान सैनिकों, पुलिस और सरकारी अधिकारियों,कर्मचारियों तथा उनके घरों वालों के साथ मारपीट और बदसलूकी कर रहे हैं। उनकी जुल्मों से खौफजदां अफगानी मुसलमान अपना सब कुछ ही नहीं, मुल्क छोड़ कर कहीं भी जाकर बसने को मजबूर हैं, इसके लिए काबुल हवाई अड्डे में प्रवेश के लिए गन्दे नाले के पानी में खड़े होने को तैयार हैं। शुरू-शुरू में कुछ अफगान नागरिक हवाई जहाज के पहियों से लटक देश छोड़ने की कोशिश में अपनी जानें गंवा चुके हैं। अफगान महिलाएँ अपने बच्चों की जान बचाने को अमेरिकी सैनिकों को सौंप रही हैं। कुछ अफगान महिला पुलिस अधिकारी भारत में शरण लेने आई हुई हैं, इनमें से खातिरा हाशिमी की तालिबान आँखें फोड़ चुके हैं। पाॅप स्टार आर्याना सईद समेत दूसरे कलाकार अपनी जान बचाने को दूसरे मुल्कों पनाह लेने को मुल्क छोड़ चुके हैं।अफगान हास्य कलाकार को तालिबानों ने बर्बरता से गला काट कर मार डाला। अफगानिस्तान के दो अफगान सिख सांसद भी भारत में पनाह लेने का मजबूर हुए हैं।
ताजुब्ब की बात यह है कि इसके बावजूद दुनियाभर के मुस्लिम मुल्क, अमेरिका, पश्चिम देशों के बड़े-बड़े नेता ही नहीं, भारत के वे सभी मुल्ला, मौलवी, मुसलमान नेता, दूसरे मुसलमान और उनके हमदर्द बु़िद्धजीवी, साहित्यकार, कलाकार, मानवाधिकारवादी, वामपन्थी के अफगानिस्तान के हालात पर खामोश बने हुए हैं। अब अपने देश में मुसलमानों के सबसे बड़े स्वयम्भू नेता एआइएमआइएम के नेता असद्दुदीन ओवैसी, पीडी.पी.की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती, नेकां डाॅ.फारूक अब्दुल्ला,उमर अब्दुल्ला, गीतकार जावेद अख्तर, फिल्म अभिनेता आमिर खान, अभिनेत्री तापसी पानु , स्वरा भास्कर, फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप,वाम नेत्री वृन्दा करात आदि की चुप्पी हैरान करने वाली है। वैसे भी इनसे तालिबानों की मजम्मत की उम्मीद करना ही फिजूल है, पर उनकी हालत पर इन्होंने अभी अफसोस तक नहीं जताया है।वैसे ये वही लोग हैं, जिन्हें किसी गो चोर, तस्कर या अपराधी के मारे जाने पर भारत में हर जगह असहिष्णुता और देश रहने के लायक नहीं नजर आता है। वैसे इन इस्लामिक कट्टरपन्थियों से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या ये ऐसा शरिया निजाम पूरी दुनिया में लागू करना चाहते हैं?क्या हममजहबी का जुल्म -जुल्म नहीं होता?या फिर भी जुल्मी के मजहब को देखकर जुल्म का रोना रोया या बगैर वजह बदनाम किया जाता है? या फिर ये लोग भी इस्लामिक कट्टरपन्थियों की तरह इन तालिबानों को इस्लाम का मुजाहिद मान रहे हैं, जो पूरी दुनिया को ‘दारूल इस्लाम’ में तब्दील करने का अपना ख्वाब पूरा होता देख रहे हैं।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार, 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.न.9411684054

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