राजनीति

मजहबी नफरत फैलाने की सियासत

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में 72 वर्षीय बुर्जुग अब्दुल समद द्वारा बनाकर दिये ताबीज पहनने के दावे से उलट नतीजे आने पर कुछ हिन्दू-मुसलमान युवकों द्वारा उनके साथ मारपीट और दाढ़ी काटे जाने की घटना को सिर्फ हिन्दू युवकों के जबरदस्ती उनसे धार्मिक नारे आदि लगाने को मजबूर करने, फिर पानी की जगह पेशाब पिलाने के झूठे आरोपों का तड़का लगाने और सुविचारित इरादों के साथ इण्टरनेट पर उसके कई वायरल वीडियो को जारी होने पर कुछ पत्रकारों, सपा और काँगे्रस, सम्प्रदाय विशेष के नेताओं ने जिस तरह से मजहबी नफरत, सामाजिक विद्वेष फैला कर सूबे में बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक दंगा कराके उ.प्र.की मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ भाजपा सरकार को बदनाम करने का, जो कुत्सित प्रयास किया है, उसकी जितनी निन्दा की जाए, वह कम होगी। दरअसल, इस कवायद के पीछे इन लोगों का इरादा उत्तर प्रदेश के आगामी वर्ष के शुरू में होने वाले विधानसभा के चुनाव से पहले राज्य सरकार को कानून व्यवस्था कायम रखने में नाकाम साबित कर मजहबी ध्रुवीकरण करने की साजिश थी। इन झूठे वीडियो के प्रचार-प्रसार में इण्टरनेट डिजीटल प्लेटफार्म ट्विटर ने भी अहम भूमिका निभायी। यही नहीं, उसने इस वारदात की हकीकत सामने आने के बाद भी उसने इन वीडियो का प्रसारण बन्द नहीं किया। उसका यह रवैया भारत विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ,भाजपा,राष्ट्रवादी विचारधारा, हिन्दुओं के प्रति उसका दुराग्रह, हठधर्मिता ,पूर्वाग्रहों को दर्शाता है। उसने ऐसा विभेदकारी/ भेदभावपूर्ण रवैया एक नहीं, भारत में अलग-अलग लोगों और अनेक मामलों में दिखाया है। वह पारदर्शित, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निजता के सिद्धान्तों और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा का स्वम्भू झण्डाबरदार होने का दावा भले करता रहे, लेकिन सच्चाई यह है कि ट्विटर देश और मजहब के साथ-साथ अपने निजी स्वार्थ दृष्टिगत रखते हुए दुनिया के अलग-अलग मुल्कों के अलग-अलग लोगों के साथ अपनी सुविधा के अनुसार पृथक-पृथक व्यवहार करता आया है। ट्विटर को अमेरिका और दूसरे विकसित राष्ट्रों के कानून मानने से कतई एतराज नहीं है, पर भारत में वह अपनी मनमानी चलाना चाहता है, उसने स्वयं को इस देश के संविधान और कानून से ऊपर होने का भ्रम भी पाला हुआ है। वह भारत सरकार के नए सूचना प्रौद्योगिक नियम के अनुसार इण्टरमीडियरी सम्बन्धी दिशा निर्देशों की न सिर्फ बराबर अवज्ञा करता आया है, बल्कि अभिव्यक्ति स्वतंत्रता की आड़ में मजहबी नफरत और अलगाववाद फैलाने में लगा हुआ है। लेकिन भारत के कानून से ऊपर समझने का उसका भ्रम अब जल्दी टूटने जा रहा है। कमोबेश यही स्थिति इस मामले में काँग्रेस के नेता विशेष रूप से राहुल गाँधी , सपा के नेताओं, वामपन्थी, कथित पंथनिरपेक्ष,जातिवादी पार्टियों के नेताओं के साथ-साथ अपने उदारवादी, प्रगतिशील, प्रबुद्ध, साहित्यकार,लेखक,पत्रकार, सहिष्णुता, मानवाधिकार के पक्षधरों की रही है,जो हिन्दुओं के साथ समुदाय विशेष के लोगों द्वारा किये जाने वाले बड़े-बड़े अपराधों जैसे मारपीट, हत्या, मजहब छिपाकर