उत्तर प्रदेश

नूरपुर काण्ड पर फिर दुहरा रवैया

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के थाना टप्पल के गाँव नूरपुर में बहुसंख्यक मुसलमानों ने अल्पसंख्यक अनुचित जाति के हिन्दुओं की बरात के चढ़ने का विरोध करते हुए बरातियों और घरातियों के साथ गाली-गलौज तथाग लाठी-डण्डों से मारपीट, उसके बाद पुलिस द्वारा आरोपियों के विरुद्ध वांछित कार्रवाई न करते हुए उल्टे शिकायतकर्ता समेत 20लोगों के खिलाफ ‘महामारी अधिनियम’ के तहत मामला दर्ज करने से निराश-हताश, व्यथित अनुजातियों के लोगों के अपने मकानों पर बिकाऊ है लिखे जाने और पलायन के लिए मजबूर होने की घटना अत्यन्त दुःखद और शर्मनाक है। इसकी जितनी निन्दा की जाए, वह कम ही होगी। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति के लिए विशेष रूप से पुलिस जिम्मेदार है, जो ऐसे या सामान्य मामलों में आम आदमी के साथ जितनी क्रूरता और कठोरता दिखाती है, वह राजनीतिक रसूख रखने वालों, धनिकों या अल्पसंख्यक वर्ग के प्रति उतनी ही नरमी बरती आयी है। इस कारण इस अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों के हौसले बेहद बढ़े हुए हंै। इसी वजह से वे बेखौफ होकर आए दिन हर जगह तरह-तरह की वारदातों को अन्जाम देते रहते हैं, वह भी भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के रहते। प्रदेश में ‘लव जिहाद’ और ‘गौ तस्करी’ के खिलाफ सख्त कानून बनाये और गुनाहगारों के बेहद सख्ती बरतने की हिदायतों के बाद भी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने इन दोनों गैर कानूनी कामों से अभी तक तौबा नहीं की है। आए दिन विभिन्न समाचार पत्रों में हिन्दू युवतियों के छेड़े जाने और उनके अभिभावकों द्वारा उनके परिजनों से शिकायत करने पर उनके साथ मारपीट किये जाने, उसके बाद पुलिस द्वारा पहले तो उनकी शिकायत दर्ज न करने या फिर दर्ज करने के बाद गुनाहगारों के खिलाफ कार्रवाई न करने की खबरंे भी छपती रहती हैं, ऐसे पुलिस अधिकारियों और पुलिसकर्मियों के खिलाफ नमूने की कार्रवाई न होने से सूबे के हालात नहीं बदल रहे हैं। हकीकत यह है कि जिन शहरों, कस्बों, गाँवों में जहाँ कहीं समुदाय विशेष बहुसंख्यक है, वहाँ हिन्दुओं का रहना दुश्वर हो गया है। वहाँ न हिन्दुओं की जान और माल महफूज है और न उनकी महिलाओं की आबरू ही।
सच कहा जाए,तो हिन्दुओं के साथ अपने ही देश में दूसरे दर्ज के नागरिक जैसा बर्ताव किया जाता है और वे किसी भी राज्य में सुरक्षित नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि सभी मुसलमान कट्टरपन्थी और हिन्दू विरोधी हंै, लेकिन यह भी सच है कि अच्छे-सच्चे,वतनपरस्त मुसलमान भी अपने मजहबीं कट्टरपन्थियों की मुखालफत करने के बजाय अक्सर चुप रहने में ही खुद की खैरियत समझते हैं। वैसे भी उदारवादी मुसलमानों को न राजनीतिक दलों में अहमियत मिलती है और न ही मीडिया में। हमारे मुल्क में हर जगह कट्टरपन्थियों को तरजीह मिलती आयी है,ऐसे में दूसरे भी उनके रास्ते और उनकी विचारधारा को बेहतर मान गलत रास्ते को अपना लेते हैं, जिसमें न उनका कोई फायदा और न ही मुल्क का। मुसलमानों को गुमराह करने और होने की असली वजह मुल्क की मौजूदा अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की सियासत है।
