देश-दुनिया

फिर से धधक उठा पश्चिमेशिया

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
पिछले सात साल से रेगिस्तान के रेत में दबे मजहबी नफरत के शोलों को इजरायल के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले ने उन्हें हवा देकर ऐन रमजान के पाक महीने में फिर से दहका दिया है। इसकी आग में पश्चिमेशिया में फिर से धधक रहा है। इजरायल और फिलिस्तान एक बार फिर जंग के लिए उतर आए हैं और एक दूसरे को बर्बाद करने को राॅकेटों और बमबारी कर एक-दूसरे को बर्बाद करने पर उतारू हंै। इससे मुस्लिम मुल्क ही नहीं, अमेरिका समेत दुनिया भर के दूसरे देश भी बहुत चिन्तित हैं, क्योंकि पश्चिमेशिया की इस आग से झुलसे बगैर शायद ही कोई देश बचे। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन से पश्चिमेशिया की स्थिति पर अपनी चिन्ता व्यक्त की है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इजरायल को अपने नागरिकों की सुरक्षा का पूरा अधिकार है। इस्लामिक मुल्क तुर्की, पाकिस्तान,मलेशिया आदि ने इजरायल के हमलों की निन्दा के साथ उसे अपनी हमलावर कार्रवाई रोकने को कहा है। ऐसे में हालात में वे अरब मुल्क बेहद चिन्तित और परेशान हैं, जिन्होंने ने हममजहबी मुल्कों की नाराजगी के बावजूद इजरायल से अपने राजनयिक और व्यापारिक रिश्ते कायम किये हुए हैं। वैसे असल में यह जंग इजरायल और फिलिस्तीन के बीच न होकर इस्लामिक उग्रवादी हथियारबद्ध/दहशतगर्द संगठन ‘हमास’ से है,जो कई साल पहले फिलिस्तान के सैकड़ोंअधिकारियों की हत्या कर चुका है।इस दहशतगर्द संगठन पर फिलिस्तान सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। इजरायल के खिलाफ इसकी हमलावर कार्रवाई का खामियाज फिलिस्तीनियों को भुगतान पड़ता है। अपने देश में कथित पंथनिरपेक्ष और वामपंथी विचारधारा के बुद्धिजीवी और राजनेता केन्द्र सरकार पर इजरायल की निन्दा और फिलिस्तान का पक्ष लेने के लिए दबाव बना रहे हैं। ऐसे में भारत को ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए,जो दुनिया में उसके सबसे विश्वस्त मित्र इजरायल के हितों के विपरीत हो।
वैसे इस बार जंग की दो खास वजह बतायी जा रही हैं। इनमें पहली इजरायल के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1मई को यरुशलम के शेख जर्रा से फिलिस्तीनियों के सात परिवारों को निकाले जाने और उनकी जगह पर यहूदियों को बसाने का फैसला देना है,क्योंकि यह जगह इजरायल की स्थापना से पहले ‘यहूदी रिलीजन एसोसियेशन’ के अधीन थी। इस निर्णय के विरोध में अरब मूल के लोगों ने हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिये। दूसरी वजह इसी दौरान यरुशलम स्थित विश्व भर के मुसलमानों के लिए तीसरी सबसे पाक ‘अल-अक्सा मस्जिद’ के आसपास जमा मुसलमानों के साथ पुलिस का दुव्र्यवहार और टकराव है। मुसलमानों के उग्र विरोध करने पर पुलिस ने आँसू गैस के गोले दागे, इसके जवाब में उन्होंने भी पुलिसकर्मियों पर जमकर पत्थर बरसाए। ऐसा चार दिनों तक होता रहा। फिर ‘अल-अक्शा मस्जिद’ पर पुलिस द्वारा हथगोले फेंके