कोरोना संकट पर आधारित लघु कथा-
डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
आधी रात को सोते समय अमोल को अचानक जोर की सर्दी/ठण्ड लगी। फिर उससे पूरा शरीर कांपने लगा। अमोल ने उठकर जल्दी से कूलर बन्द कर दिया। फिर भी जब कंपकंपी बन्द नहीं हुई, तो वह गहरी चिन्ता में डूब गए। उसने मन ही मन सोचा कहीं उसे बुखार तो नहीं आ रहा ? शाम को पौधों को सिंचित करते समय उसे यकायक दो बार जोर की झींकें आयी थीं। उसी समय अमोल संशक्ति हो गया। जब अमोल ने अपनी पत्नी प्रभा को काढ़ा बनाने को कहा, तब उसने चैंकते हुए कहा,‘‘ कुछ समय पहले ही तो आप ने पीया था? इस पर अमोल ने कहा,‘‘ हाँ, लेकिन अभी कुछ देर पहले ही मुझे जोर की झींकंे आयी हैं, मुझे यह लक्षण सही नहीं लग रहे हैं।’’ ‘‘अरे! आप दिनभर अखबारों और टेलीविजन चैनलों पर कोरोना से संक्रमित हुए लोगों के बीमार पड़ने, मरने और श्मशान और कब्रिस्तान में बड़ी संख्या में मृतकों के जलने-दफनाने से सम्बन्धित समाचार ही पढ़ते-देखते रहते हों। इससे आपकी मानसिक स्थिति सही नहीं रही है। आपके मन-मस्तिष्क में कोरोना महामारी का भय भर गया। अब आगे से ऐसे समाचारों पर अधिक ध्यान मत दिया करो। वैसे कोरोना से आप कहाँ और कैसे संक्रमित हो गए? साल भर से तो आप भूल से भी घर से बाहर नहीं निकले हो?’’ इस पर अमोल उल्टे प्रभा पर ही यह आरोप लगाने लगा,‘‘ हो सकता है कि तुम सब्जी वाले से या दूध वाले से कोरोना ले आयी हो?’’
‘‘यदि मैं कोरोना लेकर आती,तो सबसे पहले मैं ही संक्रमित होती आप नहीं?प्रभा ने झिड़कते हुए अमोल से कहा। प्रत्युत्तर में अमोल ने कहा, ‘‘इससे क्या कोरोना घर में तो आ गया?’’ ‘‘खैर, आप अपनी बात तो छोड़िए ही, आप ने अखबार पढ़ना बन्द कर दिया था। एक दिन दूधिया काशी कमरे के अन्दर आकर दूध देने आ गया, तो आपने उसे बहुत जोर से डाँटा। तब वह कान पकड़ कर क्षमा माँगने लगा, फिर भी आप न जाने क्या-क्या बड़बड़ाते रहे। उस दौरान आप न किसी के मांगलिक कार्यक्रम में शामिल हुए और न अन्तिम यात्रा में ही। यहाँ तक कि अपने यार-दोस्तों से ही नहीं, निकट रिश्तेदारों से भी दूरी बना रखी है। यहाँ तक कि आप उनसे मोबाइल पर बात करने से भी इस डर से बचते रहे हो कि कहीं वह आप से मिलने घर न आ जाएँ। पिछले महीने जब आपके बहनोई रजनीश जी अचानक घर आ गए थे, तब भी आप उनके सामने नहीं आए। आपने मुझे से कहलवा दिया कि वह किसी जरूरी काम से दिल्ली गए हुए हैं।’’
जब कोई कोरोना संक्रमित आसपास निकल आता, तो अमोल अपनी सर्तकता और होशियारी पर इतरने लगते। देखो! जरूर बेवकूफ और लापरवाह होगा? लोगों से मिलने जाता होगा, या फिर खुद मिलने चला जाता होगा। अब भुगते। अब उसके घर के बाहर स्वास्थ्य विभाग कोरोना संक्रमित का बड़े-बेड़ पोस्टर-बैनर तथा बाड़ लगा जाएगी। सबके सामने तमाशा बन जाएगा। यह कह अमोल हाँ-हाँ हँस पड़ा। तब चिढ़ कर प्रभा ने कहा, ‘‘उसने ऐसा क्या किया या नहीं किया?, पता नहीं। लेकिन आपकी तरह भी नहीं होना चाहिए। अगर सभी लोग आपकी तरह हो जाएँ, तो न अस्पतालों ,नर्सिंगों होमों में नर्से, डाॅक्टर इलाज कर पाएँगे और न कोरोना मरीजों के परिजन उनकी देखभाल। भला क्या कोई अपनी पत्नी के साथ ऐसा बर्ताव करता है, जैसे पिछले साल आपने मेरे साथ किया था ? जब मुझे जरा-सा खाँसी-जुखाम हुआ था, तब आप ने मुझ से भी दूरी बना ली तथा दूसरे कमरे में रहने लगे थे। मुझे तो ऐसा लगता है कि आपको ‘कोरोना फोबिया’ हो गया है। आप तो घर में भी हर समय मास्क लगाए रहते हो। यहाँ कि मुझ से और बच्चों से भी दूर बनाए रखते थे।’’
