देश-दुनिया

इन्सानियत हार होगी,तालिबान की फतेह

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद से एक बार फिर खूंखार, बहशी इस्लामिक संगठन ‘तालिबान’ अपने जैसे दूसरे मजहबी दहशतगर्द गिरोहों लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, तालिबान पाकिस्तान, अलकायदा, इस्लामिक स्टेट (आइ.एस.)आदि का साथ, पाकिस्तान,उसके सैनिकों,गुप्तचर एजेन्सी आइ.एस.आइ. और चीन की हिमायत और इमदाद के जोर पर इस मुल्क पर फिर से कब्जे करने केे लिए कत्ले-ए-आम करता आगे बढ़ रहा है, उसने अफगानिस्तान के 80 फीसद से ज्यादा जमीनी इलाके तथा डेढ़ दर्जन से अधिक प्रान्तीय राजधानियों पर कब्जा कर लिया है।अफगानिस्तान के 3लाख से अधिक नागरिक पलायन कर पड़ोसी मुल्कों में पनाह लिए हुए हैं। अपनी और अपनों की हिफाजत हर रोज बड़ी तादाद में राजधानी काबुल पहुँच रहे हैं। अफगानिस्तान के 4हजार से ज्यादा सैनिक मारे जा चुके हैं और बड़ी संख्या में घायल हैं। यहाँ तक कि हर रोज हथियार डाल कर उसके सैनिक तालिबानों के आगे आत्मसमर्पण कर रहे हैं, फिर भी तालिबान उनकी जान लेने से बाज नहीं आ रहा है। वह लेखक,पत्रकार, बुद्धिजीवियों के साथ-साथ तमाम बेकसूर लोगों, औरतों, बच्चों को भी मार रहा है, जो उसके मुताबिक या तो शरीयत के उसूलों न चल रहे थे या फिर मौजूदा अफगान सरकार के हिमायती रहे हैं। अफगान वायु सेना और अमेरिका के बी 52 विमानों की तालिबानों पर बम वर्षा से तालिबान के मारने के साथ-साथ बड़ी संख्या इमारतें और दूसरी सम्पत्तियाँ बर्बाद हो रही हैं। हालात ये हैं कि कड़ी सुरक्षा व्यवस्था वाली राजधानी काबुल में कार्यवाहक रक्षामंत्री के घर के सामने कार में विस्फोट तालिबानियों ने उनके घर पर हमला बोल दिया। तालिबान ने राष्ट्रपति अशरफ गनी के प्रवक्ता दावा खान मेनपाल की गोली मार कर हत्या कर दी गई। अफगानिस्तान के वित्तमंत्री खालिद पायन्दा इस्तीफा देकर मुल्क छोड़ चले गए हैं। रक्षामंत्री और सेनाध्यक्ष बदल दिये गए हैं, फिर भी अफगानिस्तान के हालात में सुधार आता नजर नहीं आ रहा है। यह स्थिति तब है, जब तालिबानियों की तादाद महज 60 हजार और अफगानिस्तान सेना में 3 लाख सैनिक हैं, वह भी अमेरिका के प्रशिक्षित और उसके ही हथियारों से लैस। उसके पास लड़ाकू विमान भी हैं। फिर भी अफगान सेना तालिबानों से मात क्यों खा रही है? वैसे उनके नाकामी की एक बड़ी वजह तालिबानों और अफगान सैनिकों का पख्तून होना लगता है, जिनके लिए मुल्क के सम्मान और उसकी हिफाजत से कहीं ज्यादा अहम उनका अपना कबीला और मजहबी कट्टरता है। अफगानिस्तान में पख्तूनों की सबसे बड़ी आबादी है,जो पाकिस्तान से लगती सरहद के आसपास बसी है। पाकिस्तान में भी काफी संख्या में पख्तून है, जिन्हें सन् 1947 में अँग्रेजों ने डूरण्ड रेखा के जरिए जुदा कर दिया था, किन्तु पख्तूनों ने इसे कभी मंजूर नहीं किया।फिर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पख्तून एक होकर ‘पख्तूनिस्तान’ बनाना चाहते हैं। अफगानिस्तान में ताजिक, उज्बक, हजारा समुदाय के मुसलमान कम संख्या में हैं, जो उत्तर-पूर्व में ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान से लगी सीमा के पास बसे हुए हैं। ये तालिबानों के खिलाफ हैं।