जाने से इजरायल में जगह-जगह हिंसा शुरू हो गई, जिन्हें नियंत्रित कर पाना पुलिस के बस से बाहर हो गया। इसके प्रतिकार में फिलिस्तीन स्थित उनके उग्रपन्थी इजरायली विरोधी हथियारबद्ध संगठन ‘हमास’ ने इजरायल पर राॅकेटों से हमले शुरू कर दिये,उनके जवाब में इजरायल की वायुसेना ने विमानों से ‘हमास’ के दो बहुमंजिली इमारतों में स्थित ठिकानों पर बमबारी शुरू कर दी और उन्हें जमींदोज कर दिया। जहाँ ‘हमास’ के राॅकेटों के हमले से कोई एक दर्जन से इजरायलियों की जानें गईं। इनमें अश्केलोन शहर में एक केरल निवासी भारतीय महिला सौम्या सन्तोष की भी सम्मिलित है, वहीं इजरायल ने फिलिस्तीन में हमास के ठिकानों पर जमकर बम बरसाये हैं। 14मई तक इजरायल की बमबारी में ‘हमास’ के कई कमाण्डर और उग्रवादियों के साथ-साथ 122 से ज्यादा लोग मारे गए है,इनमें 20 महिलाएँ और 31्रबच्चे हैं।इनके अलावा 900लोग घायल भी हुए हैं। हालाँकि इजरायल के प्रधानमंत्री बैंजामिन नेतन्याहू ने ‘हमास’ के ठिकाने वाली इमारत पर बमबारी से पहले चेतावनी देकर आम नागरिकों से उसे खाली करने की चेतावनी दे दी थी। 12 मई को इजरायली एयरक्राफ्ट ड्रोन ने बमवर्षा कर एक 9मंजिली रिहायशी इमारत को ध्वस्त कर दिया।इसके जवाब में हमास ने 100मिसाइलें रेगिस्तान के मध्य बसे शहर बीर-शिवा में दागीं। उसने एश्कलोन में एक हजार मिसाइलें तथा तेल अवीव पर 130राॅकेट दागे हैं। इजरायल के लोद शहर में आपात लगाया गया है,क्यों कि इसमें आधे अरब और आधे यहूदी रहते हंै। इजरायल तथा फिलिस्तीन के बीच शुरू हुए हाल के हमलों के बाद भी इन दोनों समुदायों के मध्य हिंसक झड़पें हुई हैं।वैसे भी सन् 1966 में भी इस शहर में आपात लागू किया गया था। तदोपरान्त शहर कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए आपातकाल लगाने की घोषणा करना जरूरी हो गया। इजरायल में प्रमुख समाचार पत्र‘ टाइम्स आॅफ इजरायल’ ने स्थानीय जनसंचार माध्यम के हवाले से यह खबर प्रकाशित की है कि शहर में कई दुकानें जला दी गईं, जबकि बड़ी संख्या में आगजनी की गई है।14मई को गाजा पट्टी में जमीन में सुरंग बनाकर बनाए ‘हमास’ के ठिकानों को खत्म करने को इजरायल ने 40मिनट तक तोपों से गोलाबारी की।इसके प्रत्युत्तर में हमास ने इजरायल के यरुशलम ,तेलअवीव सहित कई शहरों पर राॅकेट से हमले किये। जहाँ इजरायल ने फिलिस्तीन बैंक के कार्यालय को ध्वस्त कर दिया है, वहीं हमास ने इजरायल के एक रसायन कारखाने को राॅकेट हमले से बर्बाद कर दिया है। गाजा पट्टी के उत्तरी और पूर्वी इलाके पर इजरायली सीमा पर तैनात तोपों से गोलाबारी की है, जिसके कारण यहाँ के बाशिन्दें पलायन कर उत्तरी इलाके के एक स्कूल में पनाह लेने को मजबूर हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ(यू.एन.ओ.)ने कहा कि गाजा में करीब 200घर बर्बाद हो गए हैं। उसने सभी पक्षों से शान्ति बनाये रखने की अपील की है।यल एक बार 15मई को एक बहुमंजिली इमारत को बमबारी से मटियामेट कर दिया,जिसमें एसोसियेडेट प्रेस तथा अलजजीरा टी.वी.के कार्यालय थे।