डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
वर्तमान में अफगानिस्तान में इस्लामिक कट्टरपन्थी संगठन ‘तालिबान‘ इस मुल्क पर फिर से कब्जा करने की बेताबी में दहशतगर्दी के सारे हदें पार कर रहा है, इसमें बड़ी संख्या में अफगान सैनिकों के साथ-साथ निहत्थे बेकसूर लोग भी मारे जा रहे हैं। इनकी दहशतगर्दी और खूंरेजी से मजबूर होकर लोग पड़ोसी मुल्कों में पनाह लेने को मजबूर हुए हैं। तालिबानी सरकारी इमारतों, स्कूलों आदि को बम विस्फोटों से उड़ा रहे हैं। तालिबानियों के दुःस्साहस की इंतहा यह है कि उन्होंने ईद से एक दिन पहले राष्ट्रपति पैलेस पर तब तीन मिसाइलें दागीं, जब राष्ट्रपति अशरफ गनी दूसरे लोगों के साथ नमाज पढ़ रहे थे। ऐसा कर उन्होंने दुनिया को अपनी बढ़ती ताकत का अहसास करने की कोशिश है। गत 21 जुलाई को अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने राजधानी काबुल स्थित स्पेशल आॅपरेशन कमाण्ड सेण्टर में जवानों को सम्बोधित करते हुए तालिबान पर इल्जाम लगाया कि वह अफगानिस्तान को दहशतगर्दों की जन्नत बनाना चाहता है। अलकायदा, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा’ सरीखे इस्लामिक कट्टरपन्थी संगठनों से उसके गहरे रिश्ते हैं। ये सभी दहशतगर्द संगठन भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रहे हैं। इस खबर ने कश्मीर को लेकर भारत की चिन्ताओं को बढ़ा दिया है। इससे पहले राष्ट्रपति अशरफ गनी ने उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकन्द में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय कनेक्टिव सम्मेलन में पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि उसके यहाँ हो रहे खूनखराबे के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है। उसके यहाँ से घुसपैठ कर आए 10 हजार दहशतगर्द उनके मुल्क में तालिबानियों की मदद कर रहे हंै। अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने भी कहा था कि तालिबान के गिरोह में अलकायदा, इस्लामिक संगठन पूरी तरह से शामिल है। पाकिस्तान की ओर से पोषित ‘लश्कर-ए-जांघवी’, ‘तहरीक-ए-तालिबान’ के सदस्य तालिबान के साथ लड़ाई में भी साथ दे रहे हंै। यहाँ तक कि पाकिस्तानी वायुसेना ने अफगान सेना और वायुसेना को अधिकारिक चेतावनी जारी की है कि स्पिन बोेल्दक इलाके से तालिबान को खदेड़ने के किसी भी कदम का पाकिस्तानी सेना जवाब देगी। उसकी वायुसेना कुछ इलाकों में तालिबानों की मदद में लगी है। बेशर्मी की इंतहा यह है कि फिर भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी आरोपों पर नाखुशी जाहिर करते हुए कहा कि अफगानिस्तान और तालिबान के बीच जो कुछ चल रहा है, उसके लिए पाकिस्तान को कसूरवार ठहराना सही नहीं है। इधर भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने भी पहले ’शंघाई सहयोग संगठन’(एस.सी.ओ.) और बाद में ताशकन्द सम्मेलन में तालिबान के आतंकवादी स्वरूप और इससे अफगानिस्तान आतंकवाद की समस्या गम्भीर होने की बात कही थी। उधर यूरोपी संघ के सदस्य जर्मनी, फ्रान्स, नीदरलैण्ड, इटली, बेल्जियम, ब्रिटेन,अमेरिका आदि 15देशों ने अफगानिस्तान की स्थिति पर चिन्ता व्यक्त करते हुए यहाँ शान्ति स्थापित किये जाने की माँग की है।अगर तालिबान अफगानिस्तान में काबिज भी होता है,तो ये मुल्क उसकी सरकार मान्यता नहीं देंगे। वैसे फरेबी तालिबान कतर की राजधानी दोहा में अफगानिस्तान मुख्य कार्यकारी अब्दुल्ला अब्दुल्ला के बीच शान्ति वार्ता को ढोंग कर रहा है, लेकिन उसका अभी तक कोई नतीजा सामने नहीं आया है। ऐसा लगता है कि तालिबान उन्हें वार्ता में उलझा कर पूरे के पूरे अफगानिस्तान का हथियाने की फिराक में है। इसकी वजह यह है कि पहले तो तालिबान का क्या; किसी भी इस्लामिक मुल्क का जम्हूरियत में यकीन ही नहीं है। फिर उसे चुनाव से पहले अशरफ गनी के साथ सरकार में शामिल होना। फिर चुनाव में जीतने के बाद उसे अपने साथ सरकार चलाना कतई मंजूर नहीं है। वैसे भी तालिबान भरोसे के काबिल नहीं है, क्योंकि उसने रूसी सेना की वापसी के बाद भी पूर्व राष्ट्रपति नजीबुल्ला और उनके भाई की हत्या कर थी। अफगानिस्तान में तालिबान ने ‘मुस्लिम राज्य’घोषित करने के बाद यहाँ शरियत के नाम पर कैसी दहशतगर्दी मचाई, उसे सोच कर लोगों की रूह कांप जाती है। अब भी वह समझौते के बाद अशरफ गनी के साथ वैसा ही सलूक कर सकता है।
