डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों कश्मीर में सिख समुदाय की युवतियों के कथित अपहरण और मतान्तरण कर मुस्लिमों से निकाह कराये जाने को लेकर देशभर में सिखों का विरोध प्रदर्शन और दिल्ली गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष एवं शिरोमणि अकाली दल(शिअद) के वरिष्ठ नेता मनजिन्दर सिंह सिरसा की जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से ‘लव जिहाद’ और मतान्तरण के विरुद्ध उ.प्र. और मध्य प्रदेश जैसा कानून बनाए जाने की माँग स्वागत योग्य , अत्यन्त सामयिक और अत्यावश्यक है, ऐसा कानून बनने के बाद इन सूबों में ‘लव जिहाद’ और दूसरे तरीकों से मतान्तरण कराने वालों की बेजां हरकतों पर किसी हद तक लगाम लगेगी। जम्मू-कश्मीर हो या शेष भारत या फिर पाकिस्तान इस्लामिक जिहादियों के निशाने पर हिन्दू-सिख लड़कियाँ ही होती हैं, ऐसा करने में अक्सर उन्हें अपने मजहबी और सियासी नेताओं की सरपरस्ती भी हासिल होती है। ऐसे मामलों में वे और उनके हमदर्द कथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के नेता, साहित्यकार, लेखक, कलाकार, पत्रकार भी खामोश रहते हैं। इन सिख बेटियों के मामले में वे लोग भी कुछ नहीं बोल रहे हैं, जिन्होंने जम्मू के कठुआ में एक मुस्लिम बालिका के साथ बलात्कार और हत्या की घटना पर पूरे देश में तूफान खड़ा कर दिया था।
अब शिरोमणि अकाली दल(शिअद) के नेता सिरसा जम्मू-कश्मीर की सभी सियासी पार्टियों और मजहबी नेताओं से अपील कर रहे हैं कि वे अपहरण की गई सभी सिख बेटियों को उन्हें वापस दिलाने में मदद की अपील के साथ उन्हें सिखों द्वारा सूबे आई बाढ़ के दौरान भेजी इमदाद की भी याद दिलायी । इसके जवाब में जहाँ जम्मू-कश्मीर के मुफ्ती-ए-आजम नासिर अल इस्लाम और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने घटना की निन्दा की, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने जाँच की माँग की है। इनमें से मुफ्ती निसार अल इस्लाम का कहना है कि सिख भाई कश्मीरी समाज का अहम हिस्सा है। इस्लाम में जबरन मतान्तरण के लिए कोई जगह नहीं है। इस्लाम में इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस्लाम कोई आ सकता है। इसके लिए कोई जबरदस्ती नहीं हो। किसी को दूसरे धर्म के अपमान करने की इजाजत नहीं है। अफसोस की बात यह है कि फिर भी उनके हममजहबी यही सब करना सही मानते हैं।
शिअद नेता मनजिन्दर सिंह सिरसा की ‘लव जिहाद’ के जरिए मतान्तरण रोकने को उ.प्र., म.प्र. जैसा कानून बनाये जाने की माँग पर भाजपा नेताओं द्वारा उन्हें उनके बयान की याद दिलाना न सिर्फ जरूरी है, बल्कि उन्हें सबक सिखाने या आइना दिखाने वाला भी है। वह इसलिए कि जब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत कुछ भाजपा शासित राज्यों की सरकारों द्वारा ‘लव जिहाद’ और दूसरे अनुचित, अवैध तरीकों से मतान्तरण के खिलाफ कानून बनाया जा रहा था, तब श्री सिरसा ने यह कह कर हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि किसी का धर्म इतना कमजोर क्यों है? अगर किसी का धर्म इतना कमजोर है कि उसे पुलिस का सहारा लेना पड़ता है, तो मैं इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। वस्तुतः तब अकाली नेता मनजिन्दर सिंह सिरसा ने यह दिखाने की कोशिश की थी कि उनका सिख धर्म न सिर्फ हिन्दू धर्म से अलग है, बल्कि वह उनके सिख धर्म की अपेक्षा अत्यन्त शक्तिहीन/कमजोर भी है, जिसे अपनी रक्षा के लिए पुलिस सुरक्षा की आवश्यकता पड़ रही है। निश्चय ही ऐसा बयान देने के पीछे उनकी सियासती मजबूरियाँ और कारण रहे होंगे, क्यों कि कृषि कानून के विरोध में एन.डी.ए.से अलग हुई उनकी पार्टी भाजपा से खुन्दक निकालने और मुसलमानों के वोटे के लिए ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’(सी.ए.ए.)की खुलकर मुखाफत की, जबकि यह कानून मुस्लिम बहुल मुल्क पाकिस्तान, अफगानिस्तान धार्मिक रूप से प्रताड़ित गैर मुस्लिम -हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन को नागरिकता प्रदान करने को लाया गया है।ऐसे उनकी पार्टी के विरोध का औचित्य क्या था?