हालाँकि बमबारी से पहले उसके निवासियों को इमारत खाली करने की चेतावनी दे दी थी। इस नए संघर्ष कारण कुछ लोग इजरायल के राजनीतिक अस्थिरता को मानते हैं। वस्तुतः मार्च में हुए संसदीय चुनाव में बेमकसद साबित हुए हैं,क्योंकि इनमें किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिलने की वजह से बैंजामिन नेतन्याहू को अन्तरिम प्रधानमंत्री बनाया हुआ है, जिन्हें जनता भ्रष्टाचार के आरोप लगने के कारण नापसन्द करती है। गत सप्ताह संसद में बहुमत सिद्ध करने की तिथि गुजर जाने तक नेतन्याहू गठबन्धन सरकार बनाने में विफल रहे। वह एक ही स्थिति में अपनी सरकार बना सकते हैं, वह है कि नेतन्याहू अरब समर्थक और यहूदी विरोधी ‘युनाइटेड अरब लिस्ट’ के नेता मंसूर अब्बास से समर्थन हासिल करें। ऐसा वह करेंगे नहीं। लेकिन अब जंग सरीखे हालात को देखते हुए राजनीतिक समीकरण में परिवर्तन सम्भव है।
इजरायल ने अपने बयान में कहा कि वह इजरायल आने वाले समय में अपने मिलिट्री आॅपरेशन को और तेज करेगा। इजरायली सेना गाजा सीमा पर सैनिकों की संख्या बढ़ाने की तैयारी की। रक्षामंत्रालय ने गाजा सीमा पर रिजर्व फोर्स से 5हजार सैनिकों भेजे जाने का आदेश दिया। वैसे इजरायल और हमास के बीच इस नई जंग ने सन् 2014 की गर्मियों में 50दिनों तक चले युद्ध की याद दिला दी है,जो उसके बाद की सबसे बड़ी है।

इजरायल औ फिलिस्तीनियों के बीच विवाद असल कारण यरुशलम है,जहाँ अक्सर उनके और यहूदियों या पुलिस के साथ झड़पे आएदिन होती ही रहती है। वस्तुतः यरुशलम शहर मुसलमानों ,ईसाइयों ,यहूदियों तीनों धर्मों के लोगों का आस्था का केन्द्र हैं। यहाँ की ‘अल-अक्शा मस्जिद’ मुसलमानों के लिए मक्का और मदीना के बाद तीसरा सबसे पवित्र स्थान है। इसी तरह ईसाइयों का भी येरुशलम में सबसे पवित्र स्थल ‘द चर्च आॅफ द होली सेपल्कर’ है,जहाँ जीसस/ईसा मसीह को इसी स्थान पर सूली पर चढ़ाया और फिर यहीं वे फिर से जीवित भी हुए थे। ऐसे ही यहाँ स्थित ‘वेस्र्टन वाॅल’ यहूदियों के पवित्र मन्दिर का अवशेष है। इजरायल ने सन् 1967 की लड़ाई में यरुशलम के पूर्वी हिस्से पर कब्जा जमा लिया था,जो पहले जाॅर्डन का था। उसके बाद इजरायल इसे अपनी राजधानी मानता आया है,पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे मान्यता अभी तक नहीं मिली है। यहाँ पर किसी भी देश का दूतावास भी नहीं है। यही कारण है कि तेल अवीव को ही इजरायल की राजनीतिक राजधानी माना जाता है। इसी तरह फिलिस्तीनी भी कहते नजर आते हैं कि वह स्वतंत्र देश बनने के बाद अपनी राजधानी यरुशलम को बनायेंगे। इसके लिए फिलिस्तीनी माँग कर रहे हैं कि इजरायल सन् 1967 से पहले की सीमाओं पर वापस लौट जाए। पश्चिमी तट और गाजा पट्टी को फिलिस्तीन को वापस लौटा दे। कुछ ऐसे ही पूर्वी यरुशलम को भी इजरायल मुक्त करे,ताकि वहाँ फिलिस्तीन अपनी राजधानी बना कर सकंे,पर इजरायल फिलिस्तीन की माँगों को सिरे से नकारते हुए यरुशलम को राजधानी और देश का अभिन्न भाग हिस्सा बताता है।