निकाह, बलात्कार,भयादोहन/ब्लैकमेल,पलायन को मजबूर करने, कश्मीर घाटी के लाखों कश्मीरी पण्डितों की हत्या तथा डरा-धमका कर पलायन को मजबूर करने की घटनाओं पर खामोश रहता है। कुछ समय पहले अलीगढ़ के टप्पल थाने के नूरपुर गाँव समुदाय विशेष के लोगों द्वारा दलितों की न सिर्फ बरात नहीं चढ़ने दी,बल्कि बरात में आए लोगों और महिलाओं से मारपीट तथा अभद्रता भी की, दिल्ली में भी मंगोलपुरी के रिंकू शर्मा की हत्या समेत कई हिन्दू युवकों की हत्याएँ भी की गईं, बल्लभगढ़ की निकिता तोमर को सारे आम गोली मार कर मार डाला,उ.प्र.के बलरामपुर में दलित युवती के साथ बलात्कार और उसकी हत्या पर चुप्पी साधे रखी और उसी समय हाथरस की बूलगढ़ी में दलित युवती के ऐसे मामले में धरती -आसमान एक करते हुए दंगा कराने का भरसक कोशिश की।
अब उन्होंने एक मामूली मारपीट, दुव्यवहार की घटना को साम्प्रदायिक रंग देकर समाज को बाँटने और आपस में लड़ाने का गम्भीर अपराध किया है। उनकी इस बेजां हरकत से दंगे भड़कने की हालत में पता नहीं, कितने बेकसूरों को अपनी जान गंवानी पड़ती और कितनी सम्पत्ति आग में स्वाह हो जाती है। लेकिन देश की आजादी के बाद से ही मजहबी नफरत की खेती से वोटों की फसल से सत्ता हासिल करते आए सियासी नेताओं को इससे क्या? उन्होंने तो मजहबी बिना पर मुल्क बँटवारे से ही सत्ता पायी है। इसके बाद भी न ऐसी सियासत से मुसलमानों ने कोई सबक लिया और न हिन्दुओं ने ही। यही कारण हैं कि ये दोनों ही ऐसी सियासत करने वालों के असल इरादे जानते-बूझते हुए भी उनके इशारों पर बार-बार नाचने को तैयार हो जाते हैं। ऐसी ही बेजां सियासत का अब अब्दुल समद का यह मामला है,इस साधारण आपराधिक घटना को मजहबी रंग देने का असल कसूरवार गाजियाबाद के लोनी का रहने वाला सपा का नेता उम्मेद पहलवान है, जिसके साथ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ कुछ फोटो भी हंै। इन फोटो को उसने अपने घर की जिस बैठक में लगाया हुआ है, वहीं उसने अब्दुल समद के साथ कई वीडियो तैयार किये हैं। उम्मेद पहलवान का आपराधिक इतिहास है। उसके खिलाफ गोतस्करी,चोरी के साथ-साथ उसकी मुजफ्फरनगर के साम्प्रदायिक दंगों में शामिल रहा है। उसका किसान आन्दोलन में मोदी-योगी के खिलाफ अभद्र नारों लगाते हुए वीडियो सामने आया है।
इसी 5जून को 72 वर्षीय अब्दुल समद से साथ हुई वारदात को सिलसिले बार समझना जरूरी हैजो लुहारगीरी के साथ झाड़-फूँक का काम भी करते है। 7जून को अब्दुल समद द्वारा दो लोगों के खिलाफ अपने अपहरण,मारपीट तथा दाढ़ी काटे जाने की इस घटना की रिपोर्ट गाजियाबाद के लोनी थाने में लिखायी गई। बुलन्दशहर के बंथला गाँव निवासी प्रवेश गुर्जर ने घरेलू कलेश और पत्नी के गर्भपात की समस्या अपने दोस्त आदिल और इंतजार को बतायी। उन्होंने इनसे छुटकारा पाने के लिए अनूपशहर के मीरा मोहल्ला निवासी अब्दुल समद से मिलवाया, जो ताबीज बनाकर लोगों को परेशानियाँ से निजात दिलाने का दावा करते आए हैं। अब्दुल समद ने भी प्रवेश को ताबीज बनाकर उसे यह भरोसा दिलाया कि इसे पहने के बाद सबकुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन प्रवेश गुर्जर को उससे किसी तरह फायदा तो दूर, उसका उल्टा हुआ। इससे नाराज होकर प्रवेश गुर्जर ने आदिल और इंतजार से अब्दुल समद को