इधर, तालिबान की बर्बरता, जुल्म, दहशतगर्दी को झेल और देख चुके यहाँ के लोग अब तालिबान पर नकेल कसने केे लिए संयुक्त राष्ट्रª सुरक्षा परिषद् से लेकर अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रान्स से सहायता के गुहार लगा रहे हैं। लेकिन ये सभी द्वापर के काल के ‘महाभारत’ की दुर्योधन के सभा के महारथियों तरह खामोशी से अफगानिस्तान रूपी द्रौपदी का चीर हरण होते देख रहे हैं। यह सब देखते हुए लगता है कि युग भले ही बदल गए हांे, पर यह सच्चाई अपनी जगह स्थिर है कि ‘दुनिया में शक्ति का ही बोलवाला होता है।’’जिसकी लठ्ठी में दम होता है, वही भैंस को ले जाता है। वैसे अगर शक्ति ही सर्वोपरि है, तो फिर 21वीं सदी में यू.एन.,दूसरे अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के गठन के उद्देश्यों और उनके अस्थित्व के माने क्या हैं? आज अपने महाशक्ति समझने वाले मुल्क और अन्तर्राष्ट्रीय संगठन अफगानिस्तान के लोगों की सुरक्षा के लिए की जा रही गुहार को भले ही नहीं सुन रहे हैं,लेकिन वह वक्त ज्यादा दूर नहीं ,जब उन्हें भी तालिबान की दहशतगर्दी के आग से झुलसना और उसकी बर्बरता को भी झेलना पड़ेगा। ताजुब्ब यह है कि हममजहबी मुल्क और उनका संगठन ‘ओ.आई.सी.‘ (ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कण्ट्रीज’) भी अफगानिस्तान की मदद तो दूर, वह तालिबानों से गैर जरूरी खूनखराब न करने की हिदायत देने में भी नाकाम साबित हो रहा है। क्या मुस्लिम मुल्क तालिबान से डरते हैं, या फिर वे अफगानिस्तान मंे लोकतंत्र का विनाश और यहाँ शरीयत हुकूमत की ख्वाहिश रखते हैं।
चीन अभी से अफगानिस्तान की खनिज सम्पदा पर गिद्ध दृष्टि लगाए हुए हैं। वह तालिबान की फतेह में अपना मुनाफा देख रहा है, पर यह भी तय है कि देरसबेर तालिबान उसके यहाँ शिनजियांग के उइगर मुसलमानों की मदद किये बगैर नहीं मानेंगे,जिन पर चीन हर तरह के जुल्म ढहाता आया है। पाकिस्तान को भी अपना विभाजन झेलना होगा। तालिबान के मजबूत होते ही इन मुल्कों के पख्तून मिलकर पख्तूनिस्तान बना सकते है,जिन्हें से रोक पाना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं होगा। तालिबान अमेरिका को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है, ऐसे में वह अमेरिका को आघात पहुँचाने की कोशिश करता रहेगा।कमोबेश, यही स्थिति भारत की है। वह उसे जम्मू-कश्मीर में अपने आतंकवादी भेजकर अराजकता पैदा करने का भरसक प्रयास करेगा। इस समय रूस अपने पुराने दुश्मन तालिबान से बदला लेने और उसे हराने के बजाय तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास कर रहा है। इससे उसे क्या हासिल होगा,पता नहीं है।
आज अफगानिस्तान का जैसी हालत है, उसके गुनाहगार रूस और अमेरिका हैं, जो तालिबान से अफगानियों की रक्षा करने से बच रहे है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन का कहना है कि उनका देश विगत 20सालों में अफगानिस्तान की सुरक्षा पर अरबों डॉलर खर्च करने के साथ तालिबान से जंग लड़ते हुए बड़ी संख्या में अपने जवानों की शहदत दी है तथा उसके सैकड़ों जवान हमेशा के लिए विकलांग हो गए हैं। उसने अफगानिस्तान में तीन लाख अफगानी सैनिकों को प्रशिक्षित कर उन्हें हथियारों से सुसज्जित भी किया है।अब उन्हें हवाई सहायता दी जा रही है। अब यहाँ के नेताओं को एकजुट होकर तालिबानियों के खिलाफ रणनीति बना कर लड़ना चाहिए। अब अफगानियों का अपने मुल्क की रक्षा के लिए खुद ही कुर्बानी देनी होगी, उनके लिए अमेरिकी अपनी जान कब तक गंवाते रहेंगे? अफगानिस्तान के बिगड़ते हालत देखते हुए भारत समेत अमेरिका, ब्रिटेन,जर्मनी आदि के मुल्क अपने लोगों को सुरक्षा कारणों से स्वदेश बुला रहे हैं।
