कहानी
डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
अचानक सोमनाथ को अपने घर आए देख मैं चैंका और मुझ से कहीं ज्यादा से विधायक अम्बरीश शर्मा आश्चर्य चकित रह गए। उनके चेहरा देखने लायक था। वैसे सच कहूँ तो हम दोनों ने ही सोमनाथ के फिर कभी घर आने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। वैसे भी अक्सर विधायक अम्बरीश शर्मा और उनका भाई अजय मेरी हर किसी पर विश्वास कर उसकी यथा सम्भव सहायता करने की प्रवृत्ति का मजाक बनाते रहते थे। विधायक अम्बरीश शर्मा का कहना रहता था, ‘‘सच कहूँ, तो तुम्हारी यह भलमनसाहत कम बीमारी ज्यादा है, जो हर किसी के कहे पर भरोसा कर लेते हो। पूरी जाँच -पड़ताल के बाद ही किसी आदमी पर विश्वास करना चाहिए। पर तुम हो कि जरा-सी किसी ने अपनी दुःखभरी कहानी सुनायी और तुम्हें पिघते देर नहीं लगती। उसके बाद तुम तत्काल अपनी जेब ढीली कर देते हो। लोग तुम्हें आसानी से बेवकूफ बना कर ठगी कर ले जाते हंै। वैसे भी अक्सर मैंने लोगों को यह कहते सुना है कि चलो, अमुक व्यक्ति के पास चलते हैं, वह बहुत भोला-भाला है। उसे सही-गलत की पहचान करना ही नहीं आता। उससे कोई-सा बहाना बनाकर रुपए ले आते हैं। कुछ ऐसा ही हाल तुम्हारा है, जो अब तक लोगों की फितरत नहीं समझ पाये हो। मैं तो ऐसे लोगों को पहली नजर में भांप लेता हूँ। अगर बुरा न मानो,तो एक बात कहूँ ?’’ ‘‘जरूर कहो’’ मैंने हामी भरते हुए कहा। इस पर उन्होंने कहा, ‘‘मुझे तो लगता है कि वह व्यक्ति जरूर बुद्धू और महा मूर्ख ही होगा?‘‘ मैंने कहा,‘‘जरूर वह भी हमारी बिरादरी का रहा होगा।’’ इस पर विधायक अम्बरीश शर्मा ने थोड़ा नाराजगी की स्वर में झुंझलाते हुए कहा,‘‘ बहुत खूब, अपनी गलती पर इस तरह इतराते हुए मैंने सिर्फ तुम्हें ही देखा।’’ तब मैंने उनसे कहा,‘‘यह सही है कि कुछ लोग मुझे रुपए लौटाने नहीं आए हैं, ऐसा करते हुए उन्होंने मेरे बारे में क्या धारणा पाली मुझे नहीं पता? लेकिन उनके अनुचित व्यवहार,बेईमानी, झूठ को लेकर मैं और दूसरे लोग आम लोगों के प्रति ऐसी धारणा बनाकर किसी दूसरे की बुरे वक्त पर सहायता करना बन्द कर दें, तो ऐसा किया जाना क्या समाज के हित में होगा?’’ इस पर विधायक जी तिलमिला कर बोले,‘‘तो क्या समाज हित का तुमने ठेका ले रखा?’’
