राजनीति

यथार्थ से इतनी घृणा़ क्यों हैं ?

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आर.एस.एस.) के सर संघचालक डाॅ.मोहन भागवत द्वारा गाजियाबाद के वसुन्धरा स्थित एक संस्थान में आयोजित कार्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिंहराव के सलाहकार रहे डाॅ.ख्वाजा इफ्तियार अहमद की पुस्तक ‘वैचारिक समन्वयःएक पहल’ का विमोचन करते हुए अपने उद्बोधन में यह कहना कि हिन्दू-मुस्लिम एक हैं। इसका आधार मातृभूमि है। पूजन विधि के आधार पर हमें अलग नहीं किया जा सकता। सभी भारतीयों का डी.एन.ए. एक है। अब समय आ गय है कि सब भाषा, प्रान्त, अन्य विषमताओं को छोड़कर हम एक हों और भारत को विश्व गुरु बनायें, तभी दुनिया सुरक्षित रहेगी। उनके इस उद्बोधन में कुछ भी असत्य, अनुचित, अप्रिय, अवैध या किसी दिल दुःखाने वाला नहीं है। सच तो यह है कि उनका यह कथन भारत जैसे विविध धर्म, मजहब, मत, सम्प्रदाय, सभ्यता, संस्कृति, भाषा, बोलियों वाले देश के लिए सर्वथा अनुकूल और उसे एकता के सूत्र में पिरोना वाला है। फिर भी पंथ निरपेक्षता के स्वम्भू ध्वजवाहकों और इस्लामिक कट्टरपन्थी सियासत करने वालों को सिर्फ यह रास ही नहीं आया, बल्कि उन्हें इस पर घोर आपत्ति भी है। तत्काल ही उन्होंने अपनी असहमति और विरोध भी व्यक्त कर दिया। इनमें काँग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह,राशिद अल्बी, आॅल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन (एआइएमआइएम)के असदुद्दीन ओवैसी,बसपा राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती प्रमुख आदि हैं, लेकिन इनके विपरीत कई मुस्लिम मजहबी मौलाना, मौलवियों, बुद्धिजीवियों और हिन्दू साधू-सन्तों ने डाॅ.भागवत के बयान का पुरजोर स्वागत करते हुए देशवासियों में एकता की भावना का संचार करने और दोनों के मध्य मतभेद, मनभदे, अविश्वास, वैमनस्यता मिटाने वाला है,जिससे निश्चय ही कुछ मुसलमानों का संघ को लेकर भ्रम और खुद को बेगाना होने का भ्रम दूर हुआ होगा। वैसे संघ प्रमुख डाॅ.मोहन भागवत ने ऐसा वक्तव्य कोई पहली बार नहीं दिया है। संघ हिन्दुओं को एकजुट करने और उनमें राष्ट्रीय चेतना बराबर जगाता आया है, जिसके अभाव में देश विदेशी आक्राताओं का सामना करने में विफल और वर्षों उनकी दसता में रहने को विवश हुआ। संघ हमेशा से ही मुसलमानों और दूसरे गैर हिन्दुओं को यह समझाता आया है कि हम सभी के पूर्वज एक हैं। चूँकि मुसलमान हिन्दुस्तान के रहते है, इसलिए वे भी दूसरे ‘हिन्दुओं’ की भाँति ‘हिन्दू‘ हैं,यह अलग बात है कि उनके पूर्वजों ने विभिन्न कारणों से दूसरा अपना मजहब अपनाते हुए पूजा पद्धति बदल ली,लेकिन सभ्यता, संस्कृति, पूर्वज हमारे साझे हैं। इस कारण वे हिन्दुओं से अलग नहीं है। संघ ने मुसलमानों को कभी ‘अभारतीय’ नहीं बताया। यह यथार्थ है, इसमें कुछ भी मिथ्या नहीं। हिन्दू और मुसलमानों को एक बात क्या डाॅ.भागवत ने कौन-सा ऐसा गुनाह कर दिया,कि सभी सियासी पार्टियाँ उन पर हमलावर हो गईं? क्या सच नहीं कि आज भी अनेक मुसलमान हिन्दू जाति -राजपूत,गूजर,जाट,तेली, जुलाहा,नाई तथा गोत्र यथा- चैहान, पुण्डीर, राणा, पण्डित, बट्ट/भट्ट आदि को अपने नाम के साथ नहीं लगाते हैं? मुहम्मद अली जिन्ना के पूर्वज राजपूत थे, डाॅ.