वैसे तालिबान के मुताबिक उसका अफगानिस्तान के 85 फीसद इलाके पर कब्जा होने का दांवा कर रहा है और उसने सरहदों के खास रास्तों पर कब्जा भी कर लिया। इससे अफगानिस्तान के दूसरे मुल्कों के साथ कारोबार के ठप्प होने के साथ-साथ जरूरी चीजों की आमद बन्द होने की आसार दिखायी दे रहे हंै। इस वजह से उसके विदेशी व्यापार से होने वाली आमदनी खत्म हो जाएगी। इससे अफगानिस्तान सरकार का संकट लगातार बढ़ रहा है । इन हालात से अफगानिस्तान के पड़ोसी मुल्क बेहद परेशान हैं। इनमें ईरान, तुर्कमेस्तिान, तजाकिस्तान, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, चीन, भारत आदि मुल्क शामिल हैं। इनकी दहशतगर्दी और दरिन्दगी का आलम यह है कि हथियार डालने के बाद भी तालिबानियों ने ‘अल्लाह हो अकबर’ कहते हुए अफगान सैनिकों को गोलियों से भून दिया। अपने कब्जे वाले इलाकों में वह दाढ़ी न रखने वालों या अपने मुल्क की सरकार से हमदर्दी रखने वालों और उनकी शरियत के मुताबिक सौ फीसदी ने न चलने वाली औरतों को कोढ़े मारने की सजा दे रहा है, लेकिन हमेशा की तरह दुनियाभर के मुल्क खास तौर पर इस्लामिक मुल्क और मुसलमानों के रहनुमा अफगानिस्तान में इस्लाम के इन मुजाहिदों के खूनी खेल को खामोशी से देख रहे हैं। इसकी वजह उन्हें इससे इस्लाम को कोई खतरा नजर न आना है,अगर किसी गैर इस्लामिक मुल्क ने ऐसा कुछ किया होता,तो वे धरती-आसमान एक कर देते। वैसे भी इनमें से ज्यादातर को तालिबान द्वारा लागू की जाने वाली इस्लामिक /शरियत की हुकूमत पसन्द है। अफगानिस्तान में तालिबान और अफगान सेना के बीच जंग जारी है, इसमें अफगान सेना ने कई उन शहरों और इलाकों को तालिबान के कब्जे छुड़ा लिया, जिन पर वह कब्जा कर चुका था।
अब जहाँ तक अफगानिस्तान में जारी इस जंग और उस पर तालिबान की हुकूमत कायम होने से भारत पर होने वाले असर का सवाल है तो भारत का अफगानिस्तान में बहुत कुछ दाँव पर लगा है। उसने अफगानिस्तान के विकास की विभिन्न परियोजनाओं-जैसे सलमा बाँध, संसद भवन, सड़कें, स्कूलों ,अस्पतालों,रेल की पटरियाँ आदि में अब तक 3 बिलियन से अधिक रकम का निवेश किया है, जिसे पाकिस्तान तालिबान के जरिए हर हाल में बर्बाद कराना चाहता था। ऐसा करने के पीछे पाकिस्तान का मंशा अफगानिस्तान के लोगों के दिलों से हिन्दुस्तान के प्रति हमदर्दी खत्म करना है। भारत ईरान में चाबहार बन्दरगाह विकसित कर रहा है, जो भू-अबद्ध अफगानिस्तान को समुद्री मार्ग सुलभ करायेगी। इसके लिए भारत अफगानिस्तान में रेल की पटरियाँ बिछा रहा है। ईरान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भारत के मध्य गैस/तेल परियोजना भी अशान्ति के कारण आगे नहीं बढ़ पा रही है।
यूँ तो चीन पाकिस्तान की मदद से अफगानिस्तान में अपने वर्चस्व चाहता है, क्योंकि वह उसके खनिज सम्पदा को दोहन करना चाहता है। उसने भी इस मुल्क में काफी निवेश किया हुआ, किन्तु उसे डर है कि कहीं तालिबान भी ‘अलकायदा’ की तरह उसके मुल्क के शिनजियांग के उइगरों का मददगार न बन जाए,जिनका वह दमन कर रहा है। कुछ ऐसा ही हाल तुर्की का है। उसने भी अफगानिस्तान में बहुत अधिक निवेश किया हुआ ,मगर उसे तालिबानों पर कतई ऐतबार नहीं है। हालाँकि अफगानिस्तान में 20 साल में अरबों रुपए खर्च करने और 2400सैनिक गंवाने के बाद भी अमेरिका के खाली हाथ वापस जाने से रूस बेहद खुश है, क्योंकि इसी मुल्क में उसे शिकस्त देने के लिए अमेरिका ने ही तालिबान और दूसरे इस्लामिक दहशतगर्दों को न सिर्फ पैदा किया,बल्कि उन्हें पाला-पोसा और हथियारों से सुसज्जित भी किया ,जो उसके लिए भस्मासुर साबित हुए हैं। वह इस्लामिक दहशतगर्दों के दहशतगर्दी के नतीजे भी जानता है। अब भारत समेत दुनियाभर के देशों को अफगानिस्तान में कट्टर इस्लामिक दहशतगर्द संगठन तालिबान को काबिज होने से रोकने के लिए वे सभी सम्भव प्रयास करने चाहिए, ताकि दुनिया को इस्लामिक दहशतगर्दों की दहशतगर्दी साथ-साथ इस खूबसूरत मुल्क को बर्बाद होने से बचाया जा सके। जहाँ तालिबान मजहबी कट्टरता की आड़ इन्सानियत का खून कर रहा है और आगे भी करता रहेगा।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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