बुलाने को कहा। तब उन्होंने बौना उर्फ सद्दाम को भेज कर अपने यहाँ अब्दुल समद को बुलवाया। इसके बाद विवाद होने पर प्रवेश गुर्जर ने अब्दुल समद से उनके ताबीज से अपनी समस्या हल न होने की बात कही और विवाद हो गया। फिर उसने और उसके हिन्दू-मुस्लिम दोस्तों ने अब्दुल समद के साथ मारपीट और उनकी दाढ़ी काटने से जैसी बेजा हरकत की गई। उसका वीडियो भी बनाया,जो एक घोर आपराधिक कृत्य है, जिसे किसी भी हालत में सही नहीं ठहराया जा सकता। ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। ं
बाद में समाजवादी पार्टी के एक स्थानीय नेता उम्मेद पहलवान ने अपने सियासी फायदे के लिए इस वारदात को मजहबी रंग देने के इरादे से 14जून को अपने घर से अब्दुल समद से फेस लाइव पर आरोप लगाया कि उनसे जबरन धार्मिक नारे लगवाए गए, जो सरासर झूठ है।दोनों वीडियो का संज्ञान लेकर पुलिस ने 15जून को वीडियो वायरल करने वाले छह लोगों और सातवाँ आरोपी ट्विटर इण्डिया के विरुद्ध विभिन्न धाराओं में रिपोर्ट दर्ज कीहै।हकीकत में इस मारपीट में में हिन्दू और मुसलमान दोनों मजहब के युवा शामिल थे।इतना ही नहीं, सपा नेता उम्मेद पहलवान ने साजिश के तहत उस बुर्जुग अब्दुल समद से अपने मंसूबों के मुताबिक बयान दिलवा कर उसके नए वीडियो बनाये। फिर उन वीडियो को इण्टरनेट प्लेटफार्म ट्विटर पर वायरल किये। इस सामान्य मारपीट की घटना करे मजहबी नफरत आग लगाकर रोटी सेंकने को सियासत करने वाले अब्दुल समद को अपनी सियासत के मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।यही वजह है कि अब्दुल समद बार-बार अपने बयान बदल रहा है। उसने पहले रिपोर्ट में कुछ अज्ञात युवाओं द्वारा अपने अपहरण, मारपीट और दाढ़़ी काटने की बात लिखायी। फिर उसने जबरदस्ती धार्मिक नारे लगवाने का वीडियो जारी किया। उसके बाद पेशाब पिलाने का वीडियो जारी किया है। इस बीच सपा नेता ने इस घटना के विरोध में अलीगढ़ और बरेली में कैण्डल मार्च निकालने की योजना बनायी हुई थी,ताकि लोगों को भड़के और कानून व्यवस्था बिगड़े। फिर 16जून को वायरल एक और वीडियो जारी हुआ,जो 5जून की घटना से ठीक पहले का बताया जा रहा है। इसमें पीड़ित अब्दुल समद कह रहे हैं कि इंतजार का एक काम प्रवेश गुर्जर ने अटका रखा है।इसके लिए इंतजार कहने पर उन्होंने प्रवेश को वश में करना चाहते थे। इंतजार के कहने पर उन्होंने प्रवेश के परिवार को गलत ताबीज बनाकर दिये।एक अन्य वीडियो में अब्दुल समद के बैग से जादू टोने की किताब और दवाआ की कई पुड़िया निकलती हुई दिखाई दे रही हैं,वहीं तीसरे वीडियो में सद्दाम नामक युवक बता रहा है कि उसने ही अपने घर के लिए भी अब्दुल समद से जादू टोना करवाया था। 5जून को अब्दुल समद उससे ही मिलने आए थे। इसके पश्चात् इंतजार के कहने पर सद्दाम ही अब्दुल समद को बंथला स्थित प्रवेश के घेर पर ले गया।यहाँ अब्दुल समद ने प्रवेश को बताया कि इंतजार के कहने पर वह उसे वश में करना चाहता था। इस बीच अब्दुल समद के बेटे बब्बू ने पुलिस पर आरोप लगाया कि दो आरोपियों को गिरफ्तार मामले का पटाक्षेप करना चाहती। मेरे पिता ताबीज बनाने का काम नहीं करते हैं,वे पेशे से पुश्तैनी लोहार हैं। आप इस घटनाक्रम और विवरण से सत्य जान सकते हैं कि असलियत क्या थी,सत्ता लोभियों ने क्या रंग दे दिया?
