देश-दुनिया

दानिश के कत्ल पर हैरानी करने वाली खामोशी

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
अन्ततः अमेरिकी पत्रिका ‘वाशिंगटन एक्जमिनर’ ने ‘पुलित्जर पुरस्कार ’ से सम्मानित ,समाचार एजेन्सी ‘रायटर’ के भारतीय प्रेस फोटाग्राफर दानिश सिद्दीकी अफगानिस्तान में तालिबानियों द्वारा बर्बर तरीके से हत्या किये जाने के सच को उजागर कर ही दिया, इसे देखकर भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान समेत दुनियाभर के तालिबान समर्थकों की आँखें अब खुल जानी चाहिए। तालिबानों को इससे कोई मतलब नहीं है कि आप मुसलमान हैं और उनके हिमायती हैं , अगर आप कुरानी में लिखी हर हिदायत को ज्यों का त्यों नहीं मानते, तो आप ‘कुफ्र’ करने के गुनाहगार हो। आप ‘काफिर’ हो, जिसकी सजा आप को शरियत के मुताबिक भुगतनी ही होगी। दानिश सिद्दीकी का कसूर बस इतना था कि वह काफिर मुल्क ‘हिन्दुस्तान’ का बाशिन्दा था। इस वजह से वह उनकी नफरत का शिकार बना। इससे एक बार यह हकीकत जाहिर हो गई कि भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमान खुद को भले ही अन्तर्राष्ट्रीय मिल्लत का हिस्सा मानने का भ्रम ही पले रहें ,पर पश्चिमेशिया और अरब मुल्क उन्हें दोयम दर्जे का मुस्लिम मानते हैं। उनके लिए भारतीय मुसलमानों के अरबों, तुर्कों, इराक, ईरान जैसा पहनावा,दिखावा, खानपान, अरबी, फारसी, तुर्की पढ़ना-लिखना, उनसे गहरे रिश्ते बनाने, खुद को उनका वारिस ,वंशज मानने के कोई माने नहीं हैं।
हैरानी बात यह है कि यह सब जानते हुए भारत समेत दुनिया का कोई भी इस्लामिक मुल्क और इस्लामिक रहनुमा तालिबान की मुखालफत को अभी तक आगे नहीं आया है। ऐसे में फाटोग्राफर दानिश सिद्दीकी के अपवादस्वरूप कुछ हममजबियों को छोड़कर उनसे यह उम्मीद करना बेमानी है कि वह तालिबानियों की मुखालफत करेंगे। वैसे भी अब तक इनमें से कितनों ने ‘इस्लामिक स्टेट’(आइ.एस.) समेत दूसरे खूंखार दहशतगर्द गिरोह के खिलाफ कब अपनी जुबान खोली है? इन्होंने इराक में शियाओं के सभी पाक मजहबी स्थलों को जमींदोज कर दिया,जहाँ ये जियारत को जाते थे। इन्होंने इराक, सीरिया, लीबिया, यमन, अफगानिस्तान, नाइजीरिया आदि को तबाह कर दिया। इनके दहशतगर्दी के चलते लाखों मुसलमान अब तक मारे जा चुके हैं। पूरी दुनिया में इस्लाम के मानने वालों को शक की नजर से देखा जा रहा है। फिर भी इस्लामिक मुल्क और उसके रहनुमाओं ने आगे आकर इन दहशतगर्द संगठनों की मुखालफत करना तो दूर रहा, उनकी कारतूतों के लिए अफसोस तक नहीं जताया है। उल्टे उनकी हर तरह से मदद ही करते आए हैं।
दरअसल, उनकी जुबान तभी खुलती है,जब किसी मुसलमान पर गैर मुसलमान ने जुल्म किया हो। इस हालत में इनका एक ही उसूल है कि अपने ने मारा तो कोई बात नहीं, गैर ने मारा,तो उसकी खैर नहीं। इसी मिसाल यह है कि जब दानिश सिद्दीकी को दिल्ली स्थित ‘जामिया मिल्लिया इस्लमियां में दफनाया जा रहा था, तब वहाँ मौजूद किसी भी शख्स ने न ‘तालिबान मुर्दाबाद’ या ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’का नारा नहीं लगाया और न ही इनकी खिलाफ तकरीर की। मजहबी वजहों से इनमें किसी ने भी इस होनहार प्रेस फोटाग्राफर की निर्मम हत्या पर खुलकर अफसोस तक नहीं जताया। दूसरी तरफ अपने देश में कहीं गो तस्करी, बलात्कारी, कोई गम्भीर अपराधी के मारे जाने,दहशतगर्द के फाँसी दिये जाने पर आन्दोलित होकर हिन्दुओं तथा सरकार को ही नहीं,पूरे मुल्क को कठघरे में खड़े करने और पूरी दुनिया में उसे बदनाम करने कोशिश करने वाले इस मामले में पूरी तरह खामोश हैं।वे उन्हें न कहीं कतई असहिष्णुता दिखायी दे रही है और न किसी तरह का डर।