माहौल बिगड़ता देख मैंने कहा,‘‘ऐसा नहीं है। आप जो भी मुझ से कहते हो, मेरे हित के लिए कहते हो।’’ लेकिन मैं अपनी इस प्रवृत्ति का क्या करूँ? जो अब तक विद्वानों के लिखे को पढ़ने और उस पर चिन्तन-मनन से बनी है।’’
इस स्थिति में उनकी बात का प्रतिवाद करने के बजाय मैं अक्सर रहीम दास के दोहे ‘रहिमन आप ठगाइए और ठगे न कोए। आप ठगे सुख होत है और ठगे दुःख होए।’ को सुना। मैं भी किसी को ठगने के बजाए स्वयं को ठगाने में सुख का अनुभव करता हूँ। इस पर वह हो-हो कर हँस पड़ते। लेकिन मैं अपने स्वभाव और प्रवृत्ति के बचाव में कभी महाराजा रणजीत सिंह के बेर तोड़ते एक बच्चे द्वारा फेंके पत्थर लगने पर उनके कथन और सजा के स्थान पर बच्चे का पुरस्कार देने या फिर उस महात्मा की कथा सुना कर अपने पक्ष को मजबूत करने की कोशिश करता,जो नदी में डूबते बिच्छू के बार डंक मारने पर उसे बार-बार जल में डूबने से बचाने की कोशिश करते हैं। अपने शिष्य के टोकने पर वह कहते हैं कि बिच्छू अपनी प्रवृत्ति के अनुसार मुझे डंक मार रहा है, तो मैं अपनी किसी प्राणी के जीवन बचाने के स्वभाव को कैसे बदल दूँ। लेकिन विधायक अम्बरीश शर्मा में मेरे इन दृष्टान्तों से सतुष्ट न होकर कहते,‘‘ अरे यार! ये सब अब कलयुग में निरर्थक हो गए हैं।’’ इस पर मैं यह कह चर्चा पर विराम लगाने का प्रयास करता,‘‘ चलो, मैं आपकी समझ के मुताबिक स्वयं को बेवकूफ, बुद्धू, महामूर्ख और आज के समय से पीछा होना मंजूर कर लेता हूँ, लेकिन मैं अब आप से ही प्रश्न करता हूँ कि मैं जब अपने गाँव से इस शहर में आया था, तब मेरी जेब में चन्द रुपए थे। आज मेरे पास क्या नहीं है? अपना घर, नौकरी , पत्नी,बच्चों से भरापूरा परिवार के साथ कई हजार रुपए बैंक में भी जमा है और समाज में मान-सम्मान भी है। फिर मैं यह मान कर भी चलता हूँ, अगर कोई मेरे दिये रुपए नहीं लौटाता, तो वह अपना पिछले जन्म का कर्ज वसूल कर ले गया और नही, ंतो मेरा उस पर कर्ज चढ़ गया। अब आप ही बताओ?इसमें मेरा क्या, नुकसान हो गया? यह कह कर जब मैं हँस पड़ा। तब मेरे दोस्त यह कहकर मुझ पर तंज कसते थे,‘‘यह तुमने अपनी बेअक्ली के बचाव अच्छा तरीका निकल लिया है।’’
सोमनाथ सेना से सेवानिवृत सैनिक थे और उसके बाद सिक्योरिटी सर्विस कम्पनी में नौकरी करने लगे। चूँकि उनकी शादी नहीं हुई थी या अपनों ने नहीं होने दी है, ठीक -ठीक कह पाना सम्भव नहीं है। सेना में रहते हुए देश में सबसे कम अवधि के लिए प्रधानमंत्री रहे लालबहादुर शास्त्री ने सन् 1965 के ‘भारत और पाकिस्तान युद्ध’ से पहले ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था, उससे देश के दूसरे लोगांे के साथ सोमनाथ का बहुत प्रेरित हुआ। तब से ही सोमनाथ ने अच्छे सैनिक होने के साथ-साथ अच्छा किसान बन कर दिखाने का संकल्प लिया था। युद्ध के दौरान उन्होंने अपनी सैन्य टुकड़ी के साथ बहादुरी से दुश्मन के सैनिकों के दाँत खट्टे किये। इसके लिए उन्हें विशेष वीरता पदक भी मिला था। फिर रिटायर होने के बाद वह अपने गाँव आकर परिजनों के साथ रहने और भाइयों और उनके बेटों का खेती में हाथ बटाने की प्रबल इच्छा पूरा करने आ गए। वैसे गाँव में जीवन यापन की दृष्टि से उनकी पेंशन भी