विचारों की इसी श्रृंखला में अमोल सोचने लगा कि कहीं मुझे कोराना का संक्रमण तो नहीं हो गया। अगर हो गया, तो कब, कहाँ से हुआ? वैसे भी जब से कोराना विषाणु से उत्पन्न महामारी ने दुनिया को अपने आगोश में लिया, तब से ही अमोल विशेष सावधानी बरतता आया था। अमोल ने चीन , अमेरिका, यूरोप, दक्षिण अमेरिका के विभिन्न देशों समेत अपने देश के अलग-अलग शहरों में ही नहीं,अपने शहर में भी लोगों कोरोना के चपेट में आकर असमय मरते देखा है। कोरोना के बचाव से सम्बन्धित जितनी सर्तकता-सावधानियाँ देश-विदेश के चिकित्सकों द्वारा सुझायी गयी थीं। अमोल यथा सम्भव उनका सभी का अनुसरण करता आया था। ऐसे में ठण्ड लगने के बाद कंपकंपी ने अमोल को बेचैन कर दिया। अमोल ने तुरन्त उठकर कूलर ही नहीं, बल्कि पंखा भी बन्द कर दिया। फिर कम्बल ओढ़ लिया। इसके बाद कंपकपी तो बन्द हो गई, पर शरीर तप रहा था। जैसे -तैसे रात कटी। सुबह ही शहर के सबसे नामी अस्पताल में जाकर चिकित्सक को दिखाया, तो उसने दूर से ही से देख कर उसे कोविड-19की जाँच कराके लाने का परामर्श दे दिया।
इसके बाद कोविड जाँच केन्द्र पर पहुँचा, वहाँ लगी लम्बी लाइन में लगे लोगों को देख कर घबरा गया। इनके बीच खड़े होकर जरूर कोरोना संक्रमित हो जाऊँगा। लेकिन तब उसके दोस्त रोमेश ने जैसे-तैसे समझा कर अमोल को लाइन में खड़े होकर जाँच कराने को राजी किया। जाँच रिपोर्ट दो दिन बाद तक आ पाएगी, यह सुनकर अमोल परेशान हो गया। उसने रोमेश से पूछा,‘‘अगर इस मुझे कुछ हो गया, तो क्या होगा?’’ तब रोमेश ने कहा ,होगा ,क्या होगा, अरे! अब तक जो सर्तकता-सावधानियाँ बरतते आए हो, वही सब करो। इसके अलावा योग करो तथा काढ़ा पीयो और अपने और परिवार के लोगों को खुश रखो।’’ फिर भी अमोल पर उसके कहे का कुछ असर नहीं हुआ। वह अनमाना-सा घर लौट आया। दो दिन अमोल ने ‘कोरोना संक्रमण’के भय के साये में जैसे-तैसे काटे। इस बीच उसने हवा के जरिए कोरोना फैलने की खबर पढ़ ली,जो एक विदेशी स्वास्थ्य सम्बन्धी पत्रिका ‘लेसेण्ट’ में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद उसका मास्क से भी भरोसा उठ गया। अमोल सोचने लगा कि अब इस हवा में फैले कोरोना से कैसे बचाव करेगा? जब अमोल की जाँच रिपोर्ट ‘कोरोना पाॅजिटिव’ होने की आयी, तो वह घबरा कर दोनों हाथों से माथा पीटते हुए धम्म से सोफे पर बैठ गया। ‘‘अब मेरा क्या होगा?’’यह कह कर अमोल बच्चो की तरह फूट-फूट कर रोना लगा।
तब सांत्वना देते हुए प्रभा ने कहा,‘‘ कुछ नहीं होगा, आप को। अब आप को योग, काढ़े के साथ कुछ दवाएँ खानी हैं और जल्द ही ठीक हो जाएँगे। अब फर्क इतना है कि पहले आप लोगों से मिलने-जुलने से बचते थे, अब वे आपसे बचने की कोशिश करेंगे।’’