वैसे विडम्बना यह है कि आज सिख स्वयं को ‘हिन्दू धर्म’ और ‘हिन्दुओं’ से अलग समझते/मानते है, जिसका उद्भव ही हिन्दुओं पर तत्कालीन मुगल शासकों के जुल्मों से रक्षा और तलवार के जोर पर मतान्तरण रोकने के लिए हुआ था। सिख गुरुओं ने जिस धर्म की रक्षा के लिए सहर्ष उत्सर्ग किया, उनके शिष्य/सिख ही स्वयं को उससे अलग मानते हैं, जबकि हिन्दुओं ने सिखों सदैव अपना माना है, हिन्दुओं में अपने बड़े बेटे को सिख बनाने की परम्परा रही है और दोनों की बीच रोटी-बेटी का रिश्ता भी है। देश के बँटवारे के दौरान हिन्दू और सिखों को पाकिस्तान में अपना सब कुछ गंवाने के साथ-साथ इस्लामिक कट्टरपन्थियों के हाथों बड़ी तादाद में अपने बहन-बेटियों की आबरू और जानें गंवानी पड़ी थीं। अब भी पाकिस्तान में हिन्दू , सिख, ईसाइयों की युवतियों को आये दिन अपहरण कर मतान्तरण कर निकाह कराये जाने की घटनाएँ आए दिन होती रहती हंै।
लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि जिस इस्लामिक मजहब के मानने वाले अत्याचार से रक्षा के लिए सिख पंथ का जन्म हुआ था, उसके ही कुछ अनुयायी खासतौर से खालिस्तानी पिछले कुछ दशकों से उसी मजहब के मानने वालों को अपना सगा बताने और हिन्दुओं से दूरी दिखाने में फक्र महसूस करते हैं। पाकिस्तान के इस्लामिक कट्टरपन्थियों के बहकावे और उनकी साजिश का हिस्सा बनकर कुछ लोग हिन्दुस्तान से अलग होकर अपने लिए ‘खालिस्तान’ बनाने का मंसूबा पाले हुए हंै, इसके लिए पंजाब में कितने ही हिन्दुओं को डरा-धमका कर पलायन को मजबूर किया गया, बल्कि बड़ी संख्या में हिन्दुओं को मारा भी गया।फिर अति होने पर दुर्भाग्यपूर्ण ‘आॅपरेशन ब्ल्यू स्टार’के रूप में आया। इसने इन दोनों समुदायों के बीच दरार पैदा की। कालान्तर में सन् 1984में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्द्रा गाँधी की उनके ही सिख अंग रक्षकों द्वारा हत्या की गई। तब दिल्ली में दंगों में भड़के, जिनमें मंे बड़ी संख्या में सिखों की हत्याएँ हुईं, जो खालिस्तानियों की हिंसा से पैदा हुई नाराजगी का नतीजा था। इससे हिन्दू-सिखों के मन में थोड़ी खटास जरूर आयी। लेकिन सिखों ने राष्ट्रीयता और हिन्दुओं से रिश्तों को अहमियत दी। उसी का परिणाम है कि काँग्रेस के मुख्यमंत्री सरदार बेअन्त सिंह और पंजाब पुलिस के मुखिया के.पी.एस.गिल की अगुवाई में खालिस्तानियों की सफाई अभियान चलाया गया, जिसमें बेहद कामयाबी भी मिली। वैसे भी सिख गुरुओं ने पूरे देश को अपना मानते हुए ‘हिन्द की चादर’ कहा। इनके पवित्र स्थल भी कई राज्यों में है, जहाँ से इन गुरुओं का कुछ न कुछ रिश्ता जरूर रहा है। अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर के लिए भी सिख गुरुओं ने युद्ध किया था। देश की स्वतंत्रता के सभी संघर्षों में बढ़ी संख्या में सिखों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और बलिदान दिये। देश के स्वतंत्र होने के बाद भी भारतीय सेना में रहते सिखों ने अपनी वीरता का परचम फहराया है। लेकिन अब भी कुछ पाकिस्तान समेत दुनिया के दूसरे देशों में रहते हुए खालिस्तान ख्वाब देख रहे हैं, जिन्हें पाकिस्तान और भारत के दुश्मन उनके मददगार बने हुए हैं। सिखों की सियासत करने वाला ‘शिअद’ के हिन्दू धर्म को कमतर बताने पर भाजपा नेताओं उन्हें आइना दिखाना स्वाभाविक है, उसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। इस कारण यह है कि वक्त भले ही बहुत बदल गया है, पर हिन्दुआंे और सिखों का संकट साझा है और बदले रूप में अब भी बना हुआ है। इस बारे में भाजपा के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर राजिन्दर भण्डारी का यह कथन विचारणीय है कि अकाली दल को धर्म की राजनीति छोड़ देनी चाहिए, उन्हें धर्म की राजनीति करने से पहले धर्म को समझना चाहिए। श्रीनगर ही नहीं, बल्कि पंजाब में भी सिखों को मतान्तरण के मामले में निशाना बनाया जा रहा है। मतान्तरण का सबसे ज्यादा शिकार पंजाब हुआ है। इसके लिए इतिहास पढ़ना होगा और फिर इस मुद्दे को समझना पड़ेगा। केवल बयानों से काम नहीं चलेगा। यह हकीकत है कि ईसाई मिशनरी बड़े पैमाने पर पंजाब में सिखों और दलितों का मतान्तरण कर रहे हैं, पर सियासी कारणों से सरकार खामोश बनी हुई है। आज वक्त ताकजा है कि सिख सियासती फायदों के लिए यह असलियत न भूलें कि वे हिन्दुओं से अलग नहीं, बल्कि उसके ही अंग और हिन्दू धर्म के रक्षक है और रहेंगे। सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
Ati Sundar