काफी थी। शुरू में भाई और उनके बच्चे उसकी हर तरह से आवभगत करते और उनका हर तरह से ख्याल रखते । यह देखकर वह अपनी शादी और बच्चों के न होने का अफसोस भूलने लगे। उन्हें भतीजों में अपने बच्चों की सूरत दिखाई देने लगी। सोमनाथ ने भी कृषि और उद्यान विभाग जाकर उन्नत किस्मों के फसलों के बीज और उर्वरक के साथ तरह-तरह के फलों के कलमी पौधों का बाग लगाया। खेतों की सिंचाई के लिए सोमनाथ ने अपनी जमा पूँजी से ट्यूब वैल लगाया। उनके प्रयासों की आसपास के गाँवों में भी चर्चा होने लगी, कि देखों! सोमनाथ ने लालबहादुर शास्त्री के ‘जय जवान जय किसान’ के नारे को हकीकत में तब्दील दिया। यह सुनकर सोमनाथ का सीना गर्व से चैड़ा हो जाता। कुछ साल सोमनाथ के अच्छी तरह से गुजरे। फिर सोमनाथ को अपनों के कथित आदर-सम्मान और खातिरदारी के पीछे घर वालों के असल इरादों का भी पता चल गया। ये सभी उन्हें नहीं, उनकी पेंशन की धनराशि के साथ-साथ उनके हिस्से के खेत भी अपने नाम कराना चाहते थे, ताकि उनके बेटों के शादियाँ धनी परिवारों की बेटियों से हों और उन्हें अधिकाधिक दहेज मिल सके, पर सोमनाथ अपनों के चाल-चलन को देखते हुए खेत उनके नाम कर जीते जी अपने हाथ कटाना नहीं चाहते थे। उन्हें गाँव के कुछ लोगों से खबर लगी कि अगर वह अपने भतीजों की बात नहीं मानेंगे, तो वे उसकी जान भी ले सकते हैं, क्योंकि उस हालत में भी उनका अपना बेटा-बेटी न होने के कारण जमीन उनकी हो जाएगी। इसलिए शहर में अपने दोस्त से मिलने के बहाने गाँव छोड़ दिया और शहर आ गए, पर शहर में बगैर काम के रहना उन्हें खलने लगा। यह बात उसने फौज में अपने साथी रहे महेन्द्र को बतायी,तो उसने सोमनाथ को सिक्योरिटी सर्विस में काम करने का सुझाव दिया। कुछ देर सोचने के बाद सोमनाथ ने भी अपनी स्वीकृति दे दी। फिर उसकी बतायी सिक्योरिटी कम्पनी में जाकर काम करना शुरू कर दिया। इस बीच सोमनाथ का दोस्त श्यामपाल अपने काम से शहर आया। उसे शहर में रह रहे अपने क्षेत्र के विधायक अमरीश शर्मा से कुछ निजी काम था। इसलिए वह सोमनाथ को भी अपने साथ विधायक की कोठी पर ले गया। विधायक अम्बरीश शर्मा श्यामपाल से पहले से परिचित थे, क्यों कि वह उनकी पार्टी के बहुत पुराना सक्रिय कार्यकर्ता था। श्यामपाल ने सोमनाथ का परिचय पूर्व सैनिक के रूप में कराने के साथ-साथ उसके सन् 1965 में भारत-पाक युद्ध में विशेष वीरता दिखाने के बारे में बताया, तो विधायक अम्बरीश सोमनाथ से बहुत प्रभावित हुए । उन्होंने पूछा शहर में कहाँ रहते हो?तब सोमनाथ बताया,‘ कृष्ण नगर में एक किराये के मकान में रहता हूँ। इस पर विधायक अम्बरीश शर्मा ने कहा,‘अपनी इतनी बड़ी कोठी के रहते, आपको किराये पर रहने की क्या आवश्यकता है? आप एक तो सैनिक हो, फिर बिरादरी के हो। मैं तुम्हारे इतने काम भी न आ सकूँ, तो मेरा विधायक होना और इतनी बड़ी कोठी किस काम की?’’ दरअसल, विधायक अम्बरीश शर्मा के इस आग्रह के पीछे अपना भी स्वार्थ था। राजनीतिक कारणों से उनकी तमाम लोगों से दुश्मनी थी।उन्हें विधायक होने के कारण सुरक्षाकर्मी भी मिले हुए थे। पर उन्हें उन सभी से कहीं बेहतर सोमनाथ लगे,जो पूर्व सैनिक होने के साथ-साथ उनके अपने क्षेत्र और बिरादरी के भी थे। पहले तो सोमनाथ ने संकोच व्यक्त करते हुए कहा,‘‘ नहीं, साहब! व्यर्थ में आपको परेशानी होगी।’’ लेकिन विधायक अम्बरीश शर्मा के बार-बार कहने के बाद सोमनाथ ने उनकी कोठी के कमरे मंे रहने की हामी भर दी। उसके बाद सोमनाथ विधायक अम्बरीश शर्मा द्वारा दिये अपने सर्वेण्ट क्वार्टर में रहने लगे। एक ही क्षेत्र और एक जैसी भाषा-बोली और बिरादरी के होने के कारण जल्दी सोमनाथ उनके काफी निकट आ गए और उनके विश्वस्त भी बन गए। अक्सर समय मिलने पर वह विधायक जी की गप्प गोष्ठी में सम्मिलित होने लगे। जब कभी विधायक जी परिवार सहित कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर जाते,तब विधायक जी के घर की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सोमनाथ पर छोड़ जाते। ऐसे में सोमनाथ सिक्योरिटी एजेन्सी से छुट्टी लेकर इस दायित्व का यथाशक्ति निर्वहन करते। एक बार सोमनाथ जब अपने गाँव गए थे और सुबह-सुबह अपनी आदत के मुताबिक दौड़ने वाले जूते तथा नेकर पहन कर हाथ में छड़ी लेकर खेत पर घूम रहे थे ,तभी साजिश के तहत उन पर महिला को बदनीयत से छेड़ने का आरोप लगाते हुए लोग उन्हें पकड़ने भागने। ऐसे में गाँव वालों ने असलियत पता करने के बजाय उनके गैर शादीजुदा होने की वजह से उसके आरोप पर आसानी से यकीन भी कर लिया और वे दूसरे की तरह उन्हें पकड़ने की कोशिश में जुट गए। ऐसे में सोमनाथ को बगैर अपने कपड़े ,रुपए और सामान लिए गाँव के लोगों से अपनी जान बचा कर मजबूरी में शहर आना पड़ा। अब सोमनाथ के पास न पहनने के कपड़े थे और न ही सिक्योरिटी एजेन्सी की डेªस ही, क्योंकि इस बार गाँव से सीधे ड्यूटी पर जाने का विचार कर डेªस भी साथ ले आये थे। जब उन्होंने अपनी व्यथा विधायक अम्बरीश शर्मा को सुनायी, तो उन्होंने सोमनाथ से स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि ऐसी हालत में आपके यहाँ रखने से मेरी प्रतिष्ठा और छवि को आघात लग सकता है। इसलिए आप को जल्दी ही रहने के लिए कोई दूसरी जगह तलाशनी होगी। जब सोमनाथ ने उनसे कुछ आर्थिक सहायता के लिए कहा, तब उन्होंने कहा,‘‘ आप जैसे लोगों की मदद कर वह अपने विरोधियों को कोई मौका देना नहीं चाहता। इसलिए जितनी जल्दी यहाँ से चले जाएँ,उतना मेरे और आपके के लिए बेहतर होगा।’’
जिन विधायक अम्बरीश शर्मा से अपनी निकटता पर सोमनाथ गर्व अनुभव करते थे, उनका यह व्यवहार देखकर बहुत आहत हुए,पर वह कर ही क्या सकते थे? फिर वह अपने मन को यह कह कर समझाने लगे कि यह कोई नई बात नहीं, विपदा/संकट के समय तो अपना साया भी साथ छोड़ देता है। कुछ देर विचार करने के बाद सोमनाथ को विधायक अम्बरीश शर्मा के पड़ोसी और बचपन का मित्र होने के नाते मेरा ध्यान आया, क्योंकि दूसरों की मदद करने की आदत को लेकर विधायक जी अक्सर वह भी मेरी खिल्ली उड़ाते देख चुके थेे। इसी बीच सोमनाथ ने अपने नए -पुराने दोस्तों से मदद माँगने की सोची। लेकिन उनमें से कोई ऐसा नहीं लगा, जो इसी मुसीबत की घड़ी में उनकी मदद करे। तब कोई और विकल्प न देखते हुए सोमनाथ ने मुझ से सहायता माँगने की ठानी। उसके बाद सोमनाथ मेरे घर आए और अपने साथ जो वाक्या गुजरा कह सुनाया और दो हजार रुपए कपड़े और खाने की व्यवस्था