लेकिन प्रभा चैदह दिन कमरे में अकेले कैसे रह पाऊँगा? अमोल ने कातर स्वर में कहा। इस पर प्रभा ने कहा,‘‘ क्यों? आपको क्या मुश्किल होगी। आप तो पहले से ही ऐसा करते आए हो? अब आप जीभर कर टी.वी.देखना, अखबार और कुछ किताबें पढ़ना, कपड़े धोना, कमरा, लैट्रिन, बाथरूम साफ करना है,इतने काम कम हैं,क्या? अगर ऐसा हो,तो आप अपनी चाय, नश्ता,खाना,काढ़ा भी बना लिया करना।’’
‘‘ प्रभा! क्या तुम भी मुझ से दूरी बना कर रहोगी? अमोल ने पूछा। ‘‘हाँ, बेशक। यह तो आपके हित में हैं, अगर ऐसा न किया,तो क्वारंटाइन का मतलब ही क्या रह जाएँगा?’’ प्रभा ने जवाब दिया।
थोड़ी देर बाद जब बड़ा बेटा सलिल घर आया और उसे पापा के कोरोना संक्रमित होने की जानकारी हुई, वैसे ही उसने मम्मी अब इस घर में साथ रहना ठीक नहीं है, आपकी बहू मीरा तथा बच्चे भी संक्रमित हो सकते हैं। मेरे बिल्डर दोस्त की बहुमंजिला बिल्डिंग में अभी कई पलैट खाली हैं, मैं वह चला जाता हूँ,जब पापा ठीक हो जाएँगे,लौट आऊँगा। बच्चों को अच्छा लगा,तो उसे खरीद भी लूँगा और वही बस जाऊँगा।’’ यह सुनकर अमोल का शरीर गुस्से में काँपने लगा। क्या इतने धतकरम करे औलाद को इसीलिए पाला था कि जब मुश्किल समय आए तो माँ-बाप को अकेले छोड़कर निकल जाओ? अगले क्षण उसे याद आया, उसने भी अपने बूढ़े माँ-बाप के साथ यही तो किया था? इसमें सलिल नया क्या कर रहा है ? तभी छोटे बेटे अम्बुज को फोन आ गया। उसने कहा,‘‘मम्मी! बड़े भइया ने बताया कि पापा को कोरोना हो गया। अब मैं घर आकर क्या करूँगा? फालतू मैं भी उसकी चपेट में आ जाऊँ।इससे तो अच्छा यही रूक जाऊँ।’’ इस दौरान कोरोना के तेजी से फैलने को देखते हुए प्रशासन ने रात्रि कालीन कफ्र्यू के साथ-साथ सप्ताह में दो दिन का लाॅक डाउन लगा दिया।
‘‘प्रभा! अब घर की जरूरत का सामान कौन लाएगा?’’ अमोल ने भविष्य के संकटों को देखकर पूछा। इस पर प्रभा ने कहा,‘‘ जैसे पहले लाॅक डाउन में हुआ था। वैसा ही अब होगा। सारे लोग आप और हमारे बच्चों की तरह नहीं हैं।’’
अमोल को अब अहसास हो रहा है कि कैसे कुछ लोग अपने जीवन को जोखिम में डाल कर सब्जी लाकर बेच रहे थे,कई मीलों दूर से दूध घर-घर पहुँचा रहे हैं,?उन्हें अपने बच्चों को पालना है,घर चलाना है। फिर अगर ये ऐसा न करें, तो हम जैसे लोगों का जीवन कितने दिन सुरक्षित रह पाता? सम्भवतः ऐसे ही संकट के लिए तुलसीदास जी ने ‘रामचरित मानस’ में लिखा है,‘‘ धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परखिए चारी……’’ अब मैं आज से ही स्वयं को और दूसरों को इसी कसौटी पर रख कर परखने का प्रयास करूँगा।
यदि सभी लोग मेरी और मेरे बच्चों की तरह सोचन लगें, तो न दाम्पत्त्य जीवन चलेगा और न ही परिवार तथा समाज। शायद यही कारण है कि आम आदमी अपने जीवन को जोखिम में डालकर भी पत्नी पति की, पति पत्नी और बच्चों की देखभाल करता, भले ही प्राणों को खतरा कितना ही गम्भीर क्यों न हो?
‘‘क्या सोच रहे हैं?’’ प्रभा ने पूछा।
‘‘वही जो अभी तुमने कहा’’ अमोल ने जवाब दिया। प्रभा ने आग्रह करते फिर पूछा, ‘‘फिर भी’’?
‘‘ यही कि यदि ऐसा नहीं होता है,तो दाम्पत्त्य जीवन, परिवार और समाज के माने ही क्या हैं?’’यह कह कर अमोल खुशी-खुशी अपने कमरे में चला गया। प्रभा ने देखा अमोल के चेहरे से कोरोना के संकट से उत्पन्न भय अब गायब हो गया है, जो कुछ समय पहले तक उसे क्लान्त बनाए हुआ था।
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