फिलिस्तीन,अरब मुल्क और इजरायल से दुश्मनी के चार कारण और हैं- पहला पश्चिमीतट(वेस्ट बैंक) जो इजरायल और जाॅर्डन के मध्य स्थित है, इस पर इजरायल ने 1967 के युद्ध के बाद अपना कब्जा किया हुआ है। इजरायल और फिलिस्तीन दोनों ही इस इलाके को अपना दावा जताते हैं। दूसरा गाजा पट्टी इजरायल और मिस्र के बीच में अवस्थित है। वर्तमान में यहाँ ‘हमास’ का कब्जा है जो ये इजरायल विरोधी हथियारबद्ध समूह है। सितम्बर, 2005 में इजरायल ने गाजा पट्टी से अपनी सेना को वापस बुला लिया था। सन् 2007 में इजरायल ने इस इलाके पर कई प्रतिबन्ध लगा दिये। तीसरा गोलान की पहाड़ियाँ ( हाइट्स ) हैं । यह राजनीतिक और रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण इलाका सीरिया का एक पठार है। सन् 1967 के बाद से ही इस पर इजरायल के आधिपत्य हंै। इसे क्षेत्र में कब्जे के विवाद को लेकर कई बार शान्ति वार्ता की प्रयास किये गए हैं,पर विफलता ही मिली है।
चैथा पूर्वी येरुशलम में नागरिकता को लेकर दोहरी नीति भी विवाद कारण है। सन् 1967 में पूर्वी यरुशलम पर कब्जे के बाद से ही इजरायल यहाँ पैदा होने वाले यहूदी लोगों को इजरायल की नागरिक मानता है,किन्तु इसी इलाके में पैदा हुए फिलिस्तीनी लोगों को कई शर्तों के साथ यहाँ रहने की अनुमति है।
शर्ताें में विशेष शर्त यह भी है कि एक नियत अवधि से अधिक बाहर रहने पर फिलिस्तीनी की नागरिकता समाप्त कर दी जाती है। इजरायल की इस नीति का कई मानवाधिकार संगठन तथा समूह भी अनुचित ठहरा चुके हंै।

क्यों और कैसे हुई है इजरायल की स्थापना
वैसे भी इजरायल का जन्म की धार्मिक उत्पीड़न और उससे उत्पन्न घृणा के नींव पर हुआ है। यहूदियों, मुसलमानों, ईसाइयों को आपसी बैर सदियों पुराना है।वैसे इन मजहबों के पूर्वज एक ही हैं। लगभग 100साल पहले प्रथम विश्व युद्ध के समय वर्तमान इजरायल तुर्की का हिस्सा था। तुर्की साम्राज्य को आॅटोमन साम्राज्य कहा जाता था। प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की ने मित्र राष्ट्रों के खिलाफ खड़े देशों का साथ दिया था। इस कारण तुर्की और बरतानिया हुकूमत आमने-सामने आ गए। ब्रिटिश शासन की तब तूती बोलती थी। उसे युद्ध में विजय भी मिली। आॅटोमन साम्राज्य का अन्त हुआ था। इस समय यहूदीवाद (जियोनिज्म) की भावना यहूदियों में चरम पर था,जो एक स्वतंत्र यहूदी राज्य बनाना चाहते थे। दूसरे देश ब्रिटेन पर दबाव बनाते रहे कि वे यहूदियों का पुनर्वास करे। ब्रिटेन ये कर न सका और उसने इस मसले से स्वयं को अलग कर लिया, जिसमें ये मामला सन् 1945 में नए -नए बने संयुक्त राष्ट्र संघ के पास चला गया। यू.एन.ने 29 नवम्बर, सन् 1947 को फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बाँट दिया। पहला हिस्सा अरब राज्य और दूसरा इजरायल। इसके साथ येरुशलम की अन्तर्राष्ट्रीय सरकार के अधीन रखा, लेकिन अरब देशों ने यू.एन. के इस निर्णय को मानने से मना कर दिया। इस घटना के एक साल बाद इजरायल ने स्वयं का स्वतंत्र देश होने की घोषणा कर दी। अमेरिका ने इसे मान्यता दी, लेकिन अरब देशों के साथ इजरायल की कभी न बनी और कई युद्ध हुए। अमेरिका का साथ होने के कारण इजरायल ने हर लड़ाई में अरबों का कड़ा मुकाबला किया।
