डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों उत्तर प्रदेश के ‘आतंकवाद निरोधक दस्ते’(एटीएस) ने देश में बड़े पैमाने/सामूहिक स्तर पर हिन्दुओं के धर्मान्तरण/मतान्तरण और इंग्लैण्ड, अमेरिका, पुर्तगाल, जर्मनी, सिंगापुर, अफ्रीकी देशों कई बार दौरे कर कट्टरपन्थी मजहबी प्रचार, गैर मुसलमानों में उनके धर्म के विरुद्ध भ्रम फैलाने, जहर घोलने , गैरकानूनी ढंग से धर्मान्तरण से सम्बन्धित प्रमाण पत्र और निकाह के प्रमाण पत्र तैयार करने में संलिप्त संगठित गिरोह के सदस्य दिल्ली के ‘इस्लामिक दावा सेण्टर’ (आइडीसी) के जिन दो मौलानाओं मुफ्ती काजी जहाँगीर आलम कासमी और मुहम्मद उमर गौतम को गिरफ्तार किया है, वे अपने इस मकसद को हासिल करने के लिए न सिर्फ डरा-धमका , शादी, नौकरी, धन का प्रलोभन देकर हजारों मूक बधिर बच्चों, महिलाओं, आर्थिक रूप से कमजोर हिन्दुओं को धर्मान्तरित कराते थे, बल्कि उनमें अपने धर्म के प्रति घृणा के बीज भी बोते थे, ताकि वे हिन्दुओं और हिन्दू धर्म के विरुद्ध कुछ भी करने को तत्पर रहें। मूक बधिर छात्रों को धर्मान्तरित कराने के पीछे सम्भवतः इन मौलानाओं का कुत्सित इरादा इनके जरिए समाज और मुल्क मंे तरह-तरह की देश विरोधी
गतिविधियों को कराना रहा है , क्यों कि इन पर न कोई आसानी से शक करेगा और न ही पकड़े जाने पर वे किसी का नाम ही बता पाएँगे। इन मौलानाओं के इन खुलासे से स्पष्ट है कि वर्तमान में देश को दीमक की तरह खोखला करने में कितनी षड्यंत्रकारी शक्तियाँ लगी हुई हैं, जो हिन्दुओं को तरह -तरह से धर्मान्तरित कर अपनी आबादी बढ़ाकर देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को परिवर्तित कर अपने मजहबी मुल्क में तब्दील करना चाहती हैं। वस्तुतः व्यक्ति का केवल धर्म/मत नहीं बदलता, उसकी सभ्यता, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय भावना भी बदल जाती है। यह एक तरह से मतान्तरण से राष्ट्रान्तरण है। फिर भी आज तक अपने देश के किसी भी राजनीतिक दल और उनके नेताओं ने वोट की राजनीतिक के चलते इस राष्ट्र विरोधी इस दुष्कृत्य पर गम्भीरता से नहीं दिखायी है। यही कारण है कि देश के स्वतंत्र होने के बाद से संवैधानिक प्रावधानों की आड़ लेकर इस्लामिक और ईसाई मिशनरी देश में धर्म प्रचार के बहाने निरन्तर धर्मान्तरण कराने में लगे हुए हैं, जिन्हें इसके लिए देश-विदेश से अपार धन भी मिलता रहा है।
परिणामतः जहाँ उत्तर-पूर्व के आदिवासी बहुल क्षेत्र सभी राज्य ईसाई बहुल सूबों में बदल गए हैं, वहीं दक्षिण के राज्यों में हिन्दू आबादी में भारी कमी आयी है। मुस्लिम मुल्कों से घुसपैठ और धर्मान्तण के जरिए असम, पश्चिम बंगाल, बिहार आदि के कुछ जिलों में मुस्लिम आबादी में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। इनमें कुछ की हिंसक गतिविधियों के कारण हिन्दू पलायन करने को मजबूर हैं। हाल में पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं पर हमलों और हत्याओं के लिए विशेष समुदाय के लोग जिम्मेदार बताये जा रहे हैं।
दिल्ली के सी-2,जोगाबाई एक्सटेंशन स्थित ‘इस्लामिक दावा सेण्टर’ का संचालक मुहम्मद उमर गौतम है, जिसका संजाल देश के कई राज्यों में फैला हुआ है। इसकी संस्था को धर्मान्तरण कराने के लिए देश-विदेश से करोड़ रुपए मिलते आए हैं। इससे स्पष्ट है कि केन्द्र सरकार की स्वयंसेवी संस्थाओं को देश-विदेश से मिलने वाले धन की निगरानी के तमाम उपायों के रहते हुए अब भी कई संस्थाएँ विदेशी फण्ड को दुरुपयोग धर्मान्तरण और देश विरोधी कामों में कर रही हैं। अब जहाँँ तक ‘इस्लामिक दावा सेण्टर’ का प्रश्न है तो यह उ.प्र.विशेष रूप से ‘राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र’एनसीआर), दिल्ली,महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, आन्ध्र, केरल आदि में विशेष रूप से सक्रिय है। इनके द्वारा कराये मतान्तरितों में 65 से 70 प्रतिशत उ.प्र.