डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में बसपा की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती द्वारा ब्राह्मणों को अपनी पार्टी की तरफ आकर्षित करने और उन्हें जोड़ने के इरादे से आयोजित प्रबुद्ध वर्ग विचार गोष्ठी में यह कह कर कि दलित, पिछड़े समाज के महापुरुषों के नाम पर स्मारक, पार्क और प्रतिमाएँ अब वह नहीं स्थापित करेंगी, बल्कि सत्ता में आने पर अपनी पूरी ताकत उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदलने में लगाएगीं। यदि मायावती ऐसा वादा करती या भरोसा दिलाती हैं, तो उनका यह एक अच्छा कदम होगा। मायावती कई बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, पर वे अब तक कुछ ऐसा करके दिखा नहीं पायी हैं, जो उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों से भिन्न हो या फिर याद करने योग्य हो। लेकिन जिस जनता और सियासी पार्टियों की मदद से वह सत्ताशीर्ष पर पहुँची थीं, उनके साथ कितना वादा निभा चुकी हैं, उसे देश और प्रदेश के लोग भूल गए होंगे, ऐसा नहीं लगता। इसलिए उनकी फितरत का ख्याल आते ही, उनके वादे पर ब्राह्मण आसानी से ऐतबार करेंगे, यह कहना जरा मुश्किल है।
वैसे अपने पिछले शासन काल में उन्होंने कितनी खुद का और अपने खानदान के हितों का ख्याल रखा तथा कितना दलितों, पिछड़ों, मुसलमानों, ब्राह्मणों का, यह कहने-लिखने की जरूरत नहीं है ? ऐसे में ब्राह्मणों को किसी खास तवज्जो दिये जाने की बात सोचना ही फिजूल है। वह भी तब जब ब्राह्मणों ने अपने सीने पर पत्थर रखकर बसपा को वोट दिया था, जिसके नेता तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो ………….का नारा लगाते हुए हर समय कोसते और गरियाते रहते थे। वह स्वयं भी सवर्णों के विरुद्ध विष वमन करने में कभी पीछे नहीं रही हैं। सत्ता के अहंकार में उन्होंने अपने महापुरुषों के नाम पर जिलों, विश्वविद्यालयों, संस्थानों के नाम बदले। ऐसा करते हुए दूसरी जातियों की भावनाओं का कतई ध्यान नहीं रखा। उन्होंने पूरे प्रदेश का इतिहास-भूगोल बदलने की भरपूर कोशिश की। कालान्तर में सपा के नेता मुलायम सिंह यादव और भाजपा के नेता कल्याण सिंह उस पर कुछ हद लगाम लगायी। उनका बस चलता तो सम्भवतः मुल्क का नाम और मुद्राओं पर छपे चित्रों में भी फेदबदल कर देतीं। फिर सत्ता में रहते और उससे बेदखल होने के बाद भी मायावती ने कब-कब और कहाँ-कहाँ अपने गरीब-गुरबा समर्थकों से मुलाकात की है, याद नहीं आता। अब अपनी कथित नई सोशल इंजीनियरिंग की जुगाड़ की कोशिश में मायावती ने यह सब कहकर उन्होंने अपनी पिछली सरकार की उस चूक/गलती को एक तरह से मंजूर कर लिया है। उस समय उन्होंने अपने समर्थक दलित, पिछड़ी जातियों, मुसलमानों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के बजाय दलित अस्मिता नाम पर खुद को उनका मसीहा साबित करने और नया इतिहास गढ़ने इरादे से न केवल दलित, पिछड़े के महापुरुषों समेत कांशीराम और स्वयं की प्रतिमाएँ, स्मारकों, पार्कों के निर्माण पर राज्य के सारे आर्थिक संसाधन झौंक दिये थे, जिनमें अरबों रुपए का घोटाला भी हुआ था। कोई 14 अरब रुपए से अधिक घोटाले में गहन जाँच के बाद सैकड़ों अधिकारियों, इंजीनियरों, नेताओं के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया जा रहा है। उनके शासन में पुलिस-प्रशासनिक शीर्ष और प्रमुख पदों पर एक विशेष जाति के अधिकारियों को पदस्थ किया गया था, यह भी किसी से छुपा नहीं है। बाद में मायावती के सुशासन की स्थिति यह थी कि उनके मंत्रिमण्डल के कई मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने गिनती के मंत्रियों, पार्टी के पदाधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारियों के सिवाय किसी आमजन से भेंट नहीं की। अब जब चुनाव निकट आ गया है, तो उन्हें फिर ब्राह्मणों की याद सताने लगी हैं, क्योंकि उनके खुद के रुख-रवैये और खुद की जाति से अलग दलित और पिछड़ी जातियों को दरकिनार करने से, ये जातियाँ उनसे किनारा कर चुकी हैं। अब मायावती ब्राह्मणों को यह कहकर भरमा रही हैं कि भाजपा शासन काल में उनके उत्पीड़न की दिल दहलाने वाली घटनाएँ हुई हैं, बसपा सरकार बनने पर ऐसे सभी मामलों की उच्च स्तरीय जाँच कराके दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। पीड़ितों का न्याय और उनके आर्थिक नुकसान की भरपाई की जाएगी। दरअसल, बिकरू काण्ड में पुलिस पर हमले विकास दुबे और उसके गिरोह के सदस्यों के बाद उसकी कार्रवाई को ब्राह्मणों पर जुल्म बताया जा रहा है, जबकि विकास दुबे और साथियों ने सबसे ज्यादा ब्राह्मणों को ही सताया तथा उनकी जानें ली थीं। इसी तरह सपा के एमएलसी कमलेश पाठक जिन हत्याओं के आरोपी होने के कारण जेल में हैं, वे सभी ब्राह्मण थे। विधायक विजय मिश्र ने भी अपने रिश्तेदारों की जबरदस्ती तथा धोखे से सम्पत्ति अपने नाम करा ली थी। इन गुनाह की ही वह अब सजा काट रहे हैं। फिर ब्राह्मणों का बरगलाने के लिए काँग्रेस, सपा और बसपा भाजपा सरकार के दौरान उनके उत्पीड़न का झूठा बराबर झूठ आरोप लगाती आ रही है। अब प्रश्न यह है कि क्या ब्राह्मण इतने नासमझ हैं, जो इनके भरमाने में आ जाएँगे ? इसी तरह उ.प्र.की वर्तमान सरकार ने जिन भूमाफिया सियासी मुस्लिम नेताओं की सम्पत्ति जब्त की है या ध्वस्त की है, वह उनके द्वारा गैर कानूनी तरीके से हड़पी या कमाई हुई थीं। उनके हिन्दू साथियों को भी बख्शा नहीं गया है। सर्वोच्च न्यायालय के दलित उत्पीड़न रोकने के लिए बने कानून के तहत आरोपित की बगैर जाँच के गिरफ्तारी पर रोक लगाने के फैसले पर बसपा और उसकी मानसिकता के लोगों के उसकावे/भड़कावे पर कैसी हिंसा और आगजनी की गई थी, उसे सवर्ण भूल गये हों, ऐसा नहीं लगता।
अब मायावती अपनी पार्टी के लिए वोट जुटाने के लिए विभिन्न वर्गों को तरह-तरह के वादे कर रही है। इसी दिशा में उन्होंने जहाँँ किसानों को अपने पक्ष में लाने के लिए उ.प्र. में तीनों कृषि कानून लागू नहीं होने देने का विश्वास दिलाया है, वहीं वित्तविहीन शिक्षकों के लिए आयोग का गठन का।
अब देखना यह है कि 2022 में होने जा रहे विधानसभा के चुनाव में सफलता पाने के लिए बसपा अध्यक्ष मायावती ने जो चुनावी रणनीति बनायी है और उसमें कामयाबी पाने के लिए वे लोगों से कई तरह के वादे कर रही हंै, उन पर कितने लोगों को ऐतबार दिलाने में वे कामयाब हो पाती हंै, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.न.9411684054
फिर भी ऐतबार करेंगे ब्राह्मण ?

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