सन् 1948 में यूरोपीय देशों की क्रूरता और अमानवीयता के शिकार यूरोपीय यहूदियों को उनके पूर्वजों की भूमि फिलिस्तान बसाने का निश्चय किया गया,जिसे वे दो हजार साल पहले छोड़ चुके थे। ब्रिटेन ने भी यहूदियों का साथ दिया और कहा कि फिलिस्तीन को वे यहूदियों की मातृभूमि बनने में सहायता करेगा। लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध में ब्रिटेन काफी कमजोर हो गया और उसने स्वयं को इस मसले से अलग कर लिया। ब्रिटेन फिलिस्तीन आने वाले यहूदियों को पहले की तरह सहायता न कर पाया।ये मामला सन् 1945 में नए -नए बने संयुक्त राष्ट्र संघ(यू.एन.ओ.) के पास चला गया। यू.एन.ने 29नवम्बर,सन् 1947 को फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बाँट दिया। पहला हिस्सा अरब राज्य और दूसरा इजरायल । इसके साथ येरुशलम की अन्तर्राष्ट्रीय सरकार के अधीन रखा, लेकिन अरब देशों ने यू.एन. के इस निर्णय को मानने से मना कर दिया।
यहूदीवाद के चलते यूरोपीय तथा अन्य पश्चिमी देशों के यहूदी यहाँ आकर बसे। इस देश की स्थापना और स्वतंत्रता 14मई, सन् 1948 को मिली थी। 29 नवम्बर,सन् 1947 को राष्ट्र संघ ने फिलिस्तान का विभाजन करके एक भाग यहूदियों (ज्यूज)को और एक भाग अरबों को दे दिया। 14मई, सन् 1948 को ब्रिटिश शासन का अन्त हुआ। ‘यहूदी नेशनल कौंसिल’ की स्थापना की गई। हिब्रू पैगम्बर की स्वतंत्रता, शान्ति और न्याय की शिक्षाओं के आधार पर इस राष्ट्र की स्थापना की गई। 15मई,सन् 1948 को यहूदियों ने अपने भाग में इजरायल राज्य के नाम से घोषित कर दिया। हिब्रू पैगम्बर की स्वतंत्रता, शान्ति और न्याय की शिक्षाओं के आधार पर इस राष्ट्र की स्थापना की गई। जब इजरायल राज्य बना ,तो हिब्रू को ही राजभाषा बनाया गया, जो ईसा पूर्व 1200-200ईस्वी के बाद लगभग मृत भाषा थी। इस घटना के एक साल बाद इजरायल ने स्वयं का स्वतंत्र देश होने की घोषणा कर दी। अमेरिका ने इसे मान्यता दी। लेकिन अरब मुल्कों ने इसकी खुलकर मुखालफत की। यहाँ तक कि पड़ोसी अरब देशों ने इजरायल पर आक्रमण कर दिया, सन् 1949 में युद्ध विराम हुआ। अरब देशों के साथ इजरायल की कभी न बनी और कई युद्ध अब तक हो चुके हुए। इजरायल के क्षेत्र एक तिहाई की वृद्धि हो चुकी थी। अमेरिका का साथ होने के कारण इजरायल ने हर लड़ाई में अरबों का कड़ा मुकाबला किया।
इजरायल मध्य-पूर्व ( पश्चिम एशिया) में अवस्थित और तीन ओर से मिस्र,लेबनान,जाॅर्डन और सीरिया और चैथी ओर भूमध्य सागर से घिरा हुआ है।। इसका क्षेत्रफल- 20,772वर्ग किलोमीटर, राजधानी -यरुशलम तथा मुद्रा-न्यू शेकेल है। इस देश की जनसंख्या- 7,708,400से अधिक है,जो यहूदी,इस्लाम,ईसाई धर्म के अनुयायी हैं। द्रूज भी रहते हैं, जो 11वीं सदी में इस्लाम से अलग हो गए थे। इजरायल में रहने वाले अरबों के बारे में यहूदियों का दावा है कि वे भी यहाँ बिना किसी भेदभाव के इजरायल को अपना ही देश मानकर रह रहे हैं।