के लिए उधार माँगते हुए वेतन मिलने पर जल्दी लौटाने की बात कही। कुछ देर तक मैं शान्त बैठा उनके बारे में सोचता रहा। फिर उठकर अपनी जेब से रुपए निकाल कर दे दिये, उसी वक्त विधायक जी का बेटा आ गया और उसने सोमनाथ को रुपए देते हुए देख लिया। फिर जब विधायक अम्बरीश शर्मा मुझ से मिले, तो उलाहना देते हुए कहा, ‘‘आखिर आप अपनी आदत से बाज नहीं आए, जब मैंने सोमनाथ को रुपए उधार नहीं दिये, तो आपको उन्हें देने की क्या जरूरत थी?’’ ‘‘ मैंने कहा कि उन्होंने आप से रुपए उधार माँगे थे और आपने नहीं दिये। ऐसा तो सोमनाथ ने मुझ से नहीं कहा । ऐसे में भला आपके यहाँ रहने वाले आदमी से कैसे मना करता?’’ ‘‘ठीक है, तो आप इन रुपयों को भूल जाओ। सोमनाथ अब रुपए लौटाने नहीं आने वाला।’’ ‘‘कोई बात नहीं, मेरे होंगे, तो वह देने आएगा, नहीं आया, तो हमेशा की तरह यह मान लूँगा कि उसका मेरे ऊपर कोई बकाया कर्ज होगा, जो वह वसूल कर ले गया। यह कहते हुए मैं हमेशा की तरह कर हँस पड़ा। तब विधायक अम्बरीश शर्मा ने तंज कसते हुए कहा, ‘‘ मेरा क्या? ठीक है, आप ऐसे ही अपने पिछले जन्म का कर्ज पटाते रहो।’’ उसके बाद जब भी अम्बरीश शर्मा मुझ से मिलते तो, मौका पाकर मेरी मजाक बनाते हुए पूछते सोमनाथ रुपए लौटाने आया क्या? देखते-देखते छह महीने गुजर गए। मैं भी सोमनाथ से रुपए वापस आने की पूरी तरह उम्मीद छोड़ बैठा था कि अचानक सोमनाथ को देखकर मेरा और विधायक अम्बरीश शर्मा का भौंचक्के होकर देखना स्वाभाविक था। सोमनाथ का स्वास्थ्य पहले से अच्छा लग रहा था। उसने हम दोनों को नमस्ते की। मैंने सोमनाथ को सामने पड़ी कुर्सी पर बैठने का संकेत किया। वह बैठ गए। फिर उन्होंने देर से रुपए लौटाने की क्षमा माँगते हुए रुपए मेरे हाथ पर रख दिये। मेरे पूछने से पहले ही उन्होंने कहा कि मैं जब वेतन मिलने के बाद एक दिन आपके यहाँ आ रहा था, तब एक कार मुझे टक्कर मार गई, लेकिन लोगों ने उसका नम्बर नोट कर पुलिस को सूचित कर दिया। उसके बाद टाँग टूटने के कारण पाँच महीने तक अस्पताल में इलाज कराने को मजबूर होना पड़ा। अब जब मैं चल फिर सकता हूँ , तब रुपए लौटाने आज आया हूँ। इसके बाद धन्यवाद कहते हुए सोमनाथ ने कहा, ‘‘मैं आपका यह अहसान कभी भूल नहीं पाऊँगा। जब मुसीबत के वक्त मुझे मदद के सारे दरवाजे बन्द नजर आए, तब आपने फरिश्ता बनकर मेरी तरफ मदद का हाथ बढ़ाया। यह कहते हुए सोमनाथ का गला रूँध गया और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। मैंने उठ कर उनके आँसू पौंछते हुए कहा, ‘‘मैं कोई फरिश्ता-वरिश्ता नहीं, आम इंसान हूँ। ईश्वर ही मुझ से यह सब कराता है, इसलिए आप प्रभु को ही धन्यवाद दो। यह देखकर विधायक अम्बरीश शर्मा को सोमनाथ की सही पहचान न कर उनकी सहायता न कर पाने पर कोई पछतावा हुआ या नहीं, कह नहीं सकता? लेकिन मुझे यह सोच कर बहुत संतोष और खुशी हुई कि विधायक अम्बरीश शर्मा का यह कहना गलत साबित हुआ कि मदद माँगने को आए आदमी ठगने की मंशा आते हैं और उनमें ज्यादातर बेईमान होते हंै। मुझे आदमी की सही पहचान करने की समझ तथा क्षमता नहीं है।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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