अब आते हैं दानिश सिद्दीकी के हत्या की वारदात और उसकी असल वजह पर। ‘रायटर’ की ओर से फोटाग्राफर दानिश सिद्दीकी अफगानिस्तान के कंधार स्पिन बोल्डाक इलाके में अफगान सेना और तालिबानियों की लड़ाई का चित्रण(कवर )करने गए हुए थे। उस दौरान जब वह तीन अफगान सैनिकों के साथ जा रहे थे, तभी तालिबान के छोटे से समूह ने उन पर धारदार हथियारों से हमला किया। उन्हें घायल हालत में मस्जिद में ले जाया गया, जहाँ उनकी प्राथमिक चिकित्सा की गई। जब तालिबानियों को दानिश के पत्रकार होने की जानकारी हुई, तो उस पर और उसके साथियों पर गोलियाँ बरसायीं। जब तालिबानियों को उसके भारतीय होने का पता चला,तो उसके सिर पर वाहन चढ़ा कर कुचल दिया।उनके क्षत-विक्षत शव से 20गोलियाँ निकाली गई हैं। यह हकीकत अफगानिस्तान एक सैन्य अधिकारी ने एक भारतीय टी.वी.चैनल को साक्षात्कार में बयां की है। अमेरिकी पत्रिका के रिपोर्टर ने माइकेल रुबिन ने लिखा है कि दानिश की लाश की फोटो और उनके अन्तिम समय का वीडियो देखने से पता चलता है कि भारतीय पत्रकार की बर्बरता से पिटाई की गई। तालिबान के बर्ताव से पता चलता है कि यह खूंखार संगठन विश्व बिरादरी के जंग के मानकों का पालन नहीं करता।
दानिश सिद्दीकी को क्रूरता से मार डालने के बाद जब तालिबानों को इण्टरनेट के जरिए यह मालूम हुआ कि इसने कोरोना -19 के वक्त भारत में इस महामारी से मरने वालों की चिताओं के फोटो खींचे थे,जो दुनिया के कई मुल्कों के अखबारों में छपे थे। इन्हें लेकर तब सियासी पार्टियों और हिन्दुस्तानी विरोधी ताकतों ने मुहिम चलायी थी। इससे हिन्दुस्तान की दुनिया में बड़ी बदनामी हुई, तब तालिबानों ने दानिश की मौत पर अफसोस जताया। इससे लगता है कि उन्हें लगा होगा कि अरे! उनसे बड़ी गलती हो गई, यह शख्स तो एक तरह से हमारे ही मजहब/कौम के लिए ही काम कर रहा था।
अब एक गुजारिश है कि दानिश सिद्दीकी के मामले भारतीय मुसलमानों को साजिद यूसुफ की बातों पर गौर फरमाने जरूरी है, जिन्होंने लिखा है कि दानिश सिद्दीकी की हत्या एक भारतीय होने के कारण ही की गई। याद रखिए कि यह मायने नहीं रखता कि भारत में आप कौन हैं, लेकिन देश से बाहर निकलते ही आपकी केवल भारतीय के रूप में एक ही पहचान शेष रह जाती है। इसलिए भारत के खिलाफ अनर्गल प्रलाप करते हुए एहतियात बरतें। सिद्दीकी को मौत हम सबके लिए एक सबक है।
अब सवाल यह है कि क्या वाकई हिन्दुस्तानी मुसलमान ऐसा करेंगे? अब तक के उनके और उनके हिमायती सियासी पार्टियों, फिल्मी-गैर फिल्मी कलाकारों, पत्रकारों, एंकरों, लेखकों, साहित्यकारों के रवैये से कतई नहीं लगता। उन्हें तो हिन्दुस्तान और हिन्दू समुदाय में हर तरह के खोट, खराबियों, कमियाँ, गैर बराबरी, असहनशीलता ही नजर आती है। उनके लिए तो तालिबानी इस्लाम के ‘मुजाहिद’ हैं, जो खुदा के वास्ते काम करते हुए दुनिया में इस्लाम को फैलाते हुए उसे और मजबूत कर रहे हैं।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

 

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