फारूक अब्दुल्ला कई बार खुद को ‘कश्मीरी पण्डित‘ बता चुके हैं। हाल में कुछ सूत्रों ने असदुद्दीन ओवैसी के पूर्वजों को ब्राह्मण बताया है। वैसे भी ‘हिन्दू’ शब्द अरबों द्वारा इस मुल्क मंे रहने वालों के लिए कहा था, लेकिन अपने देश में कुछ लोग हैं,जो इस हकीकत को न मानते हुए खुद को भारतीय पूर्वज की औलाद न मानकर अरब, तुर्कों हमलावरों/शासकों को पुरखा और उनके मजहब को ही अहमियत देते देते हंै। इनमें एआइएमआइएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी सबसे आगे हैं। अब श्री ओवैसी ने ‘माब लीचिंग’(भीड़ की हिंसा) को ‘हिन्दुत्व’ से जोड़ दिया, पर भारत में ‘अलगाव’ और ’आतंकवाद’ का सीधा रिश्ता किस मजहब से यह आज तक उन्होंने नहीं बताया है। यह भी तब जब डाॅ. मोहन भागवत यह स्पष्ट कर चुके हैं कि गाय हमारे लिए पूजनीय है, इसीलिए उसे हिन्दू ने माँ का दर्जा दिये है, जो लोग ‘माॅब लिचिंग‘ करते हैं वो आततायी हैं। उन्हें किसी भी तरीके से राष्ट्रवादी नहीं कहा जा सकता। वैसे असदुद्दीन ओवैसी ने माॅब लिचिंग के शिकार पहलूखान, अखलाक आदि का नाम लेते हैं,इनमें से कुछ गाय/पशु तस्कर आदि रहे हैं। जहाँ तक अपने देश में ‘माब लिचिंग’ का प्रश्न है,उसे किसी धर्म/मजहब जोड़ना अनुचित है,क्योंकि देश में पिछले वर्ष हुई माबलिचिंग 134घटनाओं में 39मुसलमानों के साथ घटी हैं।हाल पश्चिम बंगाल में बिहार से अपराधी को पकड़ने को गए दारोगा और सैकड़ों हिन्दू परिवारों के साथ किसने माॅब लिचिंग और कुछ के साथ बलात्कार जैसे दुष्कम किसने किया, यह ओवैसी और उन जैसी मानसिकता के राशिद अल्बी को याद नहीं आते।दरअसल, संघ सरचालक डाॅ.भागवत के वक्तव्य में मीनमेख की निकालने की असल वजह इनकी सभी सियासत है, जो हिन्दू-मुस्लिम के मध्य मतभेद, घृणा, अविश्वास,वैमनस्यता पैदाकर उसे गहरा और चैड़ा करने , अल्पसंख्यकों को इकट्ठा और हिन्दुओं को जाति, पन्थ,सवर्ण, दलित,आदिवासी, क्षेत्र, भाषा आदि के आधार पर विभाजित करने की बुनियाद पर टिकी हैं। लेकिन आर.एस.एस.लगातार इन सियासी पार्टियों द्वारा देश के लोगों के बीच पैदा की गईं खाइयों को पटाने में जुटा है और बहुत कुछ पाट भी चुका है। इससे उनकी सियासत को आसन्न गम्भीर संकट खड़ा हो गया है। भला, ऐसे में इन सभी की सियासत का क्या होगा? ऐसे में इन सभी के द्वारा डाॅ.भागवत की मुखालफत किया जाना लाजमी है।
देश के स्वतंत्र होने के बाद से ही काँग्रेस धर्मनिरपेक्षता की आड़ में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और हिन्दुओं को बाँटने को जातिवाद फैलाती रही है। ऐसा कर वह देश के लोगों का आपस में लड़वाती आयी है। कमोबेश रूप में यही सब काँग्रेस की कोख से पैदा हुई तृणमूल काँग्रेस, एन.सी.पी.तथा जातिवादी सियासत करने वाली सपा,बसपा,राजद आदि भी कर रही हंै। ये भी अगड़ा, पिछ़ड़ा, दलित, अल्पसंख्यक राग अलापते हुए उनका सबसे बड़ा मसीहा साबित करने की अपनी-अपनी सियासत कर रही हैं। इनमें से किसी ने आज तक लोगांे को जोड़ने और भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन, देश सर्वांगीण विकास का न कभी वायदा किया और न सत्ता में आकर करके उनके लिए कुछ खास करके ही दिखाया है।ऐसे में इन सभी का आर.एस.एस. और डाॅ.भागवत की नीयत और कथन में खोट निकालना फिजूल है और अपनी सियासत क बचाने की कोशिश है,लेकिन अब देश का मुसलमान देरसबेर इनकी असलियत जान ही लेगा।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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