मिस्र के साथ इजरायल की अनके लड़ाइयाँ हुईं। सन् 1956 में स्वेज नहर के संकट ,5जून सन् 1967 को इजरायल ने मिस्र पर हमलाकर उसके 400लड़ाकू विमानों को नष्ट कर दिया। इसी के साथ 6 दिवसीय युद्ध शुरू हो गया। इजरायल के मुकाबले के लिए दूसरे अरब मुल्क जंग में शामिल हो गए।बाद में वे पराजित हुए। फिर 6अक्टूबर, सन् 1973 को मिस्र और सीरिया ने इजरायल पर दोतरफा हमला किया,जो 26अक्टूबर तक चला। इसमें गाजा पट्टी, पश्चिमी तट/जाॅर्डन की नदी, और सिनाई प्रायद्वीप पर इजरायल कब्जा हो गया। सन् 1978 में मिस्र और इजरायल में समझौता वार्ता संयुक्त राज्य अमेरिका के कैम्प डेविड में शुरू हुई। मार्च, सन् 1979 में शान्ति सन्धि पर हस्ताक्षर हुए। अप्रैल, सन् 1992 में इजरायल सिनाई पट्टी से हट गया। 30अगस्त, 1992 को इजरायल ने सीमित फिलिस्तीन स्वायत्ता को सहमति थी। यह 26वर्षों से साथ के क्षेत्रों से सेना के आधिपत्य की समाप्ति का पहला कदम ािा। फिलिस्तीन मुक्ति मोर्चा(पी.एल.ओ.) और इजरायल के मध्य 13सितम्बर को ऐतिहासिक समझौता हुआ। इजरायल और जाॅर्डन ने जुलाई, सन् 1994 में एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करके 46वर्षीय युद्ध की समाप्ति की। अगस्त,सन् 1995 में इजरायल और फिलिस्तीन मुक्ति मोर्चे के मध्य एक समझौते में पश्चिम किनारा/तट में फिलिस्तीन स्वशासन की स्थापना हुई।
जून, 1996 में इजरायल के दक्षिणपंथी (राइट विंग) लिकुड पार्टी के नेता नेतन्याहू ने कहा कि वे कभी भी अलग फिलिस्तीन राज्य को समर्थन नहीं देंगे। इजरायल ने जून, सन् 1997 को येरुशलम में फिलिस्तीनियों द्वारा आत्मघाती बमबारी(सुसाइड बाम्बिंग) में के बाद शान्ति वार्ता बन्द कर दी।इजरायल ने अपने छोटे-से भूभाग में बड़े कौशल और कार्य कुशलता से से कृषि और उद्योग की प्रमुख विशेषताएँ दोनों का विकास किया है। उन्होंने रेगिस्तान को हरा-भरा बना दिया है। कृषि विकास की प्रमुख विशेषताएँ हैं- सामूहिक कृषि, सिंचाई की योजनाएँ और रेगिस्तानी भूमि को खेती के योग्य बनाना। निर्यात को प्रमुख मद है- रसीले फल। शराब बनाने का उद्योग भी व्यापक स्तर पर है हीरा -तराशने के उद्योग में इजरायल का स्थान बेल्जियम के बाद दूसरे स्थान पर है। जाॅर्डन की घाटी और मृत सागर स ेनमक,गन्धक और पोटाश प्राप्त होता है।
अब देखना यह है कि इजरायल फिलिस्तीन के इस्लामिक दहशतगर्द संगठन ‘हमास’ से निपटने के साथ-साथ अपने देश में अरब मूल के लोगों को नियंत्रित करने में कैसे, कब तक और कहाँ सफल होता है? वैसे उसे अपने लोगों और सीमाओं की सुरक्षा करते हुए कम से कम शक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए। उसे दुनिया के सामने भी यह स्पष्ट करना चाहिए कि उसकी जंग फिलिस्तान से नहीं, ‘हमास’ से है। उसके लिए फिलिस्तीनियों के साथ लम्बी लड़ाई और हिंसा अरब देशों के साथ सुधरते राजनयिक और व्यापारिक सम्बन्धों पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है। ऐसे में इजरायल के दुश्मन मुल्कों को उसके खिलाफ एकजुट होने का अवसर मिलेगा। यह न इजरायल और अमेरिका कभी नहीं चाहेंगे।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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