श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव
डॉ.बचन सिंह सिकरवार

हाल में हिन्द महासागर में स्थित द्वीप राष्ट्र श्रीलंका में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में ‘श्रीलंका पोदुजना पेरामुना’(एस.एल.पी.पी.)के प्रत्याशी पूर्व रक्षामंत्री और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के अनुज गोताबाया राजपक्षे विजयी रहे हैं। गत 18 नवम्बर को उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ भी ले ली है। गोताबाया की चुनावी सफलता से जहाँ इस देश के बहुसंख्यक सिंहली बेहद खुश और उत्साहित है, वहीं अल्पसंख्यक तमिल और मुसलमान उनसे संशकित हैं। इसके दोनों के लिए अपने-अपने कारण् हैं। सन् 2009 में रक्षामंत्री रहते गोताबाया ने अलगाववादी संगठन ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ (एल.टी.टी.ई.)के विरुद्ध सैन्य अभियान का सफल नेतृत्व किया था, जो इस देश में सिंहलियों समर्थक सरकार द्वारा तमिलों के साथ होने वाले तरह-तरह के भेदभावों के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छेड़े हुए था। गोताबाया ने इस संगठन का समूल विनाश कर श्रीलंकर में गृहयुद्ध का अन्त किया। इसके बाद गत वर्ष यहाँ ईसाइयों के पर्व ईस्टर पर इस्लामिक आतंकवादियों ने गिरजाघरों पर बम विस्फोट किये, जिनमें 250 से अधिक लोगों की मौतें हुई थीं। ये बम धमाके कट्टरपन्थी मुसलमानों ने किये थे, जिन्हें विदेशी इस्लामिक जेहादी संगठन की मदद मिली हुई थी। तब जाँच में इनमें से कुछ का दक्षिण भारत के कट्टरपन्थियों से सम्बन्ध होने के प्रमाण मिले थे। इसकी वजह से सरकार अपने मुल्क के मुसलमानों को शक की निगाह से देखती है।
वैसे तो किसी भी देश का कौन राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनेगा, यह उसके लोगों का मसला है, पर श्रीलंका में हुए सत्ता परिवर्तन से भारत भी संशक्ति है। इसका कारण यह है कि पड़ोसी देशों के शासकों की रीति-नीतियाँ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से आसपास के देश भी प्रभावित होते हैं। अब राष्ट्रपति पद सम्हालने वाले गोताबाया राजपक्षे पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई हैं, उनके बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में उन्होंने चीन को अपने यहाँ बहुत अधिक छूटे दी हुई थीं। यहाँ तक कि हिन्द महासागर मे स्थित सामरिक महŸव के बन्दरगाह हवनटोटा को एक तरह से उसके हवाले कर दिया था। इससे भारत की सुरक्षा को गम्भीर खतरा उत्पन्न हो गया था। यही कारण है कि उनके सत्ता सम्हालते ही भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर श्रीलंका पहुँच गए। उन्होंने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति गोताबाया राजपक्षे को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भारत आने का निमंत्रण भी दिया है, जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया। सन् 2015 में जब श्रीलंका में चुनाव हुए थे, तब मैत्रीपाला सिरिसेना विजयी हुए थे। उस समय उनके विदेशमंत्री मंगल समरवीरा को पाँचवें भारत आमंत्रित किया गया था। इस बार भारत के विदेश मंत्री स्वयं श्रीलंका पहुँच गए। इससे स्पष्ट है कि भारत के लिए श्रीलंका की कितनी अहमियत है ? कारण यह है कि भारत के श्रीलंका से प्राचीन काल से ही राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक सम्बन्ध रहे हैं, फिर भी चीन इस मुल्क में अपनी गहरी पैठ बनाने में सफल रहा है। उसने श्रीलंका को आर्थिक सहायता के बहाने कर्ज के जाल में फँसा लिया है। अब भी यह सामुद्रिक क्षेत्र की सुरक्षा की दृष्टि से भारत के लिए महŸवपूर्ण है,जहाँ भारत का प्रतिद्वन्द्वी देश चीन उसे हर तरह से अपने जाल में फँसाने में जुटा है। श्रीलंका में तमिल बड़ी संख्या में निवास करते हैं, जिनके पूर्वज दक्षिण भारत के तमिलनाडु से कुछ सौ साल पहले जाकर बसे हैं, उनसे तमिलनाडु के लोगों के साथ गहरी सहानुभूति बनी रही है।