रूस और अमेरिका के इस मुल्क पर अपना प्रभाव की बढ़ाने की लालसा ने इसे बर्बाद करके रख दिया है। सन् 1978 में यदि रूस ने अफगानिस्तान में साम्यवाद का विस्तार के इरादे से साम्यवादी सरकार न बनवायी होती, तो अमेरिका ने रूस को अफगानिस्तान से बाहर खदड़ने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। इसके लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान से पलायन कर पाकिस्तान पहुँचे पश्तूनों को रूस के खिलाफ जंग करने को यह कह कर भड़काया कि
उसने तुम्हारे मुल्क को गैर इस्लामिक बना दिया। रूस को हर हाल में अफगानिस्तान बाहर निकालो। इसके लिए अमेरिका ने पश्तूनों को जीने के हर सामान मुहैया कराया। उन्हें आधुनिक घातक हथियार और उन्हें चलाने का प्रशिक्षण दिया। फिर इस्लामिक कट्टरवाद की घट्टी पिलाने का इन्तजाम किया, ताकि वे खुशी-खुशी इस्लाम के नाम पर मरने और मारने को तैयार हो जाएँ। इसका नतीजा यह हुआ, अमेरिका का पाला पोसा दुर्दान्त इस्लामिक संगठन ‘तालिबान’ कुछ सालों की खून जंग के बाद उसने रूस को अफगानिस्तान छोड़ कर जाने को मजबूर कर दिया। सन् 1996 में तालिबान अफगानिस्तान पर काबिज हो गया। सत्ता में आने के उसने अपने विरोधियों का सफाया करने के साथ मुल्क में शरीया कानून लगा कर दिया। इसके तहत हर आदमी को दाढ़ी रखना, औरतों को बगैर अपने खून सम्बन्धी मर्द को लिए बाहर न निकालना, युवतियों की शिक्षा और औरतों को नौकरी करने से मनाहीं, फिल्म, संगीत, ब्याज लेने-देने पर रोक आदि। शरीयत कानून के मुताबिक गुनाहगारों को सजा। तालिबान के राक्षसी कुकर्माें को अमेरिका चुपचाप देखता रहा, पर 9 नवम्बर, 2001 में इस्लामिक दहशतगर्द संगठन ‘अलकायदा’ ने जब ‘वर्ल्ड टेªड सेण्टर’की दो बहुमंजिली इमारतों और उसके रक्षामंत्रालय ‘पेण्टागन’ पर हवाई हमले कर तबाह किया, तब उसे अपने तैयार किये भस्मासुर को मारने की सुध आयी। उसके बाद से अमेरिका ने सैन्य संगठन ‘नाटो’ के सदस्य मुल्कों के साथ अफगानिस्तान से तालिबान को नेस्तानाबूद करने की मुहिम शुरू की, जो पाकिस्तान के एबटाबाद जिले में छुपे ‘अलकायदा’ के सरगना ‘ओसामा बिन लादेन’ को कमाण्डो कार्रवाई मंे मारे जाने के बाद एक तरह से खत्म हो गई थी। 2001 में अमेरिकी सेना ने तालिबान को सत्ता से बेदखल कर उसे एक कोने में सिमट रहने को मजबूर कर दिया।।
संयुक्त राष्ट्र(यू.एन.)के महासचिव एण्टोनियो गुतेरस ने अफगानिस्तान की हालत पर चिन्ता व्यक्त कर रह गए,वही भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद् के अध्यक्ष पर सम्हालने के तुरन्त बाद गत 8अगस्त को क अफगानिस्तान पर बैठक आहूत की और कि अफगानिस्तान का अतीत उसका भविष्य नहीं हो सकता है। इस क्षेत्र में आतंकवादियों की पनाहगाह और अभ्यारण्यों को तुरन्त नष्ट करना चाहिए। आतंकवादियों की आपूर्ति पंक्ति तत्काल समाप्त कर देना चाहिए।अब समय आ गया कि सुरक्षा परिषद् अफगानिस्तान में हिंसा की समाप्ति के लिए ठोस कदम उठाए।अब अफगानिस्तान की तालिबानी राक्षसों से बचाव की जगह यूरोपीय संघ के देशों और कुछ देशांे बस इतना कह रहे है कि अगर बन्दूक के जोर पर तालिबान इस मुल्क पर काबिज होता है,तो वे उनकी सरकार को मान्यता नहीं देंगे,पर चीन,पाकिस्तान जैसे मुल्क तो उसे तस्लीम कर ही लेंगे। अफगानिस्तान की तालिबान हमलावरों से सुरक्षा कोरी बातों से खुलकर हर तरह की मदद से होगी,यह दुनिया का अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.न.9411684054

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