इसके बाद काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी, उनकी पार्टी के दूसरे नेता सलमान निजामी , आसिफ खान वामपंथी कार्यकर्ता और अभिनेत्री स्वरा भास्कर,आन लाइन पोर्टल‘द वायर’ की एंकर एवं मुसलमान अधिकार क पत्रकार मुहम्मद जुबैर, राणा अयूब, सबा नकवी,शमा मुहम्मद, मसकूर उस्मानी आदि ने बुर्जुग की पिटाई के वीडियो पर अपने-अपने तरीके से मजहबी नफरत फैलाने वाले अफ्जों और आरोपों का तड़का लगाकर उसे प्रसारित कर दिये। ऐसा करते हुए इनमें से किसी ने भी घटना की हकीकत और इन वीडियो से फैलने वाली मजहबी नफरत के दुष्परिणामों पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा। इस घटना पर राहुल गाँधी ने लिखा था,‘‘ मैं यह मानने को तैयार नहीं हूँ कि श्रीराम के सच्चे भक्त ऐसा कर सकते हैं। ऐसी क्रूरता मानवता से कोसों दूर है और समाज व धर्म ,दोनों के लिए शर्मनाक है।यह लिखकर उन्होंने पूरे हिन्दू समाज को कठघरे में खड़ा कर दिया। इसके प्रत्युत्तर में अपने ट्वीट में मुख्यमंत्री योगी जी ने लिखा,‘‘ प्रभु श्रीराम की पहली सीख है-सत्य बोलना,जो आपने कभी जीवन में किया नहीं,शर्म आनी चाहिए कि पुलिस द्वारा सच्चाई बताने के बाद भी आप समाज में जहर फैलाने में लगे हैं। सत्ता के लालच में मानवत को शर्मसार कर रहे हैं।लेकिन इससे राहुल गाँधी कोई सबक लेंगे,ऐसा नहीं लगता। पुलिस ने अब्दुल समद के मारपीट और दाढ़ी काटने के जुर्म में दर्ज रिपोर्ट में प्रवेश गुर्जर, आदिल, इंतजार, बौना सद्दाम, मुशाहिद, बाबू बिहारी उर्फ हिमांशु, अनस,पोली, शावेज,कल्लू गुर्जर, ताजुद्दीन, फिरोज मेवाती,आलम,जावेद आदि के नाम है,इनमें कई आरोपियों की गिरफ्तारी भी हो चुकी है। अब विधायक नन्द किशोर गुर्जर ने काँग्रेस नेता राहुल गाँधी ,एआईएमआइएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी और अभिनेत्री स्वरा भास्कर आदि के खिलाफ पुलिस को तहरीर दी है।इनके अलावा दिल्ली के अधिवक्ता अमित आचार्य ने तिलक मार्ग थाने में ट्विटर के प्रबन्धक निदेशक मनीष माहेश्वरी, अभिनेत्री स्वरा भास्कर, ‘द वायर’ की एंकर और मुस्लिम अधिकार कार्यकर्ता आरफा खानम शेरवानी,काँग्रेस के नेता आसिफ खान आदि के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी है,जिसकी पुलिस जाँच कर रही है।शिकायत सही पाये जाने पर मुकदमा दर्ज किया जाएगा। इस घटना के ट्वीट करने वाले नेताओं, पत्रकारों के खिलाफ साक्ष्य एकत्र कर रहे हैं।पुलिस अधिकारियों के अनुंसार सभी आरोपितों के पुराने ट्विटर पोस्ट में भी माहौल बिगाड़ने जैसे साक्ष्य उपयोग किया जाएगा।उन सभी को बतौर साक्ष्य उपयोग किया जाएगा। लेकिन विध्नसंतोषी तब भी कहेंगे?अब न पुलिस निष्पक्ष है और न न्यायपलिका। देश असहिष्णुता बढ़ रही है,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पाबन्दी है।विरोध प्रदर्शन करने पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो जाता है।उनसे प्रश्न यह है कि लोकतंत्र में विचारों ,विरोध/असहमति की स्वतंत्रता है,दंगा,हिंसा,अलगाववाद,आतंकवाद की नहीं।
अब समय आ गया है कि जब देश के लोगों की समझ में यह आ जाना चाहिए कि मजहबी नफरत फैला कर सियासत की आग में अपनी रोटियाँ सेंकने वाले निहायत खुदगर्ज और किसी के सगे नहीं है। सत्ता के लिए वह सबकुछ कर सकते है,जिसके बारे में सोच नहीं सकते। ऐसे में हमें उन्हें बेनकाब करने और उन्हें सख्त सजा दिलाने के लिए आगे आना चाहिए, ताकि वे ऐसी ओछी सियासत से तौबा कर लें।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

 

 

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