इसी कारण लिट्टे के सदस्य तमिलनाडु में आसरा पाते रहे थे। भारत सरकार ने भी प्रारम्भ में लिट्टे की सहायता की, पर बाद में उसके दमन के लिए ‘शान्ति बनाए रखने को श्रीलंका की मदद में सेना भेजी। तब लिट्टे ने भारतीय सैनिकों की नृशंस ढंग से उनकी हत्याएँ की थी। इस प्रकरण के कारण भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की लिट्टे के सदस्यों ने तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदुर में आत्मघाती हमले में हत्या कर दी थी। इसके बावजूद श्रीलंका भारत को सन्देह की नजर से देखता आया है।
श्रीलंका में गत 16 नवम्बर को हुए राष्ट्रपति के चुनाव में गोतबाया को 52.52 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हैं। इन्हें सिंहली बहुसंख्यक इलाकों में एकतरफा जीत मिली है, पर कुल 25 प्रशासनिक जिलों में से 16 में जहा गोतबाया को अपार सफलता मिली हैं, वहीं तमिल तथा मुसमलमान बहुल उत्तरी और पूर्वी प्रान्तों में उन्हें अन्य प्रत्याशियों की अपेक्षा बहुत ही कम मत प्राप्त हुए हैं।स्पष्ट है कि इन क्षेत्रों के लोग गोतबाया को पसन्द नहीं करते हैं और उनकी पराजय चाहते थे। वैसे भी गोतबाया राजपक्षे ने जिस सख्ती और क्रूरता से तमिलों के संगठन का दमन किया था,उसे विश्व के अन्य देशों ने भी निन्दा की थी। वैसे दुनिया गोतबाया के बारे में कुछ भी सोचे या कहे,उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। यही वजह है कि शपथ समारोह के बाद यह कहने में संकोच नहीं दिखाया,‘‘ मुझे पता है कि मैं सिंहली बहुसंख्यकों के समर्थन के चलते इस पर पर पहुँचा हूँ, लेकिन मैं अल्पसंख्यकों से अपील करता हूँ कि वह भी मेरे साथ आएँ। मुझे उनका समर्थन नहीं मिला, किन्तु मैं यह सुनिश्चित करूँगा कि बतौर राष्ट्रपति सभी के साथ न्याय कर सकूँ। उन्होंने अपने देश के लोगों से यह छिपाना भी जरूरी नहीं समझा कि उनके लिए बौद्ध धर्म ही सर्वोपरि है।पर किसी भी समुदाय का अहित नहीं होने दिया जाएगा।
गोतबाया राजपक्षे ने अपने प्रथम टी.वी.सम्बोधन में दुनिया के देशों को सम्बोघित करते हुए कहा,‘‘ श्रीलंका सभी देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध रखेगा, लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय शक्तियों के मध्य होने वाले किसी भी सम्भावित संघर्ष के दौरान तटस्थ रहेगा। उन्होंने देश की राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी संकल्प लिया।
बड़े भाई महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति बनने के पश्चात् 2005 में अपने अनुज गोतबाया राजपक्षे को रक्षामंत्री बनाया था।इसके उपरान्त सन् 2009में लिट्टे के खिलाफ सैन्य अभियान की कमान सम्हाली और उसमें कामयाब भी हुए।अब अनुमान लगाया जा रहा है कि राष्ट्रपति चुने जाने के बाद गोतबाया भी अपने बड़े भाई और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकते हैं। राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे के सत्ता सम्हालने के बाद यह समझा जा रहा है कि श्रीलंका को जल्दी संसदीय दल जल्द ही बैठक कर भविष्य की रणनीति तय करेगा। श्रीलंका के संविधान के अनुसार वर्तमान प्रधानमंत्री को तब तक नहीं हटाया सकता ,जब तक कि वह स्वयं त्यागपत्र नहीं दे देते। लेकिन माना जा रहा है कि गोतबाया के राष्ट्रपति बनने के बाद प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे पर पद छोड़ने का दबाव है। फिलहाल, अब देखना यह है कि भारत सरकार गोताबाया को चीन के मोहपाश से अलग कर अपने पक्ष में कितना कर पाती है?
सम्पर्क- डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब, गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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