के एनसीआर और 250 से अधिक अन्य जिलों के हैं। हिन्दू युवतियों से इस्लाम कबूल कराके उनका निकाह मुस्लिम युवकों से करा दिया। खुद मुहम्मद उमर गौतम हिन्दू से मुसलमान बनकर मुस्लिम युवती निकाह किया, जिसका सम्बन्ध पाकिस्तान की गुप्तचर एजेन्सी ‘आइसीआइ’से है। सेक्टर-117 स्थित ‘नोएडा डेफ सोसाइटी’के मूक बधिर छात्र-छात्राओं के धर्मान्तरण का पर्दाफाश किया है। इसके मतान्तरण कराने वाले तीन सदस्य अचानक लापता हो गए। धर्मान्तरित हुए 20छात्रों के बारे में जानकारी नहीं मिली है। अब सन्देह यह जताया जा रहा है कि उन्हें नेपाल और पाकिस्तान में विशेष प्रशिक्षण के लिए बनाए आतंकवादी शिविरों में भेजा गया है। अब आरोपित मुहम्मद उमर गौतम और जहाँगीर,आइडीसी संस्था और दूसरों के खिलाफ एटीएस के लखनऊ स्थित थाने में आपराधिक षड्यंत्र, धोखाधड़ी, धार्मिक उन्माद भड़काने, राष्ट्रीय एकता का प्रभावित करने और ‘उ.प्र. विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 समेत अन्य धाराओं में एफआइआर दर्ज की गई है। ऐसे अवैध कार्य की निन्दा करने के बजाय ‘जमीयते -उलेमा-ए-हिन्द’ के कार्यवाहक अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने उमर गौतम ने कानूनी लड़ाई लड़ने का ऐलान किया है, क्योंकि उसके बेटे अब्दुल्ला उमर ने अनुरोध किया है। क्या इससे इन सभी का गठजोड़ साबित नहीं होता?
केन्द्र और उ.प्र.में भाजपा की सरकारें हैं फिर ये इस्लामिक कट्टरपन्थी धड़ले से मतान्तरित कराने में जुटे थे,इससे अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है,इन्हें किन्हीं बड़ी शक्तियों का संरक्षण प्राप्त रहा है। अगर गत दो जून को गाजियाबाद के डासन शिवशक्ति धाम देवी मन्दिर में घुसने का प्रयास करते दो संदिग्धों में नागपुर निवासी विपुल विजयवर्गीय(रमजान), कासिफ(काशी गुप्ता) को पकड़ा न गया होता, तो इस गिरोह पता नहीं लगता। इन संदिग्धों के पास सर्जिकल ब्लेड पाए गए, जो मन्दिर के महन्त को मारने आए थे। बाद में उन्हें मन्दिर में हमले करने को भेजने वाले सलीमुद्दीन से मुहम्मद उमर गौतम और जहाँगीर आलम के गिरोह का भण्डाफोड़ हुआ । वैसे भी यह किसी से छिपा नहीं है कि अपने देश में कई संगठन/समूह अपना असली चेहरा और मकसद छुपा कर समाज सेवा की आड़ में धर्मान्तरण कराने में लगे हुए हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह ईसाई मत और इस्लाम में धर्मान्तरण एक धार्मिक/मजहब आदेश और फर्ज है। इस्लाम में ऐसे लोगों को ‘मुजाहिद’ कहा जाता है। सामान्यतः ये लोग गरीब, असहाय और अनपढ़, दलित, आदिवासी वर्ग के लोगों मतान्तरित करते हैं। इसी षड्यंत्र के तहत ये लोग आदिवासियों को गैर हिन्दू बताने की सिद्ध करने में जुटे है। इनके छल, कपट, प्रलोभन में फँसकर ईसाई बन गए हैं। इससे उनके क्षेत्र में सामाजिक संरचना में भारी बदलाव आ गया है। धर्मान्तरण के प्रश्न पर पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों, उदारवादियों, सहिष्णुता, अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता के पक्षधरों, मानवाधिकारवादियों की खामोशी उनके दोगले रवैये को दर्शाती है। दरअसल, ऐसे लोगों के लिए अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति से बढ़कर कुछ भी नहीं है, यही कारण वे देश हित के इस ज्वलन्त प्रश्न पर सदैव की भाँति चुप्पी सधे हुए हैं। बड़े स्तर पर धर्मान्तरण का प्रश्न राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है इसलिए मामले की ‘राष्ट्रीय सुरक्षा एजेन्सी’ (एन.आइ.ए.)से जाँच करानी चाहिए। केन्द्र और राज्य सरकारों को ध् ार्मान्तरण पर गम्भीरता दिखाते हुए इसके दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।उसे इन्हें नमूने की सजा दिलाने की हर सम्भव कोशिश भी करनी चाहिए, ताकि ऐसी गतिविधियों पर कठोर अंकुश लग सके। सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
धर्मान्तरण की तिजारत पर रोक कब ?

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