अब पुलिस और कुछ सियासी पार्टियाँ नूरपुर काण्ड को अपने बचाव के लिए भले ही स्थानीय स्तर का बताएँ, पर उसके पीछे साजिश बहुत बड़े स्तर की है, जो एक हद तक हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन औवेसी की इस्लामिक कट्टरपन्थी पार्टी ‘आॅल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन(एआइएमआइएम) के नेता सैय्यद नाजिम अली के बयान से जाहिर है। वह एक वीडियो के जरिए कह रहे हैं कि नूरपुर में नमाज तो होगी, पर बरात नहीं चढ़ने देंगे। ये लोग पढ़े लिखे नहीं। हम सब कोविड के दौर में शारीरिक दूरी का ध्यान रख रहे हैं। अगर परमीशन नहीं लेंगे, तो भाजपा के सभी नेता आ जाएँ ,बरात चढ़ाकर दिखा दें।अब यहाँ सवाल यह है कि क्या बिना कोई हिन्दूवादी संगठन का नेता मुसलमानों ऐसे ही किसी कार्यक्रम करने या रीति-रिवाज मनाने से समुदाय विशेष को रोक सकता है?हरगिज नहीं,अगर वह ऐसी जुरर्त करता भी,तो पुलिस-प्रशासन उसे ऐसा करने देता? क्या उसकी मुखालफत तमाम कथित पंथनिरपेक्ष,वामपंथी,उदारवादी,जातिवादी पार्टियाँ इकट्ठी होकर हा-हाकर न मचा रही होती? देशभर के जनसंचार माध्यम उसके विरुद्ध अपनी कलम और कैमरे न चला रहे होते? नूरपुर मामले के चर्चा में आने पर अब पुलिस ने सैय्यद नाजिम अली के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है। इसके बावजूद समुदाय विशेष के एकमुश्त वोटों की तलबगार बसपा, सपा, काँग्रेस जैसी सियासी पार्टियों के नेता उनकी खबर लेने नूरपुर नहीं पहुँचे हैं और न ही इनकी हिमायत का दम भरने वाले पत्रकार, बुद्धिजीवी, कलाकार, टी.वी.चैनल, जो हाथरस की बूलगढ़ी में डेरा डाले हुए थे। बूलगढ़ी की तरह प्रियंका गाँधी वडेरा , राहुल गाँधी ,अखिलेश यादव, भीम आर्मी के चन्द्रशेखर भी नूरपुर जाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं, आखिर ऐसा क्यों हैं?देश के लोगों को अब उनसे जवाब माँगना चाहिए।
क्षोभ की बात यह है कि ऐसे मामलों में कुछ ऐसा ही रवैया कथित पंथनिरपेक्ष, वामपंथी, उदारवादी नेताओं, साहित्यकारों, पत्रकारों, कलाकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं , अनुचित जाति की हिमायती सियासी पार्टियों, जनसंचार माध्यमों का है। अगर सवर्ण हिन्दुओं विशेष रूप से ठाकुरों/जाटों या ब्राह्मणों ने अनुसूचित जाति के लोगों की बरात को चढ़ने से रोका होता, तो ज्यादातर सियासी पार्टियों के नेता दलितों पर अत्याचार के आरोप लगाते हुए नूरपुर पहुँच चुके होते और मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ से त्यागपत्र देने की माँग भी कर रहे होते, पर जब गुनाहगार अल्पसंख्यक समुदाय के लोग हंै, तो अपने वोट बैंक को नुकसान का अन्देशा होते देख उन्होंने चुप बैठने में ही अपनी खैरियत समझी।इनमें किसी ने भी उन्हें सहयोग-सहायता देना तो दूर रहा,सांत्वना देना भी आवश्यक नहीं समझा। कुछ ऐसा ही रवैया समाचार पत्रों और टी.वी.चैनलों उनके खास पत्रकारों, एंकरों का है, जो अल्पसंख्यकों के जुल्मों के खिलाफ कुछ भी लिखने और दिखाने से बचते हंै ही नहीं, उन्हें दबाने /छुपाने में जुट जाते हैं। यह तब जब पीड़ित अनुसूचित जाति के लोग हैं।
अलीगढ़ जिले के नूरपुर गाँव में 600 घर मुसलमानों और 100 के लगभग अनुसूचित जाति के हिन्दुओं के हैं। बताया जाता है कि इसमें तीन मस्जिदें हैं ,पर हिन्दुओं का मन्दिर नहीं। मुसलमान मन्दिर निर्माण नहीं करने देते। इस गाँव के लोगों का आरोप है कि सन् 2006से समुदाय विशेष के लोग अनुसूचित जाति के लोगों की बरातें नहीं चढ़ने नहीं दे रहे हैं। वे अनुसूचित जाति के लोगों के तरह-तरह से प्रताड़ित करते हैं। उनसे परेशान होकर कुछ लोग गाँव छोड़कर जा चुके हैं और बाकी उनकी दहशत में जीने को मजबूर हैं। फिलहाल, इसी 26 मई को नूरपुर के ओमवीर की दो बेटियों की बरात हरियाणा के पलवल के गाँव दीघोट से आयी थी। बरात चढ़ने के समय समुदाय विशेष के लोगों ने यह कहते हुए विरोध किया वे मस्जिद के सामने डीजे नहीं बजाने देंगे।इसके बाद उन्होंने बरातियों-घरातियों के साथ जमकर मारपीट की। जब ओमवीर 27मई को रिपोर्ट करायी, तब पुलिस ने ओमवीर समेत 20 लोगों के खिलाफ महामारी अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया। इससे पुलिस के समुदाय विशेष के प्रति रवैये को आसानी से समझा जा सकता है। लेकिन जब नूरपुर की घटना की खबर कुछ अखबारों में छपी, तब भाजपा और कुछ हिन्दू संगठनों यथा-बजरंग दल के नेताओं ने गाँव के लोगों की हिम्मत बढ़ायी और गुनाहगारों को सजा दिलाने का भरोसा भी दिलाया। समुदाय विशेष के लोगों का दुस्साहस यह है कि इस्लामिक जिहादियों द्वारा कुछ ही अन्तराल में गाजियाबाद के डासना देवी मन्दिर के महन्त नरसिंहानन्द सरस्वती की हत्या की दो कोशिशें हो चुकी हैं। उन्हें पहले कश्मीरी दहशतगर्द जान मोहम्मद उर्फ डार को 15दिन पहले गिरफ्तार किया गया था। उसके 2जून को दो संदिग्ध मन्दिर में घुस आए।उनकी तलाशी लेने पर पुलिस को उनके पास तीन सर्जिकल ब्लेड, कुछ आपत्तिजनक दवाएँ बरामद हुई हैं।ये भी समुदाय विशेष के हैं। जाहिर है कि जो भी हिन्दू इस्लामिक कट्टरपन्थी को उसकी जुबान में जवाब देने का साहस करेगा,यह उसकी जान लेने में गुरेज नहीं करेंगे। लखनऊ में हिन्दू नेता कमलेश तिवारी की इस्लामिक जिहादियों ने कैसे हत्या की थी,उसे सूबे के लोग अभी भूले नहीं हैं। हाल में बुलन्दशहर में समुदाय विशेष के शौहदों ने हिन्दू युवती को उसी के घर में मार रस्सी पर लटका दिया,जबकि युवती ने पुलिस से इनके द्वारा छेड़छाड़ की शिकायत की थी,फिर भी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।
निश्चय ही इस घटना के बाद अनुचित जाति के लोगों को बसपा, सपा, भीम आर्मी, काँग्रेस पर से अपने यकीन में कमी आएगी, जो उनके सबसे बड़े हिमायती होने का दावा करते रहते हैं। वैसे ऐसी वारदाते ‘ भीम और मीम’के गठजोड़ की असलियत सामने ला देती हैं, जिसकी आड़ लेकर बसपा, सपा, काँग्रेस सत्ता में फिर से आने का ख्वाब देख रहे हैं। भले ही उ.प्र.की भाजपा सरकार सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास की बात करती है, पर पुलिस अब भी पिछली सरकारों की नीतियों पर चल रही है। इसी लिए भाजपा के पिछले साढ़े चार साल के शासन में न तो प्रशासनिक अधिकारियों के जनता खास कर समुदाय विशेष के प्रति रवैये में बदलाव आया है और न ही पुलिस के। यही कारण है कि आम आदमी अब भी अन्याय का प्रतिकार करने बजाय उसे सहने में ही अपनी खैरियत समझता है। जितनी जल्दी यह सच्चाई मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और भाजपा की समझ में आ जाए, वह उसके राजनीतिक भविष्य के लिए उतनी अच्छी होगी,क्योंकि आगामी विधानसभा चुनाव होने में अब